Teejan Bai Of Uttarakhand “Kabootri Devi”,कुमाऊं की तीजन बाई कबूतरी देवी.
Teejan Bai Of Uttarakhand
Kabootri Devi
उत्तराखंड की तीजन बाई कहें या कुमाऊंनी लोक गीतों की स्वर कोकिला या लोकगीतों की स्वर साम्राज्ञी कबूतरी देवी का उत्तराखण्ड के लोक गीत व संगीत को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों में ख्याति दिलाने में बहुत बड़ा योगदान रहा है।
मधुर और सुरीली आवाज की मालिक कबूतरी देवी (Kabootri Devi) के गीत अधिकतर पहाड़ में रहने वाले लोगों की भावनाओं तथा पहाड़ के ऊंचे-नीचे डाने-कानों, परदेस में होने वाले एकाकीपन, परदेस गए पति की प्रतीक्षा में बैठी पहाड़ की महिलाओं की भावना, पहाड़ के ठंडे पानी, ऋतु व प्रकृति से संबंधित होते थे।
Kabootri Devi (A Folk Singer of Uttarakhand)
Kabootri Devi का जन्म 18 जनवरी 1945 में चम्पावत के लेटी गांव के मिरासी (गायक) परिवार में हुआ ।कबूतरी देवी ने संगीत की शिक्षा किसी भी संगीत घराने से कभी नहीं ली ।कबूतरी देवी को लोकगायकी विरासत में ही मिली थी। क्योंकि उनके माता पिता एक अच्छे लोक गायक तो थे ही।
साथ ही-साथ उनके पिता को हुड़का, तबला व हारमोनियम आदि वाद्ययंत्र बजाने में भी महारत हासिल थी। घर में पूरी तरह संगीत का माहौल होने के कारण कबूतरी देवी में इसका गहरा प्रभाव पड़ा और उनको बचपन से ही संगीत में रुचि पैदा हो गई।
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खेलने कूदने की उम्र में कबूतरी देवी (Kabootri Devi) गीत गाना व हारमोनियम बजाने की बारीकियां सीखने लगी।और धीरे-धीरे वह लोकगीत गाने व हारमोनियम बजाने में पारंगत होती चली गई।उस समय लड़कियों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था।
इसलिए कबूतरी देवी की स्कूल की पढ़ाई तो नहीं हो सकी।लेकिन संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा उनको उनके घर के विद्यालय में ही मिली।और उनके माता-पिता उनके पहले शिक्षक थे।
वैवाहिक जीवन
माता-पिता के अलावा नौ बहिनें और एक भाई का यह परिवार लोक गायन के अलावा अपनी गुजर-बसर के लिए खेती-बाड़ी पर भी निर्भर रहता था।उन दिनों लड़कियों की शादी बहुत छोटी उम्र में कर दी जाती थी। इसीलिए मात्र चैदह साल की उम्र में Kabootri Devi की शादी पिथौरागढ़ जिले में मूनाकोट के नजदीक क्वीतड़ गांव के दीवानी राम के साथ सन 1959 में कर दी गई।
ससुराल पहुंच कर हर महिला की तरह कबूतरी देवी (Kabootri Devi) भी ससुराल में खेती-बाड़ी व चूल्हे चौके के कामों में व्यस्त हो गई।ससुराल की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण दूसरे के खेतों में काम करने के साथ-साथ मेहनत मजदूरी का काम भी करने लगी ।
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पति बने प्रेणास्रोत व गुरु
लेकिन उनके अंदर की लोक गायकी की इस प्रतिभा को उनके पति ने पहचाना और उन्हें इस दिशा में प्रोत्साहित किया।कबूतरी देवी के पति जिन्हें वो अक्सर “नेताजी” कहकर बुलाती थी। एक अच्छे लोक कलाकार होने के साथ-साथ कुमाऊनी गीतों के कुशल रचयिता भी थे।
