Diwali festival : दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

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दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? ॐ असतो मा सद्गमय …. तमसो मा ज्योतिर्गमय।   उपनिषदों में कहा गया है कि असत्य से सत्य की ओर चलो ,अंधकार से प्रकाश की ओर चलो ,अज्ञान से ज्ञान की तरफ चलो, अधर्म से धर्म की तरफ चलो।दीपावली का त्यौहार भी साफ साफ तौर पर हमें यही संदेश देता है कि असत्य,अज्ञानता ,अहंकार ,निराशा के अंधकार को हटाओ और सत्य की तरफ चलकर ज्ञान का प्रकाश अपने अंदर और इस दुनिया में फैलाओ।

Diwali festival : दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता  है

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Diwali festival celebration 

यू तो भारतवर्ष में साल भर अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं।सबका अपना-अपना धार्मिक,आर्थिक और सामाजिक महत्व होता है।लेकिन कार्तिक मास की अमावस्या को पड़ने वाले त्यौहार दीपावली (Diwali ) की तो बात ही अलग है।यह बहुत ही शानदार पर्व है।या यूं कहें कि यह पर्वों का समूह है।रोशनी का यह पर्व एक दिन का नहीं बल्कि पूरे पांच दिनों तक मनाया जाता है। क्योंकि यह पांच पर्वों का एक समूह है जिसे हम दीपावली/दीवाली (Diwali festival ) के नाम से जानते हैं।

दीपावली शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है “प्रकाश की पंक्तियां“। शायद इस पर्व के लिए यह अर्थ सही साबित भी होता है। रोशनी के इस त्यौहार में हर घर ,हर आंगन, हर मन दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है।इसीलिए इसे दीपों का त्यौहार (Festival of Lights) या स्वच्छता एवं प्रकाश का त्यौहार भी कहा जाता है।

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Why is Diwali festival celebrated

प्रकाश उत्सव या रोशनी के इस पर्व (Festival of Lights) को मनाने की शुरुवात अयोध्या से हुई थी। कहते हैं कि विजयादशमी को भगवान राम ने रावण पर विजय पाई। और भगवान राम माता सीता ,लक्ष्मण ,विभीषण ,हनुमान जी के साथ इस दिन अयोध्या लौटे।अयोध्या वासियों ने 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान राम के घर वापस आने की खुशी में दीप जलाएं और उत्सव मनाया।तब से ही इस दिन दीप जलाकर दिवाली मनाने की प्रथा प्रारंभ हुई।

अन्य धर्मों के लोग भी मनाते है दीपावली का त्यौहार

इस त्यौहार को हिंदू धर्म के अलावा सिख,बौद्ध ,जैन धर्म के लोग भी बहुत उत्साह से मनाते हैं।सिख समुदाय के लोग इस त्योहार को बंदी छोड़ दिवस के नाम से मनाते हैं।तो वहीं जैन धर्म के लोग इसे महावीर का मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं।

कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण भी इस संसार को छोड़कर बैकुंठ को चले गए थे।इस त्यौहार को भारत के अलावा नेपाल, श्रीलंका , म्यानमार, मॉरिशस, गुयाना, पाकिस्तान (वहां बसे हिंदू) ,मलेशिया आदि जगहों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

Diwali festival celebration

कैसे की जाती हैं दीपावली की तैयारियां

इस पर्व (Diwali festival) की तैयारियां दीपावली के दिन से बहुत पहले ही शुरू हो जाती हैं।लोग अपने घरों की साफ सफाई कर उन्हें सजाने संवारने का काम करते हैं।वर्षा ऋतु के बाद जब शरद ऋतु आती हैं तो मौसम अत्यधिक सुहाना हो जाता है।आसमान में हर समय छाये रहने वाले काले-काले बादल हट जाते हैं।तथा आसमान एकदम साफ व नीला दिखाई देता है।रात को चांद अपनी शीतल चांदनी से पूरी धरती को प्रकाशित कर देता है।

नदियों का पानी एकदम साफ व निर्मल हो जाता है।हर समय गीली रहने वाली भूमि सूखने लग जाती हैं।प्रकृति अपने नए साज श्रृंगार में व्यस्त हो जाती हैं। मौसम एकदम सुहाना हो जाता है जिससे सभी का मन उत्साहित रहता है।

