Bhaktin Class 12 Question Answer
भक्तिन कक्षा 12 के प्रश्न उत्तर
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Bhaktin Class 12 Question Answer
प्रश्न 1.
भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी ? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया ?
उत्तर –
भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था और देवी लक्ष्मी धन- दौलत , सुख , समृद्धि , ऐश्वर्या की देवी मानी जाती है। लेकिन अपने नाम के उलट लक्ष्मी तो बहुत ही गरीब महिला थी। लक्ष्मी नाम को सुनकर लोग उसका मजाक ना उड़ाएं। इसीलिए वह अपना वास्तविक नाम लोगों से छुपाती थी और वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उसे लक्ष्मी नाम से पुकारे।
भक्तिन के गले में कंठी माला और उसके आचार , व्यवहार व स्वभाव को देखते हुए उसे भक्तिन नाम लेखिका महादेवी वर्मा ने दिया।
प्रश्न 2.
दो कन्या रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र महिमा में अंधी अपनी जेठानी द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं ?
उत्तर –
दो कन्याओं को जन्म देने के बाद भक्तिन को पुत्र महिमा में अंधी जेठानी तथा सास की उपेक्षा सहन करनी पड़ी। भक्तिन की जमीन , जायजाद व अन्य चीजों पर भी उसकी जेठानी की नजर थी। इसीलिए वह भक्तिन से ईर्ष्या भाव रखती थी और उस पर अनेक तरह के जुल्म करती थी ताकि वह घर छोड़कर चली जाए और सारी जायजाद उसके बेटों को मिल जाय ।
हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है जहां पर पुत्रों को वंश का वारिस माना जाता है। इसीलिए बेटों को बेटियों से अधिक महत्व दिया जाता है। शिक्षा की कमी , अज्ञानता व अंधविश्वास के चलते कई बार अनजाने में ही महिलाएं (खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं) इस तरह के कार्य करती हैं। और उस समय के समाज में अधिकतर महिलाएं अशिक्षित होती थी।
इसीलिए ऐसी धारणा बनती चली गई कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। लेकिन अब समय बदल गया है। धीरे-धीरे लोगों की बेटियों के प्रति सोच भी बदलने लगी है। शिक्षित बेटियों व उनकी मांओं के साथ भेदभाव भी अब कम होने लगा है।
प्रश्न 3.
भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करें या ना करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे ?
उत्तर –
प्राचीन काल से ही भारतीय समाज एक पुरुष प्रधान समाज है। जहां महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता है और उनकी इच्छा और अनिच्छा को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। घर के बड़े बुजुर्ग खासकर पुरुष सदस्यों की इच्छा के अनुसार ही महिलाओं को अपना जीवन जीना पड़ता है। न सिर्फ शादी बल्कि जीवन के हर फैसले में महिलाओं के मानवाधिकारों का हनन करने की यह परंपरा हमारे देश में सदियों से चली आ रही हैं।
प्राचीन काल में ही नहीं बल्कि आज भी हमारे देश में महिलाओं को उनके मानवाधिकारों से वंचित रखा जाता है। उनके जीवन से संबंधित हर फैसले को आज भी घर के अन्य सदस्यों द्वारा लिया जाता है। समय बदल चुका है। पहले के मुकाबले आज अधिक महिलाएं शिक्षित है। फिर भी उनके मानवाधिकारों का हनन होता हैं। यह सिर्फ अशिक्षित महिलाओं के साथ नहीं होता है बल्कि शिक्षित महिलाएं भी इसका शिकार होती है।
भक्तिन की बेटी के साथ भी यही हुआ। भक्तिन और उसकी विधवा बेटी की इच्छा ना होते हुए भी उसे उस तीतरबाज व्यक्ति के साथ सिर्फ इसलिए शादी करनी पड़ी क्योंकि गांव की पंचायत व बड़े बुजुर्ग यही चाहते थे। यह भक्तिन की बेटी के मानवाधिकारों का हनन ही तो था।
प्रश्न 4.
“भक्तिन अच्छी है , यह कहना कठिन होगा। क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं है”। लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा ?
