आत्म-निर्भर भारत: जैव विविधता और कृषि समृद्धि के माध्यम से नए भारत का निर्माण।

Making of a new India through Bio-Diversity and Agricultural Prosperity:

आत्म-निर्भर भारत : जैव विविधता और कृषि समृद्धि के माध्यम से नए भारत का निर्माण , Hindi Essay on Making of a new India through Bio-Diversity and Agricultural Prosperity .

आत्म-निर्भर भारत

जैव विविधता और कृषि समृद्धि के माध्यम से नए भारत का निर्माण 

Essay on Making of a new India through Bio-Diversity and Agricultural Prosperity

Making of a new India through Bio-Diversity and Agricultural Prosperity

Content / विषय सूची /संकेत बिंदु 

  1. प्रस्तावना 
  2. कृषि क्या है।
  3. जैविक विविधता किसे कहते हैं।
  4. जैविक विविधता व कृषि का महत्व 
  5. जैव विविधता के माध्यम से नए भारत का निर्माण।
  6. कृषि समृद्धि के माध्यम से नए भारत का निर्माण।
  7. जैविक विविधता व कृषि भूमि में कमी 
  8. उपसंहार 

प्रस्तावना 

भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सपना हर भारतीय के दिल में पल रहा है। इसीलिए ऐसे क्षेत्रों की तलाश की जा रही है।जहां पर इस सपने के साकार होने की भरपूर संभावनाएं हैं। कृषि और जैव विविधता के क्षेत्र से आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार किया जा सकता है। क्योंकि भारत की  लगभग 70% जनसंख्या आज भी कृषि से संबंधित अलग-अलग कार्यों से ही अपना जीवन यापन करती है।

वहीं जैव विविधता के मामले में भी भारत एक संपन्न राष्ट्र है। भारत के पास इन जैव विविधता वाले क्षेत्रों में रहने वाले पेड़-पौधे और जंतु के बारे में भी अच्छी जानकारी है जो हमारे पूर्वजों की देन है। भारत वैसे भी आयुर्वेद का ज्ञाता माना जाता है। 

कृषि क्या है?

फसलों को उगाने की प्रक्रिया को कृषि कहा जाता हैं ।यानि सरल भाषा में भूमि व प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर फसल (फल , फूल , अनाज ) उत्पादन करने की प्रक्रिया को कृषि कहते हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य इंसान की प्राथमिक जरूरतों को पूर्ण करना है।

भारत कृषि प्रधान देश है। और इस देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि कार्यों पर निर्भर करती है। इसीलिए कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी माना जाता है। भारत में कृषि प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही की जाती रही है।

लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के वक्त भारत में कृषि की हालत बहुत अच्छी नहीं थी। पहले भारत में कृषि लिए पारंपरिक बीजों का प्रयोग किया जाता था। जिनमें सिंचाई की अधिक जरूरत पड़ती थी और अनाज का उत्पादन भी कम होता था। उस समय किसान उर्वरकों के रूप में गाय के गोबर आदि का प्रयोग करते थे।

लेकिन जनसंख्या के हिसाब से फसलों की पैदावार नहीं होती थी। इसीलिए भारी मात्रा में खाद्यान्नों को बाहर से आयात करना पड़ता था। लेकिन 1960 के बाद कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति के साथ नया दौर आया।और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का जम कर प्रयोग होने लगा ।जिससे किसानों के घर अनाज से भर गए और जनसंख्या के हिसाब से खाद्यान्नों की आपूर्ति आसानी से पूरी होने लगी। 

सन् 2007 में भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं सम्बन्धित कार्यों का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) लगभग 16.6% था। उस समय लगभग 52% लोग कृषि कार्यों से जुड़े थे।

जैविक विविधता किसे कहते हैं।

धरती में पाया जाने वाला हर जीव-जंतु , पेड़-पौधे , कीड़े मकोड़े , परिंदे आदि हमारे पर्यावरण व हमारी प्रकृति के संतुलन को बनाने में एक अहम भूमिका निभाते हैं। इस पृथ्वी के अलग-अलग भौगोलिक भू-भाग पर अलग-अलग तरह के जीव-जंतु , पेड़-पौधे पाए जाते हैं।

