Reedh Ki Haddi Class 9 Summary
रीड की हड्डी
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Reedh Ki Haddi Class 9 Summary
“रीड की हड्डी” के लेखक जगदीश चंद्र माथुर जी हैं। यह एक एकांकी (छोटा नाटक) है जो शादी ब्याह तय करने से पहले “लड़की दिखने की” सामाजिक समस्या पर आधारित हैं।
लेखक ने इस नाटक के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि हम चाहे कितना भी पढ़-लिख जाय , कितने भी आधुनिक क्यों ना हो जाए , लेकिन महिलाओं के प्रति हमारी सोच नही बदली है और न ही हम अपनी संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठ पाए हैं। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से स्त्री शिक्षा के महत्व को भी समझाया हैं।
हमारे समाज में विवाह जैसी पवित्र परम्परा का भी व्यवसायीकरण हो गया है। लोग शादी विवाह के वक्त लड़की के माता-पिता से दहेज के रूप में धन , वाहन और अन्य घरेलू वस्तुओं को मांगने में जरा भी नहीं हिचकते हैं। पता नहीं उनको ऐसा क्यों लगता है कि जैसे वो अपने लड़के की शादी उस लड़की से कर उसके माता-पिता पर एहसान कर रहे हैं।
लाख बुराइयों के बाद भी लड़के को खरा सोना और सर्वगुण संपन्न व पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी लड़की को कमतर ही आँका जाता है। दहेज समस्या की वजह से ही आज हमारे देश कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध बढ़ रहे हैं। इस कहानी में लेखक ने भी बस यही समझाने की कोशिश की है।
रीड की हड्डी का सारांश
“रीड की हड्डी” कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह से होती हैं। उमा एक पढ़ीलिखी शादी के योग्य लड़की हैं जिसके पिता रामस्वरूप उसकी शादी के लिए चिंतित हैं। और आज उनके घर लड़के वाले (यानि बाबू गोपाल प्रसाद जो पेशे से वकील हैं और उनका लड़का शंकर जो बीएससी करने के बाद मेडिकल की पढाई कर रहा हैं।) उमा को देखने आ रहे हैं।
चूंकि रामस्वरूप की बेटी उमा को देखने के लिए आज लड़के वाले आ रहे हैं। इसीलिए रामस्वरूप अपने नौकर रतन के साथ अपने घर के बैठक वाले कमरे को सजा रहे हैं। उन्होंने बैठक में एक तख्त (चारपाई) रख कर उसमें एक नया चादर बिछाया। फिर उमा के कमरे से हारमोनियम और सितार ला कर उसके ऊपर सजा दिया।
रामस्वरूप जमीन में एक नई दरी और टेबल में नया मेजपोश बिछाकर उसके ऊपर गुलदस्ते सजाकर कमरे को आकर्षक रूप देने की कोशिश करते हैं। तभी रामस्वरूप की पत्नी प्रेमा आकर कहती है कि उमा मुंह फुला कर (नाराज होना) बैठी है। इस पर रामस्वरूप अपनी पत्नी प्रेमा से कहते हैं कि वह उमा को समझाएं क्योंकि बड़ी मुश्किल से उन्हें एक रिश्ता मिला है। इसलिए वह अच्छे से तैयार होकर लड़के वालों के सामने आए।
दरअसल उमा के पिता किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं। लेकिन प्रेमा कहती है कि उसने उमा को बहुत समझाया है लेकिन वह मान नहीं रही हैं। उसके बाद वह रामस्वरूप पर दोषरोपण करते हुए कहती हैं कि यह सब तुम्हारे ज्यादा पढ़ाने लिखाने का नतीजा है। अगर उमा को सिर्फ बारहवीं तक ही पढ़ाया होता तो , आज वह कंट्रोल में रहती । रामस्वरूप अपनी पत्नी प्रेमा से कहते हैं कि वह उमा की शिक्षा की सच्चाई लड़के वालों को न बताये।
