Bhaktin Class 12 Summary : भक्तिन का सारांश

Bhaktin Class 12 Summary :

Bhaktin Class 12 Summary

भक्तिन कक्षा 12 का सारांश

Bhaktin Class 12 Summary

Note –

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भक्तिन कहानी की लेखिका “महादेवी वर्मा जी” हैं। यह एक संस्मरणात्मक रेखाचित्र हैं। इस कहानी में उन्होंने अपनी सेविका भक्तिन के जीवन के उतार चढ़ावों , उसके आचार – व्यवहार व स्वभाव के बारे में लिखा है।

उन्होंने यह भी बताया हैं कि भक्तिन एक ऐसी झुझारू महिला थी। जिसने अपने जीवन के संधर्षों से कभी हार नही मानी। और अपना पूरा जीवन अपने उसूलों व अपने ग्रामीण संस्कृति के अनुसार ही जिया।

कहानी की शुरुआत करते हुए लेखिका कहती हैं कि भक्तिन छोटे कद व दुबले पतले शरीर वाली बहुत ही सादगी पूर्ण जीवन जीने वाली महिला थी। लेकिन लेखिका की सेवा वह कुछ इस तरह से करती थी जैसे पवन पुत्र हनुमान , राम जी की किया करते थे। यानि बिना थके रात दिन उनके लिए काम करती है।

लेखिका के पास जब वह पहली बार नौकरी के लिए आई तो उसने अपना नाम लक्ष्मी बताया था लेकिन वह नहीं चाहती थी कि उसे कोई उस नाम से पुकारे।

लक्ष्मी के गले में कंठी माला और उसका स्वभाव देखकर लेखिका ने उसका नाम भक्तिन रख दिया जिसे सुनकर वह बहुत खुश हो गई। महादेवी वर्मा जी ने इस कहानी को चार भागों में बांटा है।

सबसे पहले भाग में ………….

लेखिका ने भक्तिन के जन्म व उसकी शादी के बारे में बताया है।वह इलाहाबाद के झूंसी गाँव के एक गौपालक की इकलौती बेटी थी। 5 वर्ष की आयु में उसका विवाह हंडियां ग्राम के एक संपन्न गौपालक के पुत्र से हुआ। लेकिन छोटी आयु में उसके मां के मरने के बाद उसकी सौतेली मां ने महज नौ वर्ष की उम्र में उसका गौना (ससुराल भेज देना) करवा दिया।

भक्तिन की शादी के बाद भक्तिन के पिता बीमार रहने लगे और एक दिन उनकी मृत्यु हो गई लेकिन उनकी मृत्यु का समाचार सौतेली मां ने भक्तिन को नहीं दिया और सास ने भी पिता की मृत्यु का समाचार सीधे तो भक्तिन को नहीं बताया लेकिन उसने किसी बहाने से भक्तिन को मायके भेज दिया।

पिता से मिलने की आस में जब भक्तिन मायके पहुंची तो वहां पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर बहुत दुखी हुई। घर वापस पहुंचने पर उसने अपनी सास को खूब खरी-खोटी सुनााई।

कहानी के दूसरे हिस्से में ………

भक्तिन के शादीशुदा जीवन के बारे में बताया गया है। भक्तिन ने तीन बेटियों को जन्म दिया जिसके कारण उसे अपने परिजनों खासकर जेठानी व सास की उपेक्षा को सहन करना पड़ा था क्योंकि जेठानी के दो बेटे थे। और उन दिनों समाज में बेटियों को अहमियत नहीं दी जाती थी। इसीलिए भक्तिन व उसकी बेटियों के साथ भी हर चीज में भेदभाव किया जाता था। जहां जेठानी के बेटों को दूध मलाई और अच्छा भोजन दिया जाता था वही भक्तिन की बेटियों को मोटा अनाज खाने को दिया जाता था।

भक्तिन के खिलाफ उसके पति को भी परिवार के सदस्यों द्वारा उकसाया जाता था लेकिन भक्तिन का पति उसको बहुत प्यार करता था इसलिए वह उनके बहकावे में नहीं आता था। भक्तिन बाग-बगीचों , खेत-खलिहानों के साथ-साथ जानवरों की भी देखभाल करती थी।

उसने अपनी बड़ी बेटी का विवाह बड़े धूमधाम से किया लेकिन महज 36 साल की उम्र में भक्तिन के पति की मृत्यु हो गई। इसके बाद तो भक्तिन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन उसने किसी प्रकार अपनी दोनों बेटियों की शादी की और बड़े दामाद को घर जमाई बना कर अपने पास रखा।

कहानी के तीसरे भाग में ………..

