Balgobin Bhagat Class 10 Question Answer ,
Balgobin Bhagat Class 10 Question Answer Hindi Kshitij , बालगोबिन भगत पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 10 हिन्दी क्षितिज।
Balgobin Bhagat Class 10 Question Answer
बालगोबिन भगत पाठ के प्रश्न उत्तर
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बालगोबिन भगत पाठ के लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी हैं।
प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे ?
उत्तर –
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी निम्न चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे।
- बालगोबिन भगत कबीर की विचारधारा को मानते थे और कबीर को “साहब ” कहते थे।
- सदैव कबीर के पदों को मधुर स्वर में गाते और उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे। कभी झूठ नहीं बोलते , सबसे खरा व्यवहार रखते थे।
- किसी से भी दो टूक बात कहने में संकोच नहीं करते , ना ही किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते थे।
- दूसरे की किसी भी चीज को कभी छूते नहीं थे और ना ही बिना पूछे उसे व्यवहार में लाते थे।
- जो कुछ उनके खेत में पैदा होता। वो पहले उसे साहब के दरबार (कबीरपंथी मठ) में ले जाते और वहां से जो उन्हें प्रसाद स्वरूप वापस मिलता , उसी से अपनी गुजार बसर करते थे ।
प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी ?
उत्तर –
भगत के बेटे की मृत्यु के बाद पुत्रवधू ही उनके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा थी। वह उनकी सेवा करना चाहती थी। वह यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि अगर वह चली जाएगी तो भगत की देखभाल करने वाला कोई नहीं हैं। इसीलिए वह उन्हें अकेले छोड़ना नहीं चाहती थी।
प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं ?
उत्तर –
भगत कबीरपंथी विचारधारा को मानते थे। वो कहते थे कि शरीर नश्वर हैं और आत्मा अमर है। और मृत्यु के बाद आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है , जो बड़े हर्ष व आनंद की बात हैं। इसीलिए वो अपने बेटे की मृत्यु पर कबीर के गाने गाकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करने लगे। वो अपनी बहू से भी बेटे की मौत पर रोने के बजाय उत्सव मनाने को कह रहे थे।
प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर –
भगत के व्यक्तित्व पर कबीर के उपदेशों का बहुत अधिक प्रभाव था। बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु के सभी गुणों से युक्त थे। वो कबीर को ही अपना आदर्श मानते और उनके पद चिन्हों पर चलते थे। किसी से भी बुरा बर्ताव नहीं करते थे और ना ही कभी झूठ बोलते थे। बिना पूछे किसी की वस्तु का उपयोग नहीं करते थे। और हमेशा कबीर के पदों का मधुर गान करते थे , जो लोगों को मंत्र मुक्त कर देता था।
बालगोबिन भगत 60 वर्ष के मँझोले कद काठी के गोरे चिट्टे व्यक्ति थे जिनके सारे बाल सफेद हो चुके थे। वो बहुत कम कपड़े पहनते थे। कमर में सिर्फ एक लंगोटी और सिर में कबीरपंथी कनपटी टोपी। जाड़ों में एक काली कमली ऊपर से ओढ़े लेते थे। उनके माथे पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन और गले में एक तुलसी के जड़ों की बेडौल सी माला रहती थी ।
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प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी ?
