Joojh Class 12 Question Answer :जूझ के प्रश्न उत्तर

Joojh Class 12 Question Answer ,

Joojh Class 12 Question Answer Hindi Vitan Bhag 2 Chapter 2 , जूझ कक्षा 12 के प्रश्न उत्तर हिन्दी वितान भाग 2 , 

Joojh Class 12 Question Answer

जूझ कक्षा 12 के प्रश्न उत्तर

Note –

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प्रश्न 1.

“जूझ” कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए ? क्या लेखक के पढ़ने के लिए संघर्ष करने से जूझ शीर्षक को सार्थकता मिलती है ?

अथवा 

“जूझ” कहानी के शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथानायक़ की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है ?

उत्तर –

किसी भी कहानी का शीर्षक उस कहानी के मुख्य भाव व उद्देश्य को व्यक्त करता है। कहानी के शीर्षक को देखकर ही पाठक को पता चल जाता हैं कि कहानी किस संदर्भ में होगी। 

जूझ अर्थात जुझना / जुझारूपन या संघर्ष। इस कहानी के नायक आनंद यादव ने बचपन में विपरीत परिस्थियों से जूझ कर अपनी पढाई जारी रखने के लिए अथक प्रयास किया और अपनी अथाह लगन व मेहनत से जीवन में सर्वोच्च मुकाम हासिल किया। उनके इस संधर्ष में उनकी मां और गांव के मुखिया दत्ताजी राव ने उनका साथ दिया । यह कहानी हमारे भारतीय ग्रामीण जीवन के यथार्थ को व्यक्त करती है। 

कहानी के नायक आनंद यादव का संधर्ष व जुझारूपन देखकर यह शीर्षक उपयुक्त लगता है।  

प्रश्न 2.

“जूझ” कहानी के नायक (लेखक) की पाँच चारित्रिक विशेषतायें बताइये ?

उत्तर – 

कहानी के नायक (लेखक) की पांच चारित्रिक विशेषतायें निम्न हैं। 

  1. जुझारु प्रवृति व संधर्षशील व्यक्ति 
  2. मेहनती व आत्मविश्वासी व्यक्ति 
  3. पढ़ने लिखने के प्रति जागरूक  
  4. सकारात्मक सोच
  5. लक्ष्य के प्रति समर्पित  

 प्रश्न 3.

जूझ कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों से संधर्ष करने की प्रेरक कथा हैं ?

उत्तर – 

बचपन में लेखक को घर व बाहर , दोनों जगह प्रतिकूल परस्थितियों का सामना करना पड़ा। उनके घर का माहौल अच्छा नहीं था। पिता स्वभाव से गुस्सैल थे। वो स्वयं कोई काम नहीं करते थे। पूरा दिन मौज मस्ती में बिताते थे। लेखक को स्कूल जाने से पहले व स्कूल से आने के बाद , घर व खेतों का काम करना पड़ता था और जानवर चराने पड़ते थे। 

स्कूल में भी उनके साथ के सभी बच्चे अगली कक्षा में चले गए थे और पिछली कक्षा के उनसे छोटे बच्चे उस कक्षा में आ गये थे जो उनका मजाक बनाते थे। इसके बाबजूद उन्होंने हार नही मानी और अपनी मेहनत व लगातार प्रयास के बल पर स्कूल के सबसे होशियार बच्चों में अपना स्थान बनाया जो हर किसी के लिए प्रेरणादायक हैं।

इस तरह हम कह सकते हैं कि यह कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों से संधर्ष करने की प्रेरक कथा है। 

प्रश्न 4 .

कविता लिखने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ ?

उत्तर –

लेखक के मराठी के अध्यापक मराठी व अँग्रेजी की कविताओं को गाकर व अभिनय कर बड़े ही सुंदर ढंग से सुनाते थे। जब वो कवितापाठ करते थे तो लेखक भावविभोर होकर बड़ी तन्मयता के साथ उनको सुनते और फिर अपने खेतों में जाकर उन्हें उसी तरह से दोहराते थे। 

एक बार टीचर ने जब अपने दरवाजे पर लगी मालती की एक बेल पर एक खुबसूरत कविता लिखी तो लेखक ने सोचा कि जब उसके टीचर एक मालती के बेल के ऊपर इतनी सुंदर कविता लिख सकते हैं तो उनके आसपास तो हर कहीं प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा हैं।

इसके बाद खेतों में काम करते-करते , भैंस चराते वक्त , जब भी समय मिलता था और जो भी उन्हें दिख जाता , वो उसके ऊपर कविता लिख देते और फिर अपनी सारी कवितायें जाकर अपने टीचर को दिखाते थे। टीचर कविताओं में जो कमी होती उसे दूर कर उन्हें प्रोत्साहित करते थे । धीरे – धीरे कविताएं लिखते – लिखते उनके मन में आत्मविश्वास जाग उठा।  

प्रश्न 5 .