उत्तर –
हर व्यक्ति में गुण और अवगुण दोनों मौजूद होते हैं। भक्तिन भी इसका अपवाद नहीं थी। वैसे तो भक्तिन बहुत ही सादगी पूर्ण , ग्रामीण संस्कृति के अनुसार अपना जीवन जीने वाली महिला थी। वह अपनी मालकिन को खुश रखने का हर संभव प्रयास करती थी।
लेकिन उसमें थोड़े अवगुण भी थे। जैसे वह दूसरों की कोई बात नहीं मानती थी लेकिन अपनी बात हर किसी से मनवा लेती थी। कभी-कभी घर में रखे हुए पैसों को भंडारघर की मटकी में छिपा देती थी।
लेखिका जब उससे इस संबंध में पूछती तो वह चोरी की बात मानने के बजाय अपने तर्क – वितर्कों से लेखिका को चुप कराने की कोशिश करती। वह कहती थी कि उसने चोरी नहीं की है बल्कि उसने पैसों को संभाल कर रख दिया है।
प्रश्न 5.
भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया ?
उत्तर –
ग्रामीण संस्कृति के अनुसार विधवा होने के बाद भक्तिन हर बृहस्पतिवार को अपना सिर मुंडवा लेती थी। लेकिन लेखिका को महिलाओं का सिर मुंडवाना बिल्कुल पसंद नहीं था।
इसीलिए उन्होंने भक्तिन को ऐसा करने से मना किया लेकिन भक्तिन ने शास्त्रों का उदाहरण देते हुए कहा कि “तीरथ गए मुँड़ाए सिद्ध अर्थात सिद्ध लोग सिर मुंड़वा कर ही तीर्थ को गए”। इस तर्क के आगे लेखिका कुछ नहीं बोल पायी। और भक्तिन हर बृहस्पतिवार को अपना सिर मुंड़वाती रही।
प्रश्न 6.
भक्तिन के आ जाने से महादेवी वर्मा जी अधिक देहाती कैसे हो गई ?
उत्तर –
भक्तिन के आने के बाद लेखिका को ग्रामीण संस्कृति , वहां के रहन-सहन , वेशभूषा आदि का अच्छा ज्ञान हो गया था क्योंकि भक्तिन लेखिका के घर में भी अपने गांव घर के जैसे ही रहती और खाना बनाती थी। जैसे गाढी दाल , मोटी रोटी , बाजरे के तिलवाले ठंडे पुए , मकई की लपसी आदि बनाकर लेखिका को खिला देती थी। भक्तिन भोजन में मीठा नही बनाती थी।
महादेवी वर्माजी ने कई बार उसे शहरी तौर-तरीके अपनाने को कहा लेकिन भक्तिन नहीं मानती थी। धीरे-धीरे महादेवी वर्मा जी का स्वाद भी बदल गया और वह भक्तिन के बनाए खाने को ही खा कर संतुष्ट रहने लगी और उसी के हिसाब से यानि देहाती तरीके से जीवन जीने लगी।
प्रश्न 7.
“आलो आँधारि” की नायिका बेबी हालदार और भक्तिन के व्यक्तित्व में आप क्या समानता देखते हैं ?
उत्तर –
“आलो आँधारि” की नायिका बेबी हालदार एक घर में नौकरानी का काम करती हैं और भक्तिन लेखिका के घर में सेविका का काम करती है। बेबी हालदार ने सातवीं तक पढ़ाई की थी जबकि भक्तिन पूरी तरह से अनपढ़ है। लेकिन दोनों ही महिलाओं को अपने परिजनों के अत्याचारों को सहन करना पड़ा।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए विशिष्ट भाषा प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ छवि स्पष्ट कीजिए ?