दरअसल उमा B.A पास है।और लड़के वालों को ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की नहीं चाहिए। इसीलिए रामस्वरूप ने लड़के वालों से झूठ बोला हैं कि लड़की सिर्फ दसवीं पास है। प्रेमा की बातें सुनकर रामस्वरूप थोड़ा चिंतित होते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि आजकल शादी ब्याह के वक्त लड़की के साज श्रृंगार का क्या महत्व है। लेकिन वह अपनी पत्नी से कहते हैं कि कोई बात नहीं , वह वैसे ही सुंदर हैं।
लड़के वालों के नाश्ते के लिए मिठाई , नमकीन , फल , चाय , टोस्ट का प्रबंध किया गया है। लेकिन टोस्ट में लगाने के लिए मक्खन खत्म हो चुका है। इसीलिए रामस्वरूप अपने नौकर को मक्खन लेने के लिए बाजार भेजते हैं। बाजार जाते वक्त नौकर को घर की तरफ आते मेहमान दिख जाते हैं जिनकी खबर वह अपने मालिक को देता हैं।
ठीक उसी समय बाबू गोपाल प्रसाद अपने लड़के शंकर के साथ रामस्वरूप के घर में दाखिल होते हैं। लेकिन गोपाल प्रसाद की आंखों में चतुराई साफ झलकती हैं।और आवाज से ही वो , बेहद अनुभवी और फितरती इंसान दिखाई देते हैं। उनके लड़के शंकर की आवाज एकदम पतली और खिसियाहट भरी हैं जबकि उसकी कमर झुकी हुई हैं।
रामस्वरूप ने मेहमानों का स्वागत किया और औपचारिक बातें शुरू कर दी । बातों-बातों में दोनों नये जमाने और अपने जमाने (समय) की तुलना करने लगते हैं।
थोड़ी देर बाद रामस्वरूप चाय नाश्ता लेने अंदर जाते हैं। रामस्वरूप के अंदर जाते ही गोपाल बाबू रामस्वरूप की हैसियत आंकने की कोशिश करने लगते हैं। वह अपने बेटे को भी डांटते हैं जो इधर- उधर झाँक रहा था। वह उससे सीधी कमर कर बैठने को कहते हैं। इतने में रामस्वरूप दोनों के लिए चाय नाश्ता ले कर आते हैं। थोड़ी देर बात करने के बाद बाबू गोपाल प्रसाद असल मुद्दे यानि शादी विवाह के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं।
जन्मपत्रिका मिलाने की बात पर गोपाल प्रसाद कहते हैं कि उन्होंने दोनों जन्मपत्रिकाओं को भगवान के चरणों में रख दिया। बातों-बातों में वो अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देते हुए कहते हैं कि लोग उनसे कहते हैं कि उन्होंने लड़कों को उच्च शिक्षा दी हैं। इसीलिए उन्हें बहुएं भी ग्रेजुएट लानी चाहिए।
लेकिन मैं उनको कहता हूँ कि लड़कों का पढ़ -लिख कर काबिल होना तो ठीक है लेकिन लड़कियां अगर ज्यादा पढ़ लिख जाए और अंग्रेजी अखबार पढ़कर पॉलिटिक्स करने लग जाए तो , घर गृहस्थी कैसे चलेगी। वो आगे कहते हैं कि मुझे बहुओं से नौकरी नहीं करानी है। फिर वो रामस्वरूप से लड़की (उमा) की सुंदरता व अन्य चीजों के बारे में पूछते हैं। रामस्वरूप कहते हैं कि आप खुद ही देख लीजिए।
इसके बाद रामस्वरूप उमा को बुलाते है। उमा एक प्लेट में पान लेकर आती है। उमा की आँख पर लगे चश्मे को देखकर गोपाल प्रसाद और शंकर दोनों एक साथ चश्मे के बारे में पूछते हैं। लेकिन रामस्वरूप झूठा कारण बता कर उन्हें संतुष्ट कर देते हैं। गोपाल प्रसाद उमा से गाने बजाने के संबंध में पूछते हैं तो उमा मीरा का एक सुंदर गीत गाती है। उसके बाद वो पेंटिग , सिलाई , कढ़ाई आदि के बारे में भी पूछते हैं। उमा को यह सब अच्छा नहीं लगता है। इसलिए वह कोई उत्तर नहीं देती है। यह बात गोपाल प्रसाद को खटकती हैं। वो उमा से प्रश्नों के जवाब देने को कहते हैं। रामस्वरूप भी उमा से जवाब देने के लिए कहते हैं।