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वर्षा ऋतु में हर जगह नमी रहने के कारण अनेक तरह के विषैले कीड़े मकोड़े व जीव जंतु पैदा हो जाते हैं।जो मनुष्य और जानवरों को हानि पहुंचाते हैं।अत्यधिक बारिश होने के कारण घरों के दीवारों और छतों में सीलन आ जाती है।जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है।इस वजह से घर व आंगन की साफ सफाई करनी अति आवश्यक हैं।और वर्षा की वजह से खराब हुए घरों में लिपाई व पुताई आवश्यक हो जाती है।

इसीलिए वर्षाकाल के बाद जब शरद ऋतु का यह सुहाना मौसम आता है।तो लोग सबसे पहले अपने घर और आंगन की साफ सफाई में व्यस्त हो जाते हैं।जिससे कीड़े मकोड़ों का नाश होता है।और सरसों के तेल में दीपक जलाने से वातावरण के सारे रोगाणु व जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और वातावरण फिर से स्वास्थ्यप्रद हो जाता है।

हो सकता है इसीलिए हमारे पूर्वजों ने बड़ी चतुराई से साफ-सफाई को दीपावली पर्व व मां लक्ष्मी के आगमन से जोड़ दिया हो।ताकि इसी बहाने लोग घर की सफाई आवश्यक रूप से करें।क्योंकि ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी हमेशा उसी घर में विराजती हैं जिस घर में साफ सफाई रहती है।

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व्यापारी वर्ग का उत्साह देखते ही बनता है

Diwali festival पर व्यापारी वर्ग का उत्साह भी चरम सीमा पर रहता है क्योंकि यही वह वक्त होता है।जब वह साल भर में सर्वाधिक व्यापार करते हैं।और अपना साल भर का खर्चा निकाल लेते हैं।इसलिए वह अपनी दुकानों की सजावट की हर तरह से कोशिश करते हैं।पूरा बाजार दीपावली में खाने-पीने ,सजावट की चीजों,लक्ष्मी पूजा से संबंधित सामग्रियों आदि से सजा रहता है।इन दिनों बाजार में अत्यधिक रौनक होती है।

Diwali festival में खीले-बतासे

इस वक्त लोग नये कपडे, जेवर व अन्य जरूरत की वस्तुओं की जम कर खरीदारी करते हैं।अपना देश एक कृषि प्रधान देश है।इस समय कृषक वर्ग की भी धान व गन्ने की खेती पूरी तरह से पक जाती हैं और किसान की लक्ष्मी तो उसकी फसल ही होती है।इसलिए कृषक वर्ग भी अत्यधिक उत्साहित रहता है।कुल मिलाकर यह त्यौहार हिंदू धर्म के हर वर्ग के लिए नए उत्साह व खुशियों भरा त्यौहार है।

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दीपावली का त्यौहार मिलकर बना है पांच पर्वों से

(Diwali festival in India)

दीपावली का त्यौहार (Diwali festival in India) भारत में देखने लायक होता हैं। हर घर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता हैं। दीपावली का त्यौहार (Diwali festival ) पांच पर्वों से मिलकर बना है।दीपावली पांच पर्वों का ( धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली गोवर्धन पूजा और भैया दूज) एक समूह है दीपावली।इसकी शुरुआत धनतेरस से होती है।

धनतेरस

Diwali festival की शुरुवात धनतेरस से होती है।इसे धन्वन्तरि जयंती के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन त्रयोदशी पड़ती है इसलिए इसे धन्वंतरि त्रयोदशी भी कहा जाता है ।ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय इसी दिन वैद्य शिरोमणि या आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि जी अमृत का कलश लेकर समुद्र से प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिन को धनवंतरी जी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है।धन्वंतरि जी को देवताओं का चिकित्सक भी माना जाता है।

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इस दिन मृत्यु के देवता यम की पूजा करने के लिए घरों में दीपक जलाए जाते हैं जिससे यम दीपदान कहते हैं।ऐसा माना जाता हैं कि इस दिन यम को दीपदान करने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है।इस दिन धातु के बर्तन या सोने चांदी खरीदना शुभ माना जाता है इसीलिए इस दिन लोग अपनी हैसियत व जरूरत के अनुसार जमकर खरीदारी करते हैं।और शाम को खरीदे गए वस्तु को मंदिर में रखकर उसकी पूजा अर्चना की जाती है।

