Jhansi Ki Rani Class 6 Explanation :
Jhansi Ki Rani Class 6 Explanation
झाँसी की रानी कक्षा 6 भावार्थ
कविता
“झाँसी की रानी” कविता की कवियत्री “सुभद्रा कुमारी चौहान जी” हैं। कविता का यह भाग उनकी कविता “मुकुल” से लिया गया हैं। यह कविता भारत के पहले स्वतन्त्रता आंदोलन के उन अमर नेताओं की वीरता , साहस व बलिदान का वर्णन करती हैं जिन्होंने हँसते -हँसते गुलाम भारत को आजाद करने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इसे “1857 का विद्रोह” के नाम से भी जाना जाता हैं।
यह विद्रोह पराधीन भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने लिये किया गया था। इस पहले स्वतन्त्रता आंदोलन में भारत माता के अनेक वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। “झाँसी की रानी” भी उन्हीं में से एक वीरांगना थी।
काव्यांश 1.
सिंहासन हिल उठे। राजवंशों ने भृकुटी तानी थी ,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी ,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी ,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं से उनके राज्य जबरदस्ती छीन कर उन्हें अपमानित करना शुरू कर दिया। दिनों -दिन बढ़ते अत्याचार व अपमान के कारण भारतीय राजा अंग्रेजों से अत्यधिक क्रोधित हो गए। उन्होंने अंग्रेजों को भगा कर भारत को फिर से आजाद करने का अपने मन में दृढ संकल्प कर लिया और उस दिशा में प्रयास करना भी शुरू कर दिया जिससे पूरे देश में उथल -पुथल मच गई।
यह सब देखकर गुलामी के जंजीरों में जकड़े हुए भारत के लोगों के मन में फिर से एक नया उत्साह पैदा हो गया। अब सभी राजा अपनी खोई हुई आज़ादी का मूल्य अच्छी तरह से समझने लगे थे। इसीलिए उन्होंने फिरंगियों को यानि अंग्रेजों को भारत से भागने का निश्चय कर लिया था।
काव्यांश 2.
चमक उठी सन सतावन में
वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
सन 1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए राजाओं से अपनी जंग लगी हुई तलवारों को म्यान से निकाल कर उन्हें फिर से चमकाना शुरू कर दिया था यानि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने का फैसला कर लिया । बुंदेलखंड के हरबोलों (गीत गाने वाले लोग यानि लोकगायक यानि गवैये) के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में किसी वीर पुरुष की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 3.
कानपुर के नाना की मुंहबोली बहन “छबीली” थी,
लक्ष्मीबाई नाम , पिता की वह संतान अकेली थी ,
नाना के संग पढ़ती थी वह , नाना के संग खेली थी ,
बरछी , ढाल , कृपाण , कटारी उसकी यही सहेली थी ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना साहब की मुंहबोली बहन थी जिसका नाम बचपन में “छबीली” था। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। उनका बचपन नाना साहब के साथ पढ़ते और खेलते हुए बीता था।
बचपन में रानी लक्ष्मीबाई अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ खेलने के बजाय बरछी , ढाल , कृपाण (एक तरह की छोटी सी तलवार जिसे सिख धर्म के लोग पहनते हैं।) और तलवार से खेलती थी। वो उन्हें ही अपनी सहेली मानती थी।
काव्यांश 4.
वीर शिवाजी की गाथाएँ
उसको याद जवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
उन्होंने बचपन में ही शिवाजी की वीरता व साहस की अनेक कहानियों सुनी थी यानि वो बचपन सी ही शिवाजी की वीरता से अत्यधिक प्रभावित थी। बुंदेलखंड के हरबोलों (गीत गाने वाले लोग यानि लोकगायक यानि गवैये) के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
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काव्यांश 5.
