Sudama Charit Class 8 Question Answer

Sudama Charit Class 8 Question Answer

सुदामा चरित कक्षा 8 प्रश्न उत्तर

Sudama Charit Class 8 Question Answer

Note –

  1. सुदामा चरित का भावार्थ व सारांश पढ़ने के लिए Click करें – Next Page
  2. “सुदामा चरित” कविता के भावार्थ को हमारे YouTube channel  में देखने के लिए इस Link में Click करें। YouTube channel link – (Padhai Ki Batein / पढाई की बातें)

प्रश्न 1.

सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई ? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर –

अपने परम मित्र सुदामा की दीनहीन दशा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत भावुक हो गये जिस कारण उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगे। उन्होंने सुदामा के पैरों में चुभे काँटों को एक-एक कर निकाला और फिर उन्हें धोने के लिए परात में पानी मँगवाया । मगर परात के पानी के बजाय श्रीकृष्ण ने सुदामा के पैर अपने आँसुओं से ही धो दिये।

प्रश्न 2.

“पानी परात को हाथ छुयो नहिं , नैनन के जल सों पग धोए”। पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर-

प्रस्तुत पंक्तियों के अनुसार सुदामा अपने घर से पैदल ही श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका नगरी पहुंचे थे जिस कारण उनके पैरों में जगह – जगह छाले पड़ चुके थे और अनगिनत कांटे भी चुभे हुए थे। सुदामा की दरिद्रता , दीनहीन दशा और उनके पैरों की हालत को देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत भावुक हो गए।

और उनकी आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। सुदामा के पैरों को धोने के लिए श्री कृष्ण ने एक परात (पीतल का बर्तन) में पानी मंगवाया लेकिन श्रीकृष्ण की आंखों से बहने वाले आंसूओं से ही सुदामा के पैर धुल गए। 

सरल शब्दों में कहें तो सुदामा की दरिद्रता , उनकी दीनहीन दशा और उनके पैरों की हालत देखकर श्रीकृष्ण का हृदय रो पड़ा। 

प्रश्न 3.

“चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।”

(क)

उपर्युक्त पंक्ति कौन , किससे कह रहा है ?

उत्तर-

उपर्युक्त पंक्तियां श्रीकृष्ण व उनके बालसखा सुदामा की बातचीज का एक अंश हैं। जिसमें श्रीकृष्ण सुदामा से उपर्युक्त पंक्तियों कह रहे हैं।

(ख)

इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

इस कथन की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह हैं । घर से चलते वक्त सुदामा की पत्नी ने कृष्ण को भेंट स्वरूप चावल भिजवाए थे जिन्हें उसने एक पोटली में बांधा था। सुदामा ने वह पोटली अपने बगल में छुपा रखी थी।

द्वारिका पहुंचकर जब सुदामा ने कृष्ण के वैभवशाली राजमहल , वहाँ की सुख-सुविधाओं को देखा तो वो संकोच बस अपनी पत्नी की दी हुई भेंट श्रीकृष्ण को नहीं दे पा रहे थे। लेकिन श्री कृष्ण को सुदामा की मन स्थिति का एहसास हो चुका था।

इसीलिए श्री कृष्ण उन पर चोरी का झूठा आरोप लगाते हुए कहते हैं कि “लगता हैं तुम चोरी करने में पहले से अधिक निपुण हो गए हो। इसीलिए भाभी का दी हुई भेंट भी मुझे नहीं दे रहे हो”।

(ग)

इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है ?

उत्तर-

इस शिकायत के पीछे एक पौरोणिक कथा है। कृष्णा और सुदामा बालसखा थे और उन्होंने एक ही गुरुकुल में रहकर शिक्षा दीक्षा ग्रहण की। शिक्षा ग्रहण करने के दौरान वो अक्सर गुरुकुल के कामों में भी हाथ बटांते थे।

एक बार जब श्रीकृष्ण और सुदामा जंगल से लकड़ियाँ लेने गये । तब गुरूमाता ने उन्हें रास्ते में खाने के लिए कुछ चने दिए। सुदामा ने श्री कृष्ण को ना तो चनों के बारे में बताया और न ही उन्हें चने खाने को दिए। सुदामा सारे चने चुपके-चुपके अकेले ही खा गये ।

बस उसी बात को याद कर मुस्कुराते हुए श्रीकृष्ण सुदामा से कहते हैं। हे सखा !! बचपन की तुम्हारी चोरी की आदत अभी गई नहीं । लगता है समय के साथ-साथ तुम चोरी करने में और अधिक प्रवीण हो गए हो। 

प्रश्न 4.

