Gajal Class 12 Explanation ,
Gajal Class 12 Explanation
गजल का भावार्थ
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गजल के रचयिता रघुपति सहाय फ़िराक जी हैं जिन्होँने “फ़िराक गोरखपुरी” के नाम से अपनी रचनाएँ लिखी । गजल (गीत या कविता ) उर्दू की एक शैली (विधा) हैं जो दो पंक्तियों का समूह होती हैं। फ़िराक गोरखपुरी जी ने इस गजल में हिंदी – उर्दू शब्दावली का प्रयोग किया हैं।
गजल 1 .
नौरस गुंचे पंखडियों की नाजुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो – बू गुलशन में पर तोले हैं।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर ने प्रकृति के सौंदर्य का मनोहारी वर्णन किया है। शायर कहते हैं कि बसंत ऋतु के आगमन से नयी – नयी रस से भरी हुई फूलों की पंखुड़ियों अपनी नाजुक गाँठें खोल रही हैं । और उन कलियों के अंदर बंद रंग व खुशबू , भी अब बाग में उड़ने के लिए अपने पंख फैला रही हैं ।
यानि बाग़ में नयी – नयी कोमल कलियों खिल उठी हैं और उनके रंग व खुशबू से पूरा बगीचा महक उठा हैं।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू-फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- रंग व खुशबू का मानवीकरण किया गया है।
गजल 2 .
तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा – जर्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो ! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं ।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर ने तारों भरी रात का सुंदर वर्णन किया है। शायर कहते हैं कि रात में आसमान में हजारों तारे टिमटिमा रहे हैं और पृथ्वी का कण – कण सोया हुआ हैं।
ऐसे में ये मेरे दोस्तों !! रात की यह शान्ति या खामोशी हमसे कुछ कहना चाहती हैं। तुम इसे जरा ध्यान से सुनने की कोशिश करो।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- “जर्रा-जर्रा” में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- “सन्नाटे का बोलना” में मानवीकरण तथा विरोधाभास अलंकार है।
- तारों का मानवीकरण किया गया है।
गजल 3 .
हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर , कर्म करे बिना फल की इच्छा रखने वालों पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि मुझे और मेरी किस्मत , दोनों को एक ही काम मिला हुआ हैं। कभी किस्मत मुझे कोसती हैं और कभी मैं किस्मत को कोसता हूँ।
दरअसल शायर अपनी किस्मत को कोसते हैं कि उन्हें जो चाहिए था , वो उनकी किस्मत ने उन्हें कभी नहीं दिया और शायर की किस्मत शायर को कोसती हैं कि उसने कभी भी अपनी पूरी मेहनत से कर्म नही किया। इसीलिए शायर और उनकी किस्मत , कभी एक – दूसरे को कोसकर और कभी रोकर , एक – दूसरे से ही अपना दर्द बयां करते हैं।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- “किस्मत का रोना” में मानवीकरण अलंकार है।
- “हम हों या किस्मत हो हमारी” में अनुप्रास अलंकार हैं।
गजल 4 .
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर अपनी कमियों को देखे बैगर सदा दूसरों की बुराई करने वाले लोगो पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि जो लोग मेरी बुराई कर मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। काश वो इतना समझ पाते कि वो मेरा नही बल्कि अपना ही बुरा कर रहे हैं।
यानि शायर कहते हैं कि वो लोग दुनिया वालों के सामने मेरी बुराई कर मुझे बदनाम नही कर रहे हैं बल्कि अपना असली रूप दुनिया को दिखा कर अपना ही नुकसान कर रहे हैं।
क्योंकि यह तो सनातन सत्य हैं कि जो व्यक्ति आज आपके सामने दूसरों की बुराई कर रहा हैं वो व्यक्ति कल दूसरों से आपकी भी बुराई कर सकता हैं। यह समझना जरूरी हैं।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
गजल 5 .
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती – ए -होशो – हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर अपनी प्रिया (प्रेमिका) के वियोग से दुखी हैं। इसीलिए वो कहते हैं कि मैं इस वक्त तुमसे बहुत दूर हूँ जिसकी कीमत मैं अपने पूरे विवेक व होशो – हवाश के साथ चुका रहा हूँ। अर्थात शायर अपनी प्रिया के वियोग में दुखी हैं और आंसू बहाकर अपने “प्रेम की कीमत” अदा कर रहे हैं ।
शायर आगे कहते हैं कि तुझसे अथाह प्रेम करने वाले लोग पागल भी हो जाते हैं। यानि प्रेम में लोग अक्सर अपनी सुध – बुध खो बैठते हैं और दीवाने हो जाते हैं। इसीलिए अथाह प्रेम करने वालों को लोग पागल (दीवाना) कहते है।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- “कीमत अदा करना” एक मुहावरा है।
- इस छंद में वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता है।
गजल 6 .
