Galta Loha Class 11 Summary : गलता लोहा

Galta Loha Class 11 Summary ,

Galta Loha Class 11 Summary Hindi Aroh Bhag 1 Chapter 5 , गलता लोहा कक्षा 11 का सारांश 

Galta Loha Class 11 Summary

गलता लोहा का सारांश

Galta Loha Class 11 Summary

Note –

  1. “गलता लोहा  पाठ के MCQS पढ़ने के लिए Link में Click करें  –  Next Page
  2. “गलता लोहा ” पाठ के प्रश्न उत्तर पढ़ने के लिए Link में Click करें  –    Next Page
  3. “गलता लोहा ” पाठ के सारांश को हमारे YouTube channel  में देखने के लिए इस Link में Click करें  ।   YouTube channel link – (Padhai Ki Batein / पढाई की बातें)

“गलता लोहा” पाठ के लेखक शेखर जोशी जी हैं। शेखर जोशीजी की यह कहानी एक ऐसे प्रतिभाशाली ब्राह्मण बालक की कहानी है जिसकी प्रतिभा को उसके जीवन में आयी विपरीत परिस्थितियों ने छीन लिया।

दूसरा यह कहानी हमारे समाज में फैली जातिगत विभाजन को भी उजागर करती है जिसमें ब्राह्मण वर्ग के लोगों का शिल्पकार वर्ग के लोगों के बीच उठना – बैठना मर्यादा के विरुद्ध माना जाता है। हालाँकि यह पुराने समय की बात है।

लेकिन इस कहानी का नायक , ब्राह्मण बालक मोहन जातीय आधार पर बनाए गए इन भेदभावों को भुलाकर लोहे के आँफर में लोहे को गला कर उसे एक नया आकार देने की कोशिश करता है यानि लोहार का कार्य करता है। जो उस समय के हिसाब से एक ब्राह्मण पुत्र के लिए नियम के विरुद्ध था।

(ऑफर , वह जगह होती है जहां पर आग की भट्टी में लोहे को गला कर उससे अनेक तरह के लोहे के बर्तन या औजार बनाए जाते है यानि लोहे के औजार या बर्तन बनाने की जगह को ऑफर कहा जाता है।)

कहानी की शुरुआत करते हुए शेखर जोशी जी कहते हैं कि मोहन एक गरीब ब्राह्मण बालक हैं जिसके पिता बंशीधर पुरोहिताई (पण्डितगिरि) का काम कर अपना घर चलाते हैं । लेकिन समय के साथ अब वो काफी वृद्ध हो चुके हैं। इसीलिए अब दिन प्रति दिन उनके लिए पुरोहिताई का काम करना मुश्किल होता जा रहा है।

एक दिन बंशीधरजी को गणनाथ जाकर अपने यजमान चंद्रदत्त जी के लिए रुद्रीपाठ यानी भोले शंकर की आराधना करनी थी। लेकिन वहां पहुंचने के लिए दो मील की सीधी (खड़ी) चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। जो इस अवस्था में उनके बस की बात नहीं थी।

लेकिन पुराने यजमान होने की वजह से वो उन्हें मना भी नहीं कर पा रहे थे। इसीलिए वो इस उम्मीद से मोहन को यह बात बताते हैं कि शायद वह जाकर चंद्रदत्त जी के यहां रुद्रीपाठ कर आये। लेकिन मोहन को इस तरह के पूजा पाठ व अनुष्ठान करने का कोई अनुभव नहीं था। इसीलिए उसने अपने पिता को कोई जवाब नही दिया और अपनी हंसुवा (घास काटने की दराँती) उठाकर खेतों के किनारे उग आयी कांटेदार झाड़ियों को काटने के लिए निकल पड़ा । लेकिन दराँती की धार खत्म हो चुकी थी।

दराँती में धार लगाने के उद्देश्य से वह अपने स्कूल के दोस्त धनराम के आँफर में पहुंच गया। धनराम उस समय अपने ऑफर में लोहे के औजार बनाने में व्यस्त था। मोहन वही एक कनस्तर में बैठ कर धनराम को काम करते हुए ध्यान से देखने लगा।

