Ve Aankhen Class 11 Explanation : वे आँखें

Ve Aankhen Class 11 Explanation ,

Ve Aankhen Class 11 Explanation Hindi Aaroh 1 , वे आँखें कविता का भावार्थ कक्षा 11 हिन्दी आरोह 1

Ve Aankhen Class 11 Explanation

वे आँखें कविता का भावार्थ

Ve Aankhen Class 11 Explanation

Note –  

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“वे आँखें” कविता के कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इस कविता में कवि कहते हैं कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नही हुआ है। देश की सरकार व जिम्मेदार लोगों ने किसानों की भलाई व उसकी उन्नति के लिए कोई ठोस कदम नही उठाया। इसीलिए आज भी देश का अन्नदाता गरीब , निराश व हताश है।

आज भी उसे अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए महाजन से कर्ज लेना पड़ता हैं और कर्ज न चुका सकने की स्थिति में जमींदार व महाजन उसका घर , जमीन जायदाद , खेत खलिहान यहाँ तक कि उसके पशु भी बिकवा देते है। और उसके जीवन की सारी खुशियों छीन लेते हैं।

Ve Aankhen Class 11 Explanation 

काव्यांश 1. 

अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन ,

भरा दूर तक उनमें दारुण

दैन्‍य दु:ख का नीरव रोदन।

भावार्थ –

कवि सुमित्रानंदन पंत अन्नदाता यानी किसान की दयनीय स्थिति के बारे में बताते हुए कहते हैं कि किसान की आंखें अंधकार से भरी हुई उस गुफा के समान है जिसमें प्रकाश की कोई भी किरण नजर नहीं आती है। अर्थात किसान की आंखों में आशा या उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई देती है।

भयानक गरीबी , दुःख , दर्द व मौन रुदन से भरी हुई किसान की उन आंखों को देखकर कवि का मन डरने लगता है। अर्थात भयानक शोषण व उत्पीड़न के कारण निराशा व हताशा से भरी हुए उन आंखों को देखने का साहस कवि नहीं कर पाते हैं। इसीलिए कवि को उन आंखों में देखने से डर लगता है।

काव्य सौंदर्य –

“दारुण दैन्‍य दु:ख” में अनुप्रास अलंकार है। “अंधकार की गुहा” में उपमा अलंकार है।

काव्यांश 2. 

वह स्‍वाधीन किसान रहा ,

अभिमान भरा आँखों में इसका ,

छोड़ उसे मँझधार आज

संसार कगार सदृश बह खिसका !

भावार्थ –

देश की स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही किसान भी आजाद हुआ और उसे अपने खेतों का मालिकाना हक भी मिला । लेकिन उसकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति में बहुत अधिक सुधार नही हुआ। वह आज भी शोषित , उपेक्षित व निराश हैं।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि किसान की आखों में इस बात का बड़ा अभिमान (गर्व) दिखाई देता था कि अब वह एक आजाद किसान है जिसके पास अपने खेत -खलिहान हैं। लेकिन संसार के सभी लोग उसे दुःख व परेशानियों के मँझधार में छोड़कर उसी प्रकार उससे दूर चले गये जैसे कगार (नदी का ऊँचा किनारा /भाग ) मँझधार में डूबकर हट जाता है।

अर्थात स्वतन्त्र भारत में भी किसानों की समस्याओँ को सुलझाने का किसी सरकार या शाशन ने गंभीरता से प्रयास नहीं किया । जिस कारण उसकी आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई।

काव्य सौंदर्य –

“कगार सदृश” में उपमा अलंकार है।

काव्यांश 3. 

