Saans Saans Main Baans Class 6 Summary ,
Saans Saans Main Baans Class 6 Summary
सांस सांस में बांस कक्षा 6 सारांश
“सांस सांस में बाँस” , पाठ के लेखक एलेक्स एम. जार्ज हैं। इस पाठ का हिंदी अनुवाद शशि सबलोक जी ने किया हैं। इस पाठ में लेखक ने मानव जीवन में बांस के महत्व व उससे बनने वाली अनेक वस्तुओं के बारे में बतलाया हैं।
बांस एक प्रकार का बहुत तेजी से बढ़ने वाला पौधा होता हैं जिसकी नई -नई टहनियाँ बहुत अधिक लचीली होती हैं। बांस अनेक तरह के उपयोगी सामान बनाने के काम आता हैं। बांस के पेड़ की खासियत यह हैं कि यह पीपल के पेड़ की तरह ही दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में आक्सीजन छोड़ता है। बाँस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा 30% अधिक ऑक्सीजन छोड़ता हैं। इसमें सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है।
“सांस सांस में बाँस” , पाठ की शुरुवात करते हुए लेखक कहते हैं कि चांगकीचांगलनबा नाम के एक जादूगर थे जिन्होंने जीवन भर लोगों को बड़े-बड़े करतब दिखाये। मरते वक्त उन्होंने लोगों से कहा कि मुझे दफनाए जाने के छठे दिन बाद जब तुम मेरी कब्र खोदकर देखोगे तो तुम वहां कुछ नया पाओगे यानि तुम्हें वहाँ कुछ नया दिखाई देगा।
कहा जाता है कि लोगों ने उनकी मौत के छठे दिन जब उनकी कब्र को खोदकर देखा तो उन्हें वहाँ बांस की टोकरियों के कई सारे डिजाइन दिखे । शुरू शुरू में लोगों ने उन डिजाइन की नकल कर बांस से सामान बनाये लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने नए डिजाइन भी बनाने शुरू किये।
वैसे तो बांस भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अधिक पाया जाता है लेकिन भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र के सातों राज्यों में बांस बहुत अधिक उगता है। इसीलिए वहां बांस से सामान बनाने का बहुत अधिक प्रचलन है। वहां के लगभग सभी समुदायों के भरण पोषण में बांस की बहुत बड़ी भूमिका है यानि बाँस वहाँ के लोगों के आय (पैसा कमाने का) का साधन हैं। खासतौर से उत्तर पूर्वी राज्य नागालैंड का।
लेखक आगे कहते हैं कि इंसान ने जब से हाथ से कलात्मक वस्तुओं बनानी शुरू की तभी से वह बाँस से सामान बनाता आ रहा है। हालाँकि समय के साथ-साथ उनके डिजाइन व आकार में बदलाव आया है।
ऐसा माना जाता हैं कि बाँस की बुनाई और इंसान का रिश्ता प्राचीन काल से ही हैं। हो सकता हैं कि प्राचीन काल में इंसान को अपना भोजन इकट्ठा करने के लिए कुछ डलियानुमा आकार की वस्तु की जरूरत पड़ी होगी तो उसने बया चिड़िया के घोंसले से प्रेरणा लेकर बांस की टोकरी बनाई हो।
बाँस से टोकरियों के अलावा और भी कई सारी चीजें बनाई जा सकती है जैसे चटाइयां , टोपिया , टोकरिया , बर्तन , बैलगाड़ियां फर्नीचर , सजावटी सामान , मछली पकड़ने के जाल , मकान , पुल और खिलौने आदि।
असम में बांस से बने “जकाई” नाम के जाल से छोटी- छोटी मछलियों पकड़ी जाती है। इस जाल को या तो पानी की सतह में रखा जाता है या फिर धीरे-धीरे पानी में चलते हुए खिंचा जाता है। इस जाल में बांस की खपच्चियों (बांस को छीलकर बनाये गए छोटे -छोटे रेशेनुमा टुकड़े) को कुछ इस तरह बांधा जाता है कि वो एक शंकु का आकार ले लें। इस शंकु का ऊपरी सिरा अंडाकार और निचला सिरा नुकीला होता हैं जिसमें छोटी मछलियों आराम से फँस जाती हैं।
