Awadhpuri Me Ram Class 6 Summary : बाल रामकथा

Awadhpuri Me Ram Class 6 Summary ,

Awadhpuri Me Ram Class 6 Summary

अवधपुरी में राम (बाल रामकथा) कक्षा 6 सारांश

Awadhpuri Me Ram Class 6 Summary

अयोध्या सरयू नदी के किनारे बसा एक सुंदर नगर था। यहाँ का सिर्फ राजमहल ही भव्य नही था बल्कि आम लोगों के घर भी बड़े आलीशान थे । अयोध्या कौशल राज्य की राजधानी थी। चौड़ी – चौड़ी सड़कें , सुंदर बाग-बगीचे , पानी से भरे सरोबर (तालाब) व खेतों में लहराती फसलें यानि अयोध्या में सब कुछ बहुत सुंदर था। वहाँ दुःख और दरिद्रता का कही कोई नामोनिशान नही था।

महाराज अज के पुत्र और महाराज रघु के वंशज यानि रघुकुल के उत्तराधिकारी दशरथ यहां के राजा थे। वो न्यायप्रिय , सदाचारी , कुशल योद्धा व रघुकुल की सभी मर्यादाओं का पालन करने वाले राजा थे। उनके पास सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं थी। उन्हें बस एक ही दुख था कि उनकी कोई संतान नहीं थी । इसीलिए वो काफी चिंतित रहते थे। 

एक दिन राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ से इस बारे में बात की और अपनी चिंता उनके सामने व्यक्त की। मुनि वशिष्ठ ने राजा की चिंता को समझते हुए उन्हें “पुत्रेष्टि यज्ञ यानि पुत्र प्राप्त करने का यज्ञ” करने की सलाह दी । पुत्रेष्टि यज्ञ , तपस्वी ऋषि ऋष्यश्रृंग की देखरेख में बिना किसी विध्न बाधा के पूर्ण हुआ । अग्नि देवता ने महाराज दशरथ को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।

कुछ समय बाद , राजा दशरथ की तीनों रानियां को पुत्र की प्राप्ति हुई। बड़ी रानी कौशल्या ने चैत्र मास की नवमी के दिन भगवान राम को जन्म दिया। इसी के साथ ही दूसरी रानी सुमित्रा ने दो पुत्र “लक्ष्मण” और “शत्रुघ्न” को और सबसे छोटी रानी कैकई ने “भरत” को जन्म दिया।  चारों राजकुमारों के जन्म के साथ ही राजमहल में खुशी छा गई। मंगलगीत गाये गये। उत्सव मनाया गया।

चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े होने लगे। चारों अत्यंत सुंदर थे तथा उन सभी में आपस में बहुत प्रेम था। तीनों छोटे भाई ,अपने बड़े भाई राम की आज्ञा का पालन करते थे । बड़े होने पर चारों राजकुमारों को शिक्षा -दीक्षा के लिए गुरुकुल भेजा गया। उन सभी ने कुशल , विद्वान व दक्ष गुरुजनों से ज्ञान अर्जित किया तथा शस्त्र विद्या भी सीखी । चारों राजकुमार कुशाग्र बुद्धि (तेज दिमाग) के थे। इसीलिए उन्होंने जल्दी ही सभी विद्यों सीख ली।  

राजा दशरथ को राम सबसे प्रिय थे क्योंकि वो विवेकवान , शालीन , न्यायप्रिय व धैर्यवान थे। चारों राजकुमारों के विवाह योग्य होने पर उनके लिए सुयोग्य कन्याएं ढूढ़ने का काम शुरू हुआ। एक दिन राजमहल में चारों राजकुमारों के विवाह के बारे में बातचीज चल रही थी , ठीक उसी समय वहां महर्षि विश्वामित्र पधारे । दशरथ ने उन्हें ऊंचा आसान देकर उनका भरपूर सम्मान किया और उनसे अयोध्या आने का कारण पूछा।

महर्षि विश्वामित्र ने राजा दशरथ को बताया कि वो सिद्धि प्राप्त करने के लिए एक यज्ञ कर रहे हैं। अनुष्ठान लगभग पूरा हो चुका हैं। मगर दो राक्षस उनके यज्ञ में लगातार बाधा डाल रहे हैं जिस कारण उनका यज्ञ पूरा नही हो पा रहा हैं। उन दोनों राक्षसों को सिर्फ राम ही मार सकते है। इसीलिए यज्ञ की रक्षा के लिए वो राम को कुछ दिनों के लिए उन्हें दे दे ताकि उनका यज्ञ दस दिन में पूरा हो सके।

यह सुनकर राजा दशरथ बहुत दुखी हुए क्योंकि वो अपने ज्येष्ठ व सबसे प्रिय पुत्र राम को अपने से एक क्षण भी दूर नही करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से कहा कि राम तो अभी केवल 16 वर्ष के ही है। भला वो मायवी राक्षसों को कैसे मार सकते है। वो चाहे तो अयोध्या की सेना अपने साथ ले जा सकते हैं। मगर महर्षि विश्वामित्र तो राम को ही अपने साथ ले जाना चाहते थे।

इसीलिए महर्षि विश्वामित्र थोड़े क्रोधित होकर राजा दशरथ से बोले कि वो रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं। वचन देकर पीछे हट रहे है और उनका यह वर्ताव कुल के विनाश का सूचक है। बात को बिगड़ती देखकर मुनि वशिष्ठ आगे आए और उन्होंने राजा दशरथ को समझाया कि महर्षि विश्वामित्र महान तपस्वी व सिद्ध पुरुष हैं। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार हैं। राम महर्षि विश्वामित्र से अनेक विद्याएं सीखगें और खुद राम भी महाप्रतापी और शक्तिशाली है।

मुनि वशिष्ठ ने राजा दशरथ से कहा कि रघुकुल की रीत (नियम) भी यही कहती हैं कि अपने दिये हुए वचन की रक्षा अपने प्राणों को देकर भी की जाय । इसीलिए आप राम को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने दें।  

राजा दशरथ ने दुखी मन से मुनि वशिष्ठ की बात स्वीकार कर ली। परंतु उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से राम के साथ लक्ष्मण को भी अपने साथ ले जाने का आग्रह किया।  विश्वामित्र ने दशरथ की बात को मान लिया। दशरथ ने राम और लक्ष्मण को दरबार में बुलाकर उन्हें अपने निर्णय के बारे में बताया।

दोनों भाइयों ने राजा दशरथ के निर्णय को खुशी -खुशी स्वीकार किया और दोनों राजकुमार बिना देर किए महर्षि के पीछे जंगलों की ओर चल पड़े। मार्ग में महर्षि विश्वामित्र आगे -आगे और राम व लक्ष्मण अपने -अपने धनुष संभाले , पीठ पर तुणीर (जिसमें तीर रखे जाते हैं) बांधे और कमर पर तलवार लटकाये उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। 

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