Dandak Van Main Das Varsh Class 6 Summary :
Dandak Van Main Das Varsh Class 6 Summary (Bal Ramkatha)
दंडक वन में चौदह वर्ष कक्षा 6 सारांश (बाल रामकथा)
भरत के अयोध्या लौटने के बाद राम ने चित्रकूट के सभी मायावी राक्षसों का वध कर दिया। राम अब चित्रकूट में नहीं रहना चाहते थे क्योंकि अयोध्या वहाँ से ज्यादा दूर नही था जिस वजह से अयोध्या के लोग वहां बार-बार आते – जाते रहते थे और उनसे राय – मशवरा लेते रहते थे जो राम को राजकाज में हस्तक्षेप की तरह लगता था।
चित्रकूट भले ही बहुत ही सुरम्य , शांत और सुंदर जगह थी लेकिन फिर भी राम वहां से दूर चले जाना चाहते थे। उन्होंने चित्रकूट से दंडक वन जाने का निर्णय लिया। दंडकवन (दंडकारण्य) बहुत ही घना था। पशु -पक्षियों और वनस्पतियों से भरपूर उस वन में अनेक तपस्वियों के आश्रम थे। लेकिन उस वन में अनेक मायावी राक्षस भी रहते थे जो ऋषि – मुनियों की तपस्या और अनुष्ठानों में विघ्न – बाधा डालते रहते थे।
इसीलिए राम को दंडकवन में देखकर वहां के ऋषि -मुनीगण बहुत प्रसन्न हुए। ऋषि – मुनियों ने राम का खुले हृदय से स्वागत किया और उनसे मायावी राक्षसों से अपनी रक्षा करने का अनुरोध भी किया। राम दस वर्ष तक दंडकवन में रहे मगर वो समय-समय पर अपने आश्रम का स्थान बदलते रहे ।
एक दिन राम क्षऱभंग मुनि के आश्रम पहुंचे। आश्रम में बहुत कम तपस्वी बचे थे और वो भी निराशा और हताश थे क्योंकि राक्षसों ने वहाँ के अधिकतर ऋषि -मुनियों को मार डाला था। क्षऱभंग मुनि ने राम को हड्डियों का ढेर दिखाकर कहा कि हे !! राजकुमार यह सब उन ऋषियों के कंकाल है जिन्हें राक्षसों ने मार डाला है। अब यहां रहना हमारे लिए संभव नही है।
सुतीक्ष्ण मुनि ने भी राम को राक्षसों के अत्याचार की अनेक कथाएं सुनाई। उन्होनें राम को अगस्त ऋषि से मिलने की सलाह भी दी। पंचवटी जाते हुए राम की भेंट जटायु नाम के एक विशालकाय गिद्ध से हुई जिन्हें देखकर सीता डर गई। मगर जटायु ने उन्हें बताया कि वो राजा दशरथ के मित्र हैं और इस वन में उनकी सहायता करेंगे। राम ने जटायु को प्रणाम किया और आगे बढ़ गए।
पंचवटी में लक्ष्मण ने मिट्टी , बांस के खम्भों और पत्तियों से एक बहुत ही सुंदर कुटिया बनाई। कुटिया के आसपास सुंदर -सुंदर फूल व लताएं लगी थी। इसीलिय हिरण वहां घूमते और मोर नाचते रहते थे। वहाँ निवास करने के दौरान राम ने लगातार अनेक राक्षसों का संहार कर उस वन से राक्षसों का अस्तित्व ही खत्म कर दिया। अब वन में बहुत ही शांतिपूर्ण वातावरण था और ऋषि मुनि आराम से अपनीे तपस्या -साधना में मग्न रहते थे।
एक दिन राम , लक्ष्मण और सीता कुटी के बाहर बैठे थे और सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य को निहार रहे थे। तभी लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वहां आई और राम से बोली कि मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं। राम ने उसे बताया कि उनका तो विवाह हो चुका है । इसीलिए वो उससे विवाह नही कर सकते हैं।
