Silver Wedding Class 12 summary ,
Silver Wedding Class 12 summary
सिल्वर वैडिंग कक्षा 12 का सारांश
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सिल्वर वैडिंग के लेखक मनोहर श्याम जोशी हैं। इस कहानी के जरिये उन्होंने दो पीढ़ियों के बीच के अंतराल (Generation Gap) के अंतर्द्वंद को दर्शाया हैं। यानि यह कहानी दो पीढ़ियों (पुरानी पीढ़ी व नई पीढ़ी) के विचारों व जीने के तौर तरीकों के अंतर को स्पष्ट करती है।
कहानी के मुख्य पात्र यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति हैं जो अपने परंपरागत मूल्यों , आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते है मगर उनके बच्चे नए जमाने के हिसाब से जीवन जीने में विश्वास करते है।
उनकी पत्नी भी समय के साथ साथ अपने आप को बदल कर आधुनिक तौर तरीके अपना चुकी हैं। लेकिन यशोधर बाबू अपने आप को बदलने को राजी नही है और यही बात उनके व परिजनों के बीच टकराव की वजह बन जाती हैं।
यशोधर पंत एक सरकारी दफ्तर में सेक्शन ऑफिसर के पद पर तैनात थे और दिल्ली के गोल मार्केट में रहते थे। वो पुरानी मान्यताओं व विचारधारा को मानने वाले सीधे सरल व्यक्ति थे । मगर उनके परिवार के सभी सदस्य आधुनिक जीवन शैली अपना चुके थे।
यहां तक कि उनकी पत्नी जो कभी पूर्ण रूप से उन्हीं की तरह संस्कारी थी। अब उसने भी बच्चों की मर्जी के अनुसार आधुनिक तौर तरीके अपना लिए थे और मॉडर्न बन चुकी थी । इसी कारण यशोधर बाबू का अपने परिवार वालों के साथ मतभेद चलता रहता था।
यशोधर बाबू अपनी मॉडर्न पत्नी का “शायनल बुढ़िया” , “चटाई का लहंगा” और “बूढ़ी मुँह मुंहासे लोग करे तमाशे” कहकर मजाक बनाते थे। यशोधर बाबू के तीन बेटे और एक बेटी थी। सबसे बड़ा बेटा भूषण 1500/- रुपए प्रति माह के वेतन पर एक विज्ञापन कंपनी में काम करता था।
दूसरा बेटा आई.ए.स की तैयारी कर रहा था और तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका जा चुका था। बेटी डाक्टरी की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहती थी। इसीलिए वह विवाह के लिए तैयार नहीं थी।
कहानी की शुरुआत करते हुए लेखक कहते हैं कि यशोधर बाबू अपने दफ्तर में बैठे हुए अपनी घड़ी को देखते हैं जो उस वक्त ठीक शाम के 5 बजकर 25 मिनट बजा रही थी। अपनी घड़ी को 5 मिनट सुस्त (Late) बताते हुए वो जैसे ही दफ्तर से घर जाने के लिए उठ खड़े हुए तो दफ्तर के एक कर्मचारी चड्ढा ने उनकी घड़ी पर व्यंग्य कसते हुए उनसे डिजिटल घड़ी लेने की बात की।
उसकी बात का जबाब देते हुए यशोधर बाबू उसे बताते हैं कि यह घड़ी उन्हें शादी में उपहार स्वरूप मिली थी । इसीलिए उन्हें यह बेहद प्रिय हैं। बातों – बातों में उनके दफ्तरवालों को यह पता लग जाता हैं कि उनकी शादी 6 फरवरी 1947 को हुई थी और आज उनकी सिल्वर वेडिंग (शादी की 25वीं सालगिरह) है।
वो यशोधर बाबू से पार्टी मांगने लगते हैं। यशोधरा बाबू 30 रूपये उन्हें पार्टी के लिए देते तो हैं मगर खुद उस चाय पार्टी में शामिल होने के बजाय अपने घर को निकल पड़ते हैं।
अचानक यशोधरा बाबू को किशन दा (दा यानि बड़ा भाई) की याद आती है जो ऑफिस में चाय- पानी पीने , गप्पें लड़ाने को समय की बर्बादी मानते थे। वो किशन दा की कही हुई सभी बातों का अनुसरण किया करते थे। उनको ही अपना मार्गदर्शक व आदर्श मानते थे।
जब यशोधरा बाबू मैट्रिक पास कर दिल्ली आये थे तो किशन दा ने ही उन्हें अपने घर में शरण दी थी। सरकारी नौकरी करने के लिए उस समय उनकी उम्र कम थी। इसीलिए उन्होंने उन्हें कुछ समय के लिए अपने घर में रसोईया बना दिया था। और बाद में उन्हें अपने ही ऑफिस में नौकरी दिलवा दी।
यशोधर बाबू के जीवन व चरित्र निर्माण में किशन दा का बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्होंने किशन दा से ही ऑफिस में रहने व कार्य करने के तौर तरीके सीखे थे ।
किशन दा आजीवन अविवाहित रहे। उनका जीवन बहुत ही सरल व सादगी भरा था। वो धार्मिक , व परोपकारी व्यक्ति थे। वो अपने आदर्शों पर चलते थे व समाज सेवा का कार्य करते थे। वो सभी के मार्गदर्शक थे।