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता का अवतार ,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार ,
नकली युद्ध ,ब्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार ,
सैन्य धरना , दुर्ग तोड़ना , यह थे उसके प्रिय खिलवार ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि लक्ष्मीबाई को देखकर ऐसा लगता था मानो वो स्वयं माता लक्ष्मी या दुर्गा हों या फिर वीरता का अवतार हों यानि वो अत्यधिक वीर व साहसी थी। उनकी तलवारबाजी यानि तलवार चलाने की कला को देखकर मराठा राजा व अन्य लोग खूब प्रसन्न होते थे। नकली युद्ध करना , व्यूह रचना करना , शिकार करना , शत्रु की सेना को घेरना व शत्रुओं के किले तोड़ना उनके प्रिय खेल थे।
काव्यांश 6.
महाराष्ट्र – कुल- देवी उसकी
भी आराध्य भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
महाराष्ट्र की कुलदेवी भवानी (माँ दुर्गा) लक्ष्मीबाई की आराध्य थी यानि वो धार्मिक प्रवृति की थी। बुंदेलखंड के हरबोलों (गीत गाने वाले लोग यानि लोकगायक यानि गवैये) के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 7.
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में ,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झांसी में ,
राजमहल में बजी बधाई खुशियां छाई झांसी में ,
सुभट बुंदेलों के विरुदावलि- सी वह आई झांसी में ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि युवावस्था में वीरता की मूर्ति लक्ष्मीबाई की सगाई झांसी के राजा (गंगाधर राव) के साथ हुई । उस समय ऐसा लग रहा था जैसे वीरता की शादी वैभव यानि सम्पन्नता के साथ हो रही हैं यानि दोनों का जोड़ा बहुत सुन्दर लग रहा था।
शादी के बाद लक्ष्मीबाई झांसी की रानी बनकर झाँसी में आ गई। उनके विवाह के सुअवसर पर झांसी के राजमहल में मंगल गीत गाये गये। शहनाइयों बजाई गई। पूरे राजमहल में खुशियां ही खुशियों छा गई । ऐसा लग रहा था मानो जैसे वो झांसी के वीर बुंदेली की कीर्ति बनकर आई हो।
काव्यांश 8.
चित्रा ने अर्जुन को पाया ,
शिव से मिली भवानी थी ,
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
झांसी के राजा और रानी लक्ष्मीबाई का सुन्दर जोड़ा ऐसा लग रहा था जैसे चित्रा और वीर अर्जुन का या फिर शिव और पार्वती (भवानी) का। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
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काव्यांश 9.
उदित हुआ सौभाग्य , मुदित महलों में उजयारी छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई ,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियां कब भाई,
रानी विधवा हुई हाय ! विधि को भी नहीं दया आई ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि रानी के विवाह के बाद झांसी का सौभाग्य जाग गया । महलों में प्रसन्नता का माहौल था। हर कोई रानी के आने से खुश था। किंतु आज तक काल की गति को कोई नही समझ सका। समय चक्र ऐसा बदला कि सौभग्य को दुर्भाग्य में बदलते देर नही लगी ।
विधाता को तीर चलाने वाले हाथों का चूड़ियां पहनना अच्छा नहीं लगा है। राजा की अकाल मृत्यु हो गई और रानी विधवा हो गई। विधाता को उन पर जरा सी भी दया नहीं आई।
काव्यांश 10.
नि:संतान मरे राजा जी ,
रानी शोक – समानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
जिस वक्त झांसी के राजा मरे उस वक्त उनकी कोई संतान भी नही थी यानी राजा निसंतान ही मर गए और ये सब देखकर रानी शोक में डूब गई यानि वो अत्यधिक दुखी हो गई । बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 11.
बुझा दीप झांसी का तब , डलहौज़ी मन में हरषाया ,
राज हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया ,
फौरन फौजी भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया ,
लावारिस का वारिस बन ब्रिटिश राज झांसी में आया ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि झांसी का दीपक बुझ जाने पर अर्थात राजा के मर जाने पर अंग्रेज लॉर्ड गवर्नर डलहौजी को बहुत अधिक प्रसन्न हुआ। उसे लगा कि अभी झांसी का राज्य हड़पने का अच्छा अवसर हैं । उसने तुरंत अपनी फौज भेजकर झांसी के किले पर अपना झंडा फहरा दिया। और इस प्रकार लावारिस झांसी का वारिस बन गया यानि झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला दिया।
काव्यांश 12.
