Diary Ke Panne Class 12 Summary : डायरी के पन्ने

Diary Ke Panne Class 12 Summary ,

Diary Ke Panne Class 12 Summary

डायरी के पन्ने कक्षा 12 का सारांश 

Diary Ke Panne Class 12 Summary

NOTE  – 

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सन 1947 में सबसे पहले “डायरी के पन्ने” किताब डच भाषा में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद सन 1952 में यह डायरी “द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल” नामक शीर्षक से दुबारा अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी और हिन्दी के इस पाठ के अनुवादक सूरज प्रकाश जी हैं। 

इस डायरी की खासियत यह है कि इस डायरी की लेखिका ऐन फ्रैंक ने हिटलर के अत्याचारों व द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका के परिणामों को खुद देखा व झेला भी। उन्हें बहुत छोटी सी उम्र में इतिहास के सबसे खौफनाक व दर्दनाक अनुभव से गुजरना पड़ा ।

ऐन फ्रैंक ने अपनी आप बीती को एक डायरी के माध्यम से पूरी दुनिया के लोगों तक पहुंचाया। धीरे – धीरे यह डायरी दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी जानी वाली किताबों की सूची में शामिल हो गई।

द्वितीय विश्वयुद्ध (1939 – 40) के समय नीदरलैंड के यहूदी परिवारों पर हिटलर के अत्याचार बढ़ गये थे। उसने गैस चैंबर व फायरिंग स्क्वायड के माध्यम से लाखों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया। इसीलिए यहूदी परिवार गुप्तस्थानों में छिप कर अपने जीवन की रक्षा करने को बाध्य हुए । 

यह कहानी दो परिवारों (फ्रैंक परिवार और वान दान परिवार) की है जिन्होंने लगभग दो वर्ष का समय अज्ञातवास में एकसाथ छुपकर बिताया था। ऐन फ्रैंक ने अज्ञातवास के उन्हीं दो वर्षों की अपनी दिनचर्या व जीवन के अन्य पहलूओं के बारे में इस डायरी में वर्णन किया हैं। मिस्टर वान दान , ऐन फ्रैंक के पिता के बिजनेस पार्टनर व अच्छे दोस्त थे।

यह डायरी 2 जून 1942 से लेकर 1 अगस्त 1944 तक लिखी गई है। 4 अगस्त 1944 को किसी की सूचना पर इन लोगों को नाजी पुलिस ने पकड़ लिया और 1945 में ऐन फ्रैंक की अकाल मृत्यु हो गई । यहाँ पर डायरी के कुछ अंशों को ही दिया गया हैं।  

Diary Ke Panne Class 12 Summary

ऐन फ्रैंक ने अपनी “किट्टी” नाम की गुड़िया को संबोधित करते हुए यह पूरी डायरी लिखी है। यह डायरी उसे उसके तेरहवें जन्मदिन पर उपहार स्वरूप मिली थी।

उनकी डायरी का पहला पन्ना  ………...

बुधवार , 8 जुलाई 1942 

अपनी डायरी के पहले पन्ने में किट्टी को संबोधित करते हुए ऐन फ्रैंक कहती हैं कि प्यारी किट्टी ,  रविवार को दोपहर 3 बजे उनकी सोलह वर्षीय बड़ी बहन मार्गोट को ए.एस.एस. से बुलावा आया था और उन्हें यातना शिविर में बुलाया गया था। और यह तो सभी लोग जानते हैं कि यातना शिविर में यहूदियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता हैं।

बस उस समय से ही हमारे जीवन में उथल पुथल मची हुई थी और अब हमें अपने घर में ही एक -एक पल काटना भारी लग रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे डच सैनिक कभी भी आकर मार्गोट को ले जा सकते हैं। 

पहले हमारी योजना 16 जुलाई को अज्ञातवास में जाने की थी। लेकिन अब हम जल्दी से जल्दी अपना घर छोड़कर अज्ञातवास में जाना चाहते थे। मिस्टर वान दान का परिवार भी हमारे साथ गुप्त आवास में आना चाहता था। 

इसीलिए हम दोनों परिवारों के सातों लोगों (ऐन ,ऐन के माता – पिता , बड़ी बहन मार्गोट , मिस्टर वान दान दंपत्ति , उनका बेटा पीटर) ने अपना – अपना जरूरी सामान समेटकर गुप्त आवास में जाने की तैयारी की । मिस्टर डसेल बाद में हमारे साथ रहने आये। 

