Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Class 12 Question Answer

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श्रम विभाजन और जाति प्रथा कक्षा 12

Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Class 12 Question Answer

Note-

  1. श्रम विभाजन और जाति प्रथा और मेरी कल्पना  का आदर्श समाज” पाठ के MCQ को पढ़ने के लिए Link में Click करें – Next Page
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प्रश्न 1.

जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे अंबेडकर के क्या तर्क हैं ?

उत्तर-

जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे अंबेडकर जी के निम्नलिखित तर्क हैं।

  1.  जाति प्रथा , श्रम विभाजन के साथ – साथ श्रमिक विभाजन भी करती हैं।
  2.  श्रम विभाजन किसी भी सभ्य समाज के लिए आवश्यक है। मगर भारत की जाति प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन करती हैं। उन्हें उच्च जाति (ब्राह्मण) और निम्न जाति (शुद्र) में बाँट देती हैं। ऐसा विभाजन विश्व के किसी भी समाज में नहीं देखा जाता है।
  3.  जाति प्रथा में श्रम विभाजन मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं बल्कि उसके जन्म के आधार पर निर्धारित होता है।
  4. व्यक्ति अपना पेशा (कार्यक्षेत्र) चुनने के लिए स्वतंत्र नहीं होता हैं।
  5.  जाति प्रथा में मनुष्य की क्षमता , उसकी कार्य कुशलता व उसकी रूचि का कोई महत्व नहीं होता है। उसे वही कार्य करना पड़ता है जो उसका पैतृक पेशा होता है।
  6. जाति प्रथा , विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति को अपना व्यवसाय बदलने की इजाजत नही देती है भले ही वह भूखा मर जाए।

प्रश्न 2.

जाति प्रथा , भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है ? क्या यह स्थिति आज भी है ?

उत्तर

जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी और भुखमरी का एक प्रमुख कारण बनती आयी है क्योंकि जाति प्रथा में व्यक्ति के पेशे का निर्धारण उसके जन्म से पूर्व ही कर दिया जाता है। साथ ही साथ उसे , उसी पेशे के साथ जीवन भर बंधे रहने को भी मजबूर किया जाता है।

आधुनिक समय में अत्याधुनिक मशीनों व नई टेक्नोलॉजी के आ जाने के बाद कुछ पुराने व्यवसाय बंद होने के कगार में हैं। जिस कराण व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ रही है । ऐसी परिस्थितियों में भी अगर व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की अनुमति ना मिले तो भुखमरी और बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही बढ़ेगी।

मगर अब समय काफी बदल चुका हैं। सरकार द्वारा दलित , निम्न व पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। उन्हें शिक्षा व नौकरी में आरक्षण भी दिया जा रहा है ताकि वो समाज में स्वतंत्रतापूर्वक सम्मान के साथ जी सकें। आज हर जाति , हर वर्ग का व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार अपना व्यवसाय व नौकरी आदि चुनने के लिए स्वतंत्र है।

प्रश्न 3.

लेखक के मत से “दासता” की व्यापक परिभाषा क्या है ?

त्तर

लेखक के अनुसार दासता या गुलामी सिर्फ कानूनी पराधीनता नहीं है। बल्कि जब व्यक्ति को अपनी शिक्षा , रोजगार या व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता ना हो और उसे दूसरे लोगों के द्वारा बनाए गए नियम कानून के अनुसार अपना जीवन यापन करना पड़े तो , यह भी एक तरह की दासता (गुलामी) ही है।

प्रश्न 4.

शारीरिक वंश परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद अंबेडकर “समता” को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं ? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं ?

उत्तर –

शारीरिक वंश परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से सभी मनुष्य एक समान नहीं हो सकते हैं क्योंकि यह व्यक्ति के अपने हाथ में नहीं होता है। इसीलिए इन दोनों को आधार बनाकर लोगों के साथ असमान व्यवहार नहीं किया जा सकता हैं । प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने का समान अवसर मिलना चाहिए।

अंबेडकर जी कहते हैं कि अगर समाज को अपने सभी सदस्यों से अधिकतम योगदान प्राप्त करना है तो उसे समाज के सभी सदस्यों के साथ एक समान व्यवहार करना होगा। सभी को एक समान अवसर उपलब्ध कराने होंगे और सभी को अपना कार्यक्षेत्र चुनने की स्वतंत्रता देनी होगी क्योंकि स्वतंत्रता ,  भाईचारा , समानता किसी भी समाज की उन्नति के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 5

सही में अंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है , जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं ?

उत्तर –

हाँ , मैं लेखक की बातों से पूर्ण रूप से सहमत हूं । किसी भी समाज में भावनात्मक समत्व तभी आ सकती है जब समाज के सभी लोगों के पास समान भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं उपलब्ध होंगी। क्योंकि एक सुविधा संपन्न और एक अभावग्रस्त व्यक्ति की प्रतियोगिता में सुविधा संपन्न व्यक्ति आगे निकल जाएगा।

समाज के सभी लोगों को शिक्षा , रोजगार व अपनी क्षमता का पूर्ण विकास करने का समान अवसर मिले। सभी को समान भौतिक सुख सुविधाएं मिले। व्यक्ति को अपनी रुचि व कौशलता के आधार पर अपने पसंदीदा कार्य क्षेत्र में कार्य करने की स्वतंत्रता मिले , तब व्यक्ति के प्रयासों का मूल्यांकन किया जा सकता हैं।

और यह सब तभी संभव है जब समाज में समानता का भाव होगा और जातिवाद का जड़ से उन्मूलन (खत्म) होगा ।

 प्रश्न 6.

आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक “भातृता” को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं ? आप इस “भातृता” शब्द से कहां तक सहमत हैं ? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे / समझेंगी ?

 उत्तर-

“भातृता” अर्थात भाईचारा और यह शब्द किसी लिंग विशेष के लिए प्रयोग नहीं किया गया है।  इसीलिए इस शब्द के अंदर महिलाएं भी समान रूप से सम्मिलित हैं। हालाँकि पाठ में महिलाएं के बारे में स्पष्ट कुछ नही कहा गया हैं।

मैं “भातृता” शब्द के स्थान पर  “भाईचारे” शब्द का प्रयोग करना उचित समझूंगा। 

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.

अंबेडकर ने जाति प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है। इस संदर्भ में शेखर जोशी की कहानी “गलता लोहा” पर पुनर्विचार कीजिए ?

उत्तर –

कृपयागलता लोहा” पाठ का सारांश पढ़े 

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