Gazal Class 11 Explanation ,
Gazal Class 11 Explanation Hindi Aaroh 1 chapter 7 , ग़ज़ल साये में धूप कक्षा 11 हिन्दी आरोह
Gazal Class 11 Summary (Saaye Main Dhoop)
ग़ज़ल साये में धूप कक्षा 11
Note –
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यह गजल दुष्यंत कुमार जी के गजल संग्रह “साये में धूप” से ली गई है। इस ग़ज़ल के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि भारत की आजादी के वक्त जिस खुशहाल भारत का सपना देखा था वो अभी तक पूरा नहीं हो पाया हैं। यहाँ लोग अभी भी मूलभूत सुख – सुबिधाओं से वंचित हैं। देश के विकास का दायित्व जिनके कंधों पर था वो भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुके हैं।
आम व शोषित जनता अभावों में जीने की आदी हो चुकी हैं। उन्हें यह विश्वास हो चुका हैं कि वो कुछ भी कर लें लेकिन इस व्यवस्था को बदल नहीं सकते हैं। इसीलिए अब उन्होंने विरोध करना भी छोड़ दिया हैं जो शासक वर्ग के लिए बहुत अच्छा हैं।
हालाँकि कवि लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना चाहते हैं ताकि वो सत्ताधारी लोगों से अपना हक ले सकें। एक सुखी व समृद्ध भारत , कवि का सपना हैं जहाँ हर आदमी प्रेम , स्वाभिमान व आत्मसम्मान के साथ जी सके।
Gazal Class 11 Explanation (Saye Main Dhoop)
ग़ज़ल साये में धूप कक्षा 11 का भावार्थ
शेर 1.
कहां तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए ,
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों उन नेताओं पर व्यंग्य किया है जो चुनाव के वक्त जनता को रंग-बिरंगे , लोक – लुभावने सपने दिखाते हैं मगर सत्ता में आते ही जनता से किए वादों को भूल जाते हैं।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि आजादी के वक्त हमारे नेताओं ने तय किया था कि हर घर में खुशियों के दीप जलाएंगे यानि हर घर में खुशहाली लाएंगे लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी हर घर तो छोड़िए , वो एक शहर तक को खुशहाल नहीं बना पाये।
यानि आजादी के वक्त नेता कहते थे कि भारत के प्रत्येक नागरिक को सभी प्रकार की सुख सुविधाओं दी जाएंगी , सबको समान अधिकार दिए जाएंगे , उनका जीवन खुशहाल बनाया जायेगा लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद भी सभी नागरिको को तो छोड़िए कुछ लोगों या एक शहर तक को भी जरूरी सुख सुविधाएं देकर उनका जीवन खुशहाल नही बना पाये । हमारे नेताओं ने जनता से किये अपने वादे पूरे नहीं किए।
काव्य सौंदर्य –
- उपरोक्त पंक्तियों में सिस्टम के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की गई है।
- हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।
- गजल शैली का प्रयोग है।
- “तो तय” में अनुप्रास अलंकार है।
शेर 2.
यहां दरख्तों के साए में धूप लगती है ,
चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि पेड़ों की छाया में भी हमें धूप लग रही है जबकि पेड़ों की छाया में हमें छाँव मिलनी चाहिए। यानी जिन राजनेताओं को हमने अपने लोक कल्याण , सुरक्षा व विकास के लिए चुना था। आज वही हमारा शोषण कर रहे हैं , भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। ऐसे समाज में जीना बहुत मुश्किल है।
कवि कहते हैं कि ऐसे समाज को छोड़कर कहीं दूर चले जाना चाहिए जो आपको खुशियों व सुख सुबिधायें नहीं दे सकता हैं। कवि भी इस समाज को छोड़कर कहीं दूर चले जाना चाहते हैं और फिर कभी लौटकर दोबारा यहां नहीं आना चाहते हैं। साथ में वो समाज के अन्य लोगों से भी ऐसे समाज को छोड़ने का आह्वान करते हैं।
काव्य सौंदर्य –
- हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।
- गजल शैली का प्रयोग है।
- विरोधाभास अलंकार है।
शेर 3.