ऐन फ्रैंक ने अपने थैले में एक डायरी , कर्लर , स्कूली किताबें , रुमाल और कुछ पुरानी चिठ्ठ्यों आदि भर ली क्योंकि लेखिका के लिए स्मृतियां , पोशाकों (कपड़ों) की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण थी। वो अज्ञातवास जाने के ख्याल से ही आतंकित थी। 9 जुलाई 1942 की सुबह वो अज्ञातवास को चल पड़े।  

गुरुवार , 9 जुलाई 1942

गुरुवार , 9 जुलाई 1942 को वो सभी लोग सामान से भरे अपने बड़े – बड़े थैलों को कंधों पर उठाये अज्ञातवास पर अपने नये गुप्त आवास की तरफ चल पड़े। उनके सीने पर चमकता हुआ पीला सितारा लगा हुआ था जो लोगों को उनकी व्यथा के बारे में बता रहा था। दरअसल हिटलर के शाशनकाल में यहूदियों को अपनी पहचान बताने के लिए सीने में पीला सितारा लगाना आवश्यक था।

उनका नया घर उनके पिता के ऑफिस की ही इमारत में था । यह भवन गोदाम व भंडार घर के रूप में प्रयोग किया जाता था। यहां इलाइची , लोंग और काली मिर्च वगैरह पीसी जाती थी। इसके बाद वो अपने नए घर का पूरा खाका अपने पत्र में देती हैं कि कमरे , सीढ़ियां व दरवाजे कहाँ – कहाँ हैं। कहाँ क्या काम होता हैं और उन्हें कौन से कमरे में रहना है।

शुक्रवार , 10 जुलाई 1942

डायरी के इस पत्र में ऐन फ्रैंक बताती हैं कि नए घर में पहुँचने के बाद उनका पहला व दूसरा दिन यानि सोमवार व मंगलवार का पूरा दिन नए घर में सामान व्यवस्थित करने में ही बीत गया। उनकी मां और बड़ी बहन बुरी तरह से थक गई थी मगर वो अपने पिता के साथ अपने नए घर को व्यवस्थित करने में लगी रही जिस कारण वह भी बुरी तरह से थक गई।

ऐन फ्रैंक कहती हैं कि बुधवार तक तो उन्हें यह सोचने की फुर्सत नहीं थी कि उनकी जिंदगी में कितना बड़ा परिवर्तन आ चुका है।

शनिवार , 28 नवंबर 1942

इस पत्र में ऐन फ्रैंक बताती हैं कि हम अपने नये घर में बिजली व राशन कुछ ज्यादा ही खर्च कर रहे हैं। उन्हें इन दोनों को किफायत से चलाना होगा वरना मुसीबत हो सकती हैं।

शाम 4:30 बजे अंधेरा हो जाता है मगर अज्ञातवास में होने के कारण वो रात में बिजली नही जला सकते हैं क्योंकि बिजली देखकर पड़ोसियों को उनके वहां होने का पता चल जायेगा। इसलिए वो रात को पढ़ भी नहीं सकती हैं। ऐसे में वो अन्य कामों को करने में अपना समय बिताने की कोशिश करती है।

ऐन फ्रैंक कहती हैं कि दिन में वो परदा हटा कर बाहर भी नहीं देख सकती हैं। इसीलिए उन्होंने रात में दूरबीन से पड़ोसियों के घरों में ताक झाँक कर अपना वक्त गुजारने का एक नया तरीका खोजा लिया हैं। 

यहाँ पर लेखिका मिस्टर डसेल के बारे में बताती हैं कि वो बच्चों से बहुत प्यार करते हैं लेकिन कभी -कभी वो उनके भाषण सुन – सुन के बोर हो जाती हैं क्योंकि वो हर समय अनुशासन संबंधी बातें ही करते हैं। वो थोड़े चुगलखोर टाइप के भी है जो उनकी सारी बातें उनके मम्मी पापा को बता देते हैं। उन्हें बार – बार उनकी बुराइयों व कमियों के बारे में बताया जाता हैं जो उन्हें बुरा लगता हैं। 

ऐन फ्रैंक कहती हैं कि मीन मेख निकालने वाले परिवार में अगर आप केंद में हों और हर तरफ से आपको दुत्कारा या फटकारा जाय तो , इसे झेलना आसान नहीं होता हैं।

लेकिन रात में बिस्तर पर लेटकर मैं अपने पापों , कमियों व कार्यों के बारे में सोचती रहती हूँ। मुझे अपने आप पर हंसना और रोना , दोनों आता है। यहाँ पर लेखिका खुद अपना आंकलन करती हैं जो उन्हें अपनी उम्र से कही अधिक परिवक्व बनता हैं। 

