Shirish Ke Phool Class 12 Question Answer ,
Shirish Ke Phool Class 12 Question Answer
शिरीष के फूल प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1.
लेखक ने शिरीष के फूल को “कालजयी अवधूत (सन्यासी)” की तरह क्यों माना है ?
उत्तर –
“कालजयी” अर्थात जिसने काल पर विजय पा ली हो और “अवधूत” यानि एक ऐसा सन्यासी जिसे सुख -दुख , अच्छे – बुरे से कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह हर स्थिति में एक समान रहता है। लेखक यहां पर शिरीष के फूल को “कालजयी अवधूत” इसलिए कहते हैं क्योंकि शिरीष का फूल बसंत (फरवरी -मार्च) के आगमन पर खिलता है अब भादो (अगस्त) तक खिला रहता है।
बसंत के बाद वह मई-जून की भयंकर गर्मी व लू के बाद जुलाई और अगस्त की प्रचंड बारिश को भी बहुत आराम से सहन करते हुए अपनी जगह अडिग खड़ा रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। उसके फूल अपनी कोमलता को बनाए रखते हुए सुंदर छटा वातावरण में बिखेरे रहते हैं। इसीलिए लेखक उसे “कालजयी अवधूत” कहते हैं।
प्रश्न 2.
“हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार में कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है।” प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें ?
उत्तर –
शिरीष का फूल वातावरण और मौसम की विपरीत परिस्थितियों यानि भयंकर गर्मी और लू को सहन करने के लिए बाहर से कठोर स्वभाव अपनाता है और अपने आप को वातावरण के अनुकूल ढाल कर अपने कोमल फूलों व उसके तंतुओं की रक्षा कर लेता है।
इसी तरह कभी-कभी इंसान को भी अपने अस्तित्व को बचाये रखने व विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। अन्यथा उसके लिए विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकलना कठिन हो जाता है। इसीलिए लेखक कहते हैं कि कभी-कभी ह्रदय की कोमलता को बचाए रखने के लिए अपने व्यवहार में कठोरता लानी आवश्यक हो जाती है।
प्रश्न 3.
द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरे जीवन में अविचल रहकर जिन्दा रहने की सीख दी है। स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर –
लेखक ने “शिरीष के फूल” के माध्यम से हम सब को एक स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है कि जिस तरह शिरीष का फूल सभी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों को सहते हुए अपनी जगह पर अडिग खड़े रहता है और अपने कोमल फूलों की खुशबू से सारे वातावरण को महकाए रखता है। उस पर चिलचिलाती धूप व घनघोर बरसात का कोई असर नही पड़ता हैं।
ठीक उसी प्रकार हमें भी अपने संकट के समय अविचल रहकर अपने धैर्य व विवेक से काम करते हुए सदैव अपने जीवन पथ पर अग्रसर रहना चाहिए। दुख हो या सुख , हार मिले या जीत कभी भी विपरीत परिस्थितियों के आगे अपने घुटने नहीं टेकने चाहिए। जब तक सफल ना हो जायें , तब तक निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए ।
प्रश्न 4.
“हाय ! वह अवधूत आज कहां”, ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?
उत्तर –
“हाय ! वह अवधूत आज कहां”, इस पक्ति में लेखक ने अवधूत “राष्ट्रपिता महात्मा गांधी” को कहा है क्योंकि महात्मा गांधी शारीरिक रूप से बहुत दुबले-पतले व कमजोर मगर दृढ़ इच्छा शक्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने अपने आत्मबल से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कई आंदोलनों का संचालन कर उन्हें सफल बनाया और इस देश में गांधीवादी मूल्यों को स्थापित किया। लोगों को सत्य अहिंसा का मार्ग दिखाया।
जबकि वर्तमान समय में चारों तरफ भ्रष्टाचार , हिंसा , अराजकता का माहौल है। लोगों में आत्मबल की कमी होती जा रही हैं। जबकि देहबल का प्रदर्शन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा हैं। लोगों ने गांधी जी द्वारा स्थापित जीवन मूल्यों को भुला दिया है। लेखक का मानना है कि आज के समाज में शांति व स्थिरता कायम करने के लिए गांधी जी के आदर्शों व विचारों की बहुत अधिक आवश्यकता है।
प्रश्न 5.
कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय , एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य कर्म के लिए बहुत ऊंचा मापदंड निर्धारित किया है। विस्तार से समझाइए ?
उत्तर –
लेखक का मानना है कि कवि बनने के लिए व्यक्ति के अंदर एक अनासक्त योगी जैसी स्थिर प्रज्ञता होनी चाहिए क्योंकि इसके बिना वह निष्पक्ष व सार्थक कविता या साहित्य की रचना नहीं कर सकता है। साथ ही साथ उसके पास एक विदग्ध प्रेमी का हृदय भी होना चाहिए जिसके बल पर वह सुंदरता के बाहरी आवरण को भेदकर अंदर तक की सुंदरता को आराम से झांक सके और फिर उसे अपनी कविता में समाहित कर एक कालजयी साहित्य की रचना कर सके।
सिर्फ शब्द लिखना या अच्छी तुकबंदी करने को लेखक कविता नहीं मानते हैं। इसीलिए लेखक कहते हैं कि कालजयी साहित्य की रचना करने के लिए व्यक्ति को एक अनासक्ति योगी की भांति स्थिर भी होना पड़ेगा और एक विदग्ध प्रेमी की भांति हृदय भी रखना पड़ेगा।
प्रश्न 6.
“सवग्रासी काल की मार से बचते हुए वहीं दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। ” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर –
समय परिवर्तन शील व गतिशील हैं। आज हर दिन स्थितियां ,परिस्थितियां बदल रही हैं। जीवन जीने के मापदंड भी बदल रहे हैं। पुराने रीति – रिवाज , जीवन – मूल्य व व्यवस्थाएं भी बहुत तेजी से बदल रहीे हैं और इस बदलाव के कारण कुछ पुरानी चीजें व व्यवस्थाएं अप्रासंगिक होती जा रही हैं और रोजमर्रा की जिंदगी से बाहर होती जा रही हैं।
ऐसे में मनुष्य को चाहिए कि वो भी इन बदलती परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल ले और समाज में आए बदलाव को सहर्ष स्वीकार कर ले। अगर कोई व्यक्ति इन बदलावों को अपनाने के बजाय पुराने तौर-तरीकों के साथ ही जीवन जीता है तो उसके लिए समय के साथ चलना बहुत कठिन हो जाता है।
इसीलिए व्यक्ति को अपनी पुरानी स्वस्थ परंपराओं के साथ-साथ समाज में आए नए बदलावों को भी सहर्ष स्वीकार कर उसके साथ आगे बढ़ना चाहिए। तभी उसका जीवन सुखमय होगा।
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प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए ?
(क)
दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहां बने हैं वही देर तक बने रहे तो काल देवता की आंख बचा पाएंगे। भोले हैं वो। हिलते डुलते रहो , स्थान बदलते रहो , आगे की ओर मुंह किये रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे की सरे।
आशय –
लेखक कहते है कि काल रूपी अग्नि और प्राण रुपी धारा का संघर्ष सदा चलता रहता है यानी जीवित रहने के लिए हर प्राणी संधर्ष करता रहता हैं लेकिन एक न एक दिन मृत्यु निश्चित हैं। मगर कुछ लोग इस सच को स्वीकार करना नही चाहते हैं।
मूर्ख व्यक्ति तो यही समझते हैं कि वो जहां भी टिके हैं वहीं टिके रहे तो मृत्यु से बच जाएंगे लेकिन ऐसा कदापि संभव नहीं है। यदि समय – समय पर स्थान परिवर्तन करते रहे और अपने जीने के ढंग में बदलाव करते रहे तो जीवन जीना आसान हो जाएगा । जीवन को एक ही ढर्रे पर चलाने से जीवन में नीरसता आ जाती हैं जो मृत्यु के समान ही हैं। गतिशीलता ही जीवन है।
(ख)
जो कवि अनासक्त नहीं रह सका , जो फक्क्ड़ नहीं बन सका , वह किए – कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया , वह भी क्या कवि है। मैं कहता हूं कि कवि बनना है मेरे दोस्तों तो , फक्क्ड़ बनो।
आशय –
लेखक का स्पष्ट मानना है कि किसी भी कालजयी साहित्य की रचना करने के लिए व्यक्ति के अंदर एक अनासक्त योगी के जैसी स्थिर प्रज्ञता और साथ में एक विदग्ध प्रेमी का हृदय भी होना चाहिए। अपने इन दोनों गुणों को समाहित कर वह बिना किसी भेदभाव के समाज के हित में एक सर्वश्रेष्ठ साहित्य की रचना कर सकता हैं।
लेखक कहते हैं कि जो पहले से चली आ रही परंपरा को पकड़ कर अपने काव्य की रचना करता हैं वो कभी भी कवि नही बन सकता हैं। कवि बनने के लिए फक्कड़ बनाना जरूरी हैं।
(ग)
फ़ल हो या पेड़ , वह अपने आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।
आशय –
लेखक कहते हैं कि अंतिम परिणाम का अर्थ समाप्त होना नहीं होता है। जो भी व्यक्ति यह समझता है वह मूर्ख है। फल हो या पेड़ , उनकी जीवन यात्रा यही बताती हैं कि संघर्ष की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है। इस प्रक्रिया से गुजर कर ही सफलता रूपी मीठे फल मिलते हैं।
प्रश्न 8.