बांस से टोपियों भी बनाई जाती हैं। असम के चाय बागानों में , सिर पर बांस की टोपियों और पीठ पर बांस की टोकरियों डाले लोग आराम से दिख जायेंगे।
जुलाई से अक्टूबर तक , जब बहुत ही अधिक बारिश होती है तो लोगों के पास बहुत खाली समय होता है। इस समय वो अपने आसपास के जंगलों से बांस इकट्ठा करते हैं। वस्तुओं बनाने के लिए 1 से 3 साल के उम्र वाला बांस बहुत अच्छा होता है। इसीलिए वो ऐसे ही बांस को ज्यादा काटते हैं। इन कोमल बांसों से अनेक तरह के सामान बनाए जाते हैं। बूढे बाँस (ज्यादा उम्र के) थोड़े सख्त हो जाते हैं और जल्दी टूट जाते हैं।
ऐसे कोमल बांस जिनमें गांठें दूर -दूर होती हैं उनमें से शाखाओं और पत्तियों को अलग कर दिया जाता है। इसके बाद दोओ यानी चौड़े चांद जैसे फाल वाले चाकू से इन्हें छीलकर खपच्चियों तैयार की जाती हैं। जो वस्तु बनानी हैं उसी के आकार के हिसाब से खपच्चियों को काटा जाता हैं । जैसे आसन , टोकरी या टोपी , जो भी सामान बनाना हैं , खपच्चियों उसी हिसाब से काटी जाती हैं।
आमतौर पर खपच्चियों की चौड़ाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती है क्योंकि चौड़ी खपच्चियों किसी काम की नहीं होती हैं। पतली खपच्चियों बहुत अधिक लचीली होती है। खपच्चियों को चीरना भी बहुत चुनौती भरा काम होता हैं। इस काम को सीखने में काफी समय व मेहनत लगती हैं।
टोकरी बनाने के लिए खपच्चियों को चिकना बनाना बहुत जरूरी होता है। दाओ यानी चाकू की मदद से इन्हें चिकना किया जाता हैं। इसके बाद इन खपच्चियों की रंगाई की जाती है। खपच्चियों को रंगने के लिए गुड़हल तथा इमली की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। काले रंग के लिए इन्हें आम की छाल में लपेटकर मिट्टी में दबा दिया जाता है।
बांस की बुनाई भी वैसी ही की जाती हैं जैसे और बुनाइयों की जाती हैं। इसमें पहले खपच्चियों को आड़ा -तिरछा रखा जाता हैं फिर बाने को बारी -बारी से ताने के ऊपर -नीचे किया जाता हैं । पूरी टोकरी बनने के बाद , अंत में टोकरी के सिरे पर खपच्चियों को या तो मोड कर नीचे की ओर फंसा दिया जाता है या चोटी की तरह गूंथ दिया जाता हैं। इस प्रकार कई डिजाइन की टोकरियाँ तैयार की जाती हैं।
अंत में लेखक बांस से अपने आत्मीय रिश्ते को भी बताते हैं। लेखक कहते हैं कि बांस का झुरमुट (एक साथ बहुत सारे बांस के पौधे) उन्हें बहुत अमीर आदमी बना देता हैं क्योंकि वो बांस से अपना घर , बर्तन और कई तरह के औजार बना सकते हैं। सूखे बांस को जला सकते हैं और उससे कोयला बना सकते हैं।
वो बांस का अचार बनाकर भी खाते हैं। बांस के पालने (छोटे बच्चों का झूला) में ही उनका बचपन बीता। लेखक कहते हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी भी बांस की टोकरी के जरिये ही पाई हैं। और अंत में , जब मैं मारुंगा तो मुझे बांस की लकड़ी में ही लिटा कर मरघट (श्मशानघाट) ले जाया जाएगा।
Saans Saans Main Baans Class 6 Summary :
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