Saharsh Swikara Hai Class 12 Explanation

Saharsh Swikara Hai Class 12 Explanation  ,

Saharsh Swikara Hai Class 12 Explanation

सहर्ष स्वीकारा है का सारांश 

Saharsh Swikara Hai Class 12 Explanation

Note-

  1. सहर्ष स्वीकारा है ” कविता के MCQ पढ़ने के लिए Link में Click करें – Next Page
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इस कविता के कवि गजानन माधव मुक्तिबोध जी हैं। इस कविता में कवि ने अपनी जिंदगी के सभी सुख-दुख , अच्छा -बुरा , खट्टा मीठा यानि जो कुछ भी उनकी जिंदगी में है। उसे सहर्ष  स्वीकार किया है क्योंकि वो अपनी इन सभी चीजों से अपने प्रिय को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।

यहाँ तक कि वो अपने जीवन के हर पहलू व अपने व्यक्तित्व को भी अपने प्रिय के प्रभाव से प्रभावित मानते हैं।उनके विचारों की सुंदरता और व्यक्तित्व में आयी दृढ़ता , जीवन में सीखे गंभीर अनुभव , उनके मन के भीतर बहने वाली भावों की सरिता (नदी) सब कुछ उनके प्रिय के कारण ही हैं।

सहर्ष स्वीकारा है का भावार्थ

काव्यांश 1. 

जिंदगी में जो कुछ है , जो भी है

सहर्ष स्वीकारा है ;

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

वह तुम्हें प्यारा है ।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मेरी जिंदगी में जो कुछ भी है सुख-दुख , अच्छा -बुरा , खट्टा मीठा यानि जो कुछ भी है। मैंने उन सभी को अपने जीवन में खुशी-खुशी स्वीकार किया है क्योंकि तुमने मुझे मेरी अच्छाइयों – बुराइयों , कमियां – खूबियों के साथ अपनाया है। मुझसे प्रेम किया।

काव्य सौंदर्य –

भाषा साहित्यक खड़ी बोली है। “सहर्ष – स्वीकारा” में अनुप्रास अलंकार है। साथ में मुक्तक छंद का प्रयोग किया गया है।

काव्यांश 2. 

गरबीली गरीबी यह , ये गंभीर अनुभव सब

यह विचार – वैभव सब

दृढ़ता यह  ,  भीतर की सरिता यह अभिनव सब

मौलिक है , मौलिक है

इसलिए कि पल – पल में

जो कुछ भी जागृत है अपलक है –

संवेदन तुम्हारा है  !!

भावार्थ –

यहां पर कवि अपनी गर्व से युक्त गरीबी से भरी जिंदगी के बारे में बात करते हुए कह रहे हैं कि उन्हें अपनी गरीबी या अभावग्रस्त जिंदगी पर भी गर्व है और इस जिंदगी को जीते हुए उन्होनें जो कुछ भी सीखा हैं या गंभीरता से अनुभव किया हैं। उनके विचारों में जो सुंदरता और व्यक्तित्व में दृढ़ता आयी हैं । उनके मन के भीतर जो प्रेम रूपी नदी बह रही है।

यह सब कुछ नया है। यह सब कुछ मौलिक (वास्तविक) है यानि उनके पास अच्छा या बुरा , दुःख या सुख जो भी है। वो सब उनका अपना है , वास्तविक है । 

कवि आगे कहते हैं कि प्रत्येक क्षण में जो कुछ भी मेरे अंदर जाग्रत हैं , निरंतर हैं। वो सब कुछ तुम्हारे ही प्रेम के कारण हैं। अर्थात कवि ने अपने जीवन में जो कुछ भी पाया है। वह सब उनके प्रिय की प्रेरणा का ही फल है।

काव्य सौंदर्य –

भाषा साहित्यक खड़ी बोली है। “गरबीली गरीबी  , विचार-वैभव ” , “मौलिक है , मौलिक है” में अनुप्रास अलंकार है। साथ में मुक्तक छंद का प्रयोग किया गया है। “विचार – वैभव और भीतर की सरिता” में रूपक अलंकार और “पल – पल” में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। कविता में श्रृंगार रस हैं।

 

काव्यांश 3. 

जाने क्या रिश्ता है , जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ ,  भर – भर फिर आता है

दिल में क्या झरना है ?
मीठे पानी का सोता है

भीतर वह , ऊपर तुम
मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात – भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है  ! 