अश्रु पूर्ण रानी ने देखा,
झांसी हुई बिरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
दुखी रानी की आँखों में आंसू थे। वो झांसी को उजाड़ता हुआ देखकर यानि ब्रिटिश राज्य में मिलता हुआ देखकर अत्यधिक दुखी हुई । बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
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काव्यांश 13.
अनुनय – विनय नहीं सुनता है , विकट फिरंगी की माया ,
व्यापारी बद दया चाहता था जब यह भारत आया ,
डलहौजी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया ,
राजाओं नब्बाबों को भी उसने पैरों ठुकराया,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि जब अंग्रेजों ने झांसी को अपने राज्य में मिलाया , तब रानी ने अंग्रेजो से झांसी को ब्रिटिश राज्य में शामिल न करने की विनम्र प्रार्थना की थी। किंतु सब बेकार था क्योंकि अंग्रेज नही माने। यही अंग्रेज जब व्यापारी बनकर शुरू में भारत आये थे उस समय वो यहां के राजाओं से दया व सहायता की भीख माँगते थे।
धीरे-धीरे डलहौजी ने भारत में अपने पैर पसारने शुरू किये और लगातार अंग्रेजी शासन का विस्तार किया। और अब परिस्थितियों ऐसी बन गई हैं कि कल तक वो जिनसे सहायता मांगते थे अब वो उन्हीं के राज्य को हड़प कर उन पर ही अत्याचार करते हैं।
काव्यांश 14.
रानी दासी बनी , यह यह
दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कल तक जो राजमहलों में रानियां बनकर राज करती थी अब वो दासियों की भांति रहती हैं यानी अंग्रेजों की दया पर निर्भर थी और इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया अब हमारे देश की महारानी बन गई थी यानी अंग्रेज साम्राज्य पूरे भारत में फैल गया था। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 15.
छीनी राजधानी देहली की , लिया लखनऊ बातों -बात ,
कैद पेशवा था बिठूर में , हुआ नागपुर का भी घात ,
उदैपुर , तंजोर , सतारा , कर्नाटक की कौन बिसात ,
जबकि सिंध , पंजाब , ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र निपात ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि अंग्रेजों ने दिल्ली और लखनऊ पर बहुत ही आसानी से अपना अधिकार कर लिया और बिठूर के पेशवा बाजीराव को बंदी बना लिया। नागपुर पर भी घात लगा कर हमला कर उसे भी अंग्रेजी राज्य में शामिल कर दिया।
इसी प्रकार उदैपुर , तंजौर , सतारा , करनाटक आदि भी अंग्रेजों के सामने ना ठहर सके यानि इनको भी अंग्रेजों ने बहुत आसानी से जीत लिया। उन्होंने सिंध , पंजाब , म्यांमार यानी वर्मा को भी जीत कर अपने अधीन कर लिया।
काव्यांश 16.
बंगाली , मद्रास आदि की
भी तो यही कहानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
और अंत में बंगाल और मद्रास (चेन्नई) को जीत कर लगभग पूरे भारत को ब्रिटिश राज्य में मिला दिया यानी पूरे भारत को अपने अधीन कर लिया। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
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काव्यांश 17.
रानी रोई रानिवासो में , बेगम गम में थी बेजार ,
उसके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाजार ,
सरे -आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार ,
“नागपुर के जेवर ले लो” “लखनऊ के नौलखा हार “,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि अंग्रेज जिन राजाओं से उनके राज्य व नबाबों की उनकी नबाबी छीन लेते थे। या तो वो उनकी हत्या कर देते थे या उन्हें अपना गुलाम बना लेते थे और उनकी रानियों और बेगमों का अपमान करते थे। यहां तक कि वो उनसे उनके बहुमूल्य जेबर व कपड़े भी छीन लेते थे और उनकी इज्जत से भी खिलवाड़ करते थे ।
इस सब से रानियां व बेगमें बहुत दुखी थी। रानियों के बहुमूल्य कपड़े व गहने जो उनकी शानो -ओ -शौकत की पहचान थे। अब वो कलकत्ता के बाजार में बिक रहे थे।
अंग्रेज उन कपड़ों व गहनों की नीलामी की खबरें अपने अखबार में यह लिखकर छापते थे कि “नागपुर के जेवर ले लो” और “लखनऊ के प्रसिद्ध नौलख्खा हार” ले लो।
काव्यांश 18.