किसी एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले अलग-अलग प्रजाति के जीव जन्तु व वनस्पतियों के समूह को जैव विविधता कहते है।

ये दुर्लभ प्रजाति के जीव-जंतु  , पेड़-पौधे न सिर्फ जैव विविधता को दर्शाते हैं। बल्कि हमारे राष्ट्र को भी समृद्ध बनाते हैं। ये हमें सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी  संपन्न बनाते हैं। 

जैविक विविधता व कृषि का महत्व 

जैव विविधता हमारे पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए आवश्यक है। और प्रकृति में उगने वाला हर एक पौधा या हर एक जीव जीव-जंतु हमारी खाद्य श्रृंखला को मजबूत करता है और हमारी पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ बनाने का काम करता है।

इसीलिए संतुलित और सुदृढ़ पर्यावरण के लिए जैव विविधता महत्वपूर्ण है। और ये सभी मिलकर मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूर्ण करते है।और इस धरती को हम इंसानों के रहने लायक  स्वस्थ व सुन्दर बनाते हैं। 

दूसरी ओर कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड है। एक ओर जहां कृषि क्षेत्र भारत के लोगों के लिए एक सबसे बड़ा रोजगार देनेवाला क्षेत्र है। देश की लगभग 68% जनसंख्या अपनी आजीविका हेतु कृषि कार्यों पर ही निर्भर है।

खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। वहीं दूसरी ओर यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  कृषि की सकल घरेलू उत्पादन में भागीदारी लगभग 22% है।

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कृषि समृद्धि के माध्यम से नए भारत का निर्माण

भारत में कृषि क्षेत्र से अपार संभावनाएं हैं। जो भारत को आत्मनिर्भर भारत बनाने में सहायक हो सकते हैं। वैसे भी कृषि हमारी राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा स्रोत है।

हम जिन खाद्य वस्तुओं का आयात दूसरे देशों से करते हैं। अगर हम उन खाद्य पदार्थों को अपने देश में ही उगाना शुरू कर दें तो , हमारी मुद्रा विदेशों में जाने से बच जाएगी , साथ में हमें इन वस्तुओं के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

और हम जिन चीजों का निर्यात करते हैं। वैज्ञानिक और आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल कर उन वस्तुओं की पैदावार को दुगना कर अपनी निर्यात क्षमता को बढ़ा सकते हैं। और विदेशी मुद्रा भी ज्यादा मात्रा में अर्जित कर सकते हैं। यह हमें सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न करेगा और आत्मनिर्भर भारत की तरफ हमारा एक मजबूत कदम भी बढ़ाएगा। 

अगर हम कृषि में नए नए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करें , उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल करें , जलवायु और मिट्टी के हिसाब से फसलों का उत्पादन करें , तो खाद्यान्नों के मामले में भारत आसानी से आत्मनिर्भर हो जाएगा। उसे किसी और देश से कुछ भी खाद्य वस्तु आयात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी , उनके आर्थिक हालात सुधरेंगे। दूसरा अपने देश की मुद्रा देश में ही रहेगी और अगर हम अतरिक्त खाद्य सामानों का निर्यात करेंगे तो , यह विदेशी मुद्रा को भी हमारे देश में लाए ले आएगा। जो आत्मनिर्भर के भारत के सपने को साकार करेगा। 

कृषि के माध्यम से न केवल खाद्यान्न उपलब्ध होते है बल्कि इसके माध्यम से उद्योगों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध होता है। जैसे फलों व फूलों पर आधारित छोटे व लघु उद्योगों के लिए कच्चा माल , अगरबत्ती उद्योग , चीनी उद्योग , चाय उद्योग , सिगरेट उद्योग और तम्बाकू उद्योग , सूती वस्त्र उद्योग , जूट उद्योग आदि।