वो पहाड़ (कुमाऊं , उत्तराखंड) से नौकरी के लिए आने वाले लोगों के रहने – खाने की अपने घर में ही व्यवस्था करते थे। उनकी नौकरी ढूंढने में भी मदद करते थे। वो अपनी सभ्यता व संस्कृति से प्रेम करते थे। यशोधर बाबू ने उनसे यह सब सीखा और उनका अपने जीवन में अनुसरण किया।
यशोधर बाबू की एक निश्चित दिनचर्या थी। वो पैदल ही घर से ऑफिस जाते और शाम को 5:00 बजे ऑफिस के बाद सबसे पहले बिडला मंदिर जाते थे। फिर पार्क में बैठकर प्रवचन सुनते थे। उसके बाद सब्जी मंडी जाकर सब्जी खरीद कर पैदल ही घर पहुंचते थे। इस तरह 5:00 बजे ऑफिस से निकल कर 8:00 बजे के बाद ही वो अपने घर पहुंचते थे।
हालाँकि वो अब ऑफिस पैदल ही जाने लगे थे लेकिन पहले साइकिल से जाते थे। उनके बच्चे अब बड़े हो चुके थे जिन्हें उनका साइकिल से ऑफिस जाना पसंद नहीं था। स्कूटर उन्हें पसंद नहीं था और कार वो खरीद नहीं सकते थे। इसीलिए उन्होंने पैदल ही जाना – आना शुरू कर दिया था।
आज भी वो रोज की तरह दफ्तर से पहले सीधे बिड़ला मंदिर की तरफ जा रहे थे कि रास्ते में अचानक उनकी नजर उस क्वार्टर (कमरे) पर पड़ी जिसमें कभी किशन दा रहा करते थे। उस क्वार्टर को तोड़कर वहाँ तीन मंजिला मकान बना दिया था। उनके बच्चे भी चाहते थे कि वो भी अब अपने पद के अनुसार बड़ा मकान ले लें लेकिन उनको वही जगह पसंद थी। इसीलिए वहां से कहीं और नहीं जाना चाहते थे।
यशोधर बाबू व उनके बच्चों के बीच अक्सर विचारों का टकराव चलता रहता था। ऐसे में कभी -कभी वो सोचते थे कि काश किशन दा की तरह वो भी अविवाहित रहते और समाज सेवा में अपना जीवन लगा देते हैं।
लेकिन फिर उन्हें उनके रिटायरमेंट के बाद का समय याद आता है। जब किशन दा को किसी ने सहारा नहीं दिया और वो गांव चले गये जहाँ उनकी एक साल के बाद मृत्यु हो गई। इस प्रकार यशोधर बाबू के मन के भीतर विचारों का अंतर्द्वंद चलता रहा था।
यशोधर बाबू का मंदिर जाना , धार्मिक कार्यों में भाग लेना , प्रवचन सुनना आदि उनके परिवार वालों को पसंद नहीं था। उनके बच्चे अक्सर उनसे कहते थे कि अभी वो इतने बूढ़े नहीं हुए कि मंदिर जाकर प्रवचन सुनें।
यशोधर बाबू मंदिर जाने के बाद प्रवचन सुनने तो बैठ गये लेकिन आज उनका प्रवचन में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था। उनके दिमाग में कई तरह के ख्याल आ और जा रहे थे। इसीलिए वो प्रवचन से उठकर सब्जी मंडी की तरफ निकल पड़े । तभी उन्हें याद आया कि उनके बेटे बाजार से सामान लाने के लिए नौकर रखने को कहते हैं मगर खुद जाना पसंद नहीं करते हैं।
उनका बड़ा बेटा तो उन्हें अपना वेतन तक नहीं देता है। अपने पैसों व अपनी मर्जी से घर का सामान खुद ही खरीद कर लाता है और फिर सबको उस सामान का रौब दिखाता है। सब्जी मंडी से सब्जी लेकर जब यशोधर बाबू घर पहुंचे तो देखा कि उनका बेटा उनके घर के बाहर अपने बॉस को विदा कर रहा था और घर से अन्य लोग भी विदा ले रहे थे। घर में पार्टी चल रही थी।
पहले तो उन्हें कुछ समझ नहीं आया। बाद में भूषण ने उन्हें शिकायत करते हुए बताया कि उनके घर में उनकी “सिल्वर वेडिंग” की पार्टी चल रही है और वो ही इतनी देर से आ रहे हैं। यह सब सुनकर यशोधर बाबू को बहुत दुख हुआ क्योंकि किसी ने भी उन्हें पार्टी के आयोजन के बारे में कुछ नहीं बताया था ।
वैसे भी उन्हें पार्टी वगैर बिल्कुल पसंद नहीं थी मगर बच्चों के बहुत आग्रह करने पर उन्होंने केक तो काटा लेकिन केक में अंडा होने व संध्या पूजा करने का बहाना बनाकर खाया नहीं। और वो वहाँ से उठकर संध्या पूजा करने चले गए। और तब तक पूजा स्थल पर ही बैठे रहे जबतक सारे मेहमान घर से विदा नही हुए।
मेहमानों के चले जाने के बाद पत्नी के बुलाने पर जब वो बैठक में आये तो उनके बड़े बेटे ने उन्हें ऊनी ड्रेसिंग गाउन गिफ्ट किया और कहा कि वो उसे ही पहन कर कल से सुबह दूध लेने जाया करें। लेकिन यशोधर बाबू यह सोच रहे थे कि काश !! उनका बेटा उन्हें ड्रेसिंग गाउन देने के बजाय उनसे कहता कि कल से वह उनकी जगह दूध लेकर आया करेगा।
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