Chitthiyon Ki Anoothi Duniya Class 8 Summary

Chitthiyon Ki Anoothi Duniya Class 8 Summary :

Chitthiyon Ki Anoothi Duniya Class 8 Summary 

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया कक्षा 8 सारांश 

Chitthiyon Ki Anoothi Duniya Class 8 Summary

Note –  “चिट्ठियों की अनूठी दुनिया” कविता के भावार्थ को हमारे YouTube channel  में देखने के लिए इस Link में Click करें।YouTube channel link –  ( Padhai Ki Batein / पढाई की बातें)

“चिट्ठियों की अनूठी दुनिया” के लेखक अरविंद कुमार सिंह हैं। “चिट्ठियों की अनूठी दुनिया” मूलतः एक निबंध है जिसमें लेखक ने चिट्ठियों के महत्व को समझाया है। लेखक कहते हैं कि पत्रों (Letters) की दुनिया एक बहुत अजीबो-गरीब दुनिया है। पत्रों की जितनी उपयोगिता पुराने समय में थी। आज भी उतनी ही बरकरार है। चाहे आधुनिक तकनीकी युग में संचार के कितने ही नये माध्यम क्यों ना आ गए हों । लेकिन पत्र पढ़ने में जो संतोष या आनंद की प्राप्ति होती है। वह आनंद एसएमएस (SMS) , व्हाट्सएप (Whatapp) पढ़ने में कहां।

लेखक कहते हैं कि पत्र हमेशा एक नया सिलसिला शुरू करते हैं। राजनीति , साहित्य , कला या कोई अन्य क्षेत्र , सभी क्षेत्रों में विवाद की जड़ भी पत्र ही हैं या नई घटनाओं का जन्म भी पत्रों के द्वारा ही होता है। दुनिया भर का अधिकतर साहित्य भी पत्रों पर ही आधारित है।प्राचीन काल में कई शासकों व राजाओं द्वारा एक दूसरे को लिखे गये पत्रों से उस समय की सभ्यता , संस्कृति व राजनीति का पता भी चलता है। मानव सभ्यता के पीढ़ी दर पीढ़ी विकास का पता भी इन्हीं पत्रों से पता चलता है।  

पत्रों को हमारे देश में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे पत्र को उर्दू में खत , संस्कृत में पत्र , तेलुगु में उत्तरम् , कन्नड़ में कागद तथा तमिल में कडिद कहा जाता है। चाहे पत्रों को किसी भी नाम से जानो मगर इन पत्रों का काम व महत्व सभी जगह एक समान रहता है। पत्र हमेशा लोगों की खट्टी , मीठी दोनों यादों को बहुत सहेज कर रखते हैं । यह वाकई में सच है।

पत्र लिखना भी अपने आप में एक कला है और हर पत्र का अपना दायरा होता है। पत्रों में लोग अपना सुख दुख , अच्छा बुरा सभी कुछ एक दूसरे से बांटते हैं। दुनिया भर में रोज करोड़ों पत्र एक दूसरे को भेजे जाते हैं। भारत में ही रोज करीबन साढ़े चार करोड़ चिट्टियां डाकघरों में डाली जाती हैं। इसी बात से चिट्ठियों का महत्व पता चलता है।  

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सन 1953 में कहा था कि सैकड़ों साल तक संचार का साधन केवल तेज घोड़े ही रहे हैं। (यानि पुराने समय में संदेश पहुंचाने के लिए घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता था)  या फिर हलकारे (डाकिए (Postman) या संदेशवाहक (Messenger) ही संदेश को एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाते थे।  बाद में यह काम यातायात साधनों द्वारा किया जाने लगा । रेलवे और तार के द्वारा संदेश पहुंचाना बहुत आसान हो गया। खासकर तार द्वारा जो रेल (ट्रेन) से भी अधिक तेज गति से संवाद पहुंचा देती है। 

हालाँकि आधुनिक समय में तो संचार के कई और साधन है जैसे टेलीफोन , वायरलेस , रडार आदि और हर रोज संचार के क्षेत्र में नये – नये उपकरणों का आने का सिलसिला जारी है। पिछली सदी में पत्र लेखन को एक कला माना गया और डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। स्कूली पाठ्यक्रम में पत्र लेखन विषय भी शामिल किया गया।

भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों द्वारा यह सामूहिक प्रयास किया गया और “विश्व डाक संघ” ने भी इसमें अपनी अहम भूमिका निभाई। सन 1972 में  “विश्व डाक संघ” ने 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएं आयोजित करनी शुरू की।

हालांकि आधुनिक तकनीकी के आ जाने से बड़े शहरों या महानगरों में चिट्टियां भेजने का सिलसिला थोड़ा कम हो गया है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी चिट्टियां भेजी जाती हैं। टेलीफोन , मोबाइल ने व्यक्तिगत चिट्ठियों की संख्या भले ही कम कर दी हो लेकिन व्यावसायिक डाक की संख्या में अभी भी लगातार वृद्धि हो रही है। 

दुनिया के हर व्यक्ति ने कभी न कभी , किसी ने किसी को कोई पत्र अवश्य लिखा होगा और दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसने कभी किसी के पत्र का इंतजार ना किया हो। खासकर हमारे सैनिक जो रात-दिन सीमा पर पहरा देते हैं। उन्हें अपने घर से आने वाली चिट्ठियों का बड़ा ही इंतजार रहता है। हालांकि वाहनों ने लोगों के बीच की दूरियां कम कर दी हैं और संदेश एक दूसरे तक पहुंचाने के भी कई साधन विकसित हो चुके हैं।

देश के कई लोगों ने अपने पूर्वजों की चिट्ठियों को संजोकर और सहेज कर विरासत के रूप में रखा है। बड़े-बड़े लेखकों , पत्रकारों , व्यापारियों , प्रशासकों , सन्यासियों या किसानों के पत्र तो आज अनुसंधान का विषय बने हुए हैं। 

पंडित नेहरू द्वारा अपनी पुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को लिखे पत्र आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरणा देते हैं। बड़ी हस्तियों की सबसे यादगार धरोहर उनके द्वारा लिखे गए पत्र ही हैं। भारत की आजादी से पहले अंग्रेज अफसरों ने जो अपने घरों परिवारों को पत्र लिखे। वो आगे चलकर पुस्तक के रूप में बदल गए और इन्हीं पत्रों से साबित हुआ कि यह संग्राम कितनी जमीनी मजबूती लिए हुए था।

महात्मा गांधी के साथ-साथ भारत के कई बड़े नेताओं के लिए दुनिया भर से हर रोज पत्र आते रहते थे। महात्मा गांधी पत्र मिलते ही तुरंत पत्र का जवाब खुद अपने हाथों से लिख देते थे। सिर्फ महात्मा गांधी ही नही , स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कई और नेता भी ऐसा ही करते थे और लोग भी उनके पत्रों को किसी प्रशस्ति पत्र से कम नहीं समझते थे। उनके पत्रों को फ्रेम करा कर अपने घर पर रखते थे। यही वास्तव में पत्रों का जादू है।

प्रेमचंद्र नए लेखकों के पत्रों का जवाब अवश्य देते थे। इसी प्रकार नेहरू और गांधी को लिखे हुए रविंद्र नाथ टैगोर के पत्र भी बहुत प्रेरक हैं। पत्रों के आधार पर कई सारी किताबें लिखी जा चुकी हैं। पत्र वाकई में किसी दस्तावेज से कम नहीं होते हैं । कई बड़े कवियों व लेखकों के लिखे पत्र तो प्रसिद्ध पुस्तकें या कविताओं के आधार बन गए।

वैसे पत्र व्यवहार भारत की पुरानी परंपरा रही है। लेकिन इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ। सभी विभागों में डाक विभाग को खासा महत्व दिया जाता था। क्योंकि यही एक ऐसा विभाग था जो करोड़ों लोगों को जोड़ने का काम करता था।

डाक विभाग की एक और ख़ास बात यह हैं कि इसकी पहुंच हर घर , हर शहर और हर गांव तक है और सब जगह लोग डाकियों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। खासकर गांव के गरीबों को अपने मनीआर्डर का खूब इंतजार रहता है। ये डाकिये उनके लिए किसी देवदूत से कम नहीं होते हैं। 

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