(क)
पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले।
उत्तर –
किसी कहानी की किताब के पहली बार प्रकाशित होने पर उसे “पहला संस्करण” माना जाता है। और उसी कहानी को आगे बढ़कर पुस्तक को दुबारा प्रकाशित करने पर , उसे दूसरा संस्करण कहा जाता हैं। इसी तरह भक्तिन की पहली बेटी के बाद उसके जैसी ही दो और बेटियों पैदा हो गई। इसीलिए उन्हें “संस्करण” का नाम दिया गया।
(ख)
खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी।
उत्तर –
सिक्कों को ढालने की जगह को “टकसाल” कहा जाता है। और उस समय हमारे देश में बेटों को “खरा सिक्का” और बेटियों को “खोटा सिक्का” समझा जाता था। क्योंकि भक्तिन ने एक के बाद एक तीन लड़कियों को ही पैदा किया। इसीलिए भक्तिन के पति ने उसे “खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी” कहा था ।
(ग़)
अस्पष्ट पुनरावृतियों और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण
उत्तर-
ऐसी बातें जो बार-बार सुनाई दे रही थी लेकिन वो बातें इतनी धीरे-धीरे बोली जा रही थी कि उनको साफ-साफ सुनना मुश्किल था। और यह भी नहीं समझ में आ रहा था कि आखिर वो लोग बोल क्या रहे हैं। इसीलिए लेखिका ने उन्हें “अस्पष्ट पुनरावृतियों” कहा हैं।
लेकिन जो लोग धीरे-धीरे बात कर रहे थे। उनके चेहरे के हाव-भावों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि वो लोग सहानुभूति जता रहे हों । यानि उनके चेहरों में सहानुभूति के भाव साफ़-साफ़ दिखाई दे रहे थे। जिसे लेखिका ने “स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण” का नाम दिया हैं।
प्रश्न 2.
बहनोई शब्द (बहन +ओई) ओर से बना है। इस शब्द में हिंदी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई है। पुलिंग शब्दों में कुछ स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्रीलिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया कई भाषा में दिखाई देती है।
परे स्त्रीलिंग शब्द में कुछ पुं ,प्रत्यय जोड़कर पुलिंग शब्द बनाने की घटना प्राय: अन्य भाषाओं में दिखलाई नहीं पड़ती है। यहां पुं , प्रत्यय “ओई” हिंदी की अपनी विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और उनमें पुं , प्रत्ययों की हिंदी तथा अन्य भाषाओं को खोज करें।
उत्तर-
ननद + आई = ननदोई
प्रश्न 3.
पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझ कर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में डालकर प्रस्तुत कीजिए।
(क)-
ई कउन बड़ी बात आय। रोटी बनाय जानित हैं , दाल रांध लेडट हैं ,साग भाजी बँउक सकित है , अउर बाकी का रहा।
उत्तर –
यह क्या बड़ी बात है , रोटी बनाना जानती हूं , दाल बना लेती हूं। साग भाजी छौंक सकती हूँ और बाकी क्या रहा।
(ख)
हमारे मालकिन तो रात-दिन किताबियन माँ गढ़ी रहती है। अब हमहूँ पढे लागब तो घर गिरिस्ती काउन देखी-सुनी।
उत्तर –
हमारी मालकिन तो रात दिन किताबों में गढ़ी रहती है। अब हम भी पढ़ने लगे तो घर गृहस्थी कौन देखेगा।
(ग)
ऊ बिचारिअउ तो रात-दिन काम माँ झुकी रहती है अउर तुम पचै घूमती फिरती हो , चलो तनिक हाथ बटाय लेउ।
उत्तर –
वह बेचारी तो रात दिन काम में झुकी रहती है और तुम वैसे ही घूमती-फिरती हो। चलो थोड़ा हाथ बँटाओ।
(घ)
तब ऊ कुच्छो करिहैं धरिहैं ना बस गली गली गाउत फिरिहैं।
उत्तर –
तब वह कुछ कर्ता-धर्ता नहीं था , बस गली-गली में गाते बजाते फिरता था।
(ड़)
तुम पचे का का बताई -यहै पचास बरिस से संग रहति हैं।
उत्तर –
तुम्हें हम क्या-क्या बताएं। यही कोई पचास वर्ष से साथ रहती हूं।
(च)
हम कुकुरी बिलारी न होयँ ,हमार मन पुसाई तो हम दूसरा के जॉब नाहिं त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा पूंजब और राज करब , समुझे रहो ।
उत्तर –
हम कुत्ता या बिल्ली नहीं हूँ। हमारा मन चाहेगा तो हम दूसरे के यहां जाएंगे , नहीं तो तुम्हारी छाती पर चने भुनंगे और राज करंगे , समझे।
Bhaktin Class 12 Question Answer
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