Essay on Labor Migration Is A Serious Social Problem
लॉकडाउन के दौरान मजदूरों का पलायन एक गंभीर सामाजिक समस्या
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Essay on Labor Migration Is A Serious Social Problem
संकेत बिंदु
- प्रस्तावना
- मजदूरों का पलायन एक गंभीर सामाजिक समस्या
- मजदूरों के पलायन के कारण
- मजदूरों के पलायन का समाधान
- उपसंहार
प्रस्तावना
“पलायन” शब्द अपने आप में ही कई सारे सवाल खड़े कर देता हैं। चाहे वो हमारे देश के उच्च शिक्षित नौजवानों का अच्छे वेतन , सुख सुविधाओं के लालच में विदेशों में पलायन हो या देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पलायन हो या फिर रोजी रोटी के चक्कर में अपना घर – बार , खेती-बाड़ी छोड़कर दूसरे राज्यों में काम की तलाश में निकले मजदूरों का पलायन हो। भारत के लगभग हर राज्य में यह बहुत बड़ी समस्या है जिसका अभी तक कोई ठोस हल नहीं निकल पाया है ।
लेकिन लॉकडाउन के दौरान भारी मात्रा में मजदूरों का बड़े शहरों से अपने गांवों की तरफ पलायन यानि रिवर्स माइग्रेशन (Reverse Migration) “सबका साथ सबका विकास” कहने वाली केंद्र सरकार , गरीब तबके के लिए कल्याणकारी योजनाओं का खाका खींचने वाले बुद्धिजीवियों और समाज के हर व्यक्ति के मन में अनगिनत सवाल छोड़ गया।
मजदूरों का पलायन एक गंभीर सामाजिक समस्या
वैसे तो पलायन , हमारे देश में बरसों से चली आ रही एक बहुत बड़ी समस्या है जिसका अभी तक किसी भी सरकार ने कोई ठोस समाधान नहीं निकला है लेकिन लॉकडाउन के दौरान राजधानी समेत कई छोटे-बड़े शहरों से मजदूरों के पलायन ने इसे एक गंभीर सामाजिक समस्या के रूप में उभारा।
एक ओर जहाँ हम अपने आप को आधुनिक व विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा करने की प्रतिस्पर्धा में लगे हैं। वही दूसरी ओर हर साल शहरों से गाँवों की ओर , और गावों से शहरों की ओर पलायन करने वाले लाखों मजदूरों की समस्यायों का पुख्ता समाधान निकाल पाने में असमर्थ हैं । वरना लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के सामूहिक पलायन की समस्या न आती।
लॉकडाउन के दौरान घर से बाहर निकलने की सख्त मनाही के बावजूद देश के विभिन्न शहरों से बड़ी संख्या में कारखाना मजदूर और दिहाड़ी कामगार अपने परिवारों के साथ अपने – अपने गांवों की ओर पैदल ही निकल पड़े। सड़क पर निकले इन लोगों में से ज्यादातर यूपी – बिहार के थे । पूरे देश में लॉकडाउन लगाते वक्त न तो देश की केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकारों को इस अप्रत्याशित घटना का लेस मात्र भी अंदाज रहा होगा।
हालाँकि बाद में केंद्र व राज्य की सरकार , जिला प्रशासन , रेलवे , पुलिस , गैर सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने जगह जगह पर इन प्रवासी मजदूरों के खाने-पीने की व्यवस्था की। केंद्र व राज्य की सरकारों ने अपनी – अपनी तरफ से कई सुविधाएं भी प्रदान की। जैसे कम दरों पर राशन उपलब्ध करना , सीधे खाते में पैसे भेजना आदि ।
कुछ राज्यों ने इन प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए बस सेवाएं भी शुरू की। बावजूद इसके इन प्रवासी मजदूरों को रास्ते में कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। छोटे-छोटे बच्चों की जान आफत में आ गई और कई लोग तो अपने घर तक पहुंचे ही नहीं। इन प्रवासी मजदूरों के पलायन के कारण कोरोना के फैलने का डर भी बना रहा। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि हम ऐसी स्थिति के लिए तैयार क्यों नहीं थे। ऐसी समस्या आयी ही क्यों ? लॉकडाउन लगाने से पहले इस समस्या के बारे में सोचा क्यों नहीं गया ?