चूंकि बचपन में दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे और मास्टर त्रिलोक सिंह दोनों को ही पढ़ाते थे। इसलिए मोहन ने धनराम से मास्टर त्रिलोक सिंह के बारे में पूछा । धनराम ने मोहन को मास्टर त्रिलोक सिंह के गुजर जाने (मृत्यु) के बारे में बताया। इसके बाद दोनों दोस्त पुरानी बातों को याद करने लगे।

स्कूल के सभी बच्चे मास्टर त्रिलोक सिंह से बहुत डरते थे। लेकिन पूरी कक्षा में मोहन मास्टरजी का सबसे चहेता शिष्य था क्योंकि पढ़ाई के साथ-साथ वह हर चीज में अव्वल रहता था। इसीलिए मास्टर साहब ने उसे पूरे स्कूल का मॉनिटर बनाया हुआ था।

मास्टर साहब को मोहन से बहुत उम्मीदें थी। वो कहते थे कि यह लड़का एक दिन कुछ न कुछ बड़ा काम अवश्य करेगा। भले ही किसी सवाल का जबाब पूरी कक्षा में किसी बच्चे को न आये मगर मोहन उस सवाल का जवाब देकर मास्टर जी को संतुष्ट कर देता था।

अगर मास्टर जी किसी बच्चे को डंडे मारने व कान खिंचने की सजा देना चाहते थे तो वो ये काम मोहन से करवाते थे। उन सभी बच्चों में धनराम भी एक था जिसने मास्टर जी के कहने पर मोहन से कई बार मार खाई थी । लेकिन धनराम इसका कभी बुरा नही मानता था।

Galta Loha Class 11 Summary ,

धनराम पढ़ने लिखने में शुरू से ही बहुत कमजोर था। एक बार मास्टर जी ने उससे तेरह का पहाड़ा (Table of 13) सुनाने को कहा लेकिन वह उसे पूरा नहीं सुना पाया। इसके बाद मास्टरजी ने उसकी डंडे से खूब पिटाई की। स्कूल का नियम था , जो मार खाता था उसको अपने लिए खुद ही डंडा लाना पड़ता था।

पढाई में कमजोर होने के कारण धीरे – धीरे धनराम के पिता ने उसे आँफर का काम सीखाना शुरू कर दिया। और पिता गंगाराम की मृत्यु होने के बाद धनराम ने अपना पारिवारिक काम संभाल लिया।

प्राइमरी स्कूल पास करने के बाद मोहन को छात्रवृत्ति मिली। जिससे मोहन के पिता का हौसला और बढ़ गया। अब वो मोहन को बड़ा आदमी बनाने का सपना देखने लगे। इसीलिए उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए मोहन का एडमिशन दूसरे स्कूल में करा दिया।

चूंकि नया स्कूल घर से चार मील की दूरी पर था। दो मील की सीधी चढ़ाई और एक नदी पार कर मोहन को स्कूल पहुंचना होता था। बरसात के दिनों में नदी का पानी अपने उफान पर होता था जिससे मोहन को स्कूल पहुंचने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।

एक बार मोहन उस उफनाई नदी को पार करने में डूबते -डूबते बड़ी मुश्किल से बच कर घर पहुंचा। इसके बाद बंशीधर अपने बच्चे के लिए बहुत चिंतित रहने लगे।

लेखक आगे कहते हैं कि एक बार उनकी ही बिरादरी का एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाला युवक रमेश लखनऊ से छुट्टियों में गांव आया। रमेश जब मोहन के पिता से मिला तो मोहन के पिता ने अपने बेटे की पढ़ाई के संबंध में उससे अपनी चिंता प्रकट की।

रमेश ने सहानुभूति जताते हुए उन्हें सुझाव दिया कि वो आगे की पढाई के लिए मोहन को उसके साथ लखनऊ भेज दें।  ताकि वह वहां रहकर अच्छे से अपनी पढ़ाई पूरी कर सके। हालाँकि मोहन लखनऊ जाकर पढ़ाई नहीं करना चाहता था लेकिन पिता की मर्जी के आगे उसे झुकना पड़ा और वह रमेश के साथ लखनऊ चला गया।

