Bachpan Class 6 Summary Hindi Chapter 2 : बचपन का सारांश
Bachpan Class 6 Summary
बचपन का सारांश
बचपन पाठ की लेखिका “कृष्णा सोबती” जी हैं। यह पाठ मुख्य रूप से एक संस्मरण (लेखिका की बचपन की यादें) हैं। इस पाठ में लेखिका बताती हैं कि उन्होंने अपना बचपन कैसे बिताया। उन्हें बचपन में क्या – क्या चीजें पसंद थी और क्या चीजें पसंद नही थी। वो कैसे कपड़े पहनती थी और क्या काम करती थी। लेखिका ने जिस वक्त इस पाठ को लिखा , उस वक्त भी वो हमारी दादी या नानी की उम्र की थी यानि एक बुजुर्ग महिला।
इसीलिए लेखिका बचपन पाठ की शुरुवात में ही बताती हैं कि वो हमारी दादी , नानी , बड़ी बुआ या बड़ी मौसी की उम्र की महिला हैं। उनका जन्म पिछली शताब्दी (18 फरवरी 1925 (गुजरात) में हुआ था। इसीलिए वो आजकल यानि इस पाठ को लिखते वक्त अपने आप को सयाना (बुजुर्ग या उम्रदराज) मससूस करने लगी हैं।
वो बताती हैं कि उम्र के साथ – साथ उनकी रूचि (पसंद , नापसंद) में भी बदलाव आया हैं। पहले वो रंग -बिरंगे कपड़े पहनती थी। उन्हें नीला – जामुनी , ग्रे , काला और चॉकलेटी रंग बहुत पसंद था लेकिन अब उन्हें सफेद रंग के कपड़े ही अच्छे लगते हैं।
लेखिका ने अनेक तरह के कपड़े पहने हैं जैसे पहले फ्रॉक फिर निकर -वाँकर , स्कर्ट , लहँगे , गरारे और आजकल वो चूड़ीदार और घेरदार कुर्ते पहनती हैं। लेखिका को अपने बचपन की कुछ फ्रॉकों के रंग व डिजाइन आज भी याद हैं। उन दिनों फ्रॉक के ऊपर की जेब में रुमाल व बालों में रंग -बिरंगे रिबन लगाने का बड़ा फैशन था।
लेखिका को अपने मोज़े व स्टांकिंग की भी याद हैं क्योंकि उन्हें हर रविबार को अपने मोज़े खुद ही धोने पड़ते थे और अपने जूतों में पॉलिश भी करनी पड़ती थी। उन्हें आज भी जूते पॉलिश करना पसंद हैं। वो कहती हैं कि आजकल बाजार में नये -नये तरह के जूते आ चुके हैं जो काफी आरामदायक हैं। उनके समय के जूतों से कई बार पैर में छाले पड़ जाते थे। इन छालों से बचने के लिए वो अपने जूतों के अंदर रुई रख लिया करती थी।
लेखिका कहती हैं कि बच्चो , मेरे और तुम्हारे बचपन में काफी फर्क आ चुका हैं। हमें तो अपनी सेहत ठीक रखने के लिए हर शनिवार को आलिव ऑयल या कैस्टर ऑयल पीना पड़ता था जो बड़ा ही मुश्किल भरा काम होता था। मुझे उस ऑयल की खुशबू से ही उल्टी आने लगती थी।
हमारे समय में कुछ घरों में ग्रामोफोन हुआ करते थे मगर वह रेडियो और टेलीविजन का जमाना नही था। बचपन में हम कुल्फी खाते थे लेकिन अब आइसक्रीम का जमाना हैं। हम कचौड़ी -समोसा खाते थे लेकिन अब उसकी जगह पैटीज आ गई हैं। हम शहतूत , फाल्से और खसखस का शर्बत पीते थे लेकिन अब पेप्सी और कोक का जमाना आ गया हैं।
बचपन में लेखिका और उनके भाई -बहिनों की शिमला माल से ब्राउन ब्रेड लाने की ड्यूटी लगती थी जो उनके घर के पास ही था । लेखिका और उनके भाई -बहिनों को हफ्ते में एक दिन चॉकलेट खाने की भी छूट थी । सभी भाई -बहिनों में लेखिका के पास ही सबसे ज्यादा चॉकलेट व टॉफी हुआ करती थी। लेखिका को चना जोर गरम और अनारदाने का चूर्ण भी बहुत पसंद था।
लेखिका ने अपने बचपन में शिमला रिज में बहुत मजे किये । उन्होंने वहाँ घोड़े की सवारी का आनंद उठाया। शिमला रिज में एक ऊँचा चर्च भी था। चर्च में बजती घंटियों की गूँज दूर -दूर तक सुनाई देती थी जिन्हें सुनकर ऐसा लगता था जैसे इसके संगीत से प्रभु ईशु स्वयं कुछ कह रहे हो। शाम को शिमला रिज की रौनक देखते ही बनती थी।
स्कैंडल पॉइंट के सामने की दुकान में एक शिमला -कालका ट्रेन का मॉडल बना था। लेखिका कहती हैं कि उस समय हवाई जहाज भी कभी -कभी देखने को मिल जाते थे। उन हवाई जहाजों को देखकर ऐसा लगता था मानो पंख फैलाकर कोई भारी – भरकम पक्षी उडा जा रहा हैं।
गाड़ी के माँडलवाली दुकान के साथ ही एक और दुकान थी जहाँ लेखिका ने अपना पहला चश्मा एक अंग्रेज डॉक्टर से बनावाया था। शुरू -शुरू में लेखिका को चश्मा पहनने में कुछ अटपटा लगता था। हालाँकि डाँक्टर ने उन्हें आश्वासन दिया था कि थोड़े दिनों में ही उनका चश्मा उतर जायेगा मगर आज तक भी उनका चश्मा नही उतरा हैं । लेखिका इसके लिए खुद को ही जिम्मेदार मानती हैं क्योंकि वह दिन की रोशनी में पढ़ने के बजाय रात में टेबल लैंप में पढ़ना ज्यादा पसंद करती हैं।
लेखिका ने जब पहली बार चश्मा लगाया तो उनके चचरे भाई ने उन्हें लंगूर कह कर चिढ़ाया लेकिन धीरे -धीरे चश्मा उनके चेहरे के साथ धुलमिल गया। अब तो उन्हें बिना चश्मे के अपना चेहरा अच्छा नही लगता हैं। लेखिका को अब हिमाचली टोपियों पहनना पसंद हैं। इसीलिए उन्होंने अपने लिए कई रंग की टोपियों खरीद ली हैं।
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