आत्म-निर्भर भारत : लिंग, जाति और जातीय पूर्वाग्रहों से मुक्ति।

Atma Nirbhar Bharat Independence from gender , caste and ethnic biases.

आत्म-निर्भर भारत: लिंग , जाति और जातीय पूर्वाग्रहों से मुक्ति 

आत्म-निर्भर भारत

लिंग , जाति और जातीय पूर्वाग्रहों से मुक्ति 

Atma Nirbhar Bharat

Independence from gender, caste and ethnic biases

Atma Nirbhar Bharat-Independence from gender , caste and ethnic biases

प्रस्तावना 

“सबका साथ सबका विकास” आज भारत सरकार इसी स्लोगन पर चल रही है। जाति , धर्म और लिंग से ऊपर उठ कर भारत की सरकार ने समस्त देशवासियों को साथ लेकर भारत को आत्मनिर्भर बनाने का एक सपना आम जनमानस को दिखाया है। 

और यह भी सच है कि जब तक हम लिंग , जाति व जतीय भेद के उलझन में पड़े रहेंगे। तब तक हम ना खुद अपना विकास कर सकते हैं ना देश का भला कर सकते हैं। अगर भारत को आत्मनिर्भर बनना है तो हमें इन सब से ऊपर उठकर सिर्फ देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनकर सोचना और काम करना पड़ेगा , तभी देश आत्मनिर्भर बन पाएगा। 

भारतीय संविधान और जाति , लिंग व जतीय भेदभाव

आज जब भारत का एक कदम धरती पर और एक कदम चंद्रमा पर है। तब भी आम भारतीय जनमानस लिंग भेद , जाति भेद और जातीय भेदभाव में ही उलझा पड़ा है। वह स्मार्ट फोन के माध्यम से दुनिया को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेना तो चाहता है। लेकिन अपने दिमाग से वह जाति और लिंग के भेदभाव का भूत उतार ही नहीं पाता है। यह अजीब सी विडंबना है भारत की। 

भारतीय संविधान देश के सभी नागरिकों को एक सूत्र में बांधता है। चाहे वह किसी भी धर्म , जाति या संप्रदाय से क्यों न हो। चाहे स्त्री हो या पुरुष। भारतीय संविधान सबको बराबर अधिकार देता है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 के मुताबिक भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ सिर्फ उसके धर्म , भाषा, जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता हैं । यानि भारत के हर नागरिक के सभी अधिकार समान हैं।

लिंग भेदभाव व आत्मनिर्भर भारत

जब हम गर्व से कहते हैं कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। तब हम यह भूल जाते हैं कि इस 21वीं सदी में भी हम बेटे और बेटी में फर्क करते हैं। आज भी हम अपने घरों में बेटे के पैदा होने पर खूब जश्न मनाते हैं और बेटी होने पर दुखी हो जाते हैं।

पहले तो कोशिश यह करते हैं कि बेटी पैदा ही ना हो। उसे गर्भ में ही मार दिया जाए। लेकिन कुछ खुशनसीब बेटियां पैदा होती जाती हैं तो , धरती पर आंखें खोलते ही उनके साथ भेदभाव शुरू हो जाता है। और यह भेदभाव बेटी के साथ घर के सदस्यों के द्वारा ही सबसे पहले किया जाता है। फिर समाज कहां पीछे रहने वाला।

आज भी बेटियों के साथ खानपान , शिक्षा ,नौकरी आदि जगहों में भेदभाव किया जाता है।कुछ जगहों में तो एक ही काम के लिए पुरुष को ज्यादा वेतन और महिलाओं को कम दिया जाता है।महिलाओं के साथ इस तरह का भेदभाव होने का मुख्य कारण भारत का पितृसत्तात्मक समाज है। जहां पर बेटे को वंश का वारिस माना जाता है और बेटियों को पराया धन। 

जाति , जतीय भेद भाव व आत्मनिर्भर भारत

जाति और जातीय भेदभाव भारत को आत्मनिर्भर भारत बनने में सबसे बड़ा बाधक है। भारत में जाति जन्म आधारित एक पहचान है। यह तो सर्वविदित है कि प्रकृति ने भौगोलिक आधार पर मानव को कुछ भिन्नतायें अवश्य दी हैं जैसे रंग , रूप आदि।लेकिन जाति व जातीय भिन्नता तो हम इंसानों की ही बनाई हुई है। 

हमारे देश में लोग अक्सर जाति , धर्म के नाम पर लड़ाई-झगड़े , हिंसा , आगजनी करते रहते हैं।लोगों के जानमाल व राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। कुछ राजनेताओं के लिए तो जातिवाद चुनाव जीतने का सबसे बड़ा व सबसे सरल हथियार है।वो चुनाव जीतने के लिए इस  जातीय गणित का भरपूर उपयोग करते हैं। 

जाति , लिंग व जतीय भेदभाव आत्मनिर्भर भारत के रास्ते में बाधक

(Independence from gender, caste and ethnic biases)

जाति , लिंग व जतीय भेदभाव , ये तीनों ही भारत को आत्मनिर्भर भारत बनने के रास्ते में सबसे बड़े बाधक हैं। जब तक हम स्त्री और पुरुष में भेद करना नहीं छोड़ेंगे ,तब तक हम तरक्की के रास्ते पर नहीं चल सकते हैं। हमें महिलाओं और पुरुषों को एक नजर से ही देखना होगा। दोनों को समान अवसर प्रदान करने ही होंगे।

क्योंकि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं होती हैं।आज वो हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर ही काम करने का सामर्थ्य रखती हैं। वह घर और बाहर दोनों जगह की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं। आज दुनिया का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां पर महिलाएं पुरुषों के साथ खड़ी ना हो। 

जातिवाद का नासूर जब तक भारत की आत्मा को छेदता रहेगा , तब तक भारत आत्मनिर्भर होने के रास्ते पर नहीं चल सकता हैं। चाहे किसी भी धर्म , समाज या किसी भी वर्ग के लोग हो , सभी सभी वर्गों में लोग समान रूप से प्रतिभावान होते हैं और हर व्यक्ति की चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो , सबकी अपनी अपनी विशेषता व कार्य करने की क्षमता अलग होती है। 

एक हाथ के साथ एक हाथ मिलकर हम ग्यारह हो जाते हैं। और ग्यारह लोग मिलकर किसी भी कार्य को बड़ी आसानी से कर सकते हैं बजाय एक के । अगर हमें आत्मनिर्भर भारत को मजबूत बनाना है तो हर व्यक्ति को सिर्फ भारत का नागरिक मानकर ही चलना होगा। अपने देश को तरक्की के रास्ते पर ले जाने के लिए हम सब को मिलकर एक सामूहिक प्रयास करना होगा। 

 उपसंहार 

जब तक देश में जाति , पंथ , धर्म और लिंग आदि असमानताएं विद्यमान रहेंगी , तब तक हम भारत को विकसित राष्ट्र नहीं बना सकते या आत्मनिर्भर भारत नहीं बना सकते। अगर हमें भारत को विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभरना है और आत्मनिर्भर बनना है , तो स्त्री , पुरुष,  जाति , धर्म का भेद भूलकर , सब को एक नजर से देखना होगा।और मिलकर सामूहिक प्रयास करना होगा। 

सबको समान अधिकार और समान अवसर देने होंगे। और सबकी समस्याओं को सुनकर उन्हें निपटाना होगा। जब हम सभी भारतवासी बनकर अपने देश के लिए मिलकर कार्य करेंगे , तो ही हमारा भारत , आत्मनिर्भर भारत बनकर दुनिया के मानचित्र पर शान से उभर आएगा। 

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