धनतेरस के दिन सबसे ज्यादा उत्साहित व खुश व्यापारी वर्ग रहता है।क्योंकि इसी दिन वह साल में सबसे अधिक व्यापार करता है तथा मोटा मुनाफा कमाता है।

नरक चतुर्दशी

Diwali festival के दूसरे दिन छोटी दीवाली मनाई जाती है।इस दिन से दीपावली के दीये जलने शुरू हो जाते हैं। इस दिन मंदिर में एक थाली में एक चतुर्मुखी दीप जलाकर उसके चारों ओर छोटे-छोटे 16 अन्य मिट्टी के दीप जलाए जाते हैं। पूजा अर्चना करने के बाद इन सभी दीयो को घर में अलग-अलग जगहों पर रख दिया जाता है। इसे छोटी दिवाली कहा जाता है। इस संदर्भ में एक कथा भी प्रचलित है कि भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध इसी दिन किया था।

इसी खुशी में लोगों ने अपने घरों में दीप जलाए थे। इस दिन भी यम को दीप दान करने की प्रथा प्रचलित है। कहा जाता है कि इस दिन यम(मृत्यु के देवता) को दीप दान करने से नरक यातना नहीं भोगनी पड़ती है।कुछ महिलाएं इस दिन व्रत रखकर यम को दीपदान करती हैं।

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दीपावली (Main Diwali festival )

Diwali festival के तीसरे दिन मुख्य दीवाली मनाई जाती है।विजयादशमी को भगवान राम ने रावण पर विजय पाई और माता सीता ,लक्ष्मण ,विभीषण ,हनुमान जी के साथ इस दिन अयोध्या लौटे।अयोध्या वासियों ने भगवान राम के घर वापस आने की खुशी में दीप जलाएं और उत्सव मनाया।तब से ही इस दिन दीप जलाकर दिवाली मनाने की प्रथा प्रारंभ हुई।

इसीलिए इस दिन को प्रकाश उत्सव या रोशनी का पर्व (Festival of Lights) के नाम से भी जाना जाता है।यह दिन मुख्य होता है।इस दिन सुबह से ही घरों में रौनक शुरू हो जाती हैं।क्या बच्चे, क्या बूढ़े सबके अंदर एक गजब का उत्साह भर जाता है।

घर आंगन सजाये जाते हैं रंगोली से (Diwali festival Rangoli )

दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता  है?

घरों में साफ-सफाई के साथ-साथ घरों की सजावट का काम भी शुरू हो जाता है।एक से एक खूबसूरत तरह की वस्तुओं से घरों की सजावट की जाती हैं।घरों में चारों तरफ बिजली की मालाएं लगाई जाती हैं जिनको रात में जलाया जाता है।और उससे पूरा घर रोशन हो जगमगाता है।इस दिन चावल के आटे से घर के आगन में रंगोली बनाना तथा घर के दरवाजे में ऐपण डालना बहुत शुभ माना जाता है।इसीलिए महिलाएं घर के आंगन में रंगोली बनाती हैं तथा घर में जगह-जगह लक्ष्मी जी के पैरों के चित्र बनाती हैं।

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मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है।मंदिर में फूल मालाएं तथा बिजली की मालाएं लगाई जाती हैं।इस दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी,विद्या की देवी माँ सरस्वती तथा विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की विशेष रूप से पूजा की जाती हैं।इस दिन कई लोग गन्ने से माता लक्ष्मी का रूप बनाते हैं तथा उनको वस्त्र ,जेवर इत्यादि पहनाकर उनका माता लक्ष्मी के रूप पूजन करते  है।घर आंगन में पंक्तिबद्ध जलते दिये हर किसी का मन मोह लेते हैं।

शाम होते ही पूरा घर और शहर दियों और बिजली की मालाओं की रौशनी से जगमगा उठता हैं। हर जगह रौशनी ही रौशनी।ऐसा लगता हैं मानो आकाश तारों सहित जमीं पर उतर आया हो।इस दिन लोग शाम के समय नए वस्त्र इत्यादि पहनकर सज धज कर पूरे विधि विधान के साथ मां लक्ष्मी, की ‌पूजा अर्चना करते हैं।ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी भूलोक में आकर भ्रमण करती है।