लहराते वे खेत दृगों में

हुया बेदख़ल वह अब जिनसे ,

हँसती थी उनके जीवन की

हरियाली जिनके तृन तृन से !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि फसल से लहलहाते वे हरे-भरे खेत- खलिहान आज भी किसान की आँखों में बसे रहते हैं जिनसे अब जमींदार ने उसे बेदखल कर दिया है। यानि उसके सारे खेत- खलिहान जमींदार ने उससे छींन लिए हैं। लेकिन उन फसलों से लदे हरे-भरे खेत- खलिहानों की याद उसे हमेशा आती हैं।

कवि आगे कहते हैं कि हरे – भरे फसलों से लहलहाते खेतों के एक- एक तिनके पर किसान की प्रसन्नता दिखाई देती थी । लेकिन किसान अपने जिन हरे भरे खेतों को देखकर खुश होता था। आज उन्हीं खेतों पर उसका कोई हक़ नही है । इसीलिए खेतों के छिन जाने के साथ ही उसके जीवन की सारी खुशियों भी चली गई।

यानि किसान की अमूल्य सम्पति उसके हरे – भरे खेत ही होते हैं। जब वो ही उससे छिन गये तो , वो कैसे प्रसन्न रह सकता है।

काव्य सौंदर्य –

“तृन तृन” में पुनरुक्त प्रकाश अलंकार हैं। “जीवन की हरियाली” में उपमा अलंकार है।

काव्यांश 4. 

आँखों ही में घूमा करता

वह उसकी आँखों का तारा ,

कारकुनों की लाठी से जो

गया जवानी ही में मारा !

भावार्थ –

जब जमींदार ने किसान से उसके खेत छीने तो किसान ने इसका विरोध किया। इससे क्रोधित होकर जमींदार के लोगों ने उसके इकलौते प्रिय बेटे को लाठियों से पीट- पीट कर मार डाला।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि किसान की आंखों में हमेशा अपने उस इकलौते प्यारे बेटे की छवि समाई रहती है जिसे भरी जवानी में जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला। अर्थात वह अपने मृत जवान बेटे को कभी नही भूल पाता है जिसको जमींदार के कारिंदों ने मार डाला था।

काव्य सौंदर्य –

“आँखों का तारा होना ” यानि अत्यधिक प्रिय होना “ मुहावरे का प्रयोग किया गया हैं। भाषा सहज व सरल है। 

काव्यांश 5. 

बिका दिया घर द्वार ,

महाजन ने न ब्‍याज की कौड़ी छोड़ी ,

रह रह आँखों में चुभती वह

कुर्क हुई बरधों की जोड़ी !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब जमींदार ने किसान को उसके खेतों से बेदखल कर दिया तो उसने महाजन से कुछ पैसा उधार लेकर अपने परिवार का भरण पोषण करने की कोशिश की।

लेकिन जब वह महाजन का कर्ज समय पर वापस न कर सका तो , महाजन (साहूकार) ने अपना पैसा ब्याज सहित वापस लेने के लिए उसका घर-द्वार सब बिकवा दिया। यानि किसान का घर – बार सब कुछ बेच कर साहूकार ने किसान से अपना एक – एक पैसा वसूल किया।

कवि आगे कहते हैं कि अब भी किसान की आंखों में अपनी बैलों की वह जोड़ी घूमती रहती है जिसे साहूकार ने नीलाम करने के लिए उससे छीन लिया था। ये सभी बातें किसान को अंदर ही अंदर दुख पहुंचाती हैं।

काव्य सौंदर्य –

“रह- रह” में पुनरुक्त प्रकाश अलंकार हैं । “आँखों में चुभना” मुहावरे का प्रयोग किया गया है। 

काव्यांश 6. 

उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती ?

अह , आँखों में नाचा करती

उजड़ गई जो सुख की खेती !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि किसान अपनी सफेद रंग की गाय को “उजरी” कहा करता था। उसका दूध वह स्वयं निकाला करता था क्योंकि वह गाय किसी और को दूध दुहने नहीं देती थी। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उसे भी बेचना पड़ा।

कवि कहते हैं कि अब तो उस किसान की आंखों में उन सुख भरे दिनों की सिर्फ सुनहरी यादें ही शेष रह गई हैं । यानि लहलहराते हरे – भरे खेत , घर , बैलों की जोड़ी , उजरी गाय आदि सब कुछ देखते ही देखते उजड़ गया। लेकिन उन सब की यादें अभी भी उसके दिल में गहरी समाई हुई है जो उसे व्यथित कर देती हैं।

काव्य सौंदर्य –

“सुख की खेती” में उपमा अलंकार है। “किसे कब” में अनुप्रास अलंकार है

काव्यांश 7. 

