Naukar Class 6 Summary :
Naukar Class 6 Summary
नौकर कक्षा 6 सारांश
“नौकर” , पाठ अनु बंद्योपाध्याय जी द्वारा रचित एक निबंध है जिसमें उन्होंने गाँधी जी के व्यक्तित्व , स्वभाव , आदतों व उनकी दिनचर्या के बारे में विस्तारपूर्वक बताया हैं। लेखिका कहती हैं कि सावरमती आश्रम में गांधीजी हर रोज ऐसे बहुत सारे काम करते थे जिन्हें आमतौर पर लोग अपने नौकर – चाकरों से करवाना पसंद करते हैं । गांधीजी ये काम सिर्फ सावरमती आश्रम में ही नही करते थे बल्कि ये काम वो तब भी करते थे जब वो बैरिस्टर (वकील) थे और हजारों रुपए कमाते थे । यानि वो चाहते तो अपने लिए नौकर रख सकते थे मगर वो अपना सारा काम स्वयं ही करते थे।
वो प्रतिदिन सुबह चक्की में आटा पीसा करते थे। चक्की चलाने में उनकी पत्नी कस्तूरबा और उनके बेटे भी उनका हाथ बंटाते थे। वो घर में रोटी बनाने के लिए महीन (बारीक) या मोटा अनाज खुद ही पीस लेते थे। साबरमती आश्रम में भी गांधीजी ने आटा पीसने का काम जारी रखा।
वो गेहूं को पीसने से पहले उसकी साफ -सफाई करने में काफी जोर देते थे। उन्हें बाहरी लोगों के सामने शारीरिक मेहनत करने यानि कोई भी काम करने में कोई शर्म महसूस नहीं होती थी। एक बार कॉलेज के कुछ छात्र गांधीजी से मिलने आए। उन्हें अपनी अंग्रेजी भाषा के ज्ञान पर बड़ा गर्व था। वो गाँधीजी की कुछ सेवा करना चाहते थे। गांधीजी ने उन छात्रों को भी गेहूं साफ करने में लगा दिया। महज एक घंटे में ही वो इस कार्य से थक गए और गांधीजी से विदा लेकर चले गये।
गांधीजी ने कुछ वर्षों तक आश्रम में भंडार (अनाज व सब्जी फल रखने की जगह) का काम भी संभाला था। उन्हें फल – सब्जी व अनाज के पौष्टिक गुणों का अच्छा ज्ञान था। गांधीजी आश्रम में अन्य लोगों को भी भोजन बनाकर परोसते थे जिस कारण उन लोगों को बेस्वाद , उबली हुई सब्जियां मजबूरी वश खानी पड़ती थी क्योंकि वो गांधीजी से उनके ही बनाये खाने की शिकायत नही कर सकते थे। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका की एक जेल में सैकड़ो कैदियों को दिन में दो बार भोजन परोसने का काम भी किया था।
गांधीजी को चमकते हुए बर्तन भी बहुत अधिक प्रिय थे। सावरमती आश्रम का एक नियम था कि सब लोग खाना खाने के बाद अपने बर्तन खुद ही साफ करेंगे और रसोई के बर्तन बारी-बारी से कुछ लोग दल बना कर धोते थे। गांधीजी आश्रम में कुएं से पानी निकालने का काम भी रोज ही करते थे। उनका मानना था कि जब तक वो स्वस्थ हैं , वो अपना काम खुद करेंगे। उनके अंदर हर प्रकार के काम करने की अद्भुत शक्ति व क्षमता थी। वो किसी भी काम को करने में थकते नही थे। दक्षिण अफ्रीका के बोअर युद्ध के दौरान उन्होंने घायलों को स्ट्रेचर पर लादकर एक दिन में 25-25 मील तक का सफर भी तय किया। वो मीलों पैदल चल सकते थे।
एक बार किसी तालाब को भरने का काम चल रहा था जिसमें उनके कुछ साथी काम कर रहे थे। एक दिन काम खत्म कर जब उनके साथी वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि गांधीजी ने उन लोगों के लिए नाश्ते में फल आदि तैयार करके रखे हुए थे। एक बार दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की मांगों को ब्रिटिश सरकार के सामने रखने के लिए गांधी जी लंदन गए। वहां भारतीय छात्रों ने उन्हें शाकाहारी भोज के लिए आमंत्रित किया। वो लोग स्वयं गांधीजी के लिए भोजन बनाने में जुटे थे। दिन के लगभग दो बजे एक दुबला -पतला आदमी आकर उनके काम में मदद करने लगा। बाद में छात्रों को पता लगा कि वह दुबला -पतला व्यक्ति स्वयं गांधीजी ही थे।
दूसरों से काम लेने में गांधीजी बहुत सख्त थे परंतु दूसरों से अपना काम करवाना उन्हें नापसंद था। एक बार गांधीजी ने राजनीतिक सम्मेलन से लौटकर रात्रि के लगभग 10:00 बजे अपना कमरे में झाड़ू लगाकर उसे साफ किया। गांधीजी को बच्चों से बहुत प्यार था। उनका मानना था कि बच्चों के विकास के लिए मां-बाप का प्यार और उनकी देखभाल अनिवार्य है।
दक्षिण अफ्रीका में जेल से छूटने के बाद उन्होंने देखा कि उनके मित्र की पत्नी श्रीमती पोलक बहुत कमजोर और दुबली हो गई है क्योंकि उनका बच्चा बहुत प्रयास के बाद भी उनका दूध पीना नहीं छोड़ रहा था। गांधीजी ने एक महीने तक बच्चे को अपने पास सुलाया। रात में वो अपनी चारपाई के पास पानी रखकर सोते थे। यदि बच्चे को प्यास लगती तो उसे पानी पिला देते । कुछ समय अलग सोने पर बच्चे ने मां का दूध पीना ही छोड़ दिया।
गांधी जी अपने बड़ों का बहुत आदर – सम्मान करते थे। एक बार वो दक्षिण अफ्रीका में गोखलेजी के साथ ठहरे थे। गांधी जी गोखलेजी के सभी काम स्वयं करते थे जैसे उनके दुपट्टे में इस्त्री करना (प्रेस करना) , बिस्तर लगाना , भोजन परोसना , पैर दबाना आदि। हालाँकि गोखलेजी उन्हें उनके काम करने को मना करते थे फिर वो गोखलेजी के काम करते थे।
जब कभी आश्रम में किसी सहायक को रखने की आवश्यकता होती तो वो किसी हरिजन व्यक्ति को रखने का आग्रह करते थे। वो हमेशा कहते थे कि नौकरों को हमें वेतनभोगी मजदूरों की तरह नहीं बल्कि अपने भाई के समान ही मनाना चाहिए। इसमें कुछ कठिनाई हो सकती है। कुछ चोरियां हो सकती है फिर भी हमारी कोशिश बेकार नहीं जाएगी । इंग्लैंड में गांधीजी ने देखा कि ऊंचे घरानों में घरेलू नौकरों को परिवार के सदस्य की तरह ही रखा जाता था।
एक बार गांधीजी किसी सज्जन के घर मेहमानदारी में गए। काफी दिन वहाँ रहने के बाद , जब वो अपने घर लौटने लगे तो उन्होंने घर के मालिक के साथ -साथ वहाँ के नौकरों से भी विदा ली और उनसे कहा कि “मैं आपको नौकर नही मानता हूँ। आप सब मेरे भाई -बहिन हैं। हालाँकि मैं आपकी सेवा का मूल्य नही चुका सकता हूँ। हाँ , ईश्वर आपको इसका फल अवश्य देगा”।
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