Ateet Mein Dabe Paon Class 12 Question Answer

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Ateet Mein Dabe Paon Class 12 Question Answer

अतीत में दबे पाँव कक्षा 12 के प्रश्न उत्तर

NOTE  – 

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प्रश्न 1.

सिंधु सभ्यता को “लो-प्रोफाइल” सभ्यता क्यों कहा गया है ?

उत्तर –

सिंधु सभ्यता को “लो-प्रोफाइल” सभ्यता इसलिए कहा गया है क्योंकि यह लघुता में महत्ता अनुभव कराने वाली संस्कृति थी। यहाँ प्राप्त सभी वस्तुओं आकार में छोटी तो थी मगर यहाँ के लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त थी जैसे बर्तन भांडे , राजा का मुकुट तथा छोटी – छोटी नावें आदि।

यहां भव्यता प्रदर्शित करने वाली कोई वस्तु नहीं मिली हैं जैसे भव्य राजमहल , बड़ी -बड़ी इमारतें , मंदिर आदि। इसी आधार पर इसे “लो-प्रोफाइल” सभ्यता कहा गया है।

प्रश्न 2.

किस कारण अब मोहनजोदड़ो में खुदाई नहीं की जाती है ?

उत्तर –

सिंधु नदी के पानी के रिसाव से उस क्षेत्र में क्षार और दलदल की समस्या पैदा हो गई हैं।  जिस कारण अब मोहनजोदड़ो में खुदाई नही की जाती हैं। 

प्रश्न 3.

राजस्थान की धूप और सिंध की धूप में क्या अंतर है ?

उत्तर –

राजस्थान की धूप पारदर्शी हैं जबकि सिंध की धूप आँखों को चौंधियाने वाली हैं।

प्रश्न 4. 

कुंड में ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल क्यों किया गया था ?

उत्तर –

जलकुंड में अशुद्ध पानी के प्रवेश को रोकने के लिए चूने और चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल किया गया था।

प्रश्न 5 .

“सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा , समझ से अनुशासित सभ्यता थी”। स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर –

सिंधु सभ्यता के स्थलों से मिली चीजों से अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह सभ्यता किसी राजा-महराजा या धर्माचारी की ताकत से शासित होने की बजाय स्व- अनुशासित सभ्यता थी।

यहाँ की व्यवस्थित नगर व्यवस्था , नगर नियोजन , वास्तु शिल्प , मुहरें , जल निकासी व्यवस्था व साफ-सफाई आदि जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं में एकरूपता झलकती हैं जो उनके स्व -अनुशासित होने का प्रमाण हैं।

जबकि भव्य महलों , बड़ी -बड़ी मूर्तियों , उपासना स्थलों , पिरामिडों और राजा व महंतों की भव्य समाधियों और हथियारों का ना मिलना , इसका सबूत हैं कि यहाँ कोई राजतंत्र या धर्मतंत्र नहीं था।

इन्हीं आधारों पर हम कह सकते हैं कि यह सभ्यता ताकत से नहीं बल्कि स्व -अनुशासित सभ्यता थी।

प्रश्न 6.

सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे ?

उत्तर –

खुदाई में मिली वस्तुओं के आधार पर यह कहा जा सकता हैं कि यहां की सभ्यता विकसित व साधन संपन्न सभ्यता थी क्योंकि यहां पर वो सबकुछ मिला हैं जो एक सभ्यता के फलने – फूलने के लिए आवश्यक होता हैं । जैसे सुव्यवस्थित नगर व्यवस्था , साफ व शुद्ध जल व्यवस्था , जल निकासी की व्यवस्था , अन्न भंडारण , सामान धोने के लिए बैलगाड़ी आदि।

सिंधु नदी के बाढ़ के प्रकोप को ध्यान में रखकर हर निर्माण कार्य किया गया हैं ताकि किसी नुकसान से बचा जाय। यानि लोगों की जरूरत का हर सामान मौजूद हैं ।

इतना सबकुछ होने के बाबजूद यहाँ भव्यता कही नहीं दिखाई देती हैं जैसे दूसरी समकालीन सभ्यताओं में देखने को मिलता हैं जहां राजाओं के द्वारा शासन किया गया था। वहां पर भव्य महल , पिरामिड , बड़ी-बड़ी मूर्तियां , समाधियों आदि देखने को मिली हैं। लेकिन सिंधु सभ्यता में ऐसा कुछ भी नहीं मिला है। इसीलिए हम कह सकते हैं कि सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। 

प्रश्न 7.

सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्यबोध है जो राज-पोषित या धर्म – पोषित न होकर समाज पोषित था। ऐसा क्यों कहा गया ?

