Jungle Aur Janakpur Class 6 Summary (Bal Ramkatha)

Jungle Aur Janakpur Class 6 Summary :

Jungle Aur Janakpur Class 6 Summary

जंगल और जनकपुर कक्षा 6 सारांश (बाल राम कथा)

Jungle Aur Janakpur Class 6 Summary

महर्षि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों (राम और लक्ष्मण) को लेकर सरयू नदी के किनारे लगातार चलते रहे। शाम होने पर ऋषि विश्वामित्र ने दोनों राजकुमार के साथ सरयू नदी के तट पर ही विश्राम करने का निर्णय लिया। रात में सोने से पहले उन्होंने दोनों राजकुमारों को “बला – अतिबला” नाम की विद्याएं सीखाई ताकि उस धने जंगल में उन पर कोई अचानक से प्रहार (एक दम से हमला)  न कर पाये। अगर वो नींद में सोये होंगे तब भी सुरक्षित रहेंगे। “बला – अतिबला” नामक विद्याएं सीखने के बाद उन्होंने तिनकों व पत्तों का बिस्तर बनाकर वही रात्रि विश्राम किया। 

अगले दिन सुबह उन्होंने यात्रा फिर से शुरू की। महर्षि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों को रास्ते में पडने वाले आश्रमों , जंगलों तथा वहां के स्थानीय इतिहास के बारे में भी उनको बताते रहे । चलते -चलते वो तीनों सरयू व गंगा नदी के संगम में पहुंचे। जहाँ उन्होंने संगम में बने आश्रम में विश्राम किया।

अगली सुबह उन्होंने नाव से गंगा नदी पार की और एक डरावने से घने जंगल में प्रवेश किया। चलते-चलते महर्षि ने राक्षसी ताड़का के बारे में राम और लक्ष्मण को बताया जिसके डर से इस सुंदरवन का नाम “तड़ाका वन” पड़ गया था। उन्होंने राम को राक्षसी ताड़का को मारने की आज्ञा दी। महर्षि की आज्ञा पाकर राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और छोड़ दिया। धनुष की प्रत्यंचा की आवाज सुनकर राक्षसी ताड़का को बहुत क्रोध आया और वो दौड़ी – दौड़ी राम और लक्ष्मण के सामने पहुंच गई।

उसके दौड़ने से जंगल में जैसे तूफ़ान आ गया। विशालकाय पेड़ काँपने लगे और उनके पत्ते खुद ही टूटकर इधर -उधर गिरने लगे। राक्षसी ताड़का ने राम और लक्ष्मण पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। राम और लक्ष्मण ने भी उस पर बाण चलाने शुरू किये जिससे राक्षसी ताड़का बाणों से घिर गई और अंत में राम का एक बाण उसके हृदय पर लगा जिससे वो वहीं पर ढेर हो गई। इससे प्रसन्न गुरु ने उन्हें अनेक अस्त्र -शस्त्र दिए और उनको प्रयोग करने की विधि भी बताई। 

अगले दिन महर्षि दोनों राजकुमारों के साथ अपने आश्रम “सिद्धाश्रम”पहुंचे। आश्रम पहुँचते ही महर्षि यज्ञ की तैयारी में लग गए। आश्रम की रक्षा की जिम्मेदारी उन्होंने राम और लक्ष्मण को सौंप दी।  दोनों राजकुमारों ने यज्ञ पूरा होने तक न सोने का निर्णय लिया। सब कुछ शांतिपूर्वक व ठीक -ठाक चल रहा था। लेकिन अनुष्ठान के अंतिम दिन सुबह दो राक्षसों मारीच और सुबाहु ने दलबल के साथ आश्रम में धाबा बोल दिया।

दोनों राजकुमारों ने धनुष उठाकर उन पर निशाना साधना शुरू किया। राम का तीर मारीच को लगा और वह मूर्छित होकर दूर समुद्र के किनारे जा गिरा लेकिन वो मरा नही। होश में आते ही दक्षिण दिशा की तरफ भाग खड़ा हुआ। मगर राम का दूसरा तीर सुबाहु को लगा और वो वहीं पर मृत्यु को प्राप्त हो गया। मारीच और सुबाहु का यह हाल देखकर बाकी राक्षस भी भाग खड़े हुए। इसके बाद महर्षि का अनुष्ठान संपन्न हुआ और उन्होंने प्रसन्न होकर राम को गले लगा लिया।

शान्ति पूर्वक अनुष्ठान संपन्न होने के बाद , महर्षि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों को मिथिला के राजा जनक के यहां उनकी पुत्री सीता के स्वयंवर में रखा अदभुत शिव धनुष दिखाने ले गए। मिथिला पहुंचने पर राजा जनक ने विश्वामित्र का स्वागत किया। महर्षि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण , दोनों के बारे में राजा जनक को विस्तार पूर्वक बताया।

अगले दिन सभी आमंत्रित राजा , ऋषि – मुनि व दोनों राजकुमार यज्ञशाला में पहुचें और राजा जनक की आज्ञा से धनुष भी यज्ञशाला में लाया गया । राजा जनक ने विश्वामित्र को बताया कि उन्होंने प्रतिज्ञा ली है कि जो इस शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी के साथ वो अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे। लेकिन दुख की बात यह हैं कि अभी तक कई राजकुमारों ने इस शिव धनुष को उठाने का प्रयास किया लेकिन उठाना तो दूर , इस शिव धनुष को कोई हिला भी न सका। 

राजा जनक का संकेत समझकर महर्षि विश्वामित्र ने राम से शिव धनुष उठाने को कहा । अपने गुरु की आज्ञा पाकर राम ने धनुष को उठाकर जैसे ही उसकी प्रत्यंचा खींची। शिव धनुष टूटकर दो टुकड़ों में बँट गया। यह देखकर राजा जनक की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

महर्षि विश्वामित्र की अनुमति पाकर राजा जनक ने राजा दशरथ को संदेश भिजवाया। राजा जनक का संदेश मिलते ही अयोध्या में खुशी छा गई और आनन -फानन में राजा दशरथ हाथी , घोड़े , रथ और सेना लेकर मिथिला पहुंच गए। मिथिला पहुंचने में पांच दिन लग गये । मिथिला में बारात का भव्य स्वागत हुआ। 

विवाह से पूर्व राजा जनक ने दशरथ के सामने इच्छा जाहिर की कि वो अपनी छोटी बेटी उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से और अपने छोटे भाई कुशध्वज की दोनों बेटियों मांडवी और श्रुतकीर्ति का विवाह भरत और शत्रुघ्न के साथ करना चाहते हैं जिसे राजा दशरथ ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

इस तरह राम सीता से , लक्ष्मण उर्मिला से , भरत मांडवी से और शत्रुघ्न श्रुतकीर्ति से विवाह बंधन में बंध गए। विवाह के बाद बारात कुछ दिन तक जनकपुरी में रुकी फिर चारों बहूओं को लेकर राजा दशरथ अपने पुत्रों के साथ अयोध्या लौट आए। अयोध्या में तीनों रानियां ने अपनी पुत्रबधुओं का खुशी-खुशी स्वागत किया।  स्त्रियों ने फूल बरसाए , शंखध्वनि की और मंगल गीत गए और यह आनंद उत्सव अयोध्या में कई दिन तक  चला रहा। 

Jungle Aur Janakpur Class 6 Summary

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