शिरीष की तीन ऐसी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनके कारण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उसे “कालजयी अवधूत” कहा हैं ?
उत्तर –
शिरीष की तीन निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
- वह किसी अवधूत सन्यासी की तरह हर मौसम की कठोरता को सहन करते हुए जिंदा रहता है।
- वह भीषण गर्मी में भी सुंदर फूलों से लदा रहता है।
- कठिन से कठिन परिस्थिति में भी वो मस्त होकर अपना सम्पूर्ण जीवन जीता है।
प्रश्न 9.
लेखक ने शिरीष के माध्यम से किस दवंंद्व को व्यक्त किया है ?
उत्तर –
लेखक ने शिरीष के माध्यम से नई पीढ़ी व पुरानी पीढ़ी के बीच के दवंंद्व को दर्शाया है । शिरीष के पुराने फल अधिकार व लोभलिप्सा के कारण नए पत्तों व फलों को आसानी से जगह नही देते हैं। वो अपनी जगह तभी छोड़ते हैं जब नए फल उन्हें जबरदस्ती धक्के मारकर बाहर निकाल फेंकते हैं।
इसी तरह समाज , साहित्य व राजनीति में भी पुरानी पीढ़ी तब तक अपना स्थान नही छोड़ती जब तक नई पीढ़ी उन्हें जबरदस्ती धक्के मारकर बाहर निकाल नही फेंकती हैं । लेखक कहते हैं कि पुरानी पीढ़ी को स्वयं ही अपना स्थान नई पीढ़ी के लिए छोड़ देना चाहिए।
प्रश्न 10.
“ऐसे दुमदारों से तो लडूरे -भले”, इसका क्या आशय है ?
उत्तर –
लेखक यहां पर मोर का उदाहरण देकर यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि सौंदर्य क्षणिक न होकर स्थाई होना चाहिए क्योंकि सुंदर सजीला पक्षी मोर कुछ दिन सुंदर नृत्य करता है लेकिन बाद में अपनी सुंदर दुम (पंख) गंवाकर कुरूप हो जाता है। इससे अच्छा तो पूँछकटा या बिना पूँछ वाला पक्षी ही ठीक है क्योंकि उसे कुरूप होने की दुर्गति तो नहीं झेलनी पड़ती है।
प्रश्न 11.
कर्नाट राज की प्रिया विज्जिका ने ब्रह्मा , बाल्मीकि और व्यासजी के अतिरिक्त किसी को कवि क्यों नहीं माना ?
उत्तर –
कर्नाट राज की प्रिया विज्जिका ने केवल ब्रह्मा , बाल्मीकि और व्यासजी को ही कवि माना है क्योंकि ब्रह्मा जी ने “वेदों” की रचना की जो अथाह ज्ञान का भंडार है। बाल्मीकिजी ने “रामायण” की रचना की , जो भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं और महान वेदव्यास जी ने “महाभारत” की रचना की जो विश्व के सर्वश्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक है। इसकी विशालता व विषय व्यापकता आज भी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। इस तरह की रचनाओं का आज तक संसार में कोई और सृजन नही कर पाया है।
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