Ateet Mein Dabe Paon Class 12 Summary : अतीत में

Ateet Mein Dabe Paon Class 12 Summary ,

Ateet Mein Dabe Paon Class 12 Summary

अतीत में दबे पाँव कक्षा 12 का सारांश 

Ateet Mein Dabe Paon Class 12 Summary

Note –

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“अतीत में दबे पाँव” एक यात्रा वृतांत है जिसके लेखक ओम थानवी जी हैं। इस यात्रा वृतांत में ओम थानवीजी ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित सिंधु घाटी सभ्यता के एक महत्वपूर्ण स्थल “मोहनजोदड़ो” की अपनी यात्रा का सजीव वर्णन किया हैं ।

सिंधु घाटी सभ्यता को लगभग 5,000 साल पुरानी सभ्यता माना जाता हैं। इसमें दो सभ्यताएँ हड़प्पा सभ्यता (पंजाब प्रांत) और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित ) प्रमुख हैं।सिंधु घाटी सभ्यता को विश्व की सबसे पुरानी सुनियोजित नगरीय सभ्यता माना जाता है।

हड़प्पा में तो रेल लाइन बिछने की वजह से ज्यादा खुदाई नहीं हो पायी मगर मोहनजोदड़ो में विस्तृत खुदाई की गई । मोहनजोदड़ो की खुदाई का कार्य सन 1922 में राखलदास बनर्जी ने उस समय के पुरातत्व विभाग के निदेशक सर जॉन मार्शल के कहने पर किया।

मोहनजोदड़ो (मुर्दो का टीला) उस समय की ताम्रकालीन सभ्यता का सबसे बड़ा शहर था । जो करीब 200 हेक्टर क्षेत्र में फैला था और जिसकी आबादी लगभग 85,000 रही होगी । ऐसा माना जाता हैं कि अपने समय में मोहनजोदड़ो , घाटी की सभ्यता का केंद अर्थात राजधानी रही होगी। 

लेखक जब मोहनजोदड़ो घूमने गए तो वहाँ घूमते हुए उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे कि वो चुपके – चुपके 5,000 वर्ष पूर्व की सभ्यता में पहुँच गए हैं। लेखक कहते हैं कि ताम्रकालीन शहरों का सबसे बड़ा शहर अपनी बड़ी-बड़ी गलियों और इमारतों के बल पर , आज के महानगरों को भी मात देता हुआ नजर आता है।

मोहनजोदड़ो शहर “टीलों” पर बसाया गया है। ये टीले प्राकृतिक नहीं है बल्कि छोटे-छोटे मानव निर्मित टीले हैं जो कच्ची – पक्की ईंटों के बने हैं। ऐसा सिंधु नदी के बाढ़ के पानी के प्रकोप से बचने के लिए किया गया था।

लेखक मोहनजोदाड़ो की नगरीय सभ्यता – संस्कृति व जल संस्कृति के बारे में बताते हुए कहते हैं कि यह ताम्र कालीन नगरीय सभ्यता है। यहां के खंडहरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे यहां आज भी कोई रहता है। शहर की नियोजन व्यवस्था बहुत सुंदर हैं । यहां की चौड़ी -चौड़ी गलियों एक दूसरे को समकोण पर काटती है।

यहाँ के सभी घर पक्की ईंटों व लकड़ी से बनाए गए हैं जिनकी दीवारों काफी मोटी हैं। शायद दोमंजिले घर बनाने के लिए ऐसा किया गया हो। घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर न खुल कर पीछे की तरफ खुलते हैं । मुख्य सड़क पर बैल गाड़ियां चला करती थी। संयोग वश हमारा चंडीगढ़ शहर भी इसी तर्ज पर बना हुआ हैं। 

यहां पर इंसानी जरूरत का हर वह सामान मौजूद हैं जो कि किसी भी सभ्यता के फलने फूलने के लिए आवश्यक है मगर सारी वस्तुएँ बहुत छोटे – छोटे आकार में मौजूद हैं।

पूर्व दिशा में “अमीरों की बस्ती” बनी हुई हैं जिसमें बड़े – बड़े घर , चौड़ी सड़कें , अधिक कुएँ आदि हैं । जबकि आधुनिक युग में “अमीरों की बस्ती” पश्चिम दिशा में मानी जाती है । मगर मोहनजोदड़ो में ठीक इसका उलटा हैं।

