आत्म निर्भर भारत : राष्ट्रीय विकास में छात्रों की भूमिका

Students Contribution in National Development ,

Atma Nirbhar Bharat 

राष्ट्रीय विकास में छात्रों की भूमिका

Students Contribution in National Development

Students Contribution in National Development

Content / विषय सूची /संकेत बिन्दु

  1. प्रस्तावना
  2. विद्यार्थी और विद्यार्थी जीवन 
  3. भारत में विद्यार्थी  
  4. रोजगार परक शिक्षा की आवश्यकता
  5. आत्म निर्भर भारत , राष्ट्रीय विकास में छात्रों की भूमिका  (Students Contribution on National Development)
  6. उपसंहार 

प्रस्तावना

किसी भी देश का भविष्य उस देश के बच्चों , छात्रों और युवाओं पर ही निर्भर करता है। क्योंकि ये तीनोँ ही किसी भी राष्ट्र के मजबूत आधार स्तंभ होते हैं जिनके कंधों पर एक विकसित , महाशक्तिशाली राष्ट्र का सपना पलता है और साकार भी होता है। 

ये विद्यार्थी अपार संभावनाओं और असीमित प्रतिभाओं के बीज स्वरूप होते हैं। जो आगे चलकर भविष्य में किसी भी राष्ट्र का चहमुखी विकास करने में अपनी सक्रिय भागीदारी निभा सकते हैं। और उस राष्ट्र को पूरे विश्व में एक अलग ही पहचान दिलाने व आत्म निर्भर भारत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 

 विद्यार्थी और विद्यार्थी जीवन  

विद्यार्थी जीवन वह समय होता है जब कोई बच्चा व युवा गजब के आत्मविश्वास , उत्साह  , ऊर्जा और जोश से भरा रहता है। और उनके दिमाग में प्रतिदिन नए-नए विचार जन्म लेते हैं , नई-नई योजनाएं आकार लेने लगती हैं। असंभव को संभव कर दिखाने का जज्बा इनके अंदर समाया रहता है। 

यही वह समय होता है जब विद्यार्थियों को एक सही मार्गदर्शन , एक सच्चे अर्थों में प्रेरक या मार्गदर्शक की जरूरत होती है। जो उनके अंदर की अपार क्षमताओं , संभावनाओं और असीमित ऊर्जा को एक सही दिशा दे सके । अगर उस समय उनका सही तरह से मार्गदर्शन किया जाय तो ,  देश को प्रगति के मार्ग पर चलने और विश्व में एक अलग पहचान बनाने से कोई नहीं रोक सकता।

विद्यार्थी जीवन , जीवन का सबसे सर्वश्रेष्ठ समय होता है। जहां पर व्यक्ति न सिर्फ अपने सुनहरे भविष्य की नींव अपने कठिन परिश्रम से रखता है। बल्कि राष्ट्र के निर्माण में अपने योगदान की जिम्मेदारी भी तय करता है। 

इसी समय वह जीवन में आने वाले संघर्षों , उतार चढ़ावों , जीवन की बारीकियों तथा समाज के अन्य क्षेत्रों के बारे में जानने का प्रयास शुरू करते हैं। 

एक और जहां इन विद्यार्थियों को अंतरिक्ष का सीना चीर कर उसके रहस्यों को जानना है। चांद के उस दक्षिणी ध्रुव पर जाकर उसके अनदेखे पहलुओं को सुलझाना है। वही दूसरी ओर अपने पूर्वजों की विरासत , उनके संस्कारों , रीति-रिवाजों को भी समेत कर अपनी भावी पीढ़ी के हाथों में धरोहर के रूप में भी देना है। 

यानि हम यूं कह सकते हैं कि हमारे देश के विद्यार्थियों के मजबूत कंधों पर ही आत्मनिर्भर भारत का सपना टिका है। और यह उन्हीं के मजबूत इरादों से फलेगा व फूलेगा भी। 