ना हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे ,
यह लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि समाज के उन लोगों पर कटाक्ष करते हैं जो हर परिस्थिति में जीने के आदी होते है। उनके आसपास क्या हो रहा हैं। इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। वो अभाव में भी आराम से जी लेते हैं।
कवि कहते हैं कि अभाव में जीवन जीने के आदी इन लोगों के पास यदि पहनने को कमीज (कपड़े) नहीं होती हैं तो वो अपने पांवों को मोड़ कर अपने पेट को ढंक लेते हैं मगर शाशक वर्ग के खिलाफ आवाज तक नहीं उठाते हैं।
और ऐसे ही लोग , भ्रष्ट शाशक वर्ग के लिए बहुत अनकूल या अच्छे होते हैं क्योंकि वो उनका विरोध नहीं करते हैं या उस व्यवस्था के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर नहीं करते हैं।
काव्य सौंदर्य –
- हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।
- गजल शैली का प्रयोग है।
Gazal Class 11 Explanation
शेर 4.
खुदा नहीं , न सही , आदमी का ख्वाब सही ,
कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अगर लोग वर्तमान परिस्थितियों को बदल नहीं सकते हैं।या शासक वर्ग पर उनकी किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा है तो कोई बात नही। कम से कम वो सुंदर सपने तो देख ही सकते हैं।
कवि आगे कहते हैं कि अगर ईश्वर , इंसान की मनचाही मुराद पूरी नहीं कर रहा हैं तो कोई बात नहीं। कम से कम वह सपनों में ही सही , कुछ मनचाहे सुंदर दृश्य या नजारे देखकर खुश तो हो ही सकता हैं यानी इन्सान को सपने अवश्य देखने चाहिए भले वो पूरे हो या न हो।
काव्य सौंदर्य –
- हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।
- गजल शैली का प्रयोग है।
शेर 5.
वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता ,
मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिए।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि गरीब व शोषित वर्ग को यह विश्वास हो गया है कि हम कुछ भी कर लें लेकिन इन परिस्थितियों को नही बदल सकते हैं लेकिन मेरे अन्दर इन परिस्थितियों को बदलने की बेचैनी है।
कवि कहते हैं कि अगर हम सब मिलकर इस भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ आवाज उठायेंगे और हमारी आवाज में दम होगा तो ये परिस्थितियां अवश्य बदलेंगी।
यानि आम आदमी को यह विश्वास हो गया है कि अब परिस्थितियां नहीं बदल सकती है लेकिन मैं बेचैनी से इंतजार कर रहा हूं कि कब लोग एक साथ मिलकर सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाएं और फिर देखिए कैसे बदलाव आएगा और यह सिस्टम बदल जाएगा। कवि का यह व्यंग्य उन लोगों पर है जो मान बैठे हैं कि परिस्थितियां बदल ही नहीं सकती हैं।
काव्य सौंदर्य –
- हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।
- गजल शैली का प्रयोग है।
- “पत्थर पिघल” में अनुप्रास अलंकार है।
शेर 6.
तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की ,
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब भी कोई कवि या लेखक शासन की भ्रष्ट नीतियों के खिलाफ लोगो को जागरूक करने के लिए अपनी आवाज बुलंद करता हैं तो शाशन वर्ग उस कवि की जुबान बंद करने की कोशिश करता हैं। उसकी अभिव्यक्ति पर रोक लगा देता हैं।
इसीलिए कवि कहते हैं कि यह संभव हैं कि सत्ताधारी लोग अपनी सत्ता बचाये रखने के लिए मेरी जुबान बंद कर सकते हैं या मेरी अभिव्यक्ति की आजादी को छीन सकते हैं। कवि खुद मानते है कि इस सिस्टम को चलाए रखने के लिए ऐसी सावधानी करनी भी ठीक उसी प्रकार जरूरी है जैसे गजल के छंद (बहर) के लिए बंधन या मीटर की सावधानी करनी बहुत जरूरी है।
यानि गजल के छंद लिखने वक्त भी कई बातों का ध्यान रखना पड़ता हैं तब जाकर एक सुंदर व सधी हुई गजल बनती हैं।
काव्य सौंदर्य –
- हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।
- गजल शैली का प्रयोग है।
शेर 7.
जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले ,
मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।
भावार्थ –
यहाँ पर गुलमोहर शब्द का प्रयोग “स्वाभिमान या आत्मसम्मान” के अर्थ में प्रयोग हुआ है। उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि इन्सान को अपने घर में भी पूरे आत्मसम्मान व स्वाभिमान के साथ जीवन जीना चाहिए।
और अगर अपने घर के बाहर हमारी जान चली भी जाती हैं तो , वो भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए जाय यानि घर हो या बाहर , व्यक्ति को सदैव अपने स्वाभिमान व आत्मसम्मान के साथ जीना चाहिए।
काव्य सौंदर्य –
- हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।
- गजल शैली का प्रयोग है।
- यहाँ पर गुलमोहर शब्द “स्वाभिमान” के लिए प्रतीकात्मक रूप से प्रयोग हुआ है।
Gazal Class 11 Explanation
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