राम के मना करने के बाद वो लक्ष्मण के पास गई। लक्ष्मण ने अपने को राम का सेवक बताकर उससे विवाह करने से मना कर दिया और उसे फिर से राम के पास भेज दिया। इस प्रकार वह बहुत देर तक राम और लक्ष्मण के बीच में इधर से उधर भागती रही और अंत में क्रोधित होकर सीता पर झपट पड़ी । मगर लक्ष्मण ने तत्काल शूर्पणखा के नाक – कान काट लिए।
खून से लथपथ सूर्पनखा रोते हुए अपने सौतेले भाई खर और दूषण के पास गई जो उसी वन में रहते थे। सूर्पनखा की यह दशा देखकर खर -दूषण अत्यधिक क्रोधित हो गये। उन्होंने राम – लक्ष्मण को मारने के लिए चौदह राक्षसों को भेजा परंतु वे सभी शीघ्र ही राम के हाथों मारे गए। उनके मारे जाने पर खर -दूषण स्वयं सेना लेकर राम से युद्ध करने पहुंचे। लेकिन वो राम के सामने कहां टिक पाते , जल्दी ही मारे गए।
कुछ राक्षस अपनी जान बचाकर भाग गए। इनमें से एक अकंपन नामक राक्षस ने जाकर सारी घटना रावण को बताई और उसे सीता के अपहरण की सलाह भी दी। रावण सीता के हरण को तुरंत तैयार हो गया और महल से चल पड़ा। रास्ते में उसकी भेंट ताड़का के पुत्र मारीच से हुई। ताड़का राक्षसी को राम ने पहले ही मार दिया था जिससे मारीच भी क्रोधित था लेकिन वह राम की शक्तियों से भी परिचित था। इसीलिय उसने रावण को सीता हरण न करने की सलाह दी। रावण ने मारीज की बात मान ली और चुपचाप लंका लौट गया।
लेकिन थोड़ी देर बाद सूर्पनखा रोती – चिल्लाती व विलाप करती लंका पहुंची। उसने रावण को अपना दुखड़ा सुनाया और राम – लक्ष्मण की वीरता की प्रशंसा करते हुए उसे सीता की सुंदरता के बारे में भी बताया। उसने रावण से झूठ बोलते हुए कहा कि वह सीता को उसके लिए लाना चाहती थी। इसीलिए लक्ष्मण ने उसके नाक कान काट दिए।
उसने रावण को अनेक तर्क देकर , उसे राम – लक्ष्मण से बदला लेने के लिए उकसाया। रावण , राम और लक्ष्मण से बदला लेने के लिए फिर से महल से निकाला और सीधे मारीच के पास पहुंचा और उसे अपनी मदद करने को कहा। मारीच जानता था कि वह दोबारा राम के सामने पड़ेगा तो मारा जाएगा लेकिन रावण की आज्ञा के सामने वह वेबस था।
रावण मारीच को लेकर पंचवटी गया। वहां जाकर मारीज ने मायावी सोने के हिरण का रूप धारण किया और राम , लक्ष्मण सीता की कुटिया के पास घूमने लगा। रावण तपस्वी (साधु) का भेष बनाकर एक पेड़ के पीछे छुप गया। सीता ने जब सोने के हिरन देखा तो वह उसपर मुग्ध हो गई। उन्होंने राम से उसे पकड़ कर लाने को कहा। राम – लक्ष्मण को वन में सोने के हिरन के होने पर कुछ संदेह तो हुआ मगर फिर भी सीता के लिए राम सोने का हिरण लेने चले गए।
कुटिया से निकलते समय राम ने लक्ष्मण को बुलाकर उन्हें सीता की रक्षा करने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि मेरे लौटने तक तुम सीता को अकेला मत छोड़ना। लक्ष्मण ने सिर झुकाकर राम की आज्ञा स्वीकार की । सीता कुटी के अंदर थी और लक्ष्मण धनुष लेकर बाहर पहरा दे रहे थे।
Dandak Van Main Das Varsh Class 6 Summary :
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