इसलिए इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है।ताकि घर में लक्ष्मी का वास हो और हर प्रकार की सुख समृद्धि घर में बनी रहे। महालक्ष्मी की पूजा खीले ,खिलौने ,बताशे,फल तथा गन्ने से की जाती है।इस दिन घर में अनेक तरह के पकवान बनाए जाते हैं। जिनको प्रसाद स्वरूप मां लक्ष्मी को चढ़ाया जाता है।

इस दिन व्यापारी वर्ग अपने पुराने बही-खातों को बदल कर उनकी जगह नए बहीखाते का प्रयोग करना शुरू कर देते हैं।पूजा अर्चना समाप्त होने के बाद सभी लोग आंगन या खुली जगह में आकर खूब पटाखे छोड़ते हैं।आतिशबाजी करते हैं।आतिशबाजी करते हुए बच्चे सबसे ज्यादा खुश होते हैं।लोग एक दूसरे को मिठाई खिलाकर इस त्यौहार का पूरा आनंद उठाते हैं।इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों को मिठाइयां एवं फल उपहार स्वरूप भेंट करते हैं।

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गोवर्धन पूजा

Diwali festival के चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी अंगुली से उठा लिया था।इसीलिए इस दिन गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है। और इस दिन कई जगह पर लोग गाय बैलों को विभिन्न तरह से सजाते हैं।

भैय्या दूज (भाई दूज )

Diwali festival  का समापन भैय्या दूज से होता हैं। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र प्यार व मजबूत बंधन का पर्व है।उत्तर भारत में इस दिन बहन अपने भाई का च्यूडे़ से पूजन करती हैं। इस वक्त धान की फसल पककर तैयार हो जाती है।इसलिए नई फसल से प्राप्त धान के कच्चे ताजे दानों को भूनकर उन्हें ओखल या मशीन में कूट कर चपटे आकार का बनाया जाता है जिन्हें च्यूडे़ कहते हैं।

इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाते हैं।बहन उनका खूब आदर सत्कार करती हैं उसके बाद उसके माथे पर तिलक लगाकर च्यूडों(चिड़वे) से उनका पूजन करती हैं।तथा अपने भाई को अनेक शुभकामनाएं देती हैं।

भगवान से अपने भाई की लंबी उम्र तथा सुखी जीवन की प्रार्थना करती हैं। इसके बाद अनेक तरह के व्यंजन बनाकर अपने भाई को भोजन कराती हैं। इसके साथ ही भाई भी अपनी बहन को उपहार स्वरूप कोई-न-कोई वस्तु अवश्य देता है।यह भाई बहन के प्यार व विश्वास का प्रतीक पर्व है। भैया दूज के इस पर्व के साथ ही दीपावली का त्यौहार (End of Diwali festival) समाप्त हो जाता है।

भैया दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं।

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पौराणिक कथा ( Diwali festival Story )

एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन सूर्य पुत्र यम अपनी बिछड़ी हुयी बहन यमुना से मिलने के लिए मथुरा के विश्राम घाट  गए।यमुना अपने भाई को आता देख बहुत खुश हुई और उन्होंने अपने भाई का पूरा आदर सत्कार किया।उनको अपने हाथ से बनाया हुआ स्वादिष्ट भोजन कराया।जिससे यम बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना से वरदान मांगने को कहा।यमुना ने वरदान स्वरुप मांगा कि जो भी इस दिन यमुना में स्नान करें उसे नरक ना जाना पड़े।

यह सुनकर यम असमंजस में पड़ गए क्योंकि ऐसा होने से स्वयं यमपुरी का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता।अपने भाई को असमंजस में देखकर यमुना ने कहा कि भाई आज के दिन जो भाई बहन के घर जाकर भोजन करेगा तथा मथुरा के विश्राम घाट में स्नान करेगा वह यमपुरी नहीं जाएगा ।यम ने बहन को खुशी खुशी ये वरदान दे दिया।तब से यह रीति चली आ रही है कि इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाकर भोजन करता है और और बदले में उसको कुछ उपहार भेंट करता है।

Diwali festival rangoli

WISH YOU A VERY HAPPY DEEPAWALI ………………..

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