शुक्रवार , 19 मार्च 1943

इस पत्र में ऐन फ्रैंक बताती हैं कि टर्की इंग्लैंड के पक्ष में हैं , यह खबर फैल रही हैं। हजार गिल्डर के नोट अवैध मुद्रा घोषित हो गई हैं जो कालाबाजारी करने वालों के लिए बहुत बड़ा झटका हैं। साथ ही भूमिगत लोगों के लिए भी यह चिंता की बात हैं क्योंकि अब उनको भी इसके स्रोत का सबूत देना पड़ेगा।

लेखिका घायल सैनिक व हिटलर के बीच की बातचीत को रेडियो में सुनती है। घायल सैनिक अपने जख्मों को दिखाते हुए गर्व महसूस कर रहे थे। 

शुक्रवार , 23 जनवरी 1944

इस पत्र में ऐन फ्रैंक बताती हैं कि पिछले कुछ हफ्तों से उन्हें परिवार के वंश वृक्ष और राजसी परिवारों की वंशावली तालिकाओं में खासी रूची हो गई है। वो बड़ी मेहनत से अपने स्कूल का काम करती हैं और रेडियो पर बी.बी.सी. की होम सर्विस को भी समझती है। वो रविवार को अपने प्रिय फिल्मी कलाकारों की तस्वीरें देखने में गुजारती हैं।

हर सोमवार मिस्टर कुगलर उनके लिए “सिनेमा एंड थियेटर” की एक पत्रिका लाते हैं। हालाँकि परिवार के लोग इसे पैसे की बर्बादी मानते हैं। वो रोज नई-नई केश सज्जा बनाकर आती है तो सभी लोग उनका मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि वो अमुक फिल्म स्टार की नकल कर रही है जिससे उनका मन आहत होता हैं। 

बुधवार , 28 जनवरी 1944

इस पत्र में ऐन फ्रैंक बताती हैं कि हर दिन घर के आठ लोग अपनी वही पुरानी कहानी एक – दूसरे को सुनाते हैं जिसे सुनकर अब वो बोर हो चुकी हैं। नया सुनने व बोलने को कुछ नहीं हैं । इस बात से उनके मन की धुटन का पता चलता हैं। 

बुधवार , 29 मार्च 1944

इस पत्र में ऐन फ्रैंक बताती हैं कि कैबिनेट मंत्री मिस्टर बोल्के स्टीन ने लंदन से डच प्रसारण में कहा हैं कि युद्ध के बाद युद्ध का वर्णन करने वाली डायरी व पत्रों का संग्रह कर लिया जाएगा । यह खबर आते ही सबने उनकी डायरी को पढ़ना चाहा। लेकिन वो इस प्रसारण के बाद बहुत गंभीरता से अपनी डायरी में हर बात लिखने लगी। 

ऐन फ्रैंक अपनी डायरी को एक ऐसे शीर्षक के साथ छपवाने की बात करती है जिससे लोग उनकी कहानी को जासूसी कहानी समझेंगे । वो कहती हैं कि युद्ध के दस साल बाद लोग आश्चर्य चकित रह जायेंगे जब उन्हें पता चलेगा कि यहूदियों ने अज्ञातवास में कैसी जिंदगी बिताई।

बम गिरते समय औरतें कैसे डर जाती थी आदि । वो आगे बताती हैं कि सामान खरीदने के लिए घंटो लाइन में लगना पड़ता है। चोरी – चकारी की धटनाएँ काफी बढ़ गई हैं।  

मंगलवार , 11 अप्रैल 1944

इस पत्र में ऐन फ्रैंक बताती हैं कि शनिवार 2 बजे के आसपास गोलाबारी हुई थी। रविवार दोपहर उन्होंने अपने दोस्त पीटर को बुलाया। पीटर के आने के बाद उन्होंने काफी देर बातें की। दोनों ने मिलकर मिस्टर डसेल को परेशान करने की योजना बनायी।

उसी रात , उनके घर में सेंधमारी की घटना भी हुई जिसे वो गुप्त आवास में रहने की मजबूरी के कारण किसी को नही बता सकते थे। मगर इस धटना ने सभी लोगों को अंदर से हिला कर रख दिया। 

मंगलवार , 13 जून 1944

इस पत्र में ऐन फ्रैंक बताती हैं कि आज वो 15 वर्ष की हो गई है और उन्हें उपहार स्वरूप पुस्तकें , जैम की शीशी , बिस्कुट , सोने का ब्रेसलेट , मिठाइयां , लिखने की कॉपियां मिली है और पीटर ने उन्हें एक फूलों का गुलदस्ता भेंट किया।