उत्तर-

सिंधु सभ्यता की बेमिसाल नगर नियोजन , वास्तुकला , पत्थर की मूर्तियां , विभिन्न प्रकार के बर्तन , उन बर्तनों में चित्रित मानव , पशु पक्षियों व पेड़ पौधों की आकृतियों , मोहरें , खिलौने , स्पष्ट व सुंदर लिपि आदि से वहां के लोगों के सभ्य , सुसंस्कृत , कला प्रेमी व शांति प्रिय होने का सबूत मिलता हैं।

यहाँ कला व सुरुचि को ज्यादा महत्व दिया गया । यहां जो भी वस्तुओं मिली हैं वो सभी लोगों के व्यक्तिगत जीवन में उपयोगी व छोटे आकार की हैं। इन सभी में समरूपता को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह सभ्यता व्यक्तिगत न होकर सामाजिक व स्व -अनुशासित थी और किसी राजा या धर्माचारी के प्रभाव से मुक्त थी क्योंकि यहाँ राजतंत्र होने के कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं।

इन्हीं सब बातों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्यबोध हैं जो राज-पोषित या धर्म – पोषित न होकर समाज-पोषित था

प्रश्न 8.

“यह सच है कि यहां किसी आंगन की टूटी-फूटी सीढ़ियां अब आपको कहीं नहीं लेकर जाती हैं। वह आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं। आप वहां से इतिहास को नहीं बल्कि उसके पार झांक रहे हैं”। इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है ?

उत्तर –

इस कथन के माध्यम से लेखक कहना चाहते हैं कि भले ही अब इस महान सभ्यता के खंडहर ही शेष बचे हों लेकिन मौन रहकर भी ये खंडहर एक सभ्य , सुसंस्कृत व अनुशासित सभ्यता का पूरा इतिहास बयां कर देते हैं।

हाँ यह सच है कि यहां किसी आंगन की टूटी-फूटी सीढ़ियां अब आपको कहीं नहीं लेकर जाती हैं। वो आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं लेकिन फिर भी उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर उस 5000 वर्ष पहले की सभ्यता देखा व उसके एक-एक क्षण को जीवंत अनुभव किया जा सकता है जो यहां खूब फली – फूली थी।

इन खंडहरों के बीच रहकर तथा उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर ही हम विश्व की उस सबसे प्राचीन सभ्यता की सभ्यता , संस्कृति , कलात्मकता व उनके समाज के बारे में सहज ही अनुमान लगा सकते हैं जो इतिहास के परे हैं।

प्रश्न 9.

टूटे-फूटे खंडहर , सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों के भी दस्तावेज होते हैं। इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर –

जब इंसान किसी बसी बसाई जगह को छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं तो वह जगह खंडहर हो जाती है। लेकिन वर्षों बाद भी वो खामोश खंडहर अपनी कहानी बयां कर देते हैं। ठीक उसी तरह मोहनजोदडो के खंडहर भी उस सभ्यता के बारे में बहुत कुछ बता देते हैं। संसार की सभी सभ्यताओं की तुलना में मोहनजोदड़ो की सभ्यता को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

आज भी उन खंडहरों से गुजरते हुए हम बीती जिंदगियों की धड़कनों को महसूस कर सकते हैं। उस सभ्यता और संस्कृति को जान पाते हैं। उस इतिहास को समझ पाते हैं। उन खंडहरों और वहाँ से मिली वस्तुओं के आधार पर उनके समाज , रहन-सहन , सोच समझ व जीवन जीने के तौर तरीके की कल्पना कर सकते हैं । ये  खंडहर एक तरह के दस्तावेज ही तो हैं जो इतिहास के साथ-साथ उस समय को भी हमारे सामने ला देते हैं।

प्रश्न 10.

नदी , कुँए ,  स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को “जल संस्कृति” कह सकते हैं  ? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में , तर्क दें?

उत्तर –

सिंधु घाटी सभ्यता में नदी , कुएं , स्नानागार व बेजोड़ जल निकासी व्यवस्था को देखकर लेखक इसे “जल संस्कृति” कहते हैं। मैं लेखक से पूर्ण रूप से सहमत हूं क्योंकि सिंधु सभ्यता को “जल संस्कृति” कहने के पीछे निम्नलिखित कारण हैं।

  1. यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे बसी थी ।
  2. यह पहली सभ्यता थी जो कुएँ खोदकर भूजल तक पहुंची थी ।
  3. यहाँ पीने के पानी के लिए लगभग 700 कुँए व तालाब मिले हैं।
  4. मोहनजोदड़ो में एक पंक्ति में 8 स्नानागार भी मिले हैं। मकानों में अलग-अलग स्नानागार बने हुए हैं।
  5. कुंड में पानी की व्यवस्था के लिए पास पर ही एक कुआँ भी हैं।
  6. कुंड में पानी के रिसाव को रोकने के लिए चूने और चिराडी के गारे का इस्तेमाल हुआ है।
  7. जल निकासी के लिए पक्की ईंटों से बनी व ढकी हुई नालियां बनी हैं।
  8. मोहरों में उत्कीर्ण पशु , जल प्रदेशों में ही पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.