यों पर्दे की इज्जत पर –
देसी के हाथ बिकानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
उस समय नागपुर के जेवर और लखनऊ के प्रसिद्ध नौलख्खा हार , रानियां की शोभा व उनकी शान – ओ – शौकत और मान मर्यादा के प्रतीक थे। और यही सब आज अंग्रेज सरेआम बाजारों में बेच रहे थे। यानि रानियों की इज्जत सरेआम बाजार में बेच रहे थे। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 19.
कुटियों में थी विषम वेदना , महलों में आहत अपमान ,
वीर सैनिकों के मन में था , अपने पुरखों का अभिमान ,
नाना , धुंधूपंत , पेशवा जुटा रहा था सब सामान ,
बहन छबीली ने रण-चंडी का कर दिया प्रकट आहवान ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि चाहे अमीर हो या गरीब , महलों में रहने वाला हो या कुटिया में , सभी अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे थे। अब सभी अपने पूर्वजों का मान – सम्मान व अपना पुराना गौरव वापस पाना चाहते थे।
सभी वीर सैनिक अंग्रेजों से बदला लेने के लिए तैयार थे। इसीलिए वो नाना , धुंधूपंत और पेशवा के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिए आवश्यक सामान जुटा रहे थे। उनकी बहन छबीली यानी रानी लक्ष्मीबाई ने भी इस युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया। वो राज्य की अन्य महिलाओं में माँ दुर्गा के रणचंडी रूप को जागृत करने का प्रयास करने लगी अर्थात युद्ध का प्रशिक्षण देकर उन्हें अपनी सेना में शामिल करने लगी।
काव्यांश 20.
हुआ यज्ञ प्रारंभ उन्हें तो ,
सोई ज्योति जगाने थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
इसी प्रकार सभी ने स्वतंत्रता रूपी महायज्ञ को सफल बनाने के लिए लोगों के अंदर सोई हुई ज्योति यानि चेतना को जगाने का प्रयास किया। उन्हें उस युद्ध में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और एक मजबूत संगठन बनाकर युद्ध लड़ने का निश्चय किया। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
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काव्यांश 21.
महलों ने दी आग , झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी ,
यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी ,
झांसी चेती , दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ , कानपूर , पटना ने भारी धूम मचाई थी ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि महलों में रहने वाले हों या झोपड़ी में हर वर्ग के अंदर अंग्रेजों के प्रति गुस्सा था। इसीलिए विद्रोह की चिंगारीं हर राज्य में सुलगने लगी और हर किसी के मन में आजादी प्राप्त करने का जुनून समा चुका था। झांसी , दिल्ली , लखनऊ , मेरठ , कानपुर और पटना के राजाओं ने इस युद्ध में बढ़ चढ़ कर भाग लिया।
काव्यांश 22.
जबलपुर , कोल्हापुर में भी ,
कुछ हलचल उकसानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
जबकि जबलपुर और कोल्हापुर के लोगों को भी इस युद्ध में भाग लेने को उकसाया गया या प्रेरित किया गया। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 23.
इस स्वतंत्रता -महायज्ञ में कई वीरवर आए काम ,
नाना धुंधूपंत , ताँतिया , चतुर अजीमुल्ला सरनाम ,
अहमद शाह मौलवी , ठाकुर कुंवर सिंह सैनिक अभिराम ,
भारत के इतिहास – गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि भारत की स्वतंत्रता रूपी इस महायज्ञ में अनेक वीर योद्धाओं ने अपना अमिट बलिदान दिया जिनमें प्रमुख रूप से नाना , धुंधूपंत , ताँतिया , चतुर अजीमुल्ला सरनाम ,अहमद शाह मौलवी , ठाकुर कुंवर सिंह , सैनिक अभिराम जैसे वीर व साहसी क्रांतिकारी शामिल हैं जिन्होँने युद्ध मैदान में अंग्रेजों से जमकर संधर्ष किया। भारत के स्वतंत्रता इतिहास के आकाश में इन सबका नाम सूरज और चांद की तरह हमेशा ही अमर रहेगा।
काव्यांश 24.