मजदूरों के पलायन के कारण
हर साल हजारों लोग गाँवों से शहरों की तरफ रोजगार के उद्देश्य से पलायन करते हैं। खासकर जिन राज्यों में जनसंख्या अधिक है और उद्योग धंधे कम हैं। वहां से पलायन अधिक मात्रा में होता है।पलायन करने वाले अधिकतर मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। भारत में मजदूरों के पलायन करने के कई सारे अहम कारण हैं। जिनमें सबसे प्रमुख है सभी राज्यों में समान रूप से विकास का न होना , भारत की भौगोलिक स्थिति , विकास नीतियों का सही से लागू ना होना। शिक्षा खासकर रोजगार परक शिक्षा की कमी , स्वरोजगार की सही जानकारी न होना आदि।
भारत के कुछ राज्य जैसे दिल्ली , गुजरात , महाराष्ट्र , पंजाब , कोलकाता , तमिलनाडु आदि में आजादी के बाद बहुत अच्छा विकास हुआ । इन राज्यों कई कल-कारखाने व बड़े-बड़े उद्योग – धंधे स्थापित किए गए जिनसे लाखों लोगों को रोजगार मिला। लेकिन कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश , बिहार , उड़ीसा , राजस्थान के कुछ हिस्से , झारखंड , उत्तराखंड आदि में विकास की रफ्तार बहुत धीमी रही। इसीलिए इन राज्यों में पलायन दर बहुत ज्यादा हैं।
एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन कर गए मजदूर अधिकतर असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। जहां उन्हें न्यूनतम वेतन के साथ – साथ शोषण का शिकार भी होना पड़ता है। इनसे जरूरत से ज्यादा काम लिया जाता है और उस हिसाब से वेतन बहुत कम दिया जाता है । इनको किसी भी प्रकार की कोई सामाजिक सुरक्षा प्रदान नही की जाती है। असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों का सबसे दुखद पहलू यह होता हैं कि इनको खुद भी पता नहीं होता है कि इनकी नौकरी कब तक सुरक्षित रहेगी।यानि ये लोग मालिक के रहमोकरम पर जीते हैं।
मजदूरों के पलायन का समाधान
अगर राज्यों को अपने राज्य से हर साल होने वाले सैकड़ों लोगों के पलायन को रोकना हैं तो उसके लिए उन्हें कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। कौशल आधारित शिक्षा व उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा , कामगारों के समान वेतन की व्यवस्था करनी होगी। राज्यों द्वारा अधिक से अधिक युवाओं को उनके आसपास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके साथ ही उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों की खपत के लिए बाजार उपलब्ध कराने में सरकार को भी पूरा सहयोग करना पड़ेगा। क्योंकि अगर लोगों को अपने गांव या शहर के आस-पास काम मिलेगा तो वो अपना शहर छोड़ने को मजबूर नहीं होंगे।
कृषि और बागवानी के अलावा लगभग हर राज्य में पर्यटन की अपार संभावनाओं को नकारा नही जा सकता हैं । इसीलिए सुनियोजित तरीके से पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। ताकि नवयुवकों को इससे जोड़कर उन्हें उनके राज्य में ही रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति अपना राज्य छोड़कर दूसरे राज्यों में नौकरी या कोई अन्य काम हेतु जाता है तो उसे नियोक्ताओं तथा सरकार के द्वारा वित्तीय सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।क्योंकि बड़े हो या छोटे , कोई भी उद्योग धंधे , कल – कारखाने इन कामगारों के बैगर नही चल सकते हैं।
पलायन कर एक राज्य से काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में जाने वाले मजदूरों के लिए हर राज्य में महिलाओं के हॉस्टिल के जैसे ही “मजद्दूर हॉस्टिल या सराय” बनाये जा सकते हैं। जहां उन्हें न्यूनतम धनराशि में भोजन व रहने की सुविधा उपलब्ध हो सके। इन मजदूरों की आर्थिक सिक्योरिटी के लिए हर स्तर पर व्यवस्था होनी चाहिए।और इनको स्वास्थ्य इन्शोरेंस जैसी सुबिधाओं से जोड़ा जाना भी आवश्यक है। क्योंकि देश में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों के लिए किसी भी प्रकार का सुरक्षा कवच फ़िलहाल उपलब्ध नहीं है।