उत्तर-
भगत कबीर के आदर्शों और सिद्धांतों को मानते थे। और उन्होंने उन्हें पूरी तरह से अपने जीवन में उतार लिया था। चाहे सर्दी हो या गर्मी या गरजते बादल और कड़कती बिजली वाली भादों की रातें , भगत की दिनचर्या में कभी भी कोई बदलाव नहीं होता था। वो अपना हर कार्य स्वयं करते थे।
वे रोज सबेरे जल्दी उठकर पैदल ही घर से दो मील दूर नदी में स्नान करने जाते थे और गीत गाते हुए खेतों में काम भी करते थे। चाहे परिस्थिति व मौसम कैसा भी हो। वो हमेशा अपने कामों में मस्त व व्यस्त रहते थे। साठ की उम्र में भी भगत की कर्मठता को देख लोग अचरज में पड़ जाते थे।
प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर –
बालगोबिन भगत कबीर के पदों का बड़े मस्त होकर बहुत मधुर गायन करते थे। ऐसा लगता जैसे कबीर के ये सीधे-साधे पद उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठे हों ।
उनका गायन इतना सुरीला होता था कि खेतों में काम कर रही महिलाओं भी मंत्र मुग्ध होकर उनका गाना सुनती और साथ में गुनगुनाने भी लगती थी। हलवाहों के पैर ताल पर उठने लगते और रोपनी करने वालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती थी। यहाँ तक कि बच्चे भी खेलते हुए झूम उठते थे। पूरा वातावरण संगीतमय हो उठता था। बालगोबिन भगत के संगीत में जादू था।
प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
बालगोबिन भगत अपने बेटे की मृत्यु पर शोक मनाने के बजाय उत्सव मनाने लगे और पूरी मस्ती के साथ अपने मधुर कंठ से गाना गाने लगे। बेटे का दाह संस्कार भी उन्होंने अपनी पुत्रवधू से ही करावाया।
बेटे की मृत्यु के बाद अपनी विधवा पुत्रवधू को उन्होंने दूसरी शादी करने की इजाजत दे दी। जो उस वक्त की प्रचलित सामाजिक मान्यताओं के बिलकुल विपरीत था। इन सब प्रसंगों से पता चलता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे।
प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं ? उस माहौल का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
आषाढ़ की रिमझिम बारिश के बीच धान की रोपाई अपने चरम पर होती थी। पूरा गांव खेतों में नजर आता था। कोई खेतों पर हल चला रहा होता , तो कोई धान की रोपनी कर रहा होता । बच्चे धान के पानी भरे खेतों में खूब खेलते हुए नजर आते थे। और औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी रहती थी।
जब पूरा आसमान बादलों से घिरा रहता था और ठंडी ठंडी हवा चल रही होती थी। ऐसे में अचानक कानों में एक मधुर स्वर सुनाई पड़ता। बालगोबिन भगत अपनी पूरी तल्लीनता के साथ गाते हुए अपने खेतों में धान के पौधों की क्रमबद्ध तरीके से रोपाई कर रहे होते थे। उनके कंठ से निकला एक-एक स्वर ऐसा लगता था मानो वो कुछ संगीत को ऊपर स्वर्ग की तरफ भेज रहे हैं और कुछ को मिट्टी में खड़े लोगों के कान की तरफ।
उनके गानों को सुनते ही हल चलाने वालों के पैर भी ताल से उठने लगते थे और रोपनी करने वालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती थी। बच्चे भी खेलते हुए उनके गानों में झूम उठते थे। बालगोबिन भगत पूरी तल्लीनता के साथ अपने संगीत का जादू पूरे माहौल में बिखेरते थे।
प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ की बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है ?
