Megh Aaye Class 9 Explanation
मेघ आए कविता का सारांश
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Megh Aaye Class 9 Explanation
इस कविता में कवि ने बादलों की तुलना दामाद (बेटी का पति) से की हैं जो शहर से लंबे समय बाद अपने गांव (ससुराल) पहुंचा हैं । जिसके आने की खबर उसके गांव पहुंचने से पहले , गांव की किशोरियों दौड़ती-भागती गांव वालों को दे देती हैं।
गांव के सभी लोग उत्सुकता बस उस मेहमान को देखते हैं और गांव के बड़े बुजुर्ग आगे बढ़कर उस मेहमान का स्वागत करते हैं। घर पहुंचने पर घर के किसी सदस्य द्वारा परात (एक तांबे या पीतल का बड़ा बर्तन) में पानी भरकर उसके पैर धोए जाते हैं।
पति को घर आया देखकर पत्नी भी खुश हो जाती है और उसके मन से यह संदेह भी निकल जाता है कि उसका पति नहीं लौटेगा और वह मन ही मन अपने पति से माफी मांगती है। दोनों के मिलन से खुशी के आंसू बहने लगते हैं।
कवि ने इस पूरी कविता में मानवीकरण अलंकार का बहुत खूबसूरत प्रयोग किया है। जैसे बादल को मेहमान , पीपल के पेड़ को गांव के बड़े बुजुर्ग , लता को घर की बेटी , धूल को गांव की किशोरी , नदी को गांव की बहू और धरती को नायिका के रूप में दिखाया है।
कवि ने बादलों की तुलना बन संवर कर लम्बे समय बाद गांव आने वाले मेहमान से की है। बादलों के आने से जहां धरती प्रसन्न होती है। भीषण गर्मी के कारण प्यासे पौधों को भी पानी मिलता है। जिससे उनमें पुनः जान आ जाती है। तालाब , नदियां पानी से लबालब भर जाते हैं और वर्षा के आने से या घने बादलों के छाने से धरती के सभी लोग प्रसन्न हो जाते हैं।
दरअसल ये कविता दो अर्थो में कही गई हैं। एक तो आकाश में धने बादलों के छाने व झमा-झम बरसने से धरती , पेड़-पौधें , नदी , तालाब पुनर्जीवित हो जाते हैं। दूसरा इसमें ग्रामीण सांस्कृतिक परिवेश को भी दर्शाया गया है जिसमें गांव में अगर कोई मेहमान आता है तो पूरा गांव प्रसन्न हो जाता है और उसकी खातिरदारी में लग जाता है। यह पुराने समय की बात है। आजकल ऐसा कम ही देखने को मिलता है।
Megh Aaye Class 9 Explanation
मेघ आए कविता का भावार्थ
काव्यांश 1.
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली ,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली ,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जिस प्रकार लंबे समय बाद जब एक दामाद अपने ससुराल सज धज कर आता है , तो गांव की नवयुवतियों (किशोर लड़कियों) उसके आने की खबर पूरे गांव वालों को उसके गांव पहुंचने से पहले ही दे देती हैं और सभी लोग अपने घरों की खिड़कियों और दरवाजे गली की तरफ खोल कर शहर से आए अपने उस दामाद को देखने लगते हैं।
ठीक उसी प्रकार जब भीषण गर्मी के बाद वर्षा ऋतु का आगमन होता है और काले-काले धने , पानी से भरे हुए बादल आकाश में छाने लगते हैं। उन बादलों के आकाश में छाने से पहले तेज हवायें चलने लगती हैं जो काले धने बादलों के आकाश में छाने का संकेत देती है।
कवि आगे कहते हैं कि तेज हवाओं के कारण घर के दरवाजे व खिड़की खुलने लगती हैं। लोग अपने घरों से बाहर निकल कर उत्सुकुतावश आकाश की तरफ देखने लगते हैं और आकाश में काले-काले धने बादलों को देखकर सबके मन उल्लास व प्रसन्नता से भर जाते हैं।
उस समय ऐसा प्रतीत होता है मानो शहर से रहने वाला बादल रूपी दामाद बड़े बड़े लंबे समय बाद बन सँवर कर गांव लौटा हो। “पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के” में उत्प्रेक्षा अलंकार हैं। गली-गली में पुनरुक्ति अलंकार हैं।
काव्यांश 2.