मौसम खराब है और हमले जारी हैं । वो बताती है कि चर्चिल उन फ्रांसीसी गांवों में गए थे जो अभी अभी ब्रिटिश कब्जे से मुक्त हुए है। चर्चिल को डर नहीं लगता है। वो उन्हें जन्मजात बहादुर कहती हैं। ब्रिटिश सैनिक अपने मकसद में लगे हैं और हालैंड वासी सिर्फ अपनी आजादी के लिए लड़ रहे थे।

वो आगे कहती है कि वान दान व मिस्टर डसेल उन्हें धमंडी , अक्खड़ समझते हैं , मूर्ख समझते हैं। वो भी उन्हें मूर्खाधिराज कहती हैं। उन्होंने यहां पर अपने मन की बात लिखी हैं कि उन्हें कोई भी ढंग से नहीं समझता हैं और वो अपनी भावनाओं को गंभीरता से समझने वाले व्यक्ति की तलाश में हैं।

वो पीटर के बारे में बताती है कि पीटर उसे दोस्त की तरह प्यार करता है मगर वह उसकी दीवानी है। उसके लिए तड़पती है। पीटर अच्छा और भला लड़का है परंतु वो उसके धार्मिक तथा खाने संबंधी बातों से नफरत करती है। वह शांतिप्रिय , सहनशील और बेहद आत्मीय व्यक्ति है।  वह ऐन की गलत बातों को भी सहन करता है। वह बहुत अधिक घुन्ना है। वो दोनों भविष्य , वर्तमान और अतीत की बातें किया करते थे ।

ऐन फ्रैंक आगे कहती है कि काफी दिनों से वो बाहर नहीं निकली है। इसलिए वो प्रकृति को देखना चाहती है। एक दिन गर्मी की रात उन्हें चांद देखने की इच्छा हुई मगर चांदनी अधिक होने के कारण वो खिड़की नहीं खोल सकी। आखिरकार बरसात के समय खिड़की खोल कर बादलों की लुकाछिपी देखने का अवसर भी उन्हें डेढ़ साल बाद मिला।

वो कहती है कि प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेने के लिए अस्पताल व जेलों में बंद लोग तरसते हैं। आसमान , बादलों , चांद – तारों को देख कर उसे शांति और आशा मिलती है। प्रकृति शांति पाने की रामबाण दवा है। वह हमें विनम्रता प्रदान करती है। 

ऐन फ्रैंक कहती है कि “मौत के खिलाफ मनुष्य” किताब में उन्होंने पढ़ा था कि युद्ध में एक सैनिक को जितनी तकलीफ , पीड़ा और यंत्रणा से गुजरना पड़ता है उससे कहीं अधिक यातना और तकलीफ तो औरत बच्चा पैदा करने वक्त सहन करती है।

बच्चा पैदा करने के बाद औरत का आकर्षण समाप्त हो जाता है मगर फिर भी औरत मानव जाति की निरंतरता को बनाये रखती है । ऐन कहती है कि महिलाओं को भी एक बहादुर सैनिक के जैसे ही दर्जा व सम्मान मिलना चाहिए।

पुरुषों और महिलाओं के अधिकारों के बारे में वो कहती हैं कि उसे लगता है कि पुरुषों की शारीरिक क्षमता अधिक होती हैं जिस वजह से उन्होंने शुरू से ही महिलाओं पर शासन किया है। लेकिन अब समय बदल गया है। शिक्षा और प्रगति ने महिलाओं की आंखें खोल दी हैं।कई देशों ने महिलाओं को बराबरी का हक दिया है। आधुनिक महिलाओं , समाज में अपनी बराबरी चाहती हैं। 

इसका ये कतई मतलब नहीं कि औरतों को बच्चे पैदा करना , बंद कर देना चाहिए। यह प्रकृति का कार्य है और उसे यह कार्य करते रहना चाहिए। संसार के जिस हिस्से में हम रहते हैं वहां जन्म अनिवार्य है। यह टाला न जा सकने वाला काम है।

इसीलिए महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही सम्मान मिलना चाहिए। वो उन व्यक्तियों की भर्त्सना करती है जो समाज में महिलाओं के योगदान को मानने के लिए तैयार नहीं है। 

अंत में ऐन फ्रैंक विश्वास जताती है कि अगली सदी तक यह मान्यता बदल चुकी होगी कि सिर्फ बच्चे पैदा करना ही औरतों का काम हैं । औरतें ज्यादा सम्मान और सराहना की हकदार बनेगी।

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