Dadi Maa Class 7 Summary :
Dadi Maa Class 7 Summary
दादी माँ कक्षा 7 सारांश
“दादी माँ” , शिव प्रसाद सिंह जी द्वारा लिखित एक संस्मरण (पुरानी यादें) हैं जिसमें उन्होंने अपनी दादीमां के दयालु स्वभाव , उनकी दूरदर्शिता , समझदारी व उनकी कार्य शैली का वर्णन बहुत ही खूबसूरती से किया है। विपत्ति के समय परिवार के अनुभवी बड़े बुजुर्ग किस तरह अपने परिवार को विपत्ति से बाहर निकलने में उनका सही मार्गदर्शन करते हैं। इस बात को उन्होंने बड़ी सरलता से समझाया है।
हालाँकि अब लेखक बड़े हो चुके हैं। उन्होंने अब तक अपने जीवन में सभी तरह की सुख सुविधाओं को देखा हैं। इसीलिये थोड़ी सी समस्या आने पर उनका मन बहुत जल्दी खराब हो जाता हैं। उनकी मित्र मंडली उनके सामने , उनके साथ होने का दिखावा तो करती हैं लेकिन उनके पीठ पीछे “कमजोर व्यक्ति” कहकर उनका मजाक उड़ाती हैं । ऐसे में लेखक को अपनी दादीमां व उनके साथ बिताया हुआ समय बहुत याद आता है।
लेखक को अचानक अपने बचपन के क्वार के दिन बहुत याद आ जाते हैं। “क्वार महीने” को “आश्विन माह” भी कहा जाता हैं। यह बरसात खत्म होने के बाद का समय (लगभग सितंबर – अक्टूबर) होता हैं । बरसात के दिनों में बहकर आया पानी लेखक के घर व उनके गावं के चारों ओर जमा हो जाता था। उस बरसात में पानी के साथ बहकर आयी धासफूस कुछ दिनों बाद सड़ जाती थी जिस कारण पानी कुछ दिनों में काफी बदबू मारने लगता था।
लेकिन लेखक को इसी बदबूदार पानी में दिन भर उछलना – कूदना अच्छा लगता था। हालाँकि उस बदबू भरे पानी में उछलने – कूदने के बाद उन्हें बुखार आ जाता था। लेकिन उन दिनों उन्हें हल्का बुखार आना भी अच्छा लगता था क्योंकि बीमारी में दिन भर उनकी खूब देखभाल होती थी और खाने को नींबू और साबू मिलता था। परंतु इस बार जब उन्हें बुखार आया तो वह उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। उनकी दादी उनके माथे पर कोई अदृश्य शक्तिधारी चबूतरे की मिट्टी लगती थी और दिनभर उनकी देखभाल करती थी। उनके खाने -पीने का विशेष ध्यान रखती थी।
दादीमां को गांव में मिलने वाली पच्चासों (50) दवाइयां के नाम याद थे। गाँव में कोई भी बीमार पड़ता तो वहां भी दादी माँ की दवाइयों और उनकी सलाह ही काम करती थी। उन्हें गंदगी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। लेखक को बुखार तो आजकल भी आता है। उनका नौकर उन्हें पानी दे जाता हैं। उनके मेस महाराज (खाना बनाने वाला Cook) अपनी इच्छा अनुसार उनको खाना बनाकर दे देते हैं और उनकी देखभाल भी करते हैं। डॉक्टर की शक्ल देखते ही उनका बुखार भाग जाता है। अब लेखक को बीमार पड़ने का मन नहीं करता है।
एक दोपहर को जब लेखक घर लौटे तो उनकी दादीमां रामी की चाची को डांट रही थी। असल में रामी की चाची ने दादीमाँ से कुछ पैसा उधार लिया था जो उसने अब तक वापस नहीं किया था और अब दोबारा वह दादी से पैसे मांगने आ गई थी। वह दादीमां के आगे गिड़गिड़ा रही थी कि उसकी बेटी की शादी है। उसके बाद वो उनके सब पैसे वापस लौटा देगी। लेखक ने अपनी दादी को रामी की चाची को पैसे देने को कहा परंतु दादी ने उन्हें भी खूब डांटा। कई दिनों बाद लेखक को पता चला कि उनकी दादी ने रामी की चाची का न सिर्फ पिछला कर्जा माफ कर दिया बल्कि उनकी बेटी की शादी को भी 10 रूपये दिये थे।
किशन भैया की शादी थी लेकिन बुखार होने की वजह से लेखक अपने किशन भैया की बारात में नहीं जा सके। दादीमां ने लेखक को अपने पास ही चारपाई में सुला दिया। विवाह की रात घर में औरतें अनेक तरह का अभिनय कर सबका मनोरंजन कर रही थी। उनके मामा का लड़का राघव भी देर से पहुंचने के कारण बारात में न जा सका। महिलाओं ने उन दोनों लड़कों के उस समय घर में रहने पर एतराज जताया। उन्होंने कहा कि इस समय यहां लड़कों का कोई काम नहीं है। दादीमां ने उनका बचाव करते हुए कहा कि छोटे लड़के और ब्रह्मा में कोई अंतर नहीं होता है और वो दोनों रात भर महिलाओं का अभिनय देख कर खुश होते रहे ।
दादी मां ने अपने जीवन में बहुत दुख – सुख देखे थे। दादी , दादाजी की अचानक मृत्यु के बाद उदास रहने लगे। दादाजी की मृत्यु पर पिताजी और दादी से , बहुत लोगों ने हमदर्दी जताई। और इन्ही शुभचिंतकों ने उनकी आर्थिक स्थिति को और खराब कर दिया। दादीमाँ के मना करने के बाद भी दादाजी के श्राद्ध पर पिताजी ने बहुत पैसा बर्बाद किया। इसी कारण घर की स्थिति बिगड़ गई थी।
लेखक को याद है। माध के महीने (जनवरी) की कड़ाके की ठंड में , एक शाम उनकी दादी गीली धोती पहने कोने वाले घर में संदूक के ऊपर एक दीपक जलाए बैठी थी। उनकी आँखों में आंसू थे। लेखक उनके पास जाकर बैठ गए और उनसे रोने का कारण पूछने लगे। दादी ने उन्हें कोई जबाब नही दिया। अगली सुबह लेखक ने देखा कि उनके पिताजी और किशन भैया दुखी बैठे कुछ सोच रहे थे। उन्हें पैसे की चिंता खाये जा रही थी क्योंकि उन्हें कोई भी उधार नहीं दे रहा था। उस समय दादीमां ने पिताजी को दिलासा देते हुए कहा कि उनके रहते किसी को भी चिंता करने की कोई जरूरत नही हैं। उन्होंने पिताजी को अपने सोने के कंगन दे दिए ताकि वो उन्हें बेचकर अपना काम चला सकें।
और अंत में लेखक कहते हैं कि उनके हाथ में अभी भी किशन भैया का पत्र हैं जिसमें लिखा हैं कि अब उनकी दादी इस संसार में नहीं रही यानि उनकी मृत्यु हो चुकी हैं। लेखक को अब भी इस समाचार पर विश्वास ही रहा है ।
Dadi Maa Class 7 Summary
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