मराठी टीचर न. वा. सौंदलगेकर की चारित्रिक विशेषतायें बताइये ?

या 

जूझ कहानी में आपको किस पात्र ने सबसे अधिक प्रभावित किया। उसकी चारित्रिक विशेषतायें बताइये ?

उत्तर –

जूझ कहानी में मुझे मराठी टीचर न. वा. सौंदलगेकर ने सबसे ज्यादा प्रभविता किया क्योंकि उनकी ही प्रेरणा व प्रोत्साहन से लेखक के जीवन की दशा एवं दिशा दोनों ही बदल गई । सौंदलगेकर की चारित्रिक विशेषतायें निम्नलिखित हैं।

  1. मददगार व सहृदय व्यक्ति 
  2. स्नेहशील व परोपकारी व्यक्ति 
  3. मराठी भाषा का अच्छा ज्ञान व जानकर / मराठी भाषा में दक्षता
  4. अध्यापन के प्रति समर्पण 
  5. प्रेरक व्यक्ति व आदर्श गुरु 
  6. कविता लिखने के हुनरमंद व्यक्ति 
  7. विद्यार्थियों के हितैषी 

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प्रश्न 6.

न. वा. सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई ?

उत्तर –

न. वा. सौंदलगेकर मराठी के अध्यापक थे जिनका कविताएं पढ़ाने का अंदाज एकदम निराला था ।मराठी कविताओं के साथ उन्हें अंग्रेजी कविताएं भी कंठस्थ याद थी। वो स्वयं भी कविता लिखते थे। वो कविता को पढ़ाते वक्त स्वयं कविता के भाव को आत्मसात कर उसमें रम जाते और फिर पूरे लय , ताल , छंद के साथ उसे गाकर सुनाते थे और कभी-कभी उन कविताओं को अभिनय के माध्यम से भी समझाते थे।

लेखक ध्यान मग्न होकर उन्हें देखते और उनके हाव भाव व हर अभिव्यक्ति को अच्छी तरह से याद कर लेते थे । बाद में खेतों में काम करते या भैंस चराते वक्त , जब भी समय मिल जाता लेखक अपने टीचर की हूबहू नकल कर उसे दोहराते थे।

धीरे – धीरे उन्होंने खुद कविता लिखने का प्रयास भी शुरू कर दिया । वो जो भी कविता लिखते अपने टीचर को दिखाते और टीचर उन कविताओं में जो भी कमी होती उसे दूर कर देते थे। सौंदलगेकर ने उन्हें कविताओं में तुकबंदी , लय , ताल , छंद , अलंकार आदि के महत्व को बहुत बारीकी से समझाया। इस तरह अपने गुरु के प्रोत्साहन से लेखक को कवितायें लिखने में रूचि पैदा हो गई।   

प्रश्न 7.

कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया ?

उत्तर –

कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक को अकेलापन महसूस होता था। वो खेतों में काम करते वक्त किसी न किसी का साथ चाहते थे ताकि उनका अकेलापन दूर हो जाए। लेकिन जैसे-जैसे कविताओं के प्रति उनकी रुचि बढ़ती गई उनकी धारणा एकदम बदल गई।

अब उन्हें अकेलापन बहुत अच्छा लगने लगा। वो चाहते थे कि जब वो खेतों में काम करें तो उनके साथ कोई न हो ताकि वो अपनी कविताओं को पूरे ध्यान लगाकर लिख सकें। वो अपने काम के साथ – साथ कविताओं की तुकबंदी करते और साथ में उनको गाकर या अभिनय कर उसका आनंद भी उठाते थे। इसीलिए वो अकेले रहना चाहते थे। 

प्रश्न 8.

कविताएँ रचते हुए किन दो शक्तियों को पाने की बात लेखक ने की हैं ?

