Galta Loha Class 11 Question Answer ,
Galta Loha Class 11 Question Answer Hindi Aroh Bhag 1 Chapter 5 , गलता लोहा कक्षा 11 के प्रश्न उत्तर हिन्दी आरोह भाग 1
Galta Loha Class 11 Question Answer
गलता लोहा के प्रश्न उत्तर
Note –
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प्रश्न 1.
कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें जिसमें किताबों की विद्या और घर चलाने की विद्या का जिक्र आया है ?
उत्तर –
धनराम किताबों की विद्या के साथ – साथ घर चलाने की विद्या भी सीख रहा था। धनराम के पिता लोहार का काम करते थे। इसीलिए उन्होंने स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ धनराम को लोहार का काम भी सिखाना शुरू कर दिया था।
धनराम स्कूल से आने के बाद खाली समय में अपने पिता के काम में हाथ बँटाता था। जिससे वह धीरे धीरे काम की बारीकियों को सीखता चला गया और एक दिन उस काम में प्रवीण हो गया। पढ़ाई में कमजोर होने के कारण वह अक्सर अपने शिक्षक से मार खाया करता था। उसके शिक्षक भी उसे अपने औजार थमा कर उसमें धार लगाने का काम सौंप देते थे।
प्रश्न 2.
धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंदी क्यों नहीं समझता था ?
उत्तर –
धनराम और मोहन , दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। शुरू से ही मोहन पढ़ाई में बहुत तेज था जबकि धनराम बहुत कमजोर था। बावजूद इसके धनराम ने मोहन को कभी अपना प्रतिद्वंदी नहीं माना। कारण था जातिगत मानसिकता।
चूंकि धनराम लोहार जाति से ताल्लुक रखता था जबकि मोहन ब्राह्मण जाति से । इसीलिए धनराम के मन में यह बात बचपन से ही बैठा दी गई थी कि वह चाहे कितना भी पढ़ लिख ले। अंत में उसे अपने पिता के लोहार का काम ही संभालना है जबकि मोहन ब्राह्मण पुत्र होने के कारण कर्मकांड और उच्च पदों में कार्य कर सकता हैं। इसीलिए दोनों में प्रतिस्पर्धा का सवाल ही नही था।
प्रश्न 3.
धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों ?
उत्तर –
एक दिन धनराम और मोहन , दोनों धनराम के ऑफर में बैठे पुराने दिनों को याद कर रहे थे। तभी धनराम एक छड़ी को मोड़कर उसे गोल आकार देने की कोशिश करने लगता है। लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद भी वह उस छड़ी को गोल आकार नहीं दे पाता है।
मोहन जो उसके पास ही एक कनस्तर में बैठा उसे ध्यान से देख रहा था। अचानक उसने धनराम के हाथ से उस लोहे की छड़ी को ले लिया और उसमें हथौड़े से चोट करने लगा। थोड़े प्रयत्न के बाद उसने उस छड़ी को गोल आकार दे दिया।
मोहन को इस तरह ऑफर में बैठकर लोहे का काम करता देखकर धनराम आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि मोहन एक ब्राह्मण परिवार से संबंध रखता था और ब्राह्मण परिवार से संबंधित होने के बावजूद वह इतनी अच्छी तरह से लोहे का काम करना जानता था।
प्रश्न 4.
मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है ?
उत्तर –
इस कहानी के अनुसार जब मोहन अपना गांव छोड़कर लखनऊ शहर पढ़ाई करने के लिए आता है तो उसका जीवन वाकई में पूरी तरह से बदल जाता है । वह अपने गांव के स्कूल का एक मेधावी छात्र था और उसका पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई – लिखाई पर ही केंद्रित रहता था।
जबकि लखनऊ पहुंचकर उसे रमेश के घर के कामों के अलावा पड़ोस की महिलाओं के कामों में भी हाथ बँटाना पड़ता था जिससे उसे पढ़ाई के लिए समय ही नहीं मिलता था। इसीलिए वह न तो ढंग से पढाई कर पाया और न ही अपने नए स्कूल में कोई खास पहचान बना पाया। गांव का यह होनहार बालक लखनऊ आकर एक मामूली घरेलू नौकर के जैसे जीवन जीने लगा।
प्रश्न 5.
