Ram Ka Van Gaman Class 6 Summary

Ram Ka Van Gaman Class 6 Summary :

Ram Ka Van Gaman Class 6 Summary (Bal Ramkatha) 

राम का वन गमन कक्षा 6 सारांश (बाल रामकथा) Ram Ka Van Gaman bal ramkatha Class 6 Summary
 

कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर के किसी व्यक्ति को नहीं थी। हालाँकि सभी सारी रात जाग रहे थे। महाराजा दशरथ अभी भी कैकई को मनाने में लगे थे मगर वह अपनी जिद पर अड़ी थी। सारे नगर में राम के राज्याभिषेक की तैयारियां जोरों पर चल रही थी । दिन चढ़ते ही गुरु वशिष्ठ , महामंत्री सुमंत के साथ -साथ सभी अयोध्यावासी शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे।

काफी समय बीत जाने के बाद भी जब दशरथ राज दरवार में नही आये तो गुरु वशिष्ठ ने महामंत्री सुमंत से विचार -विमर्श किया। इसके बाद गुरु वशिष्ठ ने सुमंत को राजभवन भेजा । राजभवन जाकर महामंत्री सुमंत ने देखा कि महाराज पलंग पर बीमार अवस्था में पड़े हैं और वो राम से मिलना चाहते हैं। 

महामंत्री सुमंत ने राम को जाकर दशरथ का संदेश दिया जिसके पश्चात राम , लक्ष्मण के साथ पिता से मिलने पहुंचे। राम ने पिता और माता कैकई को प्रणाम किया। राजा दशरथ “राम” कहकर मूर्छित हो गए। होश आने के बाद भी वो कुछ न बोल सके।थोड़ी देर चुप रहने के बाद राम ने स्वयं ही अपने पिता से पूछा कि “क्या मुझसे कोई अपराध हुआ हैं”। उन्होंने कैकई से वहाँ धटित धटनाक्रम की जानकारी देने की विनती की।    

इस पर कैकई ने बताया कि “महाराजा दशरथ ने वर्षों पहले मुझे दो वरदान दिए थे। कल रात्रि मैंने वो दोनों वरदान उनसे मांग लिए। मगर अब राजा दशरथ अपने उन वरदानों को पूरा करने से पीछे हट रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौहद वर्ष के लिए वन में रहो । महाराज यही बात तुमसे नही कह पा रहे हैं”। यह सुनकर राम बड़े धैर्य के साथ व संयमित होकर बोले पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत का राज्याभिषेक होगा और मैं वन चला जाऊँगा। राम पिता के वचन को पूरा करने के लिए तुरंत वन जाने को तैयार हो गए। 

कैकई के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माता कौशल्या के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकई के भवन में हुए वार्तालाप के बारे में बताया और अपना निर्णय सुनाया। कौशल्या ने उन्हें अनुचित राज आज्ञा न मानने के लिए कहा। पर राम ने इसे पिता की आज्ञा मानकर माता से वन जाने के लिए आशीर्वाद मांगा। कौशल्या ने अपने पुत्र को दसों दिशाओं को जीतने का आशीर्वाद दिया। 

लक्ष्मण , राम के इस निर्णय से सहमत नही थे। वो अपने बाहुबल (युद्ध करके) के सहारे अयोध्या का राजसिंहासन छीन लेना चाहते थे । पर राम ने उन्हें समझाया कि अधर्म के सिहांसन से वन जाना ज्यादा उचित हैं। कौशल्या भवन से बाहर आकर राम , सीता के पास गए और उन्हें सारी बात बताकर उनसे वन जाने के लिए अनुमति मांगी। 

 यह सुनकर सीता थोड़ी व्याकुल हो गई और क्रोधित भी। उन्होंने राम से कहा कि “मेरे पिता का यह आदेश है कि मैं छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूं। इसीलिए मैं भी आपके साथ वन जाऊंगी”। वैसे राम चाहते थे कि सीता उनके साथ वन में न जाए क्योंकि वन का जीवन बहुत कठिन होता है। रहने , खाने-पीने की कोई व्यवस्था नही होती हैं। ऊपर से कदम – कदम पर कई सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन सीता कहां मानने वाली थी। अंततः राम को सीता की बात माननी ही पड़ी। 