उत्तर –

कविताएँ रचते हुए निम्न दो शक्तियों को पाने की बात लेखक ने की हैं। 

  1. अब लेखक को अपने अकेलेपन से ऊब नही होती थी। वो अपनी काव्य रचना में मस्त रहते थे।
  2. अपनी लिखी कविताओं को वो अकेले में पूरे लय , ताल के साथ गाकर , नाचकर व अभिनय कर उसका आनंद लेते थे।   

प्रश्न 9.

आपके ख्याल से पढ़ाई लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ताजी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का ?

उत्तर –

मेरे ख्याल से पढ़ाई – लिखाई के संदर्भ में लेखक और दत्ताजी राव का रवैया बिल्कुल ठीक था।पढ़ाई – लिखाई किसी भी बच्चे के सुनहरे भविष्य के लिए अति आवश्यक है। लेखक जानते थे कि पढ़ाई लिखाई ही उनका भविष्य बना सकती हैं। खेतीबाड़ी से उनकी गुजर-बसर नहीं हो पाएगी। वो अक्सर सोचते थे कि अगर पढ़ – लिख जाएंगे तो अपना जीवन आराम से गुजार पाएंगे।

दत्ताजी राव भी शिक्षित व्यक्ति थे और पढ़ाई लिखाई का महत्व जानते थे। इसीलिए उन्होंने लेखक के अनुरोध पर उनके पिता पर दबाब डालकर लेखक के स्कूल जाने का मार्ग प्रशस्त किया।

इसके विपरीत लेखक के पिता का रवैया एकदम अनुचित था। वो स्वयं घर के काम से बचने के लिए लेखक की पढ़ाई छुड़वाना चाहते थे। वो पढ़ाई – लिखाई को अधिक महत्व नहीं देते थे।इसीलिए उन्होंने बच्चे की पढ़ाई छुड़वा कर उसे खेत के कामों में लगा दिया।

प्रश्न 10.

किस घटना से पता चलता है कि लेखक की मां उसके मन की पीड़ा समझ रही थी। जूझ कहानी के आधार पर बताइए ?

उत्तर –

लेखक पढ़ाई-लिखाई का महत्व जानते थे। इसलिए वो अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते थे लेकिन उनके पिता ने पांचवी कक्षा में ही उनकी पढाई छुड़वा दी। लेखक इस बात से बहुत अधिक परेशान हो गए और उन्होंने पिता को मनाने के लिए अपनी मां से गांव के मुखिया दत्ताजी राव से मदद लेने की बात की जिसे मां ने तुरंत स्वीकार कर लिया।

उनकी माँ ने दत्ताजी राव के पास जाकर उन्हें सारी बात बताई और उनसे पिता को मना लेने की प्रार्थना भी की ताकि उनका बेटा स्कूल जा सके। इससे पता चलता हैं कि लेखक की मां उनके मन की पीड़ा समझ रही थी। 

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प्रश्न 11 .

जूझ उपन्यास में लेखक ने क्या संदेश दिया है ? क्या लेखक अपने उद्देश्य में सफल रहा है ?

उत्तर –

जूझ उपन्यास के माध्यम से लेखक यही संदेश देना चाहते कि “करत – करत अभ्यास , जड़मति होय सुजान” और “मेहनत करने वालों की कभी हार नही होती हैं” यानी व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष कर सदैव आगे बढ़ना चाहिए और अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहिए।

जीवन में सही दिशा में मेहनत करना , सफलता पाने के लिए अनिवार्य है। छोटी-मोटी समस्याएं जीवन में आती रहती हैं। इन समस्याओं से भागने की बजाय इनका डटकर मुकाबला करना चाहिए और कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने आत्मविश्वास को बनाए रखना चाहिए क्योंकि मेहनत और संघर्ष ही , सफलता की कुंजी है।

लेखक ने इन सब बातों को सिर्फ कहा ही नहीं हैं बल्कि इन्हें अपने जीवन में खुद जिया भी हैं। उन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में अथाह संघर्ष किया , विपरीत परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी लगन व मेहनत के बल पर ही जीवन में एक सम्मानीय मुकाम हासिल किया। इसीलिए लेखक अपने उद्देश्य में सफल रहे। 

प्रश्न 12.

दत्ताजी राव की सहायता के बिना जूझ कहानी का “मैं” पात्र वह सब नहीं कर सकता था जो उसे मिला। टिप्पणी कीजिए ?