मास्टर त्रिलोक सिंह की किस कथन को लेखक ने “जवान के चाबुक” कहा और क्यों ?
उत्तर –
“तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे ! विद्या का ताप कहां लगेगा इसमें” । मास्टर त्रिलोक सिंह के इस कथन को लेखक ने “जवान के चाबुक” कहा है। “गलता लोहा” कहानी के अनुसार मास्टर त्रिलोक सिंह ने यह व्यंग्य धनराम के ऊपर तब किया जब वह मास्टरजी को “तेरह का पहाड़ा” नही सुना पाया था।
जाति को लेकर किया गया मास्टर त्रिलोक सिंह का यह व्यंग्य , धनराम के मन को बहुत गहरा आघात पहुंचा गया । जिस कारण धनराम के मन में हीन भावना ने जन्म ले लिया। और फिर उसे भी यह लगने लगा था कि वाकई में पढाई – लिखाई उसके बस की बात नहीं हैं। इसीलिए वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका ।
प्रश्न 6.
“बिरादरी का यही सहारा होता है। …….”
(क)
किसने किससे कहा ?
उत्तर –
“बिरादरी का यही सहारा होता है…”। मोहन के पिता पंडित बंशीधर ने लखनऊ से आये अपनी बिरादरी के युवक रमेश से कहा था ।
(ख)
किस प्रसंग में कहा ?
उत्तर –
मोहन का नया स्कूल घर से बहुत दूर था। इसीलिए उसे स्कूल आने – जाने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। मोहन के पिता बंशीधर , मोहन को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। इसीलिए उन्हें हर वक्त अपने बेटे की पढ़ाई की चिंता सताती रहती थी।
एक दिन जब लखनऊ से घर आये उनकी ही बिरादरी के एक युवक रमेश ने उनसे सहानुभूति जताते हुए मोहन को आगे की पढ़ाई के लिए उसके साथ लखनऊ भेजने को कहा , तो वो अत्यंत प्रसन्न हो गए। उन्होंने कृतज्ञता जताते हुए रमेश से कहा कि “बिरादरी का यही सहारा होता है”।
(ग)
किस आशय से कहा ?
उत्तर –
कहानी के आधार पर बंशीधर के इस कथन का आशय यह हैं कि एक ही जाति बिरादरी का होने से अपने लोगों को कुछ ना कुछ फायदा अवश्य होता है। दुख के समय या कठिन परिस्थितियों में अपनी ही बिरादरी के लोग सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाते हैं। एक – दूसरे को सहारा देते हैं उनकी समस्याओं को सुलझाते हैं।
(घ)
क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है ?
उत्तर –
नहीं , कहानी के आधार पर यह कथन बिल्कुल गलत साबित हुआ। क्योंकि लखनऊ पहुंचते ही रमेश व उसके परिजन मोहन से एक घरेलू नौकर की भांति व्यवहार करने लगते है। सारा दिन वह घर के कामों में ही उलझा रहता है जिससे उसकी पढ़ाई – लिखाई बुरी तरह से प्रभावित होती है।
दूसरी ओर मोहन के पिता पंडित बंशीधर यह सोच कर खुश रहते हैं कि मोहन बहुत अच्छे से पढाई कर रहा हैं। और एक दिन वह बहुत बड़ा आदमी बन कर घर लौटगा। पिता को दुख ना पहुंचे इसीलिए मोहन ने पिता को कभी अपनी सच्चाई नहीं बताई।
प्रश्न 7.
“उसकी आंखों में एक सर्जन की चमक थी…….”। कहानी का यह कथन ….
(क)
किसके लिए कहा गया है ?
उत्तर –
कहानी में यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।
(ख)
किस प्रसंग में कहा गया है ?
उत्तर –
बहुत कोशिशों के बाद भी जब धनराम लोहे की छड़ी को गोला आकार नहीं दे पा रहा था तो मोहन ने अपना संकोच त्यागा और धनराम के हाथ से लोहे की छड़ी और हथौड़ा लेकर बड़ी कुशलता के साथ उसे गोलाकार दे दिया।
धनराम की आंखों में अपने इस कार्य की मौन प्रशंसा देखकर मोहन की आंखें खुशी से चमक उठी। जिसे लेखक ने “उसकी आंखों में एक सर्जक की सी चमक थी” कहा हैं ।
(ग)
यह पात्र विशेष के किन पहलुओं को उजागर करता है ?
