Silver Wedding Class 12 Question Answer ,
Silver Wedding Class 12 Question Answer Hindi Vitaan Bhag 2 Chapter 1 , सिल्वर वैडिंग कक्षा 12 के प्रश्न उत्तर हिन्दी वितान 2 पाठ 1 ,
Silver Wedding Class 12 Question Answer
सिल्वर वैडिंग कक्षा 12 के प्रश्न उत्तर
Note –
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प्रश्न 1.
सिल्वर वैडिंग कहानी का मूल उद्देश्य क्या है ?
उत्तर –
“सिल्वर वैडिंग” कहानी दो पीढ़ियों के बीच के अंतराल (Generation Gap) को दर्शाती है। पुरानी पीढ़ी व नई पीढ़ी के बीच वैचारिक मतभेदों के कारण होने वाले टकराव व तनाव को व्यक्त करती हैं। यह कहानी पुरानी पीढ़ी का अपनी नई पीढ़ी के साथ सामंजस्य न बैठा पाने का एक सटीक उदाहरण पेश करती हैं।
कहानी में एक तरफ यशोधर बाबू हैं जो अपने पुराने आदर्शों , संस्कारों व जीवन मूल्यों को संजो कर रखना चाहते हैं। और उन्हीं के अनुसार अपना जीवन जीना चाहते हैं तो दूसरी ओर उनके बच्चे नए तौर-तरीकों के हिसाब से जीवन जीने में विश्वास करते हैं।
उनकी पत्नी भी समय के साथ – साथ आधुनिक तौर-तरीके अपना चुकी हैं। मगर यशोधर बाबू अपने आदर्श किशन दा से प्रभावित हैं। इसीलिए वो आधुनिक तौर-तरीकों व संस्कारों को अपनाना नहीं चाहते हैं।
प्रश्न 2.
“समहाऊ इम्प्रोपर” और “जो हुआ होगा” , इन दो कथनों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर –
इस कहानी में ये दो वाक्य काफी प्रयोग किये गये हैं।
“जो हुआ होगा” अर्थात “क्या हुआ किसी को कुछ पता नहीं है”। कहानी में “जो हुआ होगा” वाक्य पहली बार तब प्रयोग किया गया जब यशोधर बाबू ने किशन दा की मौत के बारे में उनके किसी परिजन से पूछा। परिजन ने जवाब देते हुये कहा “जो हुआ होगा” अर्थात उसे पता नहीं था कि किशन दा की मौत कैसे हुई और उसे किशन दा की मृत्यु का कारण जानने में कोई दिलचस्पी भी नहीं थी।
“समहाऊ इम्प्रोपर” अर्थात अनिर्णय की स्थिति । यशोधर बाबू “समहाऊ इम्प्रोपर” वाक्य का प्रयोग बार -बार करते थे। यशोधर बाबू को जब भी कुछ गलत या अनुचित लगता था या वो किसी के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते थे या उन्हें किसी काम में कोई कमी नजर आती थी यानि अनिर्णय की स्थिति में वह अक्सर इस वाक्य का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 3.
यशोधर बाबू के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताओं बताइये ?
उत्तर –
यशोधर बाबू के व्यक्तित्व की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं थी।
- धार्मिक , परंपरावादी , सामाजिक व कंजूस व्यक्ति थे।
- अपनी जड़ों , पुराने रीति-रिवाजों व संस्कारों से जुड़े रहने वाले व्यक्ति थे।
- मेहनती , ईमानदार व कर्मठ मगर सरल व संवेदनशील स्वभाव के व्यक्ति थे।
- आधुनिक परिवेश , रहन सहन , रीति – रिवाज व संस्कारों के विरुद्ध थे।
- जीवन भर उन्होंने किशन दा के आदर्शों को ही अपना आदर्श बनाया और उन्हीं के हिसाब से अपना जीवन जिया।
प्रश्न 4.
“चटाई का लहंगा” किसे कहा गया है ?
उत्तर –
यशोधर बाबू अपनी पत्नी पर “चटाई का लहंगा” कह कर व्यंग्य करते थे। क्योंकि उनकी पत्नी ने पुरानी परम्पराओं व मान्यताओं को छोड़कर आधुनिक तौर तरीकों से जीवन जीना शुरू कर दिया था।
प्रश्न 5.
“यशोधर बाबू दो भिन्न काल खंडों में जी रहे हैं”। पक्ष या विपक्ष में उदाहरण सहित समझाये ?
अथवा
“सिल्वर वेडिंग” कहानी का प्रमुख पात्र वर्तमान में रहता है किंतु अतीत को आदर्श मानता है। इससे उसके व्यवहार में क्या-क्या विरोधाभास दिखाई पड़ता है ?