वह गीत लिखते थे। और कबूतरी देवी अपने मधुर कंठ व खनकती आवाज से उन गीतों को एक नया आयाम देती थी।
आकाशवाणी गायन में पहला कदम
1979 में आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से प्रसारित होने वाले लोक गीतों के गायन के लिए लोक गायकों की तलाश की जा रही थी। उस वक्त कबूतरी देवी (Kabootri Devi) के पति उनको लखनऊ के आकाशवाणी केन्द्र में ले गये।
28 मई, 1979 को कबूतरी देवी ने आकाशवाणी की स्वर परीक्षा उत्तीर्ण की और अपना पहला गीत लखनऊ के आकाशवाणी केन्द्र में रिकार्ड करवाया।
और यहां से शुरू हुआ कबूतरी देवी (Kabootri Devi) के लोक गीतों की लोकप्रियता का सुरीला व सुहाना सफर। सुरीली आवाज और ठेठ पहाड़ी अंदाज की उनकी गायकी का जादू लोगों के सर चढ़कर बोलने लगा।
यह भी उस वक्त जब गायन के क्षेत्र में सिर्फ पुरुषों का ही वर्चस्व था।महिलाएं घर से बाहर कम ही निकलती थी और वह भी गाना गाने के लिए। बिल्कुल नहीं।
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उत्तराखंड की पहली महिला लोक गायिका होने का गौरव
ऐसे में कबूतरी देवी ने इस परंपरा को तोड़ते हुए उत्तराखंड की पहली महिला लोक गायिका होने का गौरव हासिल किया। बाद में उन्होंने आकाशवाणी के नजीबाबाद, रामपुर समेत अन्य कई केन्द्रों के लिए भी गीतो की रिकार्डिंग की और उनके गाये कई गाने तो बहुत मशहूर हुए।
लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति हमेशा खराब ही रही क्योंकि कबूतरी देवी को एक गीत की रिकॉर्डिंग के बदले केवल 50 रुपया ही मेहताना मिलता था। जो उनके लिए पर्याप्त नहीं होता था।
कई बार तो Kabootri Devi को आकाशवाणी केंद्रों में गीत रिकॉर्ड करने जाने के लिए अतिरिक्त मेहनत मजदूरी कर पैसे जमा करने पड़ते थे। जीवन इसी तरह चल ही रहा था कि अचानक 30 दिस. 1984 को उनके पति दीवानी राम इस संसार से चल बसे ।
और इस घटना ने उनको अंदर से तोड़ दिया क्योंकि उनके पति उनको गाने के लिए हमेशा ही प्रोत्साहित करते थे । दो लड़कियों और एक लड़के के पालन पोषण की जिम्मेदारी अब उनके सिर पर आ गई थी।
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एक जिम्मेदार मां की तरह ही उन्होंने अपने तीनों बच्चों का पालन पोषण किया। और समय के साथ बेटियों का विवाह भी कर दिया। और बेटा मुंबई अपनी रोजी रोटी की तलाश में निकल पड़ा। इन सब जिम्मेदारियों को निभाने व आर्थिक दिक्कतों के चलते कबूतरी देवी का गीत संगीत उनसे छूट गया। और वह कई वर्षों तक गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गई।
कबूतरी देवी की दूसरी पारी
कई वर्षों बाद सन 2000 नवोदय पर्वतीय कला केंद्र (पिथौरागढ़) के संस्थापक व प्रसिद्ध संस्कृति कर्मी हेमराज बिष्ट ने उनकी तलाश की और उनको खोज निकाला। तथा उनको फिर से लोक गीतों को गाने के लिए प्रोत्साहित किया।
इस तरह कबूतरी देवी ने एक बार फिर लोकगीतों को गाने का अपना सिलसिला शुरु किया । उसके बाद उन्होंने अनेक मंचों पर अपनी प्रस्तुति दी और एक बार फिर उनकी मधुर आवाज लोगों के दिलों में उतरती चली गई ।उनके गाए हुए कई गीत इतने प्रसिद्ध थे कि लोग उनको बार-बार सुनना पसंद करते थे। उनके गाए कुछ प्रसिद्ध गीतों में..
