Jo Dekhkar Bhi Nahi Dekhte Class 6 Summary

Jo Dekhkar Bhi Nahi Dekhte Class 6 Summary :

Jo Dekhkar Bhi Nahi Dekhte Class 6 Summary

जो देखकर भी नहीं देखते कक्षा 6 सारांश

Jo Dekhkar Bhi Nahi Dekhte Class 6 Summary

“जो देखकर भी नहीं देखते” , पाठ एक निबंध है जिसकी लेखिका हेलेन केलर है। उनका जन्म सन 1880 में अमेरिका में हुआ था और उनकी मृत्यु 1968 में हुई थी। सिर्फ डेढ़ साल की उम्र में एक गंभीर बीमारी के कारण हेलेन केलर की देखने और सुनने की शक्ति खत्म हो गई यानि वो न तो देख पाती थी और नहीं ही सुन पाती थी।

लेकिन बाबजूद इसके उन्होंने कभी हार नहीं मानी। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने अपनी आत्मकथा “स्टोरी ऑफ लाइफ / Story Of Life” लिखी। इसमें उन्होंने अपने अंधेपन के बारे में लिखा था कि “मुझे यह तो याद नहीं कि ऐसा कैसे हुआ लेकिन ऐसा लगता था कि ये रात कभी खत्म क्यों नहीं होती है और सुबह क्यों नहीं आती “।

इसके अलावा उनकी 10 पुस्तकें और सैकड़ों लेख भी प्रकाशित हुए। वो जीवन भर पूरी दुनिया में घूम -घूम कर अपने जैसे लोगों के अधिकारों और विश्व शांति के लिए काम करती रही। हेलन केलर भारत भी आई थी।

इस निबंध में लेखिका कहती हैं कि कुछ समय पहले उनकी एक प्रिय मित्र जंगल की सैर करने के बाद जब वापस लौटी तो उन्होंने उनसे पूछ लिया कि जंगल में क्या-क्या देखा। उनकी मित्र ने जवाब दिया कुछ खास नहीं। यह जवाब सुनकर लेखिका को कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वो अब इस तरह के जबाबों की आदी हो चुकी थी यानि उन्हें हर कोई इसी तरह के जबाब देता था।

लेखिका को अब विश्वास होने लगा था कि जिन लोगों के पास इस सुंदर दुनिया और प्रकृति को देखने के लिए आंखें होती हैं वो इन सब को बहुत कम देखते है। यानि वो इन सब का बहुत कम आनंद उठाते हैं। लेखिका को लगता है कि इतने बड़े जंगल में कोई घंटा भर घूमे और उसे कोई भी विशेष चीज ना दिखाई दे। ऐसा कैसे हो सकता है ? अंधी होने के बावजूद भी उन्हें , जंगल में सैकड़ों रोचक चीजें मिलती हैं जिन्हें वो सिर्फ छूकर ही पहचान लेती हैं जैसे भोजपत्र के पेड़ की चिकनी छाल और चीड़ के पेड़ की खुरदरी छाल जिन्हें वो सिर्फ अपनी उंगलियों से स्पर्श करके ही पहचान लेती हैं।

इसी तरह बसंत ऋतु के दौरान टहनियों में उग आई नई -नई कलियां और फूलों की पंखुड़ियां की मुलायम (मखमली) सतह को छूने और उन पंखुड़ियां की घुमावदार बनावट को महसूस करने में लेखिका अपार आनंद महसूस करती हैं । लेखिका इसे “प्रकृति का जादू” कहती हैं।

लेखिका कहती हैं कि वो अपने आप को तब बहुत खुशनसीबी समझती हैं जब किसी पेड़ की टहनी पर हाथ रखते ही किसी चिड़िया के मधुर स्वर उनके कानों में गूँजने लगते हैं यानि वो चिड़िया की आवाज सुनकर भी खुशी महसूस करती है। जब वो अपनी उंगलियाँ किसी झरने में डालती हैं और झरने का पानी उनको अपनी उंगलियों के बीच से बहता हुए महसूस होता हैं तो वो बहुत खुश हो जाती हैं।

लेखिका कहती हैं कि उन्हें चीड़ की फैली पत्तियां या घास के मैदान किसी महंगे कालीन से भी अधिक प्रिय है। बदलता हुआ मौसम उनके जीवन में खुशियां भर देता है।

(चीड़ की पत्तियां जब सूखकर जमीन पर गिरती हैं तो वो जमीन पर एक मोटी सी Layer बना देती हैं जो किसी मोटे गद्दे /कालीन की तरह ही महसूस होता हैं। )

लेखिका का दिल भी कभी -कभी इस सुंदर दुनिया और प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी आंखों से देखने के लिए मचल उठता है यानि वो इन सब चीजों को अपनी आँखों से देखना चाहती हैं मगर अंधेपन की वजह से वो इन चीजों को नहीं देख पाती हैं। इसीलिए लेखिका कहती है कि जब इन सब चीजों को छूने मात्र से ही उनको इतनी खुशी मिलती है तो अगर वो इन सब चीजों को अपनी आंखों से देख पाती तो शायद वो उनमें ही खो जाती यानि अत्यंत खुश हो जाती।

लेखिका कहती हैं कि जिनके पास आंखें हैं। वो वाकई में बहुत कम देखते हैं। वो प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य के प्रति असंवेदनशील होते हैं। मनुष्य के पास अपार क्षमता है लेकिन वह कभी भी अपनी क्षमताओं का भरपूर उपयोग नहीं करता है या उसकी कद्र नहीं करता है। मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि जो चीज उसके पास होती है वह उसकी कद्र नहीं करता है यानि वह उसमें खुश नही रहता है। वह हमेशा उसी चीज को प्राप्त करने के लिए हमेशा लालायित रहता है जो उसके पास नही है।

अंत में लेखिका कहती हैं कि दृष्टि (आंखों की रोशनी) भगवान का आशीर्वाद है या भगवान का दिया हुआ सबसे बड़ा उपहार हैं। उन्हें इस बात से दुख होता है कि लोग भगवान के दिए हुए इस असाधारण उपहार को एक साधारण सी चीज समझते हैं। जबकि इस उपहार से वो अपने जीवन को खुशियों के इंद्रधनुषी रंग से भर सकते हैं यानि सारी दुनिया को देख कर आनंदित हो सकते हैं।

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