बिना दवा दर्पन के घरनी

स्‍वरग चली , – आँखें आतीं भर ,

देख रेख के बिना दुधमुँही

बिटिया दो दिन बाद गई मर !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि समय पर दवा न मिलने और ठीक तरह से देखभाल न होने के कारण उसकी बीमार पत्नी स्वर्ग सिधार गई और सही देखरेख के अभाव में उसकी दुधमुँही (दूध पीने वाली नन्ही बच्ची) बेटी भी पत्नी की मृत्यु के दो दिन बाद ही इस दुनिया से चल बसी।

यानि आर्थिक तंगी के कारण वह उन दोनों को बचा नही सका। लेकिन उन दोनों की यादें किसान को दुखी कर देती हैं और वह रो पड़ता है।

काव्यांश 8. 

घर में विधवा रही पतोहू ,

लछमी थी , यद्यपि पति घातिन  ,

पकड़ मँगाया कोतवाल ने ,

डूब कुँए में मरी एक दिन !

भावार्थ –

जवान बेटे , पत्नी और दुधमुँही बेटी की मृत्यु के बाद किसान के परिवार में सिर्फ पतोहू (यानि स्वर्गीय पुत्र की विधवा बहू)  ही बची थी जो स्वभाव व गुणों से लक्ष्मी स्वरूपा थी।

समाज ने उस पर भी अपने पति का हत्या का आरोप लगा दिया। कोतवाल ने अपने सिपाही भेजकर उसे थाने बुला लिया। जिस कारण उसे समाज में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा और एक दिन उसने भी कुंए में डूब कर आत्महत्या कर ली।

काव्यांश 9. 

खैर  , पैर की जूती , जोरू

न सही एक , दूसरी आती ,

पर जवान लड़के की सुध कर

साँप लोटते , फटती छाती !

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियां उस समय समाज में महिलाओं की सामाजिक स्थिति को बयान करती हैं। उस समय समाज में महिलाओं की स्थिति कितनी दयनीय रही होगी। इस बात का अंदाजा कवि की इन पंक्तियों से लगाया जा सकता हैं जिसमें उन्हें “पैर की जूती” के बराबर कहा गया है।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि किसान अपनी पुत्रबधू की मृत्यु पर सोचता है कि पत्नी तो पैर की जूती के समान होती है । जिस तरह एक जूती के फट जाने के बाद दूसरी जूती पहन ली जाती हैं। ठीक उसी तरह एक पत्नी के न रहने पर या मर जाने पर , दूसरी पत्नी आ सकती हैं । अर्थात अगर आज उसका पुत्र जीवित होता तो वह उसका दूसरा विवाह कर देता।

अपने जवान और प्रिय बेटे की याद आते ही उसकी छाती दुःख से फटने लगती है। और वह अपने युवा बेटे को याद कर व्याकुल हो जाता है।

काव्य सौंदर्य –

“पैर की जूती व साँप लोटना ” मुहावरों का प्रयोग प्रभावशाली तरीके से किया गया गया है।

काव्यांश 10. 

पिछले सुख की स्‍मृति आँखों में

क्षण भर एक चमक है लाती ,

तुरत शून्‍य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती ।

भावार्थ –

और अंत में कवि कहते हैं कि जब किसान को अपने बीते हुए सुख भरे दिनों की याद आती है तो क्षण भर के लिए उसकी आंखें खुशी से चमक उठती हैं। परंतु जैसे ही वह वर्तमान में लौटता है और उसे समझ आता है कि अब तो सब खत्म हो चुका है तो उसकी आंखों की चमक गायब हो जाती है और उसकी आंखें शून्य में खो जाती हैं।

यानि उसके दिमाग के सारे विचार खत्म हो जाते हैं और उसकी आँखें टकटकी लगाकर शून्य को निहारती रहती हैं।

बीते दिनों की मधुर स्मृतियों उसे अपने हृदय में किसी कांटे की नोंक की भांति चुभती हुई महसूस होती है जो उसे अत्यधिक दर्द पहुंचती हैं।

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