बस यही से मोहन का जीवन बदल गया। लखनऊ में रमेश व उसके परिवार वालों के लिए वह एक मामूली धरेलू नौकर से ज्यादा कुछ नही था। घर के सारे काम – काज करना अब उसकी ही जिम्मेदारी बन गयी थी। इसके अलावा आस – पड़ोस की महिलाएं जिन्हें वह चाची और भाभी कह कर पुकारता था। वो भी अक्सर उससे ही अपना काम कराती थी।

इन सब कामों के बाद मोहन के पास पढ़ाई के लिए समय ही नहीं बचता था। गांव का यह मेधावी छात्र शहर जाकर एक मामूली घरेलू नौकर का जीवन जीने लगा।

आठवीं की पढ़ाई खत्म होने के बाद रमेश ने उसे आगे पढ़ाने के बजाय उसका एडमिशन एक तकनीकी स्कूल में करा दिया। जहां उसने डेढ़ वर्ष तक पढ़ाई की। उसके बाद वह नौकरी के लिए फैक्ट्रियों व कारखानों के चक्कर लगाने लगा।

ईधर पंडित बंशीधर सोच रहे थे कि उनका बेटा एक न एक दिन बड़ा ऑफिसर बन कर घर वापस लौटेगा।  लेकिन एक दिन जब उन्हें सच्चाई का ज्ञान हुआ तो उन्हें अथाह दुःख पहुंचा।

एक दिन धनराम ने भी जब पंडित बंशीधर से बातों ही बातों में मोहन की नौकरी के बारे में पूछ लिया तो उन्होंने झूठ बोलते हुए कह दिया था कि उसकी सेक्रेटेरिएट (सचिवालय) में नियुक्ति हो गई है। शीघ्र ही विभागीय परीक्षा देकर वह बड़े पद पर पहुंच जाएगा। धनराम ने उनकी इस बात पर सहज ही यकीन कर लिया।

दोनों दोस्त मिलकर बहुत देर तक मास्टर त्रिलोक सिंह और स्कूल के अन्य साथियों की बात करते रहे। इस बीच धनराम ने मोहन की दराँती की धार को तेज कर उसे मोहन को सौंप दिया। लेकिन मोहन दराँती को पकड़कर काफी देर तक उसके पास ही बैठा रहा। ऐसा लग रहा था मानो जैसे उसे कहीं जाने की जल्दी नहीं है।

सामान्यतया ग्रामीण क्षेत्रों में ब्राह्मण जाति के लोगों का शिल्पकार जाति के लोगों के साथ बैठना उचित नहीं माना जाता था। लेकिन मोहन धनराम के पास काफी देर तक बैठकर उसके काम को ध्यान से देखता रहा।

इस बीच धनराम लोहे की एक मोटी छड़ी को भट्टी में गला कर उसे गोलाई देने की कोशिश करने लगा। लेकिन काफी प्रयास के बाद भी वह उस लोहे की छड़ी को उचित आकार में नहीं ढाल पा रहा था।

मोहन काफी देर तक उसे काम करते हुए देखता रहा। फिर अचानक उसने अपना संकोच त्यागा और एक हाथ में धनराम के हाथ से लोहे की छड़ी लेकर दूसरे हाथ से उसमें हथौड़े से चोट करने लगा। बीच-बीच में वह उस छड़ी को भट्टी में गरम कर , फिर उसमें चोट मार कर उसे आकार देने की कोशिश करने लगा ।

बहुत जल्दी ही उसने उस छड़ी को गोल आकार दे दिया। यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि धनराम मोहन से कुछ न कह सका और वह मोहन को देखते ही रह गया। उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक पुरोहित खानदान का लड़का उसकी लोहे की भट्टी में बैठकर बड़ी ही कुशलता पूर्वक काम कर रहा था।

लेकिन मोहन को तो जैसे इन बातों से कोई मतलब नही था। वह अपने बनाये हुए लोहे के छल्ले की बारीकी से जांच परख कर रहा था। तभी उसने धनराम की तरफ देखा जैसे वह उससे पूछना चाह रहा हो कि , यह कैसे बना है ?