पलायन करने वाले मजदूरों के आंकड़े किसी भी सरकार के पास नहीं होते हैं। इस तरह के मजदूरों का रजिस्टेशन करना आवश्यक है ताकि कोरोना जैसी महामारी के वक्त या अन्य किसी भी विपरीत परिस्थिति में इनकी मदद की जा सके।हालांकि केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले मजदूर वर्ग के लिए अनेक तरह की कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिसमें निम्न वर्ग को तरह-तरह के लाभ भी दिए जाते हैं। लेकिन पलायन करने वाले मजदूरों के सही आंकड़े या रजिस्टेशन न होने की वजह से केंद्र सरकार और राज्य सरकार की इन योजनाओं का लाभ कुछ लोग ही उठा पाते हैं और कुछ इससे वंचित रह जाते हैं।
इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए सरकार द्वारा अलग – अलग तरह के कार्ड बनाये जाते हैं। इसीलिए सरकार को यह पता नहीं चल पाता है कि कौन व्यक्ति कितनी योजनाओं का लाभ ले चुका हैं। इसीलिए कुछ ऐसी व्यवस्था की जानी आवश्यक है जिसमें राज्य सरकार व केंद्र सरकार से मिलने वाली सारी योजनाओं का लाभ एक ही कार्ड के जरिए मिल सके।ताकि लाभार्थी को भी पता रहे कि उसे कितनी योजनाओं से लाभ मिल सकता हैं और सरकार को भी पता चल सके कि उक्त व्यक्ति को कितनी योजनाओं का लाभ मिल चुका हैं।
One Nation One Card योजना पूरे देश में लागू की जानी हैं। जिसके तहत निम्न तबके के परिवारों को परिवार के सदस्यों के हिसाब से राशन दिया जाता है। लेकिन अगर परिवार का कोई सदस्य अपने परिवार से दूर किसी दूसरी जगह में रहता हैं तो उसे उसके हिस्से का राशन उसी जगह पर उपलब्ध हो सके , ऐसी सुबिधा भी की जानी आवश्यक हैं।शहरों से अपने घर वापस लौटे लोगों के रोज़गार के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे क्योंकि बेरोजगारी के कारण इनके कदम अपराध की दुनिया की तरफ भी बढ़ सकते हैं।
पलायन रोकने की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम यह है कि सभी गाँवों को बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क , बिजली , पानी , अस्पताल , स्कूल , इंटरनेट सेवा आदि से जोड़ना पड़ेगा । समय – समय पर गाँवों में सरकारी योजनाओं की जानकारी के लिए विभागों द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर सभी योजनाओं की जानकारी ग्रामीणों तक पहुंचाई जाए । कृषि संबंधित सभी नई योजनाओं की जानकारियों को किसान भाइयों तक पहुंचाया जाना भी आवश्यक है ।गांव के बेरोजगार शिक्षित नवयुवकों को स्वरोजगार के नए माध्यमों का प्रशिक्षण देना भी अनिवार्य है । अगर अपने गांव में ही शहरों जैसी सुविधाएं व रोजगार मिलेगा तो व्यक्ति अपना गांव छोड़ कर शहर की तंग गलियों में क्यों अपना जीवन बिताएगा ।
उपसंहार
कोरोना महामारी का असर दुनिया के हर देश की अर्थव्यवस्था के ऊपर पड़ा । इस आपदा में जहां एक ओर लाखों लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई तो वही दूसरी ओर हजारों लोगों के जमे जमाये व्यवसाय चौपट हो गए। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। लेकिन लॉकडाउन के समय भारत ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले हजारों मजदूरों के पलायन के रूप में एक और सामाजिक समस्या का सामना किया। जो वाकई में बहुत ही भयावह था। हालांकि केंद्र सरकार ने कंपनियों व फैक्ट्री मालिकों से लोगों को नौकरी से न निकालने की अपील की थी जिसका ज्यादा असर देखने को नही मिला।
लेकिन भविष्य में हमें फिर से अपने मेहनतकशों की इस तरह की तस्वीर देखने को न मिले। इसके लिए आज से ही ठोस कदम उठाने होंगे । निम्न तबके के लोगों की शिक्षा , सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा , निश्चित रोजगार की व्यवस्था करनी होगी। स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों के हिसाब से हर राज्य में कुटीर एवं लधु उद्योग धंधे स्थापित करने होंगे क्योंकि यही छोटे एवं लधु उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। लोगों को स्वरोजगार की तरफ मोड़ना होगा ताकि व्यक्ति अपने स्थान पर ही रहकर रोजगार प्राप्त कर सके और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती भी मिल सके।
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