Ram Aur Sugreev Class 6 Summary :
Ram Aur Sugreev Class 6 Summary (Bal Ramkatha)
राम और सुग्रीव कक्षा 6 सारांश (बाल रामकथा)
राम और लक्ष्मण सुग्रीव से मिलने ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़ने लगे क्योंकि शबरी और राक्षस कबंध , दोनों ने ही उन्हें सुग्रीव से मिलने की सलाह दी थी। उन दोनों का ही मानना था कि सुग्रीव सीता की खोज करने में अवश्य ही राम की सहायता करेंगे। वैसे सुग्रीव का मूल निवास (असली घर) ऋष्यमूक पर्वत नहीं बल्कि किष्किंधा था। ऋष्यमूक पर्वत पर तो वो निर्वाचित जीवन जी रहे थे।
सुग्रीव किष्किंधा के वानरराज के छोटे पुत्र थे। उनके बड़े भाई का नाम बाली था। पिता के मरने के बाद बाली राजा बना। पहले दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था। राजकाज में किसी बात को लेकर दोनों भाइयों के बीच झगड़ा हुआ और फिर वह झगड़ा इतना बड़ा कि बाली सुग्रीव की जान का दुश्मन (मार देना) बन गया। जिस वजह से सुग्रीव अपनी जान बचाकर वहां से भागा और ऋष्यमूक पर्वत पर आकर रहने लगा।
ऋष्यमूक पर्वत पर आकर भी सुग्रीव का डर कम नहीं हुआ । उसे हर वक्त यही डर लगा रहता था कि कहीं उसका भाई बाली या उसके गुप्तचर सैनिक उसे यहाँ भी मारने न आ पहुंचे। अपने विश्वासपात्र वानर सेना के साथ -साथ वह खुद भी हमेशा पहरा देता था। एक दिन सुग्रीव ने पहाड़ी पर खड़े होकर राम व लक्ष्मण को अपनी तरफ आते देखा। वह उन्हें बाली के गुप्तचर समझ कर काफी डर गया और ऋष्यमूक पर्वत छोड़ने की बात कहने लगा।
लेकिन हनुमान उसकी बातें से बिल्कुल सहमत नहीं थे। उन्होंने सुग्रीव को समझाया कि बाली की सेना में इस तरह के युवक नहीं है। वो जाकर इन दोनों के बारे में पता लगाकर आते हैं। उस समय राम और लक्ष्मण पहाड़ी के पास बने सरोवर में हाथ – मुँह धोकर आराम कर रहे थे। उसी समय हनुमान वेश बदलकर वहां पहुंच गए और उन लोगों से उनका परिचय पूछा।
राम -लक्ष्मण ने उन्हें अपना परिचय दिया और यह बताया कि रावण ने सीता का अपहरण कर कर लिया है। वो कबंध और शबरी की सलाह के अनुसार सुग्रीव से सीता की खोज करने में सहायता मांगने आए हैं। हनुमान को महसूस हुआ कि राम और सुग्रीव दोनों को ही एक दूसरे की सहायता की आवश्यकता है क्योंकि दोनों की परेशानियों एक जैसी हैं।
हनुमान ने राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर बैठाया और सुग्रीव के पास ले आये। राम और सुग्रीव अग्नि को साक्षी मानकर मित्र बन गए और दोनों ने एक दूसरे की सहायता करने का वादा किया। राम ने जब सीता हरण की बात की तो सुग्रीव ने वानरों द्वारा लाये गए आभूषण उन्हें दिखाएं। ये वही आभूषण थे जो सीता ने तब फेंके थे जब रावण ने उनका हरण किया था । राम और लक्ष्मण ने सीता के आभूषणों (गहनों) को पहचान लिया । सुग्रीव ने राम को सीता की खोज में हर संभव मदद करने का वचन दिया।
फिर सुग्रीव ने भी अपनी व्यथा राम को सुनाई कि कैसे उसके बड़े भाई बाली ने उसे अपने ही राज्य से निकाल दिया है और उसकी धर्मपत्नी को भी छीन लिया है। राम ने भी उसे हर संभव मदद करने का वचन दिया। हालाँकि उस समय सुग्रीव राम की सुकुमारिता (कोमल शरीर) को देखकर उनके वचनों पर भरोसा नहीं कर सका। क्योंकि सुग्रीव जानता था कि बाली महाबलशाली हैं और वह सात शाल (एक विशाल पेड) के वृक्षों को एक साथ झगोड़ने की शक्ति रखता था। राम ने उसके मन की बात समझ ली और अगले ही क्षण बिना कोई उत्तर दिए अपने एक ही बाण से शाल के सात विशाल वृक्षों को काट दिया।
