Main Sabse Chhoti Houn Class 6 Explanation

Main Sabse Chhoti Houn Class 6 Explanation :

Main Sabse Chhoti Houn Class 6 Explanation

मैं सबसे छोटी होऊँ कक्षा 6 भावार्थ

इस कविता के कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इस कविता में उन्होंने एक ऐसी छोटी बच्ची की मनोदशा का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है जो सदा अपने घर की सबसे छोटी बेटी बनकर अपनी माँ के आँचल तले रहना चाहती हैं। लोरियों सुनकर माँ की गोद में सोना चाहती हैं और उसका हाथ पकड़ कर बिल्कुल निडर होकर उसके साथ दिनभर इधर – उधर धूमना चाहती हैं। सदा उसका प्यार -दुलार पाना चाहती हैं। माँ से परियों की कहानी सुनना चाहती हैं और माँ के साथ ही चन्द्रमा को उदय होते हुए देखना चाहती है।

Main Sabse Chhoti Houn Class 6 Explanation

कविता 

काव्यांश 1.

मैं सबसे छोटी होऊँ ,

तेरी गोदी में सोऊँ

तेरा अंचल पकड़ – पकड़कर

फिरूँ सदा मां ! तेरे साथ ,

कभी ना छोड़ूँ तेरा हाथ !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में सुमित्रानंदन पंत जी कहते हैं कि एक प्यारी सी बच्ची अपनी मां से कहती है कि मां ! मैं सदा घर की सबसे छोटी बच्ची (बेटी) ही बनी रहना चाहती हूं। सदा तेरी गोदी में ही सोना चाहती हूँ। हमेशा तेरा आंचल पकड़कर तेरे साथ इधर-उधर घूमना चाहती हूँ। माँ , मैं तेरा हाथ कभी नहीं छोडना चाहती हूँ। यानि छोटी बच्ची की इच्छा हैं कि वो हमेशा अपनी माँ की गोद में ही सोये , उसकी अंगुली पकड़ कर दिन भर उसके साथ इधर -उधर धूमे , उसका खूब प्यार दुलार पाये। 

काव्यांश 2.

बड़ा बनाकर पहले हमको

तू पीछे छलती है मात !

हाथ पकड़ फिर सदा हमारे

साथ नहीं फिरती दिन – रात !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में सुमित्रानंदन पंत जी कहते हैं कि एक प्यारी सी बच्ची अपनी मां से प्यार भरी शिकायत करते हुए कहती है कि पहले तो तुम हमको पाल -पोष कर बड़ा बना देती हो और जब हम बड़े हो जाते हैं तो तुम हमको पहले जैसा प्यार नहीं करती हो। बड़ा होने पर , तुम फिर हमारा हाथ पकड़ कर दिन – रात हमारे साथ घूमती -फिरती नहीं हो।

काव्यांश 3.

अपने कर से खिला , धुला मुख ,

धूल पोंछ ,  सज्जित कर गात

थमा खिलौने , नहीं सुनती

हमें सुखद परियों की बात !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में सुमित्रानंदन पंत जी कहते हैं कि एक प्यारी सी बच्ची अपनी मां से शिकायत करती हुई कहती है कि माँ ! पहले तो तुम अपने हाथों से हमें खिलाती थी। हमारा मुंह धोती थी। अपने हाथों से हमारे बदन में लगी धूल को पोंछ कर हमारे शरीर को सुंदर बनाती थी या हमें सुंदर बनाती थी। खेलने के लिए हमें अच्छे -अच्छे व प्यारे खिलौने देती थी और परियों की सुख देने वाली कहानियों सुनाया करती थी । परन्तु बड़े होने पर तुम यह सब नहीं करती हो।

काव्यांश 4.

ऐसी बड़ी ना होऊँ मैं

तेरा स्नेहा न खोऊँ मैं ,

तेरे आंचल की छाया में

छिपी रहूं – निस्पृह , निर्भय

कहूँ – दिखा दे चंद्रोदय !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में सुमित्रानंदन पंत जी कहते हैं कि एक प्यारी सी बच्ची अपनी मां से कहती है कि माँ ! मुझे ऐसा बड़ा नही होना है कि तेरा प्यार -दुलार ही मुझसे छूट जाए या माँ , मैं ऐसी बड़ी होकर क्या करूंगी जहाँ तेरा प्यार दुलार ही मुझे न मिले। 

माँ मैं तो सबसे छोटी बच्ची बनकर सदा तेरे आँचल की छाया में रहना चाहती हूँ और बिना किसी इच्छा के , निडर होकर चांद को निकलते हुए देखना चाहती हूं। माँ मैं सदा तेरा निश्छल प्रेम पाना चाहती हूं।

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