Kabootri Devi के Popular गाने
आज पाणि झौं-झौं, भोल पाणि झौं-झौं,
पोरखिन कै न्हैं जूंला।स्टेशन सम्म पुजाई दे मनलाई,
पछिल विरान होये जौंला।
पहाड़ को ठण्डो पाणि, कि भली मीठी वाणी,
टौण लै नि लागनि ,देव भूमि छोड़ि बेर।
बरस दिन को पैलो म्हैणा, आयो ईजू भिटौलिया म्हैणा
मैं बुलानि कन, मेरि ईजू झुर झुरिये झन
आयो ईजू भिटौलिया म्हैणा, बरस दिन को पैलो म्हैणा।
हिमाला ह्यूं को फूलों, पातल क्वैराल फूलो।
पहाड़ न्है जूनो….।
बाट की दुकान हाली, बटुआ लूटी खान्या,
यो पराणि हवा जैसी, भोल त मरि जाणा।
Kabootri Devi का निधन
कुमाऊनी लोकगीतों की स्वर कोकिला कबूतरी देवी (Kabootri Devi) कुमाओं के पारंपरिक लोकगीत न्यौली,चैतोल तथा ऋतु रैंण (ऋतु पर आधारित) आदि गानों को भी बहुत ही सुंदर ढंग से गाती थी ।कबूतरी देवी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहीं थीं। और 7 जुलाई 2018 को हृदय गति रुक जाने की वजह से उनका निधन हो गया।
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कबूतरी देवी जी भले ही अब हमारे बीच ना हो लेकिन वह अपने पीछे एक सुरीला व गरिमामई कुमाऊनी लोकगीतों का संसार हमारे और हमारे आने वाली नई पीढ़ी के लिए छोड़ गई हैं
कबूतरी देवी को परिवार व माता पिता से विरासत में मिली लोक गायन की शिक्षा तथा पति प्रोत्साहन ने उनको लोक गायकी के क्षेत्र में एक अलग ही मुकाम तक पहुंचाया। 70 के दशक में पहली बार पहाड़ से निकल कर किसी पहाड़ की महिला ने रेडियो स्टेशन तक पहुंचकर अपने गानों की रिकॉर्डिंग की तथा रेडियो के माध्यम से पहाड़ी गाने गाकर धूम मचा दी।
राष्ट्रपति पुरुस्कार से सम्मानित
Kabootri Devi ने पर्वतीय लोक शैली तथा लोकगायन को राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाया। इसीलिए उन्हें राष्ट्रपति पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया ।
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अन्य पुरुस्कार
इसके साथ ही Kabootri Devi को अनेक संस्थानों ने (जैसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली ,उत्तराखंड लोक भाषा मंच नई दिल्ली ,पर्वतीय जन प्रकाशन समूह देहरादून ,पहाड़ संस्था, मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति अल्मोड़ा, यंग उत्तराखंड साइन, छोलिया महोत्सव समिति पिथौरागढ़, नगर पालिका अल्मोड़ा, नगर पालिका पिथौरागढ़ , उत्तराखंड महापरिषद लखनऊ) भी सम्मानित किया गया। साथ ही साथ उत्तराखंड के संस्कृत विभाग ने उन्हें पेंशन भी प्रदान की।
कबूतरी देवी एक अनोखी मिसाल
कुमाऊ की तीजनबाई के नाम से जाने जानी वाली कबूतरी देवी (Kabootri Devi) अपने आप में हम सभी के लिए एक अनोखी मिसाल है ।हालांकि उनका का पूरा जीवन संघर्षमय रहा।जीवन के हर मोड़ पर उनको आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वो लोक कलाकारों के प्रति सरकार की उपेक्षा से भी खिन्न नजर आती थी ।
Kabootri Devi का कहना था कि “एक कलाकार के लिए इससे बड़ा कष्ट और क्या हो सकता है कि उसको मंच न मिले “। वह चाहती थी कि राज्य की सरकार पहाड़ व पहाड़ के इन लोक कलाकारों की सुध ले।
उनको सम्मान से जीने का मौका दें। ताकि कुमाऊनी लोक संगीत की यह सुरीली महक आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचती रहे। और आने वाली पीढ़ियों को भी अपने इस महान लोक परंपरागत गीतों की जानकारी हो।
कुमाऊ के लोकगीतों की इस स्वर साम्राज्ञी को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि…। आपके इस अमूल्य योगदान को तथा आप के स्वर्णिम संगीतमय इतिहास को हम कभी नहीं भूल पाएंगे।
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