Premchand Ke Phate Jute Class 9 :
Premchand Ke Phate Jute Class 9 Summary
प्रेमचंद के फटे जूते का सारांश कक्षा 9
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“प्रेमचंद के फटे जूते” पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई जी हैं। इस पाठ में “जनता के लेखक” कहे जाने वाले प्रेमचंद जी के सरल व सादगी पूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाया गया है। साथ में ही लेखक ने आज के लोगों की अवसरवादी प्रवृत्ति व दिखावे की संस्कृति पर भी करारा प्रहार किया है।
परसाई जी कहानी की शुरुआत प्रेमचंद्र की उनकी धर्मपत्नी के साथ एक फोटो को देखकर करते हैं। जिसमें प्रेमचंद जी ने अपने पैरों में फ़टे जूते पहने हैं। और उनके बांये पैर के जूते में एक बड़ा सा छेद दिखाई दे रहा है जिससे उनके पैर की अंगुली बाहर निकल रही है। लेखक की दृष्टि बस इसी जगह अटक जाती हैं।
लेखक मन ही मन में सोच रहे कि अगर प्रेमचंद्र के पास फोटो खिंचवाने की ऐसी पोशाक है तो , उनके पास रोजमर्रा के जीवन में पहनने वाली पोशाक कैसी होगी।
क्योंकि आजकल आपने देखा होगा कि फोटो खींचवाने के लिए लोग क्या – क्या नहीं करते हैं। नये नये व फैशनेबल कपड़े व जूते आदि पहनकर फोटो खींचवाई जाती हैं। यानि आजकल लोग काफी बन -सँवर कर फोटो खिचवाना पसंद करते हैं।
लेखक प्रेमचंद्रजी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि फोटो खींचवाने के लिए थोड़ा तैयार हो जाते , थोड़ा कपड़े ही बदल लेते। फिर लेखक सोचते हैं कि शायद पत्नी के कहने पर फोटो खिंचवा रहे होंगे। इसीलिए क्या पहना है क्या नहीं। इसका ध्यान नहीं रखा होगा ।
लेखक कहते हैं कि फोटो खिचवाने वक्त मुस्कुराने की परंपरा होती हैं। इसीलिए लोगों की तरह आपने भी मुस्कुराने की कोशिश की होगी। मगर आपके चेहरे पर मुस्कान आने में कुछ समय लग गया होगा। लेकिन फोटोग्राफर को इतना सब्र कहाँ कि वो आपके चेहरे पर पूरी मुस्कान आने का इंतजार करता। इसीलिए उसने आधी-अधूरी मुस्कान में ही फोटो खींच दी होगी।
इसीलिए यह मुस्कान , मुस्कान से ज्यादा उन लोगों पर व्यंग दिखाई दे रही है जो दिखावे के लिए बहुत कुछ करते हैं। मगर इन फटे जूतों में फोटो खिंचवाने पर भी तुम्हारे चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा है।
लेखक के अनुसार प्रेमचंद बहुत सीधे-साधे , सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वो दिखावे से काफी दूर रहते थे। इसीलिए वो जैसे थे , वैसे ही फोटो खींचवाने बैठ गए। लेखक आगे कहते हैं कि “हे मेरे पूर्वज , तुम्हें जरा सा भी यह एहसास नहीं है कि तुम फ़टे जूते पहन कर फोटो खिंचवा रहे हो। और ऐसा जूता पहनने में तुम्हें कोई संकोच भी नहीं हो रहा है।
इस तरह फोटो खिंचवाने से तो अच्छा होता कि तुम फोटो खिंचवाते ही नहीं। क्या तुम्हें फोटो का महत्व पता नहीं है। फोटो एक ऐसा छायाचित्र होता हैं जो यादगार के रूप में हमेशा इंसान के साथ रहता हैं।
यहां पर लेखक ने प्रेमचंद को “मेरे पूर्वज” शब्द से संबोधित किया है। क्योंकि प्रेमचंद्र लेखक से पहले के महान साहित्यकार व कथाकार है। उन्हें “कथा-सम्राट” भी कहा जाता हैं। इसीलिए लेखक ने उन्हें अपना पूर्वज बताया है।
लेखक कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि लोग तो फोटो खींचवाने के लिए परफ्यूम तक लगा लेते हैं जबकि फोटो में परफ्यूम की खुशबू महसूस भी नहीं होती हैं। यानि आदमी फोटो खींचने के लिए अपनी असलियत तक छुपा देता है । अपनी सभी कमजोरियों को छुपा देता है और समाज के आगे अपने आप को बेहतरीन प्रस्तुत करता है।
लेखक कहते हैं कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए क्या-क्या नही करते हैं। कुछ लोग तो फोटो खींचवाने के लिए दूसरों से न सिर्फ जूते , कपड़े बल्कि उनकी पत्नियों तक को उधार मांग लेते हैं। और एक तुम हो , जिसने फोटो खिंचवाने के लिए एक टोपी तक नहीं पहनी है जो सिर्फ आठ आने में मिल जाती है। टोपी यहां पर इज्जत का प्रतीक हैं और जूते दिखावे के।
लेखक प्रेमचंदजी से कहते हैं कि तुम एक महान कथाकार , उपन्यासकार , युग प्रवर्तक कहलाते हो। मगर तुम्हारे पास पहनने को जूते तक नहीं है।