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने प्रिय से अपने गहरे रिश्ते को प्रकट कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि मेरे और तुम्हारे बीच में क्या संबंध है। मैं इसे समझ नहीं पा रहा हूं। लेकिन मैं जितना भी तुम्हारे प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करता हूँ फिर उतना ही मेरा दिल प्रेम से भर जाता हैं।

और अब तो मुझे ऐसा लगने लगा है जैसे मेरे दिल में प्रेम का कोई झरना बह रहा हो। या मीठे पानी का कोई सोता (झरना) बह रहा हो। यहाँ पर कवि ने अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने से की है । जो सदैव प्रेम रुपी जल से भरा रहता है।

कवि अपने प्रिय के प्रेम से न केवल अपने अंतर्मन बल्कि बाहरी रूप से भी भीगा हुआ महसूस करते हैं। कवि कहते हैं कि उनके हृदय में तो उनके प्रिय का प्रेम हरदम समाया ही रहता हैं । और जिस तरह आसमान में चमकते हुए चांद की चांदनी रात भर धरती पर छाई रहती थी। ठीक उसी तरह उनके प्रिय के खिलते हुए चेहरे की मुस्कुराहट उन पर हरदम छाई रहती हैं और उनको प्रेरणा देती रहती हैं। 

यानि जिस तरह चांद की चांदनी रात भर धरती को रोशनी व शीतलता प्रदान करती है ठीक उसी प्रकार उनके प्रिय का मुस्कुराता चेहरा भी उनको खुशी प्रदान करता है। 

काव्य सौंदर्य –

“जाने क्या रिश्ता है , जाने क्या नाता है” में संदेह अलंकार है। “जितना भी उड़ेलता हूँ ,  भर – भर फिर आता है ” में विरोधाभास अलंकार है। “दिल में क्या झरना है ?” में प्रश्न अलंकार और “मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात – भर” में उत्प्रेक्षा अलंकार है। “भर – भर” में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

काव्यांश 4. 

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं  भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवी अंधकार – अमावस्या
शरीर पर , चेहरे पर , अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं , उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब

सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।

भावार्थ –

इन पंक्तियों में प्रिय के प्रेम से कवि का व्यक्तित्व पूरी तरह से प्रभावित हैं। वो सोचते हैं कि मेरे जीवन में जो कुछ भी हैं वो सब मेरे प्रिय के कारण ही हैं। इसीलिए वो अपने प्रिय के प्रेम के प्रभाव से बाहर निकलने के लिए , अपना खुद का अस्तित्व खोजने के लिए उन्हें भूल जाना चाहते हैं।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हे प्रिय !! तुम मुझे सजा दो कि मैं तुम्हें भूल जाऊं। वैसे तो तुम्हें भूलना मेरे लिए बहुत कठिन होगा। लेकिन फिर भी मैं चाहता हूं कि तुम मुझे यह सजा दो।

कवि कहते हैं कि मैं तुम्हें व तुम्हारी यादों को भूल जाना चाहता हूं और दक्षिणी ध्रुव की काली रात के अंधकार या फिर अमावस्या की काली अँधेरी रातों के अंधकार में खो जाना चाहता हूं। तुम्हें भूलने की पीड़ा को मैं अपने तन , चेहरे और अंतरात्मा में महसूस करना चाहता।

यहां पर कवि ने दक्षिण ध्रुवी अंधकार इसलिए कहा हैं क्योंकि दक्षिण ध्रुव पर 6 महीने दिन और 6 महीने की रात होती है और अमावस की रात भी बहुत अधिक काली व अंधेरी होती हैं।

कवि आगे कहते हैं कि मैं पूरी तरह से तुम्हारे प्रेम की छाया से धिरा हुआ हूँ। तम्हारे प्रेम की छाँव हर पल मेरे ऊपर हैं जो मुझे चारों तरफ से घेरे रहती हैं। लेकिन अब मुझसे तुम्हारे प्रेम का यह उजाला सहा नहीं जाता। यानि कवि अब अपने प्रिय के प्रेम के प्रभाव से बाहर निकल कर कल्पना लोक से बजाय यथार्थ के धरातल में जीना चाहते हैं । अपना खुद का अस्तित्व ढूँढ़ना चाहते हैं। 

काव्य सौंदर्य –

भाषा साहित्यक खड़ी बोली है। “दंड दो” ,”शरीर पर , चेहरे पर” में अनुप्रास अलंकार है। कविता में तत्सम शब्दावली और मुक्तक छंद का प्रयोग किया गया हैं। कविता में संबोधन शैली है।

काव्यांश 5. 

