Aatmparichay Class 12 Explanation ,
Aatmparichay Class 12 Explanation Hindi Aaroh Bhag 2 Chapter 1 , आत्म-परिचय कक्षा 12 का भावार्थ हिन्दी आरोह भाग 2 काव्य खंड
Aatmparichay Class 12 Explanation
आत्म-परिचय कक्षा 12 का भावार्थ
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काव्यांश 1.
मैं जग – जीवन का भार लिए फिरता हूँ ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर ,
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ !
भावार्थ –
आत्म-परिचय कविता के कवि हरिवंश राय बच्चन जी हैं। उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मैं इस दुनिया की दुनियादारी को पूरी तरह से निभाते हुए अपना जीवन जी रहा हूँ। अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाते हुए भी मैं अपने जीवन को भी प्रेम से सराबोर रखता हूँ और इस दुनिया के लोगों में भी प्रेम बाँटता रहता हूं। यानि मैं सबसे बड़े प्रेम भाव से मिलता हूँ।और अपना जीवन भी प्रेमपूर्वक जीता हूँ।
कवि आगे कहते हैं कि उनके किसी प्रिय ने उनके मन रूपी वीणा के तारों को झंकृत कर दिया है। अर्थात उनके दिल की कोमल भावनाओं को छू लिया है।और उन कोमल भावनाओं को छू लेने से जो दिल में हलचल पैदा हुई है , असल में वही प्रेम है। और उसी प्रेम से भरे हुए अपने जीवन (सांसों के दो तार) को मैं जी रहा हूँ।
काव्य सौंदर्य-
उपरोक्त काव्यांश में आत्मकथात्मक शैली है। प्रवाहमयी एवं तुकांत भाषा का प्रयोग किया है। तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। काव्यांश में मुक्त छंद का प्रयोग हुआ हैं। काव्य लयात्मक व गीतात्मक हैं। “जग – जीवन” में “ज” की आवर्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
काव्यांश 2.
मैं स्नेह – सुरा का पान किया करता हूँ ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ ,
जग पूछ रहा उनको , जो जग की गाते ,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ !
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मुझे अपने जीवन में जो प्रेम मिला है । उसी प्रेम रूपी सुरा (मदिरा / शराब) को पीकर मैं उसके नशे में मस्त रहता हूँ। मुझे अब इस दुनिया की कोई परवाह नहीं है। अर्थात मैं अपने प्रिय से मिले प्रेम रूपी सुरा (शराब) के नशे में इतना मस्त रहता हूँ कि अब मुझे इस दुनिया की कोई परवाह नहीं हैं।
कवि आगे कहते हैं कि यह पूरी दुनिया चापलूस व स्वार्थी लोगों भरी पड़ी है। लोग एक दूसरे की झूठी प्रशंशा करते हैं । और ये दुनिया वाले भी उन्हीं लोगों को अधिक महत्व देते है या उनकी ही बातें अधिक सुनते हैं जो चाटुकारिता करते हैं। लेकिन कवि कहते हैं कि मैं यह सब नहीं करता हूँ। मैं तो बस वही करता हूँ जो मेरे मन में आता हैं या मेरा मन कहता हैं । दुनिया क्या कहेगी मैं इसकी परवाह नहीं करता हूँ।
काव्य सौंदर्य-
उपरोक्त काव्य में आत्मकथात्मक शैली है। प्रवाह मयी और तुकांत भाषा का प्रयोग किया है। तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। काव्य लयात्मक व गीतात्मक हैं। “स्नेह – सुरा” में रूपक अलंकार है।
काव्यांश 3.
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ ;
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता ,
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ !
भावार्थ –
इन पंक्तियों में कवि अपने हृदय के भावों और अपने सपनों के बारे में बता रहे है। कवि का सपना है कि इस दुनिया में प्रेम ही प्रेम हो और सभी लोग आपस में मिलजुल कर प्रेम से रहें ।
कवि कहते है कि मैं इस दुनिया के सामने अपने प्रेम भरे हृदय के भावों को व्यक्त करना चाहता हूं। मेरा हृदय , जो अथाह स्नेह से भरा है। मैं उस निश्छल प्रेम रूपी सौगात (उपहार) को इस दुनिया में बांटना चाहता हूँ।
कवि आगे कहते है कि प्रेम के अभाव के कारण यह दुनिया अधूरी है। इसीलिये यह मुझे पसंद नहीं है। अर्थात प्रेम का अभाव इस दुनिया को अपूर्ण या अधूरा बनाता है। और दुनिया की यही बात मुझे बिलकुल भी नहीं भाती है। इसीलिए मैं अपनी प्रेम भरी दुनिया के सपनों को अपने साथ लिए घूमता रहता हूं यानि मैं अपने लिए अपने सपनों का एक अलग संसार बनाता हूँ और उसके साथ ही जीता हूँ।
काव्य सौंदर्य-
उपरोक्त काव्य में आत्मकथात्मक शैली है। अभिव्यक्ति की सरलता हैं। प्रवाह मयी और तुकांत भाषा का प्रयोग किया है। तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। काव्य लयात्मक व गीतात्मक हैं।
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काव्यांश 4.
मैं जला हृदय में अग्नि , दहा करता हूँ ,
सुख – दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ ;
जग भव – सागर तरने की नाव बनाए ,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ !
भावार्थ –
इन पंक्तियों में कवि कहते है कि मैं सदैव अपने हृदय में प्रेम रूपी अग्नि को जला कर रखता हूँ और उसमें स्वयं भी जलता रहता हूँ। इसीलिए अब मैं उस कर्मयोगी की तरह हो गया हूँ जो हर हाल में एक जैसे (समभाव) भाव में रहता है। उनके ऊपर न तो सुख और न ही दुख का प्रभाव पड़ता है। यानि वो सुख-दुख में एक समान रहते हैं। और हर परिस्थिति में मस्त रहते हैं।
कवि आगे कहते है कि इस संसार रूपी भवसागर को पार करने के लिए लोग कई जतन करते हैं। लेकिन मैं अपने जीवन में आने वाले उतार चढाव , सुख-दुख रूपी लहरों में भी मस्त रहता हूँ। क्योंकि मेरे पास तो प्रेम की नाव है।
इसीलिए मुझे इस संसार रूपी भवसागर से पार उतरने के लिए कुछ भी और जतन करने की आवश्यकता नहीं है। यानी इस संसार रूपी भवसागर में , मैं अपना जीवन सुख और दुःख रूपी लहरों के साथ आगे बढ़ाते हुए प्रेमपूर्वक गुजरता हूँ।
काव्य सौंदर्य –
काव्य लयात्मक व गीतात्मक हैं। अभिव्यक्ति की सरलता हैं। “भव – सागर” में रूपक अलंकार है। सुख – दुख (सुख और दुख) में द्वंद समास है। वियोग श्रृंगार रस इस काव्यांश में हैं।
“मैं जला हृदय में अग्नि , दहा करता हूँ ,
सुख – दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ ;”
इन पंक्तियों में विरोधाभास अलंकार हैं।
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काव्यांश 5.
मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ ;
जो मुझको बाहर हँसा , रुलाती भीतर ,
मैं , हाय , किसी की याद लिए फिरता हूँ !
भावार्थ –
जब व्यक्ति किसी से प्रेम करता है तो उसके भीतर एक अजीब सी मस्ती आ जाती है। वह हर समय अपने प्रिय की सुनहरी यादों में खोया रहता हैं। इन पंक्तियों में कवि भी अपनी जवानी के दिनों में अपने प्रिय से दूर हैं।
कवि कहते है कि वो अपनी जवानी (यौवन) की मस्ती में घूम रहे है। और इस यौवन की मस्ती में पीड़ा व निराशा भी हैं क्योंकि वो भरी जवानी में अपने प्रिय से दूर हैं। लेकिन उनके प्रिय की सुनहरी यादों उनको भीतर ही भीतर रुलाती भी है। मगर फिर भी वो दुनिया के सामने हंसते रहते है। और अपने दुःख को लोगों के सामने प्रकट नहीं करते हैं।
वो अपनी इस अजीब स्थिति पर अफसोस जताते हुए कहते हैं कि मैं अपने दिल में हर वक्त अपने प्रिय की यादों को लिए हुए अपना जीवन गुजरता हूँ।
काव्य सौंदर्य –
“मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ ; ” में विरोधाभास अलंकार है। “किसी की” में अनुप्रास अलंकार है। इस काव्यांश में करुण रस है। काव्य लयात्मक व गीतात्मक हैं। प्रवाहमयी और तुकांत भाषा का प्रयोग किया है।
काव्यांश 6.