उत्तर –
यशोधर बाबू दो पीढ़ियों के विचारों के अंतर के बीच जी रहे थे। यशोधर बाबू , किशन दा को अपना आदर्श मानते थे और उन्हीं के बताए हुए रास्ते पर चलते थे। उन्हें अपने पुराने रीति रिवाज , रहन-सहन , संस्कार बहुत अधिक पसंद थे। वो संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते थे। वो धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति थे जिन्हें रोज मंदिर जाने व प्रवचन सुनने में आनंद आता था। वो अपनी पुरानी सभ्यता – संस्कृति से जुड़े रहना चाहते थे।
नये जमाने की वस्तुएं उन्हें “समहाऊ इम्प्रोपर” लगती थी। यशोधर बाबू नई जमाने की संस्कृति के बिल्कुल पक्ष में नहीं थे। वो अपने कार्यालय में अपनी सिल्वर वेडिंग की पार्टी के लिए कर्मचारी को 30 रुपए देते तो हैं मगर उसमें खुद शामिल नहीं होते हैं। इसी तरह उन्हें अपनी बीवी का मॉडर्न बन जाना , स्कूटर की सवारी करना , अपने बच्चों द्वारा सिल्वर वेडिंग की पार्टी का आयोजन करना कतई पसंद नहीं आता है।
लेकिन फिर भी कभी -कभी वो अपने बच्चों की खुशी के लिए कुछ काम अवश्य कर देते थे। इसी तरह वो वर्तमान व भूतकाल , दो भिन्न-भिन्न कालखंडों में जी रहे थे।
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प्रश्न 6.
यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल रही लेकिन यशोधर बाबू असफल रहे ? ऐसा क्यों ? चर्चा कीजिए ?
उत्तर –
बचपन में माता – पिता का देहांत होने की वजह से उनका पालन पोषण उनकी विधवा बुआ ने किया और मैट्रिक पास होने के बाद वो दिल्ली में किशन दा के पास सरकारी नौकरी लगने तक रसोइया बन कर रहे यानि उनका प्रारम्भिक जीवन संघर्षमय रहा।
उन्होंने जो कुछ भी सीखा वो किशन दा से ही सीखा। और किशन दा रीति रिवाजों , परंपराओं को मानने वाले व्यक्ति थे। किशन दा का उनके व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इसीलिए बदलते समय के साथ भी वो उन पुराने जीवन मूल्यों को छोड़ने को तैयार नहीं थे।
दूसरी तरफ उनकी बीवी भी पुराने संस्कारों को मानने वाली महिला थी। लेकिन कुछ अपने बच्चों की खुशी और कुछ आमदायक जीवन जीने की इच्छा के कारण उन्होंने नये जीवन मूल्यों को अपना लिया जिस कारण वो अपने बच्चों के बीच आराम से सामंजस्य बिठा पाई।
प्रश्न 7.
परिवार में रहते हुए भी यशोधर बाबू स्वयं को अकेला क्यों महसूस करते थे ?
अथवा
यशोधर बाबू के जीवन में जीवन मूल्यों के पुराने और नए प्रचलन में किस प्रकार का द्वंद था ?
उत्तर –
यशोधर बाबू के जीवन में पुराने और नए जीवन मूल्यों और संस्कारों के बीच द्वंद था और उनका पूरा जीवन इसी द्वंद में बीत गया। एक तरफ किशन दा के दिये संस्कार और दूसरी तरफ उनके बच्चों की आधुनिक विचारधारा। और वो कभी उन दोनों में सामंजस्य नहीं बिठा पाए।
वो पुरानी पीढ़ी की विचारधारा को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे। नए जमाने के तौर-तरीकों , रीति रिवाजों को “अंग्रेजों के चोचले” कहते थे। यहां तक कि वो स्कूटर में जाने के बजाय पैदल जाना ही ज्यादा पसंद करते थे । वो अपनी रिश्तेदारी -नातेदारी निभाना चाहते थे।
उन्हें अपनी बेटी का जींस – टॉप पहनना और पत्नी का बिना बांह वाला ब्लाउज पहनना भी पसंद नहीं था। लेकिन उनके बच्चे अपना जीवन स्वतंत्रता पूर्वक जीने में विश्वास करते थे। वो आधुनिक सुख सुबिधाओं के साथ रहना पसंद करते थे। इन्हीं सब कारणों के चलते उनके और उनके बच्चों के बीच हमेशा टकराव चलता रहता था जिस कारण वो भरेपूरे परिवार के बाबजूद अकेले हो गये।
प्रश्न 8.
“समहाऊ इम्प्रोपर” वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते थे। इस काव्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है ?