लेखक यहां पर थोड़ा अपने बारे में भी बताते हुए कहते हैं कि मेरा जूता भी बहुत अच्छा नहीं है। मगर वह ऊपर से दिखने में ठीक -ठाक है। उससे मेरे पैर की अंगुलियों बाहर भी नहीं दिखती है। लेकिन मेरे जूते का तला पूरी तरह से फट गया है जिससे मेरा अंगूठा रगड़ खाकर छील चुका हैं।
लेकिन मैं तुम्हारे जैसे फटे जूते पहनकर अपनी फोटो नहीं खिंचवाऊंगा। क्योंकि लोगों को मेरी फटे हाल आर्थिक स्थिति का पता चल जाएगा। यानि लेखक आर्थिक स्थिति बाहर से तो अच्छी दिखती है लेकिन अंदर से अच्छी नहीं है।
लेखक प्रेमचंदजी से कहते हैं कि भले ही तुम्हारा जूता फट गया हो लेकिन इसके बावजूद तुम्हारा वजूद और व्यक्तित्व बिल्कुल सुरक्षित है। तुम पर्दे का महत्व नहीं समझते हो और हम पर्दे पर कुर्बान हुए जाते हैं। इसीलिए तुम मुस्कुरा रहे हो।
लेखक प्रेमचंद से पूछते हैं कि “मेरी जनता का लेखक” यह मुस्कान तुमने माधो , होरी , हल्कू या किससे उधार माँगी हैं। ये सब प्रेमचंद की कहानी के पात्र हैं। प्रेमचंद जी को “आम आदमी का कहानीकार” माना जाता है। इसीलिए उनको “मेरी जनता का लेखक” कहा गया है। उन्होंने गरीब , लाचार और शोषित वर्ग के दर्द को अपनी कहानियों के जरिये बयां किया है।
लेखक प्रेमचंदजी से कहते हैं कि तुम यहां – वहां बहुत चक्कर काटते हो। और कभी-कभी बनिया की उधारी से बचने के लिए इधर-उधर भागते फिरते हो। इसीलिए तुम्हारा जूता फट गया होगा। लेकिन चलने से तो जूते का तलवा घिसता है। जूते का ऊपरी भाग फटकर वहां से अंगुली बाहर नहीं आती है। यानि तुमने जूते से किसी सख्त चीज में ठोकर मारी होगी। तभी तो तुम्हारा जूता ऊपर से फट गया हैं।
प्रेमचंद जी ने अपनी लेखनी से रूढ़िवादिता , अंधविश्वास , कुरीतियां पर करारी चोट की हैं। यहां पर “सख्त चीज” का अर्थ यही है।
लेखक कहते हैं कि तुम इन सब से बच कर निकल भी तो सकते थे लेकिन तुम नहीं निकले। इसलिए तुम्हारा जूता फट गया है। समझौता कर लेते , आसान रास्ता अपना लेते। ठोकर मारने की क्या जरूरत थी ? तुम उसे अनदेखा कर उसके बगल से भी तो निकल सकते थे । जैसे सभी नदियां पहाड़ तोड़ कर ही नहीं बहती हैं। कुछ नदियां अपना रास्ता बदलकर भी तो बहती है।
यहाँ पर लेखक यह कहना चाहते हैं कि प्रेमचंदजी ने अपनी कहानियों व उपन्यासों के माध्यम से हमेशा सामाजिक कुरीतियां , रूढ़िवादिता व अंधविश्वास का विरोध किया। उन्होंने गरीब तबके के लोगों के दुःख दर्द को अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया हैं। वो चाहते तो किसी सरल व मनोरंजन के विषय में भी लिख सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नही किया।
इसके बाद लेखक प्रेमचंदजी के व्यक्तित्व की विशेषताएं बताते हुए कहते हैं कि तुम कभी समझौता नहीं करते हो , तुम संघर्ष करते हो , तुम स्वाभिमानी हो। लेखक कहते हैं कि जिसे तुम धृणित समझते हो , उसकी तरफ तुम हाथ की अंगुली से नहीं , बल्कि पैर की उंगली से इशारा करते हो।
यानि तुम अपनी अंगुली का महत्व कम नहीं करना चाहते हो। लेकिन मैं तुम्हारी इस अंगुली का इशारा और व्यंग भरी मुस्कान को भी खूब समझता हूँ।
हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय
हरिशंकर परसाई का जन्म सन 1922 में जमानी गांव में हुआ था , जो वर्तमान में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित हैं। परसाई जी ने नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल की। उसके बाद वो अध्यापन कार्य से जुड़ गए।सन् 1947 में वो स्वतंत्र लेखन करने लगे। और सन 1995 में इनका निधन हो गया।
प्रमुख कार्य
कहानी संग्रह – हंसते हैं रोते हैं , जैसे उनके दिन फिरे।
उपन्यास – रानी नागफनी की कहानी और तट की खोज।
निबंध संग्रह – तब की बात और थी , भूत के पांव पीछे , बेईमानी की परत , पगडंडियों का जमाना , सदाचार का ताबीज , शिकायत शिकायत मुझे भी है।
व्यंग्य संग्रह – वैष्णव की फिसलन , तिरछी रेखाएं , ठिठुरता हुआ गणतंत्र , विकलांग श्रद्धा का दौर।
पत्रिका – वसुधा।
Premchand Ke Phate Jute Class 9 Summary
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