भारत में विद्यार्थी

हर देश की असली पूंजी छात्र और युवा होते हैं। जो राष्ट्र को अन्य पूजियों से भर देने का साहस रखते हैं। और विश्व पटल पर अपने देश को आर्थिक , सामाजिक , बौद्धिक , धार्मिक , आध्यात्मिक रूप से एक शानदार पहचान दिलाने में मददगार होते हैं। 

प्रत्येक व्यक्ति के बचपन का अधिकतम समय और युवावस्था के प्रारंभिक वर्ष एक विद्यार्थी के रूप में ही व्यतीत होते हैं। भारत में शिक्षा व छात्र जीवन को प्राचीन काल से ही महत्व दिया गया है। प्राचीन काल में माता पिता द्वारा अपने बच्चों को गुरुकुल में शिक्षा लेने हेतु भेजा जाता था। क्योंकि शिक्षा ही संस्कारों , धर्म , समाज व राष्ट्र के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होने की प्रेरणा देते हैं।

भारत में भी विद्यार्थी वर्ग की आबादी कुल राष्ट्रीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। जो भविष्य के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। आजादी के 70 वर्षों बाद भी भारत शिक्षा के क्षेत्र में काफी पीछे हैं।  भारत में 14 साल तक के बच्चों के लिए “शिक्षा का अधिकार कानून” बनाया गया है।

फिर भी लाखों की संख्या में ऐसे बच्चे हैं जो अपने घर के आर्थिक हालातों के कारण स्कूल का रुख नहीं कर पाते हैं। भारत में ऐसे भी कई गांव या कस्बे हैं जहां पर स्कूल , कॉलेजों की अच्छी व्यवस्था नहीं है। और कुछ गांवों या कस्बों में तो प्राथमिक स्कूल तक नहीं है। ऐसे में बच्चे कहां से विद्या ग्रहण करेंगे। 

इसीलिए सबसे पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हर बच्चा स्कूल जाकर विद्या ग्रहण करें। क्योंकि एक शिक्षित व्यक्ति ही राष्ट्र निर्माण में अपनी सक्रिय और जिम्मेदार भूमिका को पूर्ण रूप से निभा सकता है। 

रोजगार परक शिक्षा की आवश्यकता 

शिक्षा के साथ साथ विद्यालयों , कालेजों की गुणवत्ता पर सुधार करना भी आवश्यक है। ताकि हमारे विद्यार्थियों को विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान की जा सके। स्कूल , कॉलेजों से ही बच्चों को रोजगार परक व नई टेक्नोलॉजी पर आधारित शिक्षा देना अति आवश्यक है। हमारे देश में एक निश्चित शिक्षा ग्रहण करने के बाद ही विद्यार्थियों को रोजगार से संबंधित विषयों का प्रशिक्षण लेने की अनुमति है।

अगर स्कूल , कालेजों से ही ऐसे विषयों को प्रधानता दी जाए , जो रोजगार परक हों। जो विद्यार्थियों के अंदर कौशल का विकास कर सकें और भविष्य में उनके लिए रोजगार की संभावनाओं को खोल सकें । स्कूल के दिनों से ही विद्यार्थीयों को अपनी रुचि के अनुसार इन विषयों को चुनने की स्वतंत्रता देनी चाहिए।

इससे बड़ा फायदा यह होगा कि विद्यार्थी अपनी क्षमताओं का आकलन कर , अपनी रुचि को पहचान कर विषयों को चुनेंगे और उनकी बारीकीयों को अच्छे से समझने का प्रयास करेंगे। ताकि ये विषय भविष्य में उनके लिए रोजगार के दरवाजे खोले सकें । अगर हर हाथ के पास रोजगार होगा तो , राष्ट्रीय विकास के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत का सपना तो खुद ब खुद साकार हो जाएगा। 

आत्म निर्भर भारत , राष्ट्रीय विकास में छात्रों की भूमिका  (Students Contribution on National Development)

किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए वहां के नागरिकों को शिक्षित होना अति आवश्यक है। जब हम अपने बच्चों को शिक्षित करते हैं तो हम राष्ट्र के निर्माण में अपनी भागीदारी निभाते हैं क्योंकि यही बच्चे आगे चलकर देश को एक सही दिशा और दशा दे सकते हैं। अगर हम अपने देश के बच्चों को अशिक्षित रखेंगे तो , हमारा देश कभी भी तरक्की नहीं कर सकता है।

विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपनी शिक्षा का उपयोग अपने समाज , अपने देश की तरक्की के सर्वांगीण विकास के लिए करें। 

छात्रों के अंदर असीमित प्रतिभा और ऊर्जा होती है। इसीलिए वो समाज में व्याप्त अनेक बुराइयां  जैसे भ्रष्टाचार , सामाजिक असमानता , अनुशासनहीनता , लिंग भेद , अन्याय , दमन-शोषण , दहेज प्रथा , कन्या भूण हत्या , उग्रवाद , आतंकवाद आदि के खिलाफ एक मजबूत अभियान छेड़ कर , उसे समूल जड़ से नष्ट कर सकते हैं।

छात्र आंदोलनों के आगे तो बड़ी-बड़ी राजनीतिक शक्तियां भी झुकने को मजबूर हो जाती है।अपने विचारों व ऊर्जा से वो राष्ट्र निर्माण में आने वाली हर बाधा को दूर कर , विकास के पहिए को तेजी से घुमा सकते है। 

छात्र सरकार द्वारा चलाए जाने वाले राष्ट्रीय स्तर के अभियानों को बड़ी तेजी व सफलतापूर्वक चला सकते हैं। लोगों के अंदर इन अभियानों के प्रति जागरूकता पैदा कर सकते हैं। कोई भी अभियान छात्रों के माध्यम से सफलता पूर्वक चलाया जा सकता हैं। 

अगर छात्रों को पहले से प्रशिक्षण दिया जाए तो , वह किसी भी राष्ट्रीय आपदा के वक्त महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।जरूरत है तो उनकी क्षमताओं का सही उपयोग करना , उनका सही मार्गदर्शन करना। 

विद्यार्थियों का नकारात्मक पहलू

वैसे तो विद्यार्थी वर्ग हर देश के राष्ट्रीय विकास में मजबूत आधार स्तंभ की भूमिका निभाते हैं। लेकिन यही समय होता है जब विद्यार्थी को सही मार्गदर्शन ना मिले तो , उनमें भटकाव की स्थिति भी आ जाती हैं। और वो अपनी क्षमताओं और ऊर्जा का गलत कामों में इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं।

और कुछ राजनीतिक दल या स्वार्थी लोग इनकी क्षमताओं का भरपूर फायदा उठाते हैं। ये राष्ट्र विरोधी गतिविधियों जैसे आतंकवाद , उग्रवाद का दामन थाम लेते हैं।

हाल के कुछ वर्षों में इस तरह की घटनाएं देखने को मिली। जहां छात्र-छात्राओं द्वारा राष्ट्रीय संपत्ति को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचाया गया , स्कूल कॉलेजों में तोड़फोड़ या पत्थरबाजी जैसे घृणित कामों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिकाएं देखी गई।

जिससे राष्ट्रीय संपदा को तो नुकसान पहुंचता ही है , साथ में देश की छवि भी खराब होती है। और सबसे बड़ी बात हमारा राष्ट्रीय विकास का सपना भी चूर-चूर होने लगता है। ऐसे समय में विद्यार्थियों को इन स्वार्थी व बरगलाने वाले लोगों से बचाना आवश्यक हैं। 

उपसंहार 

विद्यार्थी जीवन में ही व्यक्ति के अंदर अच्छे संस्कारों व आदर्श मूल्यों को स्थापित करना आवश्यक है। क्योंकि अपने देश के सम्मान व गौरव के लिए अपनी जान कुर्बान करने का जज्बा इनके दिलों में पलता हैं और देश का सर्वांगीण राष्ट्रीय विकास कर भारत को एक आत्मनिर्भर भारत बनाने का सपना इन्हीं के दिमाग से होकर गुजरता है।

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