उत्तर –
ब्राह्मण पुत्र मोहन द्वारा बड़ी ही कुशलता के साथ उस छड़ी को मोड़कर गोलाकार देने से यह बात स्पष्ट हो जाती हैं कि किसी भी खास व्यवसाय या पद का संबंध किसी जाति विशेष से नहीं होता है। निम्न जाति का व्यक्ति भी पढ़ – लिखकर अपनी मेहनत के दम पर उच्च पद पर आसीन हो सकता है जबकि ब्राह्मण पुत्र भी लोहार का काम बहुत आसानी से निसंकोच कर सकता है।
प्रश्न 8.
एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है। अपनी समझ से उसकी खूबियों और कमियों पर विचार करें ?
उत्तर –
“गलता लोहा” कहानी के आधार पर मास्टर त्रिलोक सिंह में कई खूबियों के साथ – साथ कई कामियों भी थी। मास्टर त्रिलोक सिंह एक परंपरागत शिक्षक थे। जो यह मानते थे कि बच्चों के हित के लिए उनके साथ सख्ती करनी आवश्यक है। वो बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए व उनकी पढ़ाई अच्छी तरह से करवाने के लिए उन्हें डांटने , मारने या कान खींचने में जरा सा भी नही हिचकते थे।
मास्टर त्रिलोक सिंह की सबसे बड़ी कमी यह थी कि वो कक्षा में सभी बच्चों को एक समान दृष्टि से ना देखते हुए जाति के आधार पर बच्चों में भेदभाव करते थे। वो कभी – कभार उन पर जातिगत टिप्पणियां भी करते थे। उन्होंने धनराम पर भी जातिगत व्यंग्य किया था। ब्राह्मण कुल से संबंध रखने के कारण ही वो मोहन पर बहुत अधिक प्यार लुटाते थे।
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प्रश्न 9.
पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से संबंधित हैं। किस का क्या प्रयोजन है। शब्द के सामने लिखिए ?
उत्तर –
धौंकनी –
इस यंत्र को मुंह में लगा कर इससे आंग को फूंका जाता है जिससे आग तेजी से जलने लगती है।
दरांती –
यह एक प्रकार का लोहे का औजार होता है जो मुख्य रूप से घास काटने या फसल काटने के काम आता है।
सँड़ासी –
यह लगभग कैंची के जैसा ही एक औजार होता है जिससे गर्म लोहे या गर्म वस्तु को पकड़ा जाता है।
आँफर –
लोहे के औजार व बर्तन बनाने की भट्टी।
हथौड़ा –
लोहे व लकड़ी से बना एक औजार जो लोहा या कोई अन्य धातु को पीटने के काम आता है।
प्रश्न 10.
पाठ में काट-छाँटकर जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है। कोई पांच शब्द पाठ से चुनकर लिखिए और अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए ?
उत्तर –
काट – छांटकर-
वैसे तो यह केक बिल्कुल सही बना है। मगर मैं इसे जरा काट – छांटकर गोल आकार देने की कोशिश करता हूं।
उलट – पलट –
तुम इस साड़ी को इतनी बार उलट-पुलट कर क्यों देख रहे हो। क्या इसमें कोई खराबी है।
पढ़ – लिखकर –
मुझे तो पढ़ – लिखकर एक दिन वैज्ञानिक बनना है।
उठापटक –
दिनभर यूँ उठापटक में क्यों लगे रहते हो। थोड़ी देर आराम से बैठ जाओ।
थका माँदा –
आज वह ऑफिस से बहुत थका – माँदा घर आया था । इसीलिए घर आते ही सो गया।
प्रश्न 11.
सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए निम्न वाक्यों को दोबारा लिखिए ?
उत्तर –
- “मोहन थोड़ी दही तो ला दे बाजार से” – आप थोड़ा दही तो ला दीजिए बाजार से।
- “मोहन ! ये कपड़े धोबी को दे तो आ ” – आप ये कपड़े धोबी को दे तो दीजिए।
- “मोहन एक किलो आलू तो ला दे” – आप एक किलो आलू तो ला दीजिए।
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