अब तक पूरे अयोध्या में राम के वन जाने का समाचार फ़ैल चुका था। सभी नगरवासी कैकई और दशरथ को धिक्कार रहे थे। कुछ समय पहले जहां उत्सव की तैयारियों चल रही थी। वहां अचानक उदासी , दुःख और आंसुओं का सैलाब था। अयोध्यावासी नहीं चाहते थे कि राम – सीता वन में जाएं। सब उन्हें रोकना चाहते थे लेकिन सभी वेवस थे। 

लक्ष्मण भी राम के साथ वन जाने के लिए तैयार हो गए। तीनों वन जाने से पहले पिता का आशीर्वाद लेने पहुँचे । वहां तीनों रानियां , मंत्रीगण आदि भी उपस्थित थे। सब कैकई को समझा रहे थे मगर वह टस से मस न हुई। दशरथ ने राम से कहा कि “पुत्र मैं वचन से बँधा हूं परंतु तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बनाकर राजकाज संभालो”। पिता के वचनों को सुनकर राम अत्यधिक दुखी हुए। उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में कभी भी नीति व न्याय का साथ नहीं छोड़ा था। राम ने दशरथ को समझाया कि उन्हें राज्य का लोभ नहीं है।

केकई ने राम , लक्ष्मण और सीता को वल्कल (तपस्वियों के वस्त्र) वस्त्र पहनने को दिए। उन तीनों ने राजसी वस्त्र त्यागकर तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और महल से बाहर आ गए । महर्षि वशिष्ठ जो अब तक बहुत शांत थे। उन्हें भी क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि अगर सीता वन जाएंगी तो सारे अयोध्यावासी भी उनके साथ वन जाएंगे । भरत जन-विहीन अयोध्या पर राज करेंगे।

सभी जंगल की तरफ प्रस्थान करने लगे। महल के बाहर सुमंत्र रथ लेकर खड़े थे। राम , सीता और लक्ष्मण रथ पर सवार हो गए । आगे – आगे रथ और पीछे-पीछे अयोध्यावासी पैदल चल रहे थे। राम ने सुमंत को रथ तेज चलाने को कहा ताकि अयोध्यावासी थक कर वापस अयोध्या लौट जाएँ।

रथ दिन भर दौड़ता रहा लेकिन जंगल अभी दूर था। तमसा नदी के तट पर पहुंचते – पहुंचते शाम हो गई। उस दिन उन्होंने वही रात बिताई । अगले दिन वो दक्षिण दिशा की ओर चले। हरे-भरे खेतों के बीच से गोमती नदी को पार कर राम , लक्ष्मण व सीता सई नदी के तट पर पहुंचे । वहाँ महाराजा दशरथ के राज्य की सीमा समाप्त होती थी। राम ने मुड़कर अपनी जन्मभूमि को देखा और उसे प्रणाम करते हुए कहा है कि “हे !! जननी अब मैं चौदह वर्ष बाद ही आपका दर्शन कर सकूंगा”। शाम होते-होते वो गंगा नदी के किनारे बसे श्रृंगवेरपुर गाँव पहुंचे। 

निषादराज गुह ने उनका खूब स्वागत किया । यहां से वन क्षेत्र शुरू होता था। इसलिए उन्होंने महामंत्री सुमंत को समझा -बुझा कर वापस अयोध्या भेज दिया। सुमंत के अयोध्या लौटने पर महाराज व अयोध्यावासी उनसे तरह-तरह के सवाल पूछने लगे। लेकिन सुमंत कुछ न बोल पाये। उनकी आंखों से आंसू बह निकले। राम के वन जाने के छठे दिन महाराजा दशरथ ने राम के वियोग में अपने प्राण त्याग दिए।

दूसरे दिन महर्षि वशिष्ठ ने मंत्री परिषद से चर्चा की। उनका कहना था कि राजगद्दी अधिक समय तक खाली नहीं रहनी चाहिए। इसीलिए भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। उसी समय एक घुड़सवार दूत को भरत को बुलाने उनके ननिहाल भेजा गया।

Ram Ka Van Gaman Class 6 Summary

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