लेकिन आज जुर्म कहलाती ,
उनकी यह कुर्बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
हालाँकि उस वक्त उनकी इस कुर्बानी , त्याग और बलिदान को अंग्रेज जुर्म अर्थात अपराध मानते थे। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 25.
इनकी गाथा छोड़ चले हम झांसी के मैदाने में ,
जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में ,
लेफ्टिनेंट वांकार आ पहुंचा , आगे बड़ा जवानों में ,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद आसमानों में ,
भावार्थ –
इस काव्यांश में कवयित्री रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस व वीरता का वर्णन करती हैं। उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि अब हम अन्य राज्यों की बात छोड़कर झांसी के मैदाने का दृश्य देखते हैं जहां लक्ष्मीबाई किसी वीर पुरुष की तरह अपनी सेना के वीर जवानों के बीच खड़ी हैं।
अंग्रेजों की ओर से लेफ्टिनेंट वॉकर जैसे ही अपने जवानों के साथ युद्ध को आगे बढ़ा तो रानी ने भी अपनी चमचमती तलवार खींच ली और युद्ध की घोषणा कर दी । दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ। धूल से पूरा आकाश भर गया।
काव्यांश 26.
जख्मी होकर वाकर भागा ,
उसे अजब हैरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
किन्तु रानी के रण कौशल व वीरता के आगे अंग्रेज सेनापति की एक न चली और वो घायल होकर युद्ध का मैदान छोड़ भाग खड़ा हुआ मगर उसे रानी की वीरता देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 27.
रानी बड़ी कालपी आई , कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर , गया स्वर्ग सिधार ,
यमुना -तट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी , किया ग्वालियर पर अधिकार,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि अपनी छोटी सी टुकड़ी यानि सेना के साथ युद्ध करते हुए रानी झांसी से 100 मील की दूरी तय कर कालपी तक आ पहुंची। इतनी लम्बी दूरी तय करने व लगातार युद्ध करने के कारण रानी का प्रिय घोडा थक कर बेहोश हो कर जमीन में गिर पड़ा और मर गया।
बाबजूद इसके यमुना के किनारे फिर अंग्रेज रानी से हार गए। कालपी जीत कर रानी फिर आगे बढ़ी और उसने ग्वालियर पर अपना अधिकार कर लिया।
काव्यांश 28.
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ,
ने छोड़ी राजधानी थी.
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
ग्वालियर का राजा सिंधिया अंग्रेजों का मित्र था। उसे भी रानी से पराजित होकर राजधानी छोड़नी पड़ी। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
Jhansi Ki Rani Class 6 Explanation
काव्यांश 29.
विजय मिली , पर अंग्रेजों की सेना फिर घिर आई थी ,
अबके जनरल स्मिथ सन्मुख था , उसने मुंह की खाई थी ,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी ,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि रानी की लगातार जीत से अंग्रेज बौखला गए। अब वो एक बड़ी सेना के साथ रानी के सन्मुख आ पहुंचे जिसका नेतृत्व इस बार जनरल स्मिथ कर रहा था। मगर जनरल स्मिथ की भी एक न चली क्योंकि रानी और उनकी दो सहेलियों काना और मंदरा ने युद्ध मैदान में शत्रु की सेना पर खूब कहर बरपाया और जनरल स्मिथ को पराजित कर दिया।
काव्यांश 30.
पर , पीछे ह्यूरोज आ गया ,
हाय ! घिरी अब रानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
परंतु ठीक उसी समय एक नई टुकड़ी के साथ पीछे से ह्यूरोज युद्ध मैदान में आ पहुंचा। अब रानी और उसकी छोटी सी टुकड़ी चारों तरफ से घिर चुकी थी। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 31.