दुर्भाग्यवश बड़ी बेटी का पति भी मर गया और वह विधवा हो गई। परिजनों ने संपत्ति के लालच में भक्तिन की विधवा बेटी का विवाह भक्तिन के जेठ के बड़े बेटे के तीतरबाज साले से करवाना चाहा जिसे उसने मना कर दिया।

लेकिन कुछ समय बाद वह तीतरबाज भक्तिन की बेटी के घर में धुस गया। उस समय भक्तिन घर में नही थी । हालाँकि बेटी ने उस तीतरबाज को धक्का देकर बाहर निकाल दिया लेकिन बात गांव में फैल गई। पंचायत बुलाई गई जिसने दोनों का विवाह कराने का आदेश दे दिया। भक्तिन और उसकी बेटी को न चाहते हुए भी पंचायत का यह फैसला मानना पड़ा।

शादी के बाद तीतरबाज दामाद ने धीरे धीरे भक्तिन की सारी सम्पत्ति उड़ानी शुरू कर दी। जिससे उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई। एक बार तो लगाना न दे पाने के कारण जमींदार ने उसे दिनभर कड़ी धूप में खड़ा रखा। भक्तिन ने इसे अपना अपमान समझकर और गांव छोड़ दिया। और लेखिका के घर आकर उनकी सेविका बन गई।

कहानी के चौथे हिस्से में ……

लेखिका कहती हैं कि उसकी वेशभूषा किसी सन्यासिन की तरह थी लेकिन उसमें वह एक सधी हुई गृहस्थिन भी थी। वह बहुत नियम-धर्म से चलने वाली महिला थी। वह सुबह जल्दी उठकर नहाती धोती थी। लेखिका को बिल्कुल गांव घर के जैसे ही खाना बनाकर खिलाती थी। यहाँ तक कि हॉस्टल की लड़कियों को भी खिलाती-पिलाती थी।

वह बहुत ही मेहनती , ईमानदार व स्वामिभक्त थी। लेखिका की सेवा करना ही अब उसका एकमात्र धर्म बन गया था। वह एक तरह से लेखिका की छाया बन चुकी थी। लेकिन यहां भी वह पूर्ण रूप से अपने गांव घर के संस्कारों का पालन करती थी।

भक्तिन की एक खासियत थी कि वह दूसरों के मन की तो नहीं करती थी लेकिन दूसरों से अपने मन की अवश्य करवा लेती थी। हर गलत बात को भी अपने तर्क से सही ठहरा देती थी। लेखिका अगर देर रात तक काम करती तो वह भी कंबल बिछाकर नीचे फर्श में बैठकर लेखिका के साथ रात भर जागती रहती थी और अगर उन्हें किसी चीज की जरूरत होती तो वह खुशी-खुशी लाकर उन्हें दे दी थी।

लेखिका के स्वतन्त्रता आंदोलनों में भाग लेने के कारण उनके जेल जाने की संभावना बनी रहती थी। लेकिन भक्तिन जेल जाने से बहुत डरती थी फिर भी वह लेखिका की सेवा करने के लिए जेल जाने को भी तैयार थी। वह कहती थी कि जहां मेरी मालकिन रहेगी , वही मैं भी रहूंगी , फिर चाहे वह कालकोठरी ही क्यों ना हो।

यहां तक कि वह लेखिका को छोड़कर अपनी बेटी व दामाद के साथ जाने को भी तैयार नहीं हुई। भक्तिन लेखिका के मित्र गणों का बहुत सम्मान करती थी । कहानी के अंत में लेखिका ,  भक्तिन और अपने गहरे संबंधों व बेहतरीन तालमेल के बारे में कहती हैं कि वह ऐसी स्वामिभक्त सेविका को खोना नहीं चाहती हैं।

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