मोहनजोदड़ो के उत्खनन से प्राप्त जानकारी के आधार पर सिंधु सभ्यता की विशेषताओं बताइये ?

उत्तर –

मोहनजोदड़ो के उत्खनन से प्राप्त जानकारी के आधार पर सिंधु सभ्यता की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।

  1. मकानों में एक जैसे आकार की पक्की ईंटों का प्रयोग हुआ हैं।
  2. तत्कालीन वास्तुकला , श्रेष्ठ नगर योजना तथा जल संस्कृति इस सभ्यता की खासियत हैं।
  3. सभी सड़कों खुली – खुली , चौड़ी व एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
  4. दुनिया की पहली सभ्यता जिसने कुएँ खोदकर भूमिजल तक पहुंच कर जल का प्रबंध किया गया।
  5. जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी। जल निकासी के लिए पक्की ईंटों की ढकी हुई नालियां बनी हैं व सामूहिक स्नानागार भी मिले हैं।
  6. सुंदर अक्षरों की लिखी गई लिपि व बर्तनों में की गई चित्रकारिता से उनके कलाप्रेमी पहलू का पता चलता है।
  7. यहां उन्नत खेती व व्यापार के प्रमाण भी मिले हैं।
  8. हर नगर में अनाज भंडारण के लिए कोठार की व्यवस्था थी।
  9. हथियारों का न मिलना , उनके शांतिप्रिय होने का प्रमाण देता हैं।

प्रश्न 12.

“अतीत में दबे पांव” पाठ के आधार पर शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए ?

उत्तर –

यह एक यात्रा वृत्तांत हैं जिसमें लेखक 5,000 वर्ष पूर्व के एक शानदार नगर मोहनजोदड़ो की यात्रा कर वहाँ की एक-एक चीज को देखते हैं। इतिहास के परे जाकर उस सभ्यता व वहां रहने वाले लोगों की जीवन शैली को देखने व अनुभव करने की कोशिश करते हैं।

यहां की सड़क , नियोजित नगर व्यवस्था , जल निकासी व्यवस्था , ढकी नालियां , स्नानागार , सभागार , जल कुंड , अन्न भंडार घर , कुएं आदि को देखकर लेखक महसूस करने की कोशिश करते हैं कि वह सभ्यता व उसके लोग , अभी भी वहां मौजूद है।

वो कान लगाकर बैलगाड़ी के चलने की आवाज सुनने  , रसोई में बनने वाले भोजन की खुशबू सूंधने आदि कोशिश करते है। यानि वो चुपके – चुपके उस सभ्यता में पहुंचकर वहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल होने की कोशिश करते है। इसीलिए यह शीर्षक उपयुक्त ही लगता है

प्रश्न 13.

“अतीत में दबे पांव” पाठ में सिंधु सभ्यता के सबसे बड़े नगर मोहनजोदड़ो की नगर योजना आज की नगर योजनाओं से किस प्रकार बेहतर थी ?

उत्तर –

सिंधु सभ्यता के सबसे बड़े नगर मोहनजोदड़ो की नगर योजना अपने आप में अद्भुत व बेमिसाल थी और वो योजना आज के इंजीनियरों के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं।

  1. यहां सड़कें चौड़ी व एक दूसरे को समकोण पर काटती थी जबकि आधुनिक शहरों में कई जगहों पर सड़कें एकदम तंग तथा अनियोजित तरीके से बनी हैं।
  2. जल निकासी की व्यवस्था उत्तम थी जबकि आज जल निकासी की अच्छी व्यवस्था न होने से नालियों जगह – जगह चोक हो जाती हैं जिस कारण शहर में जल भराव की स्थिति पैदा हो जाती हैं।
  3. सड़क के दोनों ओर नालियां को पक्की ईंटों से बनाया व ढका गया था।जबकि आजकल ही जो जगह – जगह खुली नालियों देखने को मिलती हैं।
  4. मकानों के दरवाजे मुख्य सड़क की तरफ न खुलकर पीछे की तरफ खुलते थे जिससे दुर्धटनाएँ होने की संभावना कम या खत्म हो जाती थी जबकि वर्तमान में सारे मकानों के दरवाजे मुख्य सड़क की तरफ खुलते हैं।
  5. हर घर में एक स्नानागार अवश्य होता था।
  6. यह पहली सभ्यता थी जिसने भूमि खोदकर भूजल निकाला था। यानि पानी की पूर्ण व्यवस्था थी जबकि शहरों में सुनियोजित जल व्यवस्था नहीं होती है। जनसंख्या वृद्धि के कारण हर रोज पानी की कमी महसूस की जा सकती हैं।
  7. प्लानिंग से न बने होने के कारण आधुनिक नगरों में एक समय बाद फैलाव की गुंजाइश बहुत कम होती है जबकि उस समय ऐसा नहीं था।

Ateet Mein Dabe Paon Class 12 Question Answer

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