Joojh class 12 Summary ,
Joojh Class 12 Summary
जूझ कक्षा 12 का सारांश
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“जूझ” कहानी मूलरूप से मराठी उपन्यास “झोबी” से ली गई हैं। जिसके लेखक डॉ आनंद यादव हैं।इस मराठी कहानी का हिंदी अनुवाद केशव प्रथम वीर द्वारा किया हैं। डॉ आनंद रतन यादव का मूल नाम आनंदा रत्नाप्पा ज़काते हैं।
जूझ (अर्थात जूझना या संघर्ष करना) कहानी आनंद यादव की आत्मकथा का एक हिस्सा है । इस कहानी के जरिये आनंद यादव ने यह बताया है कि कैसे उन्होंने अपने बचपन के दिनों में स्कूल जाने व पढ़ने लिखने के लिए भी संधर्ष किया। और फिर अपनी लगन व मेहनत से साहित्य जगत में सर्वोच्च मुकाम हासिल किया।
कहानी की शुरुवात करते हुए आनंद यादव कहते हैं कि जब वो पाँचवी कक्षा में पढ़ते थे तो उनके पिता रत्नाप्पा (जिन्हें वो दादा कह कर बुलाते थे) ने उनका स्कूल जाना बंद करवा दिया ताकि वो घर व खेत के कामकाज में माँ का हाथ बंटा सकें । उनके पिता स्वयं तो घर का कोई काम नही करते थे। सारा दिन घूमने – फिरने , आराम व मौज – मस्ती करने में बिता देते थे।
आनंद यादव स्कूल जाना चाहते थे। इसीलिए एक दिन गोबर के कंडे थापने वक्त उन्होंने अपनी माँ से स्कूल जाने के विषय में बात करते हुए कहा कि अगर वो इस वक्त स्कूल नहीं गए तो फिर वो भी अपने पिता की तरह गरीब ही रह जायेंगे और अगर पढ़ लिख गए तो शायद जीवन में कुछ कर पायें ।
आनंद यादव की मां ने उन्हें समझाया कि अगर पढ़ाई – लिखाई के बारे में उनके पिता से बात की तो वो नाराज हो जायेगे। हालांकि मां चाहती थी कि बच्चा पढ़-लिख ले लेकिन वो आनंद यादव के पिता से डरती थी। इसीलिए खुल कर उसका साथ नहीं दे पा रही थी।
तभी लेखक (आनंद यादव) ने अपनी माँ को सुझाव देते हुए कहा कि क्यों न दोनों चलकर गांव के मुखिया दत्ता जी राव सरकार से बात कर उनको अपनी सारी परेशानियां बताएं। माँ को बेटे की सलाह पसंद आ गई और वो दोनों मुखिया के पास गये और उन्हें अपनी परेशानियां बता दी।
गांव के मुखिया समझदार थे और वो पढ़ाई -लिखाई का महत्व भी जानते थे। इसीलिए उन्होंने मां – बेटे को आश्वासन देकर यह कहते हुए घर भेज दिया कि जब आनंद यादव का पिता घर आये तो उसे मेरे पास भेज देना और साथ में उन्होंने आनंद यादव से कहा कि उसके थोड़ी देर बाद तू भी यहां आ जाना । चलते चलते आनंद यादव की माँ ने मुखिया से प्रार्थना की कि वो उनके यहां आने की बात आनंद यादव के पिता को न बतायें।
शाम को पिता के घर आने के बाद माँ ने उन्हें बताया कि मुखिया ने उन्हें बुलाया है। मुखिया का बुलावा , आनंद यादव के पिता के लिए सम्मान की बात थी सो वो सीधे उनसे मिलने चले गए। उनके पीछे – पीछे थोड़ी देर बाद आनंद यादव भी मुखिया के घर पहुंच गए।
आनंद यादव को देखते ही मुखिया ने उनसे सवाल किया कि वो कौन सी कक्षा में पढ़ते है। जबाब में लेखक ने उन्हें बताया कि उनके पिता ने उनकी पढ़ाई पाँचवीं कक्षा में ही छुड़वा दी हैं ताकि वो घर व खेत के कामकाज में हाथ बंटा सकें।