ममता के बादल की मँडराती कोमलता –
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती – सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !!

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हे प्रिय !! तुम्हारे प्रेम के बादल जो मँडरा कर हमेशा मेरे ऊपर प्रेम की वर्षा करते रहते हैं। अब ये सब मुझे भीतर ही भीतर पीड़ा देते हैं। जिस कारण मेरी अंतरात्मा भी कमजोर और क्षमताहीन हो गई हैं।

कवि जब अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं तो दुख से उनकी छाती झटपटाने लगती है। यानि उनका भविष्य कैसा होगा , उसकी कल्पना मात्र से ही अब उनको डर लगता है। इसीलिए कवि कहते हैं कि अब हर बात पर तुम्हारा मुझे बहलाना , सहलाना और आत्मीयता दिखाना , अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है।

यानि कवि को लगता हैं कि वो अपने आप कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं। और वो जो भी हैं अपने प्रिय के कारण ही हैं।

काव्य सौंदर्य –

भाषा साहित्यक खड़ी बोली है । मुक्तक छंद का प्रयोग किया गया हैं । कविता में संबोधन शैली का और तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है। “ममता के बादल” में रूपक अलंकार हैं। “मँडराती कोमलता , छटपटाती छाती , बहलाती – सहलाती आत्मीयता” में अनुप्रास अलंकार है।

काव्यांश 6. 

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने अस्तित्व को पूरी तरह से मिटा देना चाहते हैं और घने अँधेरों में खो जाना चाहते हैं। क्योंकि उनका पूरा अस्तित्व उनके प्रिय से प्रभावित हैं।

इसीलिए उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हे प्रिय !! तुम मुझे दंड तो , सजा दो ताकि मैं तुम्हें भूल सकूं। मैं पाताल के अंदर बनी हुई अँधेरी गुफाओं के अंदर बने हुए अँधेरे बिलों में जहाँ धुएं के काले बादल छाये हुए हैं। मैं उस घने अँधेरे में खो जाना चाहता हूं। लापता हो जाना चाहता हूं। तुम्हें भूलकर अपने अस्तित्व को मिटा देना चाहता हूँ ।

लेकिन मेरे जीवन की विडंबना तो यह है कि वहां भी मुझे तुम्हारा ही सहारा मिलेगा अर्थात उनका प्रिय हर पल , हर क्षण , चाहे वो कही भी रहें , वो उनके साथ रहता है। इसीलिए कवि कह रहे हैं कि वह कितना भी प्रयास कर लें । वह उससे अपने को अलग नहीं कर सकते हैं।

काव्य सौंदर्य –

भाषा साहित्यक खड़ी बोली है।मुक्तक छंद का प्रयोग किया गया हैं। “दंड दो” में अनुप्रास अलंकार हैं। “लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !! ” में विरोधाभास अलंकार है।

काव्यांश 7. 
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता – सा लगता हैं , होता – सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है , कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था , जो कुछ है
सहर्ष स्वीकार है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा हैं। 

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि वर्तमान में जो कुछ भी मेरे पास है और भविष्य में जो कुछ भी मेरे पास होगा। वह सब कुछ तुम्हारी ही प्रेरणा से मेरे जीवन में सम्भव होगा।

और मैने अपनी जिंदगी में जो कुछ भी सुंदर या अच्छे कार्य किये है। यानि मैंने जो कुछ भी पाया है उसकी प्रेरणा भी तुम ही हो। अब तक जिंदगी में जो कुछ था , जो कुछ है। मैने उसे सहर्ष स्वीकारा है।

इसीलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है। यानि तुमने मुझे मेरी कमियों , मेरी खूबियों के साथ स्वीकार किया है। मेरे सुख-दुखों को स्वीकार किया , मेरे जीवन के उतार-चढ़ावों में मेरा साथ दिया है। इसीलिए यह सब मुझे भी स्वीकार है।

काव्य सौंदर्य –

भाषा साहित्यक खड़ी बोली है। मुक्तक छंद का प्रयोग किया गया हैं।”कारण के कार्यों , सहर्ष स्वीकारा है” में अनुप्रास अलंकार है। “होता सा” में उपमा अलंकार है।

 

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