उत्तर –
बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा निम्नलिखित रूपों में प्रकट हुई।
- कबीर गृहस्थ होते हुए भी साधु की भांति जीवन जीते थे। वो सांसारिक माया मोह के सभी बंधनों को तोड़ चुके थे। उसी प्रकार बाल गोविंद भगत भी गृहस्थ होते हुए कबीर के समान ही अपना जीवन व्यतीत करते थे।
- उनका पहनावा व रहन-सहन भी कबीर के जैसा ही था।
- कबीर गांव-गांव , गली-गली घूम कर अपने पदों को गाया करते थे। ठीक उसी तरह बालगोबिन भगत भी पूरे गांव में घूम घूम कर उनके पदों को गाया करते थे।
- कबीर कहते थे कि आत्मा अमर है। शरीर नाशवान है। और मृत्यु के पश्चात आत्मा परमात्मा से जाकर मिलती है। इस बात को बाल गोविंद भगत ने पूरी तरह से अपने जीवन में उतार लिया था।जब वो अपने बेटे की मृत्यु पर शोक मनाने के बजाय उत्सव मनाने की बात करने लगे थे ।
- बालगोबिन भगत उस समय समाज में प्रचलित किसी भी मान्यता को नहीं मानते थे।
- भगत अपनी फसल का कुछ हिस्सा कबीर मठ में दे देते थे। शेष बचे अनाज से ही अपनी गुजर-बसर करते थे।
- कबीर की तरह बालगोबिन भगत भी कनफटी टोपी पहनते थे और रामानंदी चंदन लगाते व गले में तुलसी माला पहनते थे।
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प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे ?
उत्तर-
भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के निम्न कारण रहे होंगे।
- ईश्वर भक्ति में लीन रहना और ईश्वर भक्ति के पदों की रचना करना।
- सादा एवं आदर्श पूर्ण जीवन व्यतीत करना।
- समाज में व्याप्त कुरीतियों का विरोध करना।
- कबीरदास जी ने मूर्तिपूजा का विरोध किया था।
- कबीरदास जी कहते थे कि पुरुषार्थ से स्वयं चीजों को प्राप्त करो , उसे किसी से मांगो मत।
- कर्म करने में विश्वास रखना।
- कबीरदास जी ने समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव का विरोध किया था।
प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है ?
उत्तर-
आषाढ़ की रिमझिम बारिश के शुरू होते ही गाँव के सभी किसान अपने खेतों में धान की रोपाई शुरू कर देते थे। भगत भी कबीर के पदों को गाते हुए पूरी तन्मयता के साथ धान के पौधों को पंक्तिबद्ध तरीके से अपने खेत में रोपते थे।
उनके मधुर गायन से पूरा माहौल संगीतमय हो जाता था। उनके मधुर गान को सुनकर महिलाएं भी गुनगुनाने लगती थी। बच्चे भी झूम उठते थे। हल चलाने वालों के पैर भी ताल से उठने लगते थे। और गाँव का सारा सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश उल्लास से भर जाता था।
प्रश्न 12.
“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे”। क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए ? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है ?
उत्तर –
साधु की पहचान उसके पहनावे के आधार पर नहीं की जानी चाहिए। बल्कि उसके आचार , व्यवहार , विचार व जीवनशैली से की जानी चाहिए। जो हमेशा लोक कल्याण की बात सोचे , भोग विलासिता से दूर रहे , सांसारिक माया मोह के बंधनों से मुक्त रहे , सात्विक जीवन जिए और सिर्फ ईश्वर भक्ति में ही अपना जीवन बिताये। वही सच्चा साधु हैं।
प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर –
निश्चय ही भगत प्रेम और मोह में अंतर जानते थे। वो जानते थे कि मोह में पड़कर आदमी स्वार्थी हो जाता हैं जबकि प्रेम में आदमी सदैव दूसरों की भलाई की बातें सोचता है। इसीलिए उन्होंने कभी भी अपने प्रेम को मोह के बंधन में नहीं बंधा था।
वो अपने पुत्र और पुत्रवधू दोनों से बहुत प्रेम करते थे। मगर पुत्र की मृत्यु हो जाने पर वह इस बात से खुश होते हैं कि पुत्र की आत्मा आज उस परमात्मा से जाकर मिल गई है जहां उसका असली स्थान हैं। यानि पुत्र को जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिली।
दूसरी ओर वो चाहते तो अपनी पुत्रवधू से अपनी सेवा करवा सकते थे। लेकिन उन्होंने अपनी पुत्रवधू का हित देखा और उसे पुनर्विवाह करने की इजाजत खुशी खुशी दे दी। यह उनका प्रेम ही था , मोह नहीं।
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