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ –
जब तेज हवाएं बहने लगती है तो पेड़ कभी नीचे की तरफ झुक जाते हैं तो कभी ऊपर की तरफ उठ जाते हैं। उन पेड़ों को देखकर ऐसा लगता हैं जैसे गांव के लोग (यहां पर पेड़ों की तुलना गांव के लोग से की हैं) अपने उस मेहमान को गरदन उचका-उचका कर देख रहे हैं ।यानि जैसे गांव के सभी लोग शहर से आये अपने उस मेहमान को एक नजर भर देख लेना चाहते हो।
तेज आंधी के आने से धूल एक जगह से उड़ कर तेजी से दूसरी जगह पहुंच जाती है। कवि ने उस धूल की तुलना गांव की उस किशोरी से की हैं जो मेहमान के आने की खबर गांव के लोगों को देने के लिए अपना घागरा उठा कर तेजी से भागती हैं। कवि को ऐसा लगता है कि जैसे गांव की किशोरी मेहमान के आने की खबर गांव वालों को देने के लिए अपना घागरा उठाए दौड़ रही है।
अगली पंक्तियों में कवि नदी को गांव की एक बहू के रूप में देखते हैं। जो गांव में दामाद के आने की खबर सुनकर , थोड़ा रुक कर और अपने घुंघट को थोड़ा सरका कर , तिरछी निगाहों से , उस दामाद की झलक पाना चाहती है। यानि आकाश में बादलों के आने से नदी में भी हलचल शुरू हो जाती हैं क्योंकि बादल रूपी दामाद बड़े बन सँवर कर लौटे हैं।
काव्यांश 3.
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ –
तेज हवाओं के चलने के कारण बूढा पीपल का पेड़ कभी झुक जाता है तो कभी ऊपर उठ जाता हैं। पीपल के पेड़ की बहुत लंबी उम्र होती है। इसीलिए यहां पर उसे “बूढा” कहा गया है ।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जैसे गांव में कोई मेहमान आता हैं तो गांव के बड़े -बुजुर्ग आगे बढ़ कर उसका स्वागत करते हैं। उसको प्रणाम करते हैं। ठीक उसी प्रकार बादलों के आने पर बूढ़े पीपल के पेड़ ने झुक कर उसका स्वागत किया और उसको प्रणाम किया।
कवि आगे कहते हैं कि उस बूढ़े पीपल के पेड़ से लिपटी लता (बेल) भी थोड़ी हरकत में आ गई। कवि ने यहां पीपल से लिपटी हुई लता को घर की बेटी के रूप में माना है जो घर आये उस मेहमान को किवाड़ की ओट से देखती है। यानि भीषण गर्मी में प्यासी लता बादलों के आने से बेहद खुश हैं।
साथ ही साथ वह (लता) मेहमान (बादल) से शिकायत भी कर रही है कि पूरे एक साल के बाद तुमने मेरी खबर ली क्योंकि बरसात का मौसम साल भर के बाद आता है।
जैसे पुराने समय में दामाद के घर आने पर परात में उसके पैर रखकर , घर के किसी सदस्य द्वारा पानी से उसके पैर धोये जाते थे। यहां पर तालाब को उसी सदस्य के रूप में माना गया है। कवि कहते हैं कि तालाब खुश होकर परात के पानी से उस मेहमान के पैर धोता है। तालाब इसलिये खुश हैं क्योंकि बरसात में पानी से वह फिर से भर जायेगा।
काव्यांश 4.
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जिस प्रकार अटारी (ऊंची जगह ) पर पहुंचे अपने पति को देखकर पत्नी का तन-मन खुशी से भर जाता है। उसके मन में जो संदेह था कि उसका पति नहीं लौटेगा। अब वह भी दूर हो चुका हैं क्योंकि अब उसका पति लौट चुका है। वह मन ही मन उससे माफी मांगती है और दोनों के मिलन से खुशी के आंसू छलक पड़ते हैं।
ठीक उसी प्रकार बादल (पति) क्षितिज ( जहाँ धरती आसमान मिलते हुए प्रतीत होते हैं ) में छा चुके हैं। और बिजली जोर जोर से चमकती हैं। क्षितिज पर छाये बादलों को देखकर धरती (पत्नी) बेहद प्रसन्न हैं। उसका यह संदेह भी समाप्त हो जाता कि वर्षा नहीं होगी।
यानि अब धरती को पक्का विश्वास हो जाता हैं कि बादल बरसेंगे और फिर बादल और बिजली के मिलने से झर-झर कर पानी बरसने लगता हैं और धरती का आँचल भीग जाता हैं।
कवि का जीवन परिचय
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में M.A. की पढ़ाई पूरी की। वो दिनमान पत्रिका के उपसंपादक व बाल-पत्रिका पराग के संपादक भी रहे। संन 1983 में उनका निधन हो गया।
प्रमुख रचनाओं
काव्य संग्रह – खूँटियों पर टंगे लोग , काठ की घंटियों , बांस का पल , एक सूनी नाव , गर्म हवाएं , जंगल का दर्द आदि।
लघु उपन्यास – पागल कुत्तों का मसीहा
नाटक – बकरी
पुरस्कार –
सन 1983 में उन्हें “साहित्य अकादमी पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।
Megh Aaye Class 9 Explanation ,
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