या

कहानीकार के शिक्षित होने के संघर्ष में दत्ताजी राव सरकार के योगदान को जूझ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर –

दत्ताजी राव की सहायता के बिना जूझ कहानी के कहानीकार वह सब नहीं कर सकते थे जो उन्होंने हासिल किया। क्योंकि लेखक के पिता ने पांचवी कक्षा में ही उनकी पढाई छुड़वा दी थी और बिना पढाई के इतना बड़ा मुकाम हासिल नही किया जा सकता हैं। 

पढ़ाई के प्रति अपने ढृढ़ निश्चय के कारण उन्होंने अपनी मां के साथ मिलकर एक झूठ के सहारे दत्ताजी राव से सहायता मांगी। दत्ताजी राव ने भी उनका पूरा साथ दिया और उनके पिता पर उन्हें स्कूल भेजने का दबाव बनाया जिसके कारण लेखक के पिता लेखक को स्कूल भेजने को राजी हुए। 

प्रश्न 13.

दत्ताजी राव दवारा पिता पर दबाव डालने के लिए लेखक और उनकी मां को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लिया होता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता ?

उत्तर –

अगर लेखक और उनकी मां , झूठ का सहारा ना लेते तो लेखक अनपढ़ ही रह जाते और फिर उन्हें अपना पूरा जीवन कोल्हू के बैल खींचने व खेतों में काम करते हुए ही बिताना पड़ता। और इसतरह एक प्रतिभाशाली बच्चे का भविष्य शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता।

लेकिन उसी एक घटना ने लेखक के पूरे जीवन की दिशा व दशा , दोनों ही बदल दी। और वो अपने संघर्ष और मेहनत के बल पर एक महान कथाकार व उपन्यासकार बने। 

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प्रश्न 14.

“जूझ” कहानी आज के युवा किशोर /किशोरियों को किन जीवन मूल्यों की प्रेरणा दे सकती हैं ?

उत्तर –

यह कहानी एक किशोर द्वारा अपने लक्ष्य को पाने की संधर्ष की कहानी हैं। इसीलिए यह आज के युवाओं के लिए प्रेरकदायक हैं। 

लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय –

कहानीकार बचपन से ही अपने लक्ष्य के प्रति ढृढ़ निश्चय रहा कि उसे पढ़ – लिख कर जीवन में कुछ बनाना हैं।  

पढ़ने में गहरी रूचि –

कहानीकार को बचपन से ही पढ़ने में गहरी रूचि थी । अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने अपनी माँ व दत्ताजी राव का सहयोग लिया। 

बुद्धि विवेक व दूरदर्शिता से काम लेना  –

कहानीकार ने अपने जीवन के हर मोड़ पर बड़ी समझदारी व दूरदर्शिता के साथ फैसले लिए जिनका सकारात्मक प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा। 

संधर्षशीलता व परिश्रमशीलता –

संधर्षशीलता व परिश्रमशीलता , ये दोनों महान गुण लेखक के अंदर मौजूद थे। इसीलिए उन्होंने अपने जीवन में आने वाली हर विपरीत परिस्थिति का डटकर मुकाबला किया। उनसे कभी हार नहीं मानी। 

कार्य का बार बार अभ्यास –

वो स्कूल में पढ़ाये जाने वाले हर विषय का अपने खेतों में काम करते हुए , जानवर चराते हुए यानि हर जगह खूब अभ्यास करते थे जिस कारण उन्हें सभी विषय अच्छे से समझ आ जाते थे। 

प्रश्न 15.

बसंत पाटिल के साथ से “जूझ” कहानी के नायक को क्या लाभ हुआ ? 

उत्तर –

बसंत पाटिल लेखक की कक्षा का एक दुबला पतला मगर शांत स्वभाव का होनहार बालक था। वह काफी मेहनती था और हर समय अपनी पढाई में ही लगा रहता था। उसके हमेशा सभी सवाल सही होते थे । टीचर उसे अन्य बच्चों के सवाल जांचने को भी देते थे। 

लेखक भी उससे प्रभावित होकर उसका अनुसरण करने लगे । वो काफी मेहनत से पढाई करने लगे जिससे उनके भी अधिकतर सवाल सही होने लगे । टीचर अब उन्हें भी अन्य बच्चों के सवाल जांचने को देते थे।  धीरे – धीरे लेखक की बसंत पाटिल से अच्छी दोस्ती हो गई। उसके बाद दोनों हर काम में एक दूसरे की मदद करने लगे।    

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