धनराम की आंखों में अपने लिए मौन प्रशंशा देखकर मोहन की आंखों में एक अजीब सी चमक छा गई। लेकिन उस चमक में ना तो कोई स्पर्धा थी और ना ही हार जीत का भाव।

Galta Loha Class 11 Summary ,

“गलता लोहा ” पाठ के सारांश को हमारे YouTube channel  में देखने के लिए इस Link में Click करें  ।   YouTube channel link – (Padhai Ki Batein / पढाई की बातें)

Note – Class 8th , 9th , 10th , 11th , 12th के हिन्दी विषय के सभी Chapters से संबंधित videos हमारे YouTube channel   (Padhai Ki Batein / पढाई की बातें)  पर भी उपलब्ध हैं। कृपया एक बार अवश्य हमारे YouTube channel पर visit कर हमें Support करें । सहयोग के लिए आपका बहुत – बहुत धन्यबाद।

You are most welcome to share your comments . If you like this post . Then please share it . Thanks for visiting.

यह भी पढ़ें……

कक्षा 11 हिन्दी

वितान भाग 1 

भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर का सारांश 

 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर के प्रश्न उत्तर 

भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर के MCQS

राजस्थान की रजत बूंदें का सारांश 

राजस्थान की रजत बूंदें पाठ के प्रश्न उत्तर 

राजस्थान की रजत बूंदें पाठ के MCQS

आलो आँधारि पाठ का सारांश  

आलो आँधारि पाठ प्रश्न उत्तर 

आलो आँधारि पाठ के MCQS 

कक्षा 11 हिन्दी आरोह भाग 1 

काव्यखण्ड 

कबीर के पद का भावार्थ

कबीर के पद के प्रश्न उत्तर

कबीर के पद के MCQ

मीरा के पद का भावार्थ

मीरा के पदों के प्रश्न उत्तर

मीरा के पद के MCQ

पथिक का भावार्थ

पथिक पाठ के प्रश्न उत्तर

पथिक के MCQ

वे आँखें कविता का भावार्थ

वे आँखें कविता के प्रश्न उत्तर

वे आँखें कविता के MCQ

घर की याद कविता का भावार्थ

घर की याद कविता के प्रश्न उत्तर

घर की याद कविता के MCQ

ग़ज़ल का भावार्थ

ग़ज़ल के प्रश्न उत्तर

ग़ज़ल के MCQ

आओ मिलकर बचाएँ का भावार्थ

आओ मिलकर बचाएँ के प्रश्न उत्तर

कक्षा 11 हिन्दी आरोह भाग 1 

गद्द्य खंड 

नमक का दारोगा कक्षा 11 का सारांश

नमक का दरोग के प्रश्न उत्तर 

नमक का दरोग के MCQS 

मियाँ नसीरुद्दीन का सारांश 

मियाँ नसीरुद्दीन पाठ के प्रश्न उत्तर

मियाँ नसीरुद्दीन पाठ के MCQS 

अपू के साथ ढाई साल पाठ का सारांश

अपू के साथ ढाई साल के प्रश्न उत्तर

अपू के साथ ढाई साल के MCQ

विदाई संभाषण पाठ का सारांश

विदाई संभाषण पाठ के प्रश्न उत्तर

विदाई संभाषण पाठ के MCQS

गलता लोहा पाठ का सारांश

गलता लोहा के प्रश्न उत्तर

गलता लोहा के MCQS

स्पीति में बारिश का सारांश

स्पीति में बारिश के प्रश्न उत्तर

स्पीति में बारिश के MCQS 

जामुन का पेड़ का सारांश

जामुन का पेड़ के प्रश्न उत्तर

जामुन का पेड़ के MCQS

भारत माता का सारांश 

भारत माता के प्रश्न उत्तर

भारत माता के MCQS