तेरे गम का पासे – अदब हैं कुछ दुनिया का खयाल भी हैं
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके – चुपके रो ले हैं।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर अपनी प्रिया (प्रेमिका) से दूर हैं। इसीलिए वो कहते हैं कि मुझे तुझसे बिछड़ने का अथाह दुःख हैं फिर भी मैं इस दुःख का सम्मान करता हूँ। और मुझे इस दुनिया का भी ख्याल हैं।
इसीलिए मैं अपने इस दर्द को सबसे छुपा कर चुपचाप अकेले में रो लेता हूँ। अर्थात शायर अपने दुःख को दुनिया वालों को दिखाकर उसका (मुहब्बत) मजाक नही बनाना चाहता हैं। शायर नही चाहता हैं कि दुनिया वालें उसकी प्रिया के बारे में कोई गलत बात करें।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- “चुपके-चुपके” में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- इस छंद में वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता है।
गजल 7 .
फितरत का कायम हैं तवाजुन आलमे हुस्नो – इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं।
भावार्थ –
दुनिया में प्रेम व सौंदर्य का आपस में एक संतुलन होता हैं। और जो जितना अपने आप को प्रेम के लिए समर्पित करता हैं उसे बदले में उतना ही प्रेम मिलता हैं। यानि जो जितना दूसरों से प्रेम करता हैं उसे उतना ही प्रेम वापस मिलता हैं।
शायर कहते हैं कि प्रेम और सौंदर्य के संसार में भी हमेशा एक संतुलन कायम रहता है। इसमें हम उतना ही प्रेम पाते हैं जितना हम स्वयं को प्रेम के लिए समर्पित करते हैं।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- “खोकर पाने में” में विरोधाभास अलंकार है।
गजल 8 .
आबो – ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर पाठकों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि पाठको , तुम सिर्फ मेरी शायरी की ऊपरी चमक – धमक को मत देखो। तुम खुद भी बहुत समझदार हो । इसीलिए तुम सिर्फ मेरी शायरी के शब्दों को मत देखो। उसके अर्थ को ध्यान से समझने की कोशिश करो।
शायर कहते हैं कि जब उन्होंने असीम दुःख झेला। उनका हृदय रोया और उनका दुःख मोती बनकर आखों से बहा , तब जाकर कही इतनी सुंदर शायरी की रचना हुई।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- “आंसू रूपी मोती” रूपक अलंकार हैं।
- “आँखें रखना” एक मुहावरा है।
- “आबो-ताब” में अनुप्रास अलंकार है।
- इस छंद में वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता है।
गजल 9.
ऐसे में तू याद आए है अंजुमने – मय में रिंदों को
रात गए गर्दूं पै फ़रिश्ते बाबे – गुनह जग खोले हैं ।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर अपनी प्रेमिका से कहते हैं कि जब रात बहुत अधिक गहरा जाती हैं और आसमान में बैठे फ़रिश्ते इस दुनिया के गुनाहों का हिसाब किताब कर रहे होते हैं तो मैं महखाने (शराबखाना) में बैठ कर तुम्हें याद कर , तुम्हारे गम (दुःख) को भुलाने की कोशिश करता हूँ।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- “अंजुमने – मय , फरिश्ते , रिंदों , बाबे-गुनह , गर्दूं ” आदि फ़ारसी शब्दों का प्रयोग कर कविता को प्रभावशाली बनाया गया है।
- इसमें वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता है।
गजल 10 .
सदके फिराक एजाज – सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज
इन गजलों के परदों में तो “मीर” की गजलें बोले हैं।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में शायर खुद की प्रशंशा करते हुए कहते हैं कि हे फ़िराक !! मैं तुम्हारी गजलों में फ़िदा हूँ। तुमने इतना अच्छा लिखना कहाँ से सीखा। तुम्हारी गजलों को पढ़ते समय ऐसा लगता हैं जैसे इन गजलों को साक्षात् मीर साहब ने ही लिखा हो।
यानि फ़िराक साहब अपनी गजलों की तुलना मीर साहब (बहुत बड़े व माने जाने सम्मानीय शायर ) की गजलों से करते हैं। इस शेर में शायर का आत्मप्रशंसा का भाव दिखाई देता हैं।
काव्य सौंदर्य –
- यह गजल छंद है।
- इसमें उर्दू – फारसी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- “उड़ा लेना यानि चुरा लेना” एक मुहावरा है।
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