कर यत्न मिटे सब , सत्य किसी ने जाना ?
नादान वहीं हैं , हाय , जहाँ पर दाना !
फिर मूढ़ न क्या जग , जो इस पर भी सीखे ?
मैं सीख रहा हूँ , सीखा ज्ञान भुलाना !
भावार्थ –
कवि कहते हैं कि सत्य को जानने का लोगों ने बहुत प्रयास किया परंतु वो अपने अहंकार के कारण सत्य को नहीं जान सके और बिना सत्य को जाने इस दुनिया से चले गए। क्योंकि जो लोग ज्ञानी थे और जो सत्य को जान सकते थे। उनको अपनी विद्वता या ज्ञान का अहंकार हो गया। जो उनकी अज्ञानता का कारण था। यानि जो ज्ञानी थे वो अपने अहंकार के कारण अज्ञानी हो चुके थे ।
कवि आगे कहते हैं कि अहंकार प्रेम और ज्ञान दोनों को अपने आगे टिकने नहीं देता हैं। यह सब जानते समझते हुए भी अगर यह संसार सीख नहीं पाता हैं तो , फिर इसे मूर्ख ही कहा जायेगा। मैं इस बात को जान चुका हूं और मैंने इस दुनिया में रहते हुए जो भी सांसारिक बातें सीखी हैं। अब मैं उनको भूलना चाहता है।क्योंकि मैं अपनी मस्ती में रहते हुए इस दुनिया में जीना चाहता है। और उन बातों को याद रख कर यह सम्भव नहीं हैं।
काव्य सौंदर्य –
उपरोक्त काव्यांश में आत्मकथात्मक शैली है। प्रवाहमयी एवं तुकांत भाषा का प्रयोग किया है। तत्सम प्रधान खड़ी बोली है।काव्यांश में मुक्त छंद का प्रयोग हुआ हैं। काव्य लयात्मक व गीतात्मक हैं। “सब-सत्य” में “स” वर्ण की आवृति से अनुप्रास अलंकार हैं।
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काव्यांश 7.
मैं और , और जग और , कहाँ का नाता ,
मैं बना – बना कितने जग रोज मिटाता ;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव ,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता !
भावार्थ –
इन पंक्तियों में तीन बार “और” शब्द का प्रयोग किया हैं जिसमें पहला “और” कवि के अपने लिए प्रयोग किया है जहां वो अपने आप को अन्य लोगों से अलग बताते है। दूसरा “और” संसार के लिए प्रयोग किया गया। और तीसरा “और” संसार और कवि के बीच का संबंध बताता है।
इन पंक्तियों में कवि अपने आप को दुनिया वालों से अलग बताते हैं। वो कहते हैं कि मैं कुछ अलग ही तरह का व्यक्ति हूँ और यह दुनिया मुझसे बिल्कुल अलग हैं। यानि हममें कोई समानता नहीं है। हम बिल्कुल अलग-अलग हैं। कवि कहते हैं कि मैं तो ऐसा व्यक्ति हूं जिसके भीतर न जाने कितने ही संसार रोज बनते और बिगड़ते रहते हैं। मेरी अपनी अलग ही दुनिया है।
और मेरी दुनिया में इस दुनिया के भौतिक सुखों का कोई मोल नहीं है। इस दुनिया के सभी लोग भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं। हर वक्त उनको जमा करने का प्रयास करते हैं। लेकिन मैं संसार के उन भौतिक सुखों को अपने पैर से ठोकर मारता हुआ चलता हूं। मुझे दुनिया के भौतिक सुखों से कोई लगाव नहीं है।
काव्य सौंदर्य –
प्रवाहमयी एवं तुकांत भाषा का प्रयोग किया है। “मैं और , और जग और , कहाँ का नाता” में यमक अलंकार हैं क्योंकि “और” शब्द का तीन बार प्रयोग किया गया है। “बना – बना “ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं। “जग जिस” और “प्रति पग” अनुप्रास अलंकार है।
काव्यांश 8.
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ ;
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर ,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ !
भावार्थ –
कवि कहते हैं कि वो अपने कष्टों व दुःखों में भी अपने जीवन को बड़े प्रेम के साथ जीते हैं। और अपनी शीतलता प्रदान करने वाली आवाज के द्वारा लोगों को प्रेम का संदेश देना चाहते है। भले ही उनकी वाणी में शीतलता हो लेकिन उनके शब्दों में लोगों के दिलों में उत्साह व जोश जगाने की आग के बराबर शक्ति हैं।
इसीलिए वो उनके आत्मविश्वास को बढ़ाना चाहते हैं। उनकी सोच में बदलाव लाना चाहते हैं ताकि दुनिया में प्रेम बढ़ सके।
कवि आगे कहते हैं कि दुनिया के सभी भौतिक सुख-सुबिधाओं के साथ जीवन जीने वाले लोगों को भले ही मेरा जीवन ऐसा लग सकता हैं जैसे किसी राजा के महल के सामने कोई खंडहर हो। लेकिन प्रेम से सराबोर मेरे जीवन की भव्यता उन राजाओं के महलों से कहीं अधिक है।
यानि भौतिक सुख-सुबिधाओं के साथ जीने वाले लोगों से कही ज्यादा सुंदर मेरा जीवन हैं। क्योंकि मैं अपना जीवन अपने हिसाब से पूरी मस्ती व प्रेम के साथ गुजारता हूँ।
प्रेम को बढ़ाने और उसे बचाए रखने के लिए वो दुनिया के सभी भौतिक सुखों का त्याग कर सकते है। यहां पर “दुनिया के भौतिक सुख” , “राजाओं के महलों” के प्रतीक है।
काव्य सौंदर्य –
“मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ ;” में विरोधाभास अलंकार हैं।
काव्यांश 9.
मैं रोया , इसको तुम कहते हो गाना ,
मैं फूट पडा , तुम कहते , छंद बनाना ;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए ,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना !
भावार्थ –
कवि कहते हैं कि मैं तो एक प्रेम दीवाना हूं और अपने प्रेम में मस्त रहता हूँ। लेकिन जब मेरा दिल अपने प्रिय के वियोग में रोया तब मैंने अपने दिल की भावनाओं की अभिव्यक्ति को अपने शब्दों में उतारा , तो तुमने उसे गीत समझा। और जब मैंने अपने मन की पीड़ा के आवेगों को अपनी रचनाओं में व्यक्त किया तो , तो तुमने उसे छंद समझा।
कवि आगे कहते हैं कि ये दुनिया मुझे कवि कहकर ही क्यों अपनाती है जबकि मैं कवि नहीं हूं। इस दुनिया में , मैं तो अपनी पहचान एक प्रेम दीवाने के रूप में बनाना चाहता हूं।और दुनिया को बताना चाहता हूं कि प्रेम में मस्त रह कर कैसे जिया जा सकता हैं।
अर्थात मैं एक दीवाना हूं और ये दुनिया मुझे इसी रूप में जाने। मैं इस दुनिया के सभी भौतिक सुखों के बिना भी अपना जीवन पूरी मस्ती के साथ गुजारता हूँ । इसीलिए “कवि” कहकर ये दुनिया मुझे अपनाये , मैं यह नहीं चाहता हूँ।
काव्य सौंदर्य –
“क्यों कवि” में अनुप्रास अलंकार हैं।
काव्यांश 10.
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ ;
जिसको सुनकर ज़ग झूम , झुक लहराए ,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ !
भावार्थ –
कवि कहते हैं कि मैं दीवानों के रूप में इस दुनिया में घूम रहा हूं और यह दीवानगी मुझे मेरे प्रेम से मिली है। अब इस प्रेम की पूर्ण मादकता मेरे अंदर समा गई है। अर्थात उस प्रेम का नशा मुझ पर पूरी तरह से छाया हुआ है। और मैं उसी मादकता को लिए एक दीवाने की तरह इस पूरी दुनिया में घूम रहा हूँ।
कवि आगे कहते हैं कि मैं चाहता हूं कि मैं जो मस्ती का संदेश लिए फिरता हूं उसे दुनिया भी समझे और अपनाएं। और प्रसन्न होकर उस मस्ती में झूमे – लहराए। दुनियादारी की इन चिंताओं से मुक्त हो सके और प्रसन्न रह सके ।
काव्य सौंदर्य –
झूम , झुक में अनुप्रास अलंकार हैं।
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