उत्तर –
यशोधर बाबू “समहाऊ इम्प्रोपर” वाक्य का प्रयोग बार -बार करते थे। यशोधर बाबू को जब भी कुछ गलत या अनुचित लगता था या वो किसी के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते थे या उन्हें कहीं किसी काम में कोई कमी नजर आती थी यानी जब वो अनिर्णय की स्थिति में होते थे तब अक्सर इस वाक्य का प्रयोग करते थे जो उनके व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डालता हैं।
दरअसल वो यह निर्णय नही ले पाते थे कि जो कुछ नई पीढ़ी कर रही हैं , वह सही हैं या गलत। क्योंकि उनके द्वारा की गई कुछ चीजों को वो अच्छा मानते थे कुछ को नही। इसीलिए नई पीढ़ी के विचारों के साथ सामंजस्य न बना पाने के कारण जमाने के हिसाब से यशोधर बाबू अप्रासंगिक व अकेले हो गए थे।
कहानी का कथ्य कहता हैं कि एक खुशहाल जीवन जीने के लिए व्यक्ति को समय के साथ अपने विचारों में थोड़ा बदलाव कर , नई व अच्छी चीजों को ग्रहण कर , लोगों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करनी चाहिए।
प्रश्न 9.
वर्तमान समय में परिवार की संरचना स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहां तक सामंजस्य बिठा पाते हैं ?
उत्तर –
“सिल्वर वेडिंग” कहानी लगभग हर घर की कहानी है। पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के विचारों में टकराव आज हर घर में चलता रहता है। खासकर संयुक्त परिवारों में यह टकराव आम बात है। क्योंकि नई पीढ़ी के लोग अपने हिसाब से स्वंतत्र जीवन जीना चाहते हैं।
पुरानी पीढ़ी के लोग अपने जीने के तौर तरीकों , रीति रिवाजों , संस्कारों को समय के साथ बदलना नहीं चाहते हैं। और नई पीढ़ी के बच्चे पुराने रीति-रिवाजों को अपनाना नहीं चाहते हैं। वो नए तौर-तरीकों व आधुनिक सुख सुविधाओं के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। इसीलिए आज संयुक्त परिवार टूट रहे है।
आज हर घर में यशोधर बाबू जैसा एक सदस्य अवश्य मिल जायेगा जो इसी अंतर्द्व्न्द में जी रहा होगा।
प्रश्न 10.
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशन दा की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्वपूर्ण योगदान है और कैसे ?
उत्तर –
मेरे जीवन को सही दिशा देने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान मेरे माता-पिता व गुरुजनों का रहा है। मेरे माता-पिता मेरे प्रथम गुरु हैं। उन्होंने मुझे बचपन से ही अनुशासन से जीने की सीख दी है और अपना काम स्वयं व समय पर करना सिखाया है।
सच बोलना , अपने बड़ों का आदर करना , छोटों के साथ प्रेमभाव रखना व अनुशासन से अपना जीवन जीने की शिक्षा दी है। हमेशा दूसरों की सहायता करने के लिए प्रेरित किया है और इसी के साथ मेरे गुरुजनों का भी मेरे जीवन को सही दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
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प्रश्न 11.
यशोधर बाबू जिन जीवन मूल्यों को थामे बैठे थे। नई पीढ़ी उन्हें प्रासंगिक क्यों नहीं मानती ? तर्क सहित उत्तर दीजिए ?
उत्तर –
दरअसल यह कहानी दो पीढ़ियों के विचारों के अंतर को दर्शाती है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसमें भाईचारा , प्रेम , अपने बड़ों का सम्मान करना , हर कीमत पर रिश्ते-नातों को निभाना , अपने जड़ों से जुड़े रहना , अपने रीति -रिवाजों व परम्पराओं का सम्मान करना , संयुक्त परिवार में एक सरल व संतोषपूर्ण जीवन जीना आदि शामिल हैं।
जबकि उनके बच्चे नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो खूब अधिक धन कमा कर , आधुनिक व भौतिक सुख सुविधाओं के साथ स्वतंत्रता पूर्वक अपना जीवन जीने में खुशी महसूस करते हैं। उनके लिए रिश्ते – नातों का कोई खास महत्व नही है । वो संयुक्त परिवार के बजाय एकल परिवार में रहना पसंद करते हैं । इसीलिए नई पीढ़ी उन्हें व्यवहारिक व प्रासंगिक नहीं मानती हैं।
प्रश्न 12.