यहां के लोग अपने सभी कार्य आपसी तालमेल से करते थे। लेखक के अनुसार यहां के लोग व्यापार करते थे। इन्हीं लोगों ने दुनिया को उन्नत खेती करना सिखाया। यहां पर एक विशाल कोठार भी हैं जिसमें कर के रूप में प्राप्त अनाज रखा जाता था। यहां कपास , गेहूं , जौ , ज्वार , सरसों , बाजरा , चने , खजूर , खरबूज , अंगूर आदि की खेती के प्रमाण भी मिले हैं। 

इस सभ्यता को अधिकतर विद्द्वान “खेतीहर और पशुपालक सभ्यता” मानते हैं । यहां लोहा नहीं पाया गया लेकिन पत्थर (सिंध) व तांबे (राजस्थान) के इस्तेमाल से कृषि के औजार बनाने के सबूत मिले हैं।

माना जाता हैं कि यहां के लोग बड़े ही शांतिप्रिय थे क्योंकि यहाँ हथियार जैसे कोई उपकरण नहीं मिले हैं। सैनिकों के सबूत भी नहीं मिले हैं । दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे प्राचीन कपड़ा (सूती कपड़ा) यहीं से प्राप्त हुआ है। पहला प्राचीन कपड़ा जाँर्डन से प्राप्त हुआ था। यहां रंगाई करने के भी सबूत मिले हैं।  

यहाँ के लोगों को ड्रेनेज सिस्टम (जल निकासी) के बारे में अच्छी जानकारी थी। हर घर में जल निकासी की उत्तम व्यवस्था देखने को मिलती है। जल निकासी के लिए नालियां बनाई गई हैं जो ढकी हुए हैं। 

नगर में एक 40 फुट लंबा और 25 फुट चौड़ा व सात फुट गहरा जलकुंड भी है।  माना जाता है कि यह किसी विशेष अनुष्ठान के लिए प्रयोग किया जाता होगा। इसकी दीवारें पक्की ईंटों से बनी हुई हैं। इसके पास ही आठ स्नानागार भी हैं। जलकुंड में गंदा पानी न जाये ,  इसकी भी व्यवस्था की गई है यानी साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा गया हैं। 

जलकुंड के पास ही एक कुआँ भी हैं जहां से शायद जलकुंड में पानी आता होगा। इसके अलावा यहाँ 700 कुँए व कई तालाब भी मिले हैं जो पक्की ईटों से बने हैं। यह संसार की पहली सभ्यता हैं जिसने कुँए खोदकर भूमिजल निकाला। इसीलिए सिंधु घाटी सभ्यता को “जल संस्कृति” भी कहते हैं।

लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता में न तो कोई भव्य राजमहल मिला और न ही कोई भव्य मंदिर या पिरामिड मिला। इस संस्कृति की खास बात यह थी कि यहां पर किसी तरह की कोई भव्यता या दिखावा नहीं दिखाई देता हैं। यानि मोहनजोदड़ो , सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा नगर है फिर भी इसमें भव्यता और आडंबर का नामोनिशान नही है।

यहाँ धातु एवं पत्थर की मूर्तियां एवं बर्तन मिले हैं जिसमें चित्रकारी की गई हैं। मोहरे , खिलौने  व अन्य साजो सामान आदि की वस्तुओं भी मिली हैं। यहाँ पर मिली एक नर्तकी की मूर्ति , राष्ट्रीय संग्रहालय (नई दिल्ली)  में रखी हैं। यहाँ पर मिली 50, 000 से अधिक चीजों दुनिया के अलग – अलग संग्रहालयों में रखी गई हैं । 

मोहनजोदड़ो में एक प्राचीन बौद्ध स्तूप भी है मगर यह कनिष्क कालीन है। इसी के बारे में जानकारी लेने राखलदास बनर्जी यहां आए थे। लेकिन जब इसे खोदा गया तो इसके नीचे उन्हें 5,000 साल पुरानी सभ्यता मोहनजोदड़ो का नगर देखने को मिला जिसकी नगर योजना अद्भुत व लाजबाब थी। 

लेखक के अनुसार सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्यबोघ हैं जो वहां की छोटी-छोटी वस्तुओं में देखने को मिलता है जो उस समय के समाज द्वारा निर्मित की गई है। 

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