द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे ? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे ? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।

उत्तर –

द्वारका से खाली हाथ लौटने के बाद रास्ते भर सुदामा मन ही मन बहुत दुखी थे और कृष्ण से नाराज भी थे। वो इस बात को समझने का प्रयास कर रहे थे कि एक तरफ तो कृष्ण उनसे मिलकर बहुत खुश हुए , उनका खूब आदर सत्कार किया और दूसरी तरफ राजा होकर भी कृष्ण ने उन्हें खाली हाथ विदा क्यों किया।

फिर वो सोचने लगे कि बचपन में घर-घर जाकर माखन मांग कर खाने वाला भला मुझे क्या देगा ? इसी के साथ उन्हें अपनी पत्नी पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। वो सोच रहे थे कि वो कृष्ण से सहायता मांगने द्वारिका आना ही नहीं चाहते थे। लेकिन उसने ही जबरदस्ती उन्हें यहाँ भेजा।  इसीलिए अब घर पहुंचते ही उससे (पत्नी से) कहूंगा कि कृष्ण ने बहुत सारा धन दिया है। अब ले इसे संभाल कर रखना।  

प्रश्न 5.

अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

जब सुदामा अपने गांव वापस पहुंचे तो उन्होंने वहां पर भी द्वारिका नगरी जैसे ही भव्य व वैभवशाली महलों को देखा। सारी सुख सुविधाओं के साथ हाथी , घोड़े , द्वारपाल महल के द्वार पर खड़े देखकर सुदामा को यह भ्रम हुआ कि वो रास्ता भूल कर वापस फिर से द्वारिका नगरी तो नहीं पहुंच गए हैं।

लेकिन उन महलों की भव्यता को देखने की लालसा में जब वो थोड़ा अंदर गए तो , उन्हें समझ आया कि ये उनका अपना ही गांव है। इसके बाद वे अपनी झोपड़ी को ढूंढने लगे। लोगों से अपनी झोपड़ी के बारे में पूछते , लेकिन किसी ने भी उन्हें उनकी झोपड़ी के बारे में कुछ नहीं बताया और वो खुद भी अपनी झोपड़ी को नहीं ढूंढ पाये। 

प्रश्न 6.

निर्धनता के बाद मिलने वाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर –

द्वारकाधीश श्री कृष्ण की कृपा से सुदामा के पास अब सारी सुख सुविधाएं मौजूद थी । एक टूटी फूटी झोपड़ी में निवास करने वाले सुदामा के पास अब आलीशान महल था। जिस सुदामा के पास पैरों में पहनने को चप्पल नहीं होते थे। आज उसके दरवाजे पर हरवक्त महावत हाथी लेकर खड़ा रहता था।

पहले कठोर जमीन पर भी अच्छी नींद आ जाती थी लेकिन अब नर्म बिस्तर पर भी नींद नहीं आती है। जहां पहले दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता था। वहां अब ढेर सारे स्वादिष्ट व्यंजन श्री हरि की कृपा से नसीब हुए है। लेकिन सुदामा को अब ये सब कुछ अच्छा नहीं लगता था । वो तो श्री कृष्ण की लीला को समझ चुके थे इसीलिए उनकी भक्ति में दिनरात लीन रहने लगे। 

अनुमान और कल्पना

प्रश्न

“कहि रहीम संपति सगे , बनत बहुत बहु रीत।

विपति कसौटी जे कसे तेई सांचे मीत।।”

इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई हैं । इस दोहे से “सुदामा चरित्र” की समानता किस प्रकार दिखती है ? लिखिए। 

 उत्तर –

उपरोक्त दोहे में रहीमदासजी कहते हैं कि जब आप के पास धन , दौलत , शोहरत सब कुछ होता है। तब आपके पास मित्रों की कोई कमी नहीं होती। सच्चे मित्र की पहचान तो विपत्ति आने में ही होती हैं। सच्चा मित्र संकट आने पर कभी भी आपका साथ नहीं छोड़ता है। आप पर आने वाले हर संकट को टालने की कोशिश करता है।

“सुदामा चरित्र” में भी सुदामा आर्थिक रूप से संकट से घिरे हुए थे। उनके पास न तो रहने के लिए एक अच्छा मकान , न पहनने के लिए कपड़े और ना ही खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन था। ऐसी विपत्ति की घड़ी में जब वो श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे।

तब भगवान श्री कृष्ण ने बिना कुछ कहे ” मित्रता का धर्म” निभाते हुए सुदामा को अथाह धन दौलत , महल व सुख सुविधाएं प्रदान कर दी। सच्चे मित्र की यही पहचान है। चाहे वक्त कितना भी बुरा क्यों ना हो , वह अपने दोस्त का साथ कभी नहीं छोड़ता हैं। 

भाषा की बात

प्रश्न

“पानी परात को हाथ छुयो नहिं , नैनन के जल सो पग धोए”।

ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए। 

 उत्तर –

“के वह टूटी सी छानी हती , कहँ कंचन के अब धाम सुहावत”। 

यह अतिशयोक्ति अलंकार का बहुत अच्छा उदाहरण है क्योंकि इसमें “टूटी झोपड़ी की तुलना सोने के समान चमकने वाले महल से की गई हैं। जो अतिशयोक्ति है।

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