सिल्वर वेडिंग वर्तमान युग में बदलते जीवन मूल्यों की कहानी है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर –
पहले की अपेक्षा , वर्तमान समय में लोगों के जीने के तौर तरीकों में काफी बदलाव आया हैं । अब लोग सभी आधुनिक सुख सुविधाओं के साथ अपना जीवन जीना चाहते हैं और उसके लिए कोई भी कीमत अदा करने के लिए तैयार रहते हैं।
सिल्वर वेडिंग कहानी वर्तमान युग में बदलते जीवन मूल्यों की कहानी है। इस कहानी के मुख्य पात्र यशोधर पुराने जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं तो उनके बच्चे नए जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं। दोनों पीढ़ियों के बीच विचारों का अंतर स्पष्ट देखा जा सकता है।
यशोधर बाबू अपने पुराने रीति-रिवाजों के साथ जीना पसंद करते हैं तो उनके बच्चे नए रीति-रिवाजों को अपना चुके हैं। वो स्कूटर की सवारी करने व जन्मदिन , सालगिरह आदि पर किसी कार्यक्रम का आयोजन करने व केक काटना पसंद नही करते हैं।
जबकि बच्चे भौतिक सुख सुविधाओं को जोड़ने और उनके साथ अपना जीवन सरल व सुखमय बनाने में विश्वास रखते हैं। उनकी पत्नी भी समय के साथ – साथ पूरी तरह से आधुनिक परिवेश में ढल जाती हैं लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाते हैं।
प्रश्न 13.
यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है। इस कथन के पक्ष – विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए ?
उत्तर –
यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।
पक्ष-
यशोधर बाबू ने अपना पूरा जीवन अपने पद के हिसाब से बड़े ही सरल व गरिमामई तरीके से जिया। वो पूरी तरह से एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार के संस्कारों को मानते थे और संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते थे।
वो अपने सहकर्मियों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करते थे और रिश्ते – नातों को शिद्द्त से निभाना पसंद करते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने आदर्शों के साथ जिया। उनसे कभी कोई समझौता नहीं किया।
वो उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल से संबंध रखते थे। इसीलिए कुमाऊँनी रीति-रिवाजों व परंपराओं से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते थे। वो अपनी सभ्यता – संस्कृति का सम्मान करते थे और अपने बच्चों की प्रगति से खुश भी दिखाई देते थे।
विपक्ष-
यशोधर बाबू आधुनिक परिवेश , रहन सहन , रीति – रिवाज व संस्कारों के विरुद्ध थे , जो गलत हैं क्योंकि आज के समाज में प्रचलित सभी चीजों , रीति रिवाज व संस्कार गलत हैं ऐसा नही हैं । हाँ कुछ गलत अवश्य हो सकते हैं। इसीलिए जो चीजें अच्छी हैं उन्हें ग्रहण करना चाहिए।
एक खुशहाल जीवन जीने के लिए व्यक्ति को समय के साथ अपने विचारों में थोड़ा बदलाव कर , नई व अच्छी चीजों को ग्रहण कर , लोगों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करनी चाहिए। यशोधर बाबू के जीवन के अच्छे जीवन मूल्यों को नई पीढ़ी को भी अपनाना चाहिए।
प्रश्न 14.
कहानी के आधार पर यशोधर पंत के व्यक्तित्व की विशेषताएं संक्षेप में स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर-
कहानी के आधार पर यशोधर पंत के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
सरल , सादगी पसंद व धार्मिक व्यक्ति –
यशोधर पंत बहुत ही सरल व सादगी पसंद व्यक्ति थे। धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण नियमित पूजा पाठ आदि करते और ऑफिस से आने वक्त बिड़ला मंदिर अवश्य जाते थे।
सामाजिक व्यक्ति –
यशोधर बाबू एक सामाजिक व्यक्ति थे। जो सामाजिक रिश्तों को निभाना और उन्हें संजो कर रखना पसंद करते थे।
जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति –
यशोधर बाबू गृह मंत्रालय में सेक्शन ऑफिसर थे। वो अपनी हर जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन करते थे और यह गुण उन्होंने किशन दा से ही सीखा था।
कंजूस व्यक्ति –
वो फिजूलखर्ची पर विश्वास नहीं करते थे । इसीलिए उन्होंने अपनी सिल्वर वेडिंग के दिन ऑफिस वालों को बड़ी मुश्किल से 30 रूपये जलपान हेतु दिए थे।
परंपरावादी व्यक्ति –
उन्होंने आजीवन अपनी कुमाऊनी परंपराओं , रीति-रिवाजों का बड़े शिद्द्त से निर्वहन किया। वो अक्सर कुमाऊँनी रीति-रिवाजों , त्यौहारों से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन अपने घर में किया करते थे।
संवेदनशील व्यक्ति –
हालांकि उनके और उनके बच्चों के बीच विचारों का टकराव चलता रहता था। लेकिन फिर भी अपने पारिवारिक माहौल को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए वो अपना अधिकतर समय घर से बाहर ही गुजारते थे। उनके बच्चे अपने किसी भी मामले में उनसे राय नहीं लेते थे जो उनको काफी बुरी लगती थी लेकिन फिर भी वो उसे चुप रहकर सहन कर जाते थे।
आधुनिकता के घोर विरोधी –
वो आधुनिक तौर-तरीकों , जीवन मूल्यों व संस्कारों के घोर विरोधी थे लेकिन अपने बेटों की तरक्की से खुश भी होते थे।
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