मुखिया ने लेखक के पिता को खूब डांटते हुए कहा कि बच्चे को तुरंत स्कूल भेजो और अगर तुम इसे पढ़ा नहीं सकते हो तो मैं इसे पढ़ाऊंगा। घर पहुंचकर पिता , बेटे को कुछ शर्तों के साथ स्कूल भेजने को राजी हो गए जैसे सुबह जल्दी उठकर घर के कामों में हाथ बाँटना , खेतों में पानी लगाना , जानवर चराना और घर पर अधिक काम होने पर विद्यालय नहीं जाना आदि।
सभी शर्तों को मानने के बाद आनंद यादव को स्कूल जाने दिया गया। आनंद यादव ने सारी शर्तें खुशी-खुशी मान ली और स्कूल जाने लगे। स्कूल में पहला दिन उनका अच्छा नहीं बीता क्योंकि उनके साथ के सभी बच्चे अगली क्लास में पहुँच चुके थे। और उस क्लास के सभी बच्चे उनसे छोटे थे। कुछ शरारती बच्चों ने उनके साथ शरारत करने का भी प्रयास किया और कुछ ने बुरा बर्ताव भी किया।
इसीलिए उन्होंने सोचा कि वो अगले दिन स्कूल नहीं जायेंगे मगर अगले दिन सुबह फिर तैयार होकर वो स्कूल पहुँच गए। धीरे -धीरे उनका परिचय अपनी कक्षा के एक होनहार छात्र बसंत पाटिल से हो गया। लेखक अब खूब मेहनत से पढ़ाई करने लगे। और टीचर उन्हें भी बसंत पाटिल के साथ अन्य बच्चों की काफी जाँचने को देते। धीरे -धीरे बसंत पाटिल के साथ उनका परिचय गहरी दोस्ती में बदलने लगा।
उनके स्कूल में न.वा.सौंदलगेकर नाम के एक टीचर थे जो उन्हें मराठी पढ़ाते थे। उनका पढ़ाने का तरीका बहुत अच्छा व सबसे हटकर था। वो मराठी और अंग्रेजी की कविताओं को पूरे ताल व लय के साथ गाकर सुनाते थे। साथ में अभिनय भी करते थे। वो खुद भी कविताएँ लिखते थे। उनको देखकर ही लेखक को कविताएं लिखने में रूचि पैदा हुई।
आनंद यादव उनकी क्लास में अपने आप को भूल जाते हैं और पूरी तल्लीनता के साथ उनकी बातों को सुनते और उनके गाने के तरीके , हावभाव , अभिनय सब याद कर लेते और फिर अपने खेतों में काम करते वक्त हूबहू अपने टीचर की नकल करते हुए उसका अभ्यास करते थे।
जहां पहले वो खेतों में काम करते वक्त किसी न किसी का साथ चाहते थे। अब अकेले रहना पसंद करने लगे क्योंकि खेतों में काम करते वक्त वो कविताओं को गाकर , नाचकर और कभी – कभी उन कविताओं पर अभिनय कर उसका आंनद लेते थे।
इसीलिए अब वो चाहते थे कि खेतों में उनके साथ कोई ना रहे ताकि वो अकेले में अपनी कविताओं की अच्छे से प्रैक्टिस कर सकें। इस तरह वो अभ्यास करते -करते कक्षा के सबसे होशियार बच्चों में शामिल हो गए हैं। और अपने टीचर के कुछ ज्यादा करीब आ गये । टीचर भी उन्हें प्यार से “आनंदा” कह कर पुकारते थे।
एक बार उनके टीचर ने अपने दरवाजे पर लगी मालती की बेल के ऊपर एक सुंदर सी कविता लिखी। आनंद यादव ने सोचा कि अगर टीचर अपने घर में लगी एक मालती की बेल के ऊपर इतनी सुंदर कविता लिख सकते हैं तो मेरे पास तो खेत खलियान , पेड़ पौधे और पूरा आकाश है तो मैं क्यों नहीं कवितायें लिख सकता हूँ ?
आनंद यादव ने कवितायें लिखनी शुरू कर दी। उनकी गहन रुचि देखकर उनके टीचर ने भी उन्हें रस , छंद , अलंकार आदि की बारीकियों सिखायी। अब वो दोनों अक्सर इसी बारे में बातें किया करते थे।
और इस तरह सीखते – सीखते एक दिन वह छोटा बच्चा जिसके पिता उसे पढ़ाना दिखाना नहीं चाहते थे , अपनी लगन व मेहनत से महान कथाकार व उपन्यासकर बन गया।
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