तब उमा अपनी धीमी मगर मजबूत आवाज में कहती है कि क्या दुकान में मेज-कुर्सी बेचते वक्त उनकी पसंद-नापसंद पूछी जाती है । दुकानदार ग्राहक को सीधे कुर्सी मेज दिखा देता है और मोल भाव तय करने लग जाता है। ठीक उसी तरह ये महाशय भी , किसी खरीददार के जैसे मुझे एक सामान की तरह देख-परख रहे हैं। रामस्वरूप उसे टोकते हैं और गोपाल प्रसाद नाराज होने लगते हैं।
लेकिन उमा अपनी बात जारी रखते हुए कहती हैं कि पिताजी आप मुझे कहने दीजिए। ये जो सज्जन मुझे खरीदने आये हैं जरा उनसे पूछिए क्या लड़कियां के दिल नहीं होते हैं , क्या उन्हें चोट नहीं लगती है। गोपाल प्रसाद गुस्से में आ जाते हैं और कहते हैं कि क्या उन्हें यहाँ बेइज्जती करने के लिए बुलाया हैं।
उमा जवाब देते हुए कहती हैं कि आप इतनी देर से मेरे बारे में इतनी जांच पड़ताल कर रहे हैं। क्या यह हमारी बेइज्जती नहीं हैं। साथ में ही वह लड़कियों की तुलना बेबस भेड़ बकरियों से करते हुए कहती है कि उन्हें शादी से पहले ऐसे जांचा परखा जाता हैं जैसे कोई कसाई भेड़-बकरियों खरीदने से पहले उन्हें अच्छी तरह से जाँचता परखता हैं।
वह उनके लड़के शंकर के बारे में बताती हैं कि किस तरह पिछली फरवरी में उसे लड़कियों के हॉस्टल से बेइज्जत कर भगाया गया था। तब गोपाल प्रसाद आश्चर्य से पूछते हैं क्या तुम कॉलेज में पढ़ी हो। उमा जवाब देते हुए कहती हैं कि उसने बी.ए पास किया है। ऐसा कर उसने कोई चोरी नहीं की। उसने पढ़ाई करते हुए अपनी मर्यादा का पूरा ध्यान रखा। उनके पुत्र की तरह कोई आवारागर्दी नहीं की।
अब शंकर व उसके पिता दोनों गुस्से में खड़े हो जाते हैं और रामस्वरूप को भला बुरा कहते हुए दरवाजे की ओर बढ़ते हैं। उमा पीछे से कहती है। जाइए…..जाइए , मगर घर जाकर यह पता अवश्य कर लेना कि आपके पुत्र की रीढ़ की हड्डी है भी कि नहीं। गोपाल प्रसाद और शंकर वहां से चले जाते हैं। उनको जाता देख रामस्वरूप निराश हो जाते हैं। पिता को निराश-हताश देख उमा अपने कमरे में जाकर रोने लग जाती हैं। तभी नौकर मक्खन लेकर आता हैं और कहानी खत्म हो जाती हैं।
“रीड की हड्डी” शीर्षक की सार्थकता
“रीड की हड्डी” इंसान के शरीर का मुख्य हिस्सा होती है जिसमें इंसान का पूरा शरीर टिका रहता है और संतुलित भी रहता हैं। ऐसे ही इंसान का आत्मविश्वास व स्वाभिमान भी होता हैं जिसमें उसके जीवन की नींव मजबूती से टिकी रहती हैं।
हमारे समाज में कुछ पुराने रीति रिवाज व परंपराएं भी हैं। जिनका समय के हिसाब से और इन्सान के भले के लिए बदलना व लचीला आवश्यक होना आवश्यक हैं। ऐसी ही एक रूढ़िवादी परंपरा जो बरसों से हमारे देश में चली आ रही हैं। वह है लड़की देखने के नाम पर लड़की के स्वभिमान को चोट पहुंचाना और लड़की के पिता की हैसियत को आंकना आदि।
लेखक ने कहानी की नायिका उमा को पढ़ी-लिखी और स्वाभिमानी लड़की के रूप में दिखाया है। वह अपने सम्मान के साथ समझौता नहीं करना चाहती है और उसने जो भी किया वह उसके भविष्य के लिए भी न्यायोचित है।
जबकि शंकर पढ़ा लिखा लड़का होने के बावजूद भी अपने पिता की संकीर्ण मानसिकता में उनका साथ देता है और चुपचाप बैठ कर तमाशा देखता रहता है। उमा के गुणों के आगे शंकर कही नहीं ठहरता है। फिर भी गोपाल प्रसाद अपने पुत्र के दोषों को ना देख कर उसकी सराहना करता है और उमा के दोषों को ढूढ़ने की कोशिश करता है।
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