Lanka Main Hanuman Class 6 Summary :
Lanka Main Hanuman Class 6 Summary (Bal Ramkatha)
लंका में हनुमान कक्षा 6 सारांश (बाल रामकथा)
जब जामवंत ने हनुमानजी को उनकी बिलक्षण शक्तियाें याद दिलाई तो वो एक लम्बी छलांग लगाकर महेंद्र पर्वत के ऊपर चढ़ गये। हनुमानजी ने वहाँ से विशाल समुद्र की ओर देखा और फिर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके अपने पिता को प्रणाम किया। उसके बाद उन्होंने पर्वत पर झुक कर उसे अपने हाथों व पैरों से कसकर दबाया और फिर छलांग लगा दी। अगले ही पल वो समुंद्र के ऊपर आकाश में उड़ने लगे।
वैसे महेंद्र पर्वत बड़ा सुंदर व शांत था मगर जैसे ही हनुमानजी ने छलांग लगाई तो पर्वत से बड़ी -बड़ी चट्टानें टूट कर नीचे लुढ़कने लगी । वृक्ष टूट कर नीचे गिर गए और पशु – पक्षी चिल्लाकर भागने लगे। मगर इन सबसे बेखबर हनुमानजी वायु की गति से आगे बढ़ते रहे। समुद्र के बीच में एक सुनहरे व चमकदार मैनाक पर्वत ने हनुमानजी से थोड़ी देर अपने ऊपर विश्राम करने को कहा मगर हनुमानजी को अपने प्रभु श्रीराम का कार्य जल्दी पूरा करना था। इसीलिये वो उससे टकराकर आगे निकल गए।
समुंद्र पार करते हुए हनुमानजी को रास्ते में कई और परेशानियों का सामना करना पड़ा। थोड़ी दूर जाने पर राक्षसी सुरसा मिली जो हनुमानजी को खा जाना चाहती थी परंतु हनुमानजी बड़ी चतुराई से उसके मुंह में घुसकर बाहर निकल आए। इसके बाद एक और छाया राक्षसी सिंहिंका ने जल में हनुमानजी की परछाई पकड़ कर उन्हें आगे बढ़ने से रोक लिया। इससे नाराज हनुमानजी ने उसे मार डाला।
जैसे ही हनुमानजी ने समुंद्र पार किया तो उन्हें सोने की जगमगाती लंका दिखाई दी। एक पहाड़ी पर खड़े होकर हनुमानजी ने खूबसूरत लंका नगरी को बड़े गौर से देखा क्योंकि उन्हें वही सीता की खोज करनी थी। दिन के समय उन्होंने लंका में प्रवेश करना उचित नहीं समझा। इसीलिए वो शाम ढलने का इंतजार करने लगे। शाम ढलने पर वो लंका नगरी में पहरेदारों की नजरों से बचते हुए राजमहल में जा पहुंचे। वहां हर जगह वो सीता की खोज करने लगे परंतु उन्हें सीता वहां कही नहीं दिखाई दी।
अचानक उनका ध्यान राजमहल से लगी अशोक वाटिका की ओर गया। वो काफी निराश व हताश होकर एक घने पेड़ में छिपकर बैठ गए और इधर-उधर देखने लगे। तभी उन्हें अशोक वाटिका के एक कोने से जोर -जोर से हँसने की आवाज सुनाई दी। हनुमानजी ने देखा कि राक्षसियों के बीच एक दुर्बल , दयनीय व शोकग्रस्त स्त्री बैठी थी। हनुमानजी देखते ही पहचान गये कि यही सीता माता है।
तभी रावण अपने पूरे राजसी ठाटबाट के साथ वहां आया और माता सीता को अनेक प्रकार से लालच देकर उन्हें अपनी रानी बनने के लिए कहने लगा। परंतु सीता ने उससे कहा कि वह उन्हें तुरंत राम के पास पहुंचा दें और उनसे अपने किये की माफी मांग ले वरना उसका सर्वनाश निश्चित हैं।
रावण सीता को दो महीने का वक्त देकर वहां से पैर पटकता हुआ चला गया। रावण के जाने के बाद राक्षसियों ने सीता को तरह तरह से डराना -धमकाना शुरू किया। वो चाहती थी कि सीता रावण की बात मान ले। मगर त्रिजटा नाम की एक राक्षसी थोड़ी सी अलग थी। उसने सपने में देखा कि पूरी लंका समुंद्र में डूब कर नष्ट हो गई हैं। उसने यह बात सीता को बताई।
सभी राक्षसियों के वहाँ से चले जाने के बाद , हनुमानजी ने पेड़ पर बैठे-बैठे राम कथा प्रारंभ की। सीता ने ऊपर देखकर पूछा कि कौन है। हनुमानजी ने नीचे आकर सीता को प्रणाम कर उन्हें राम की अंगूठी भेंट की। उन्होंने सीता को बताया कि वो राम के दास हैं और यहाँ उनका समाचार लेने आये है । सीता ने राम का कुशल समाचार पूछा। हनुमानजी सीता को कंधे पर बैठ कर राम के पास ले जाना चाहते थे परंतु सीता ने उनके साथ जाने से मना कर दिया।
सीता का संदेश राम तक पहुंचाने के लिए हनुमानजी ने सीता से विदा ली और चल पड़े। हनुमानजी वापस राम के पास जाने के लिए उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगे। मगर तभी कुछ सोचकर रुक गए। उन्होंने रावण की अशोक वाटिका में जाकर उसे तहस – नहस (उजाड़ देना) कर दिया । फलों के पेड़ उखाड़ दिए और कई राक्षसों को मार दिया। यहां तक कि रावण के पुत्र अक्षयकुमार को भी मार दिया।
राक्षसों ने रावण को इसकी सूचना दी। रावण ने अपने बड़े पुत्र मेघनाथ को हनुमानजी को पकड़ने के लिए भेजा। इंद्रजीत मेधनाथ (भगवान इंद्र पर जिसने विजय पाई) ने हनुमानजी को बांधकर रावण के सामने उपस्थित कर दिया। रावण ने जब हनुमानजी से उसका परिचय पूछा तो उन्होंने कहा कि वह श्रीराम का दास हनुमान है और सीता जी की खोज में यहां आया है।
रावण हनुमानजी को मारना चाहता था परंतु विभीषण ने कहा कि दूत को मारना उचित नहीं है। इसीलिए रावण ने हनुमानजी को बांधकर उसकी पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया। राक्षसों ने हनुमानजी की पूंछ में आग लगा दी। हनुमान उछल कर एक भवन में चढ़ गए और वहां आग लगा दी। फिर उछल -कूद करते हुए दूसरे भवन में चढ़ गए और वहां भी आग लगा दी। इसी तरह उन्होंने सारी लंका को जला डाला और फिर समुंद्र में जाकर अपनी पूँछ की आग बुझाई ।
समुंद्र के दूसरे तट पर सभी हनुमानजी की प्रतीक्षा कर रहे थे। हनुमानजी ने वहां जाकर लंका की घटना की जानकारी बंदरों को दी। समाचार पाकर सभी वानर किलकारियां मारते हुए किष्किंधा पहुंच गए। हनुमानजी ने सीताजी द्वारा दिया आभूषण राम को दिया और उनको सीता के बारे में बताया। हनुमानजी ने राम को बताया कि सीता मां उनका बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही हैं। लंका पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठकर युद्ध की योजना बनाई तथा हनुमान , अंगद , जामवंत और नल – नील को उनकी योग्यता के अनुसार भूमिकाएं दी गई।
Lanka Main Hanuman Class 6 Summary :
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