Shaam Ek Kisan Class 7 Explanation :
Shaam Ek Kisan Class 7 Explanation
शाम एक किसान कक्षा 7 भावार्थ
कविता
इस कविता के कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी हैं। यह कविता , कवि की बहुत ही सुन्दर कल्पना है जिसमें उन्होंने जाड़े की एक शाम के प्राकृतिक दृश्य की तुलना एक किसान से की है। अक्सर आपने गांवों में किसानों को देखा होगा वो अपने सिर पर टोपी या साफा या कुछ न कुछ पहने रहते हैं। कुछ न हो तो वो अपने गमछे से भी अपना सिर ढके रहते है क्योंकि वो दिन भर धूप में काम करते हैं या साफा पहनना उनकी अपनी संस्कृति का हिस्सा भी हो सकता है । इसी तरह गाँव – घर के कुछ बड़े – बुजुर्ग किसान दिनभर हुक्का या चिलम पीते रहते है। कवि ने सिर में साफा बांधे और चिलम खींचते / पीते इसी किसान की कल्पना जाड़े की एक शाम के प्राकृतिक वातावरण से की है जहाँ सूरज ढलने को है , रात घिरने को है और एक पहाड़ ख़ामोशी से यह सब देख रहा है । पास ही एक नदी बह रही है और पास के ही जंगलों में पलाश के एकदम सुर्ख लाल फूल खिले है।
यहाँ पर कवि ने पहाड़ को एक किसान , विशाल आकाश को उसका साफा / पगड़ी , पश्चिम दिशा में डूबते सूरज को उसके चिलम में सुलगती आग , नदी को चादर , पलाश के पेड़ों पर खिले लाल फूलों को अँगीठी और अंधकार को भेड़ों का झुंड माना है।
काव्यांश 1.
आकाश का साफा बांधकर
सूरज की चिलमन खींचता
बैठा है पहाड़।
घुटनों पर पड़ी है नदी चादर सी ,
पास ही दहक रही है
फ्लाश के जंगल की अँगीठी
अंधकार दूर पूर्व में
सिमटा बैठा है भेड़ों के गल्ले सा।
भावार्थ –
कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी कहते हैं कि पहाड़ रूपी एक किसान अपने सिर पर आकाश रूपी साफा बांधकर डूबते सूरज रूपी आग से जलती अपनी चिलम को खींच रहा है और उसने नदी रूपी चादर को अपने घुटनों में डाला है। पहाड़ रूपी किसान के पास ही पलाश के फूल रूपी अँगीठी जल रही है। पलाश के फूल एकदम सुर्ख लाल रंग के होते है। इसीलिए कवि ने उनकी तुलना जलती हुई अँगीठी से की है क्योंकि अँगीठी में जलते हुए कोयले भी जलते – जलते कुछ समय बाद लाल दिखाई देते हैं।
चूंकि शाम का समय है और थोड़ी देर में अँधेरा होने को है। इसीलिए कवि कह रहे हैं कि अभी अँधेरा / अंधकार पूर्व दिशा में किसी भेड़ के झुण्ड के जैसे दुबका बैठा है। रात को अक्सर भेड़ें झुण्ड में ही दुबकी रहती हैं ।
काव्यांश 1.
अचानक – बोला मोर
जैसे किसी ने आवाज दी –
“सुनते हो”।
चिलम औंधी
धुआं उठा –
सूरज डूबा
अंधेरा छ गया।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी कहते हैं तभी अचानक एक मोर बोल उठता है और उस मोर के बोलने से उन्हें ऐसा लगता है जैसे किसी ने किसान को “सुनते हो” कहकर आवाज लगाई हो और इसके साथ ही यह पूरा दृश्य बदल जाता है। चिलम उल्टी हो जाती है , उसकी आग बुझ जाती है और उस बुझी आग से धुंआ उठने लगता है। शाम ढल जाती है और रात का अँधेरा छा जाता है यानी सूरज पूरी तरह से डूब चुका है और अंधकार बढ़ने के साथ -साथ रात हो जाती हैं।
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