इसके बाद सुग्रीव को राम की शक्ति पर भरोसा हो गया। राम ने सुग्रीव से कहा कि वह बाली को युद्ध के लिए ललकारे और वो पेड़ की ओट से युद्ध देखेंगे और जैसे ही सुग्रीव पर संकट आएगा , वो तुरंत उसकी सहायता करेगें। बाली की म्रुत्यु उनके ही हाथ से होंगी। सुग्रीव ने वैसा ही किया। दोनों भाइयों में भीषण मल्ल युद्ध हुआ। बाली सुग्रीव पर भारी पड़ने लगा। फिर भी पेड़ के पीछे खड़े राम ने बाण नही चलाया। सुग्रीव को लगने लगा कि अब उसकी मृत्यु निकट हैं। इसीलिए वह भाग कर ऋष्यमूक पर्वत पर आ गया।
वह राम से बहुत नाराज था। राम ने उसे समझाया कि तुम दोनों भाइयों के चेहरे इतने मिलते-जुलते है कि मैं बाली को पहचान ही नही पाया। कही मेरा तीर तुमको न लग जाय , यह सोचकर मैंने बाण नही चलाया। राम ने सुग्रीव को दोबारा बाली से युद्ध करने के लिए कहा । सुग्रीव डरा हुआ था लेकिन राम के कहने पर युद्ध के लिए तैयार हो गया। फिर एक बार दोनों भाइयों में भयंकर मल्ल युद्ध हुआ और इस बार जब सुग्रीव हारने लगा तो राम ने बाली पर बाण चला दिया। बाण लगते ही बाली मारा गया और इसी के साथ सुग्रीव का राज्याभिषेक हुआ और बाली के पुत्र अंगद को युवराज बना दिया।
वर्षा ऋतु होने के कारण सीता की खोज में लंका जाना संभव नहीं था। इसीलिए इस अवधि में राम और लक्ष्मण किष्किंधा राजमहल को छोड़कर प्रश्रवण पर्वत पर आकर रहने लगे। वर्षा ऋतु के बीत जाने के बाद भी जब सुग्रीव राम के पास नहीं आया तो लक्ष्मण उसको अपना दिया हुआ वचन याद दिलाने के लिए किष्किंधा चले गए। किष्किंधा जाकर लक्ष्मण ने अपने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और डोरी खींच कर छोड़ दी। धनुष की टंकार से सुग्रीव डर गया। उसे तुरंत राम को दिया हुआ अपना वचन याद आ गया।
सुग्रीव ने तुरंत राम के पास जाकर उनसे क्षमा मांगी। राम ने उठाकर उसे अपने गले से लगा लिया। सुग्रीव ने हनुमान को तुरंत वानर सेना को एकत्र करने का आदेश दिया। थोड़ी ही देर में हनुमान के पीछे बंदरों और जामवंत के साथ भालूओं की विशाल सेना आ पहुंची।
पूरी वानर सेना को चार टोलियों में बांटा गया। दक्षिण दिशा की तरफ जाने वाले दल का नेता अंगद को बनाया गया जिसमें हनुमान , नल व नील भी थे। राम चाहते थे कि वानर सेना को लंका भेजने से पहले कुछ चतुर व बिद्धिमान दूतों को लंका भेजा जाय। राम ने हनुमान को अपने पास बुलाया और उन्हें अपनी अंगूठी जिस पर राम का चिन्ह अंकित था , देते हुए कहा कि तुम्हारी जब सीता से भेंट हो तो यह अंगूठी तुम उन्हें दे देना। वो तुरंत ही इसे पहचान जायेगी और समझ जायेगी कि तुम्हें मैंने भेजा है यानि तुम मेरे दूत हो।
किष्किंधा से वानर सेना दक्षिण दिशा की तरफ चल पड़ी। अंगद और हनुमान आगे -आगे चल रहे थे और पूरी वानर सेना उनके पीछे -पीछे। चलते -चलते वो समुद्र के किनारे पहुंच गए। इतने विशाल समुद्र को पार कर पाना किसी के बस की बात नहीं थी इसीलिए सारे वानर थक -हार कर वहीं बैठ गए। तभी जटायु के भाई संपाति गिद्ध उनके पास आये और उन्होंने बताया कि सीता लंका में हैं और रावण ने उनका हरण किया हैं। लंका जाने का एकमात्र रास्ता इसी समुद्र से होकर जाता हैं।
सीता लंका में हैं , यह जानकार सभी खुश तो थे मगर इतना बड़ा समंदर कैसे पार किया जाए। यह किसी की समझ नही आ रहा था। हालाँकि जामवंत एक कोने में चुपचाप बैठे थे मगर वो जानते थे कि हनुमान पवन पुत्र हैं और यह कार्य सिर्फ वही कर सकते हैं। उनके पास अपार शक्तियों हैं मगर उन्हें अपनी उन शक्तियों का ज्ञान नहीं हैं। अब जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्तियों याद दिलानी शुरू की और उन्हें कहा की यह कार्य सिर्फ वही कर सकते हैं और कोई नही कर सकता हैं। इसीलिए उन्हें लंका जाना ही होगा।
Ram Aur Sugreev Class 6 Summary
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