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार ,
किंतु सामने नाला आया , था यह संकट विषम अपार ,
घोड़ा अड़ा , नया घोड़ा था , इतने में आ गये सवार ,
रानी एक , शत्रु बहुतेरे , होने लगे वार पर वार ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि चारों तरफ से घिरने के बाद भी रानी अपने अदम्य साहस और चतुर रण कौशल के बल पर दुश्मनों के बीच से निकल कर सुरक्षित किनारे तक तो पहुंच गई मगर तभी अचानक सामने एक नाला आ गया। रानी के लिए यह भारी संकट का समय था
रानी का घोड़ा नया होने के कारण उस नाले को पार न कर सका। वही पर अड़ गया। बस यही पर शत्रुओं ने मौका देखकर कर उन पर कई जानलेवा बार किये।
काव्यांश 32.
घायल होकर गिरी सिहनीं ,
उसे वीरगति पानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
जिससे शेरनी रानी घायल होकर जमीन में गिर पड़ी और वीरगति को प्राप्त हो गई। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 33.
रानी गई सिधार , चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी ,
मिला तेज से तेज , तेज की वह सच्ची अधिकारी थी ,
अभी उम्र कुल तेइस की थी , मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई अब स्वतंत्रता नारी थी ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि रानी स्वर्ग सिधार गई। जब उन्हें चिता पर रखा गया तो उनकी आत्मा की ज्योति परमात्मा की दव्य ज्योति में समा गई जिसकी वो सच में हकदार थी। अभी वो केवल 23 वर्ष की थी और इन 23 वर्षों में उन्होंने जो वीरता दिखाई उससे तो यही लगता है कि वो कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि कोई देवता या उनका अवतार थी। शायद वो हम सब को अपनी स्वतन्त्रता व मान -सम्मान के लिए लड़ने को प्रेरित करने ही आई थी।
काव्यांश 34.
दिख गई पथ , सीखा गई हमको ,
जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
वो अपने अदम्य साहस व बलिदान से हमें स्वतन्त्रता प्राप्त करने का मार्ग दिखा गई। उन्होंने हमें जो भी सीखना था वो उसे पहले खुद कर हमें एक सीख दे गई। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
काव्यांश 35.
जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी ,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी ,
होवे चुप इतिहास , लगे सच्चाई को चाहे फांसी ,
हो मदमाती विजय , मिटा दे गोलों से चाहे झांसी ,
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि रानी लक्ष्मीबाई तुम तो स्वर्ग में जा चुकी हो लेकिन ये भारतवासी सदैव तुम्हारे कृतज्ञ रहेंगे , ऋणी रहेंगे। स्वतंत्रता आंदोलन में आपके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता हैं। आपका यह बलिदान हमें हमेशा अपनी आजादी के प्रति सचेत करता रहेगा।
इतिहास चाहे जो भी कुछ कहे या लिखे। सच्चाई का गला घोंट भी दिया जाए। दुश्मन चाहे अपनी विजय का परचम लहरा भी दे या फिर झांसी को गोलों से नष्ट ही क्यों न कर दिया जाय लेकिन भारतवासी तेरा यह बलिदान कभी नहीं भूल सकेंगे ।
काव्यांश 36.
तेरा स्मारक तू ही होगी ,
तू खुद अमिट निशानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।
भावार्थ –
रानी चाहे तेरा स्मारक बने या ना बने , तू अपना स्मारक स्वयं होगी यानी तुम वीरता , अदम्य साहस का एक अनुपम उदाहरण बनकर सदैव हमारे बीच रहोगी , हमारे दिलों में राज करोगी। बुंदेलखंड के हरबोलों के मुंह से हमने यह कहानी सुनी हैं कि वीरांगना झांसी की रानी 1857 के उस युद्ध में वीर पुरुषों की भांति लड़ी थी।
Jhansi Ki Rani Class 6 Explanation
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