भारत से अनेक वस्तुओं का बड़ी मात्रा में विदेशों को निर्यात किया जाता है जैसे चाय , कपास , तिलहन , मसाले , तम्बाकू आदि । जिन से विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है जो देश के आर्थिक खजाने  में वृद्धि करती है और देश को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

साथ ही किसानों की आय को बढ़ाकर उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध बनाती हैं। और उनकी सामाजिक और आर्थिक उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 

कृषि में अन्न उत्पादन के अलावा फल और सब्जी उत्पादन , फूलों की खेती , पशुधन  , मत्स्य पालन और वानिकी भी शामिल हैं।जो इसे और भी लाभकारी बनाने में सहायक हो रहा हैं। 

कृषि क्षेत्र को सामाजिक , आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से लाभदायक बनाने के लिए अब इसमें सूचना प्रौद्योगिकी का भी इस्तेमाल शुरू हो गया हैं। जिसे डिजिटल कृषि कहा जाता है।

इसमें फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और उसे अधिक लाभदायक कमाने के लिए आधुनिक तकनीकी व सेवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा हैं । किसान अब खेती से जुड़ी अपनी समस्याओं का हल ढूढ़ने के लिए , नई कृषि विधियां जानने व समझने के लिए  Facebook , Whatapp जैसे प्लेटफार्मों से जुड़ रहे हैं।

और घर बैठे बैठे कृषि वैज्ञानिकों से भी मदद ले रहे हैं।किसान अब अपनी मिट्टी की गुणवत्ता की जांच करने के बाद उसी के हिसाब से फसल उगाकर दुगना लाभ कमा रहे हैं। 

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जैव विविधता के माध्यम से नए भारत का निर्माण

जैव विविधता हमारे पारिस्थितिकीय तंत्र व प्रकृति को तो मजबूत करती हैं साथ में राष्ट को भी आर्थिक सुदृता प्रदान करती है। जैव विविधता के कारण इन्सान की मूलभूत आवश्यकताओं पूरी होती है।

किसी क्षेत्र विशेष पर जितनी अधिक प्रजाति के पौधे व जीव जंतु पाए जाते हैं , वह देश उतना ही संपन्न माना जाता है। प्राचीन काल से ही भारत आयुर्वेद का ज्ञाता रहा है जिसमें दुनिया में उगने वाले हर पौधे को महत्वपूर्ण माना जाता है।

प्रकृति में उगने वाले कुछ दुर्लभ किस्म के ऐसे पौधे होते हैं प्रकृति में उगने वाले कुछ ऐसे दुर्लभ पौधे होते हैं जिनसे बनने वाली औषधि असाध्य से असाध्य रोगों को भी दूर कर देते हैं। कुछ का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधनों को बनाने में किया जाता हैं।

ऐसे ही कुछ फूलों से बेहतरीन किस्म की खुशबू बनाई जाती हैं। और कुछ उद्योगों के लिए कच्चा माल इन्हीं जगहों से प्राप्त होता हैं। निर्माण कार्य व फर्नीचर उद्योग प्रमुख हैं। अगर इन क्षेत्रों में फोकस किया जाए तो देश का राजस्व तो बढेगा ही , आम लोगों को रोजगार भी मिलेगा और उनके आर्थिक हालात भी सुधर जाएंगे। 

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी हमारे देश में जैव विविधता का बहुत बड़ा महत्व है।   भारत के धर्म संस्कृति में भी पौधों पेड़-पौधों  ,जीव जंतुओं का बहुत को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे हर घर आंगन में तुलसी का पौधा लगाया जाता है जिसे” घर घर का वैद्य” माना जाता है।

तुलसी का पौधा अपने आप में कई रोगों को दूर करने कर देता है। इसी तरह नीम , हल्दी जैसे अन्य अनेक पौधे हमें हर रोज अनेक बीमारियों से दूर रखते हैं।  हम सांस्कृतिक रूप से भी अपनी जैव विविधता के महत्व को खूब समझते हैं। ये जीव-जंतु , पेड़ -पौधे , इंसान को किसी न किसी रूप से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचाते ही हैं।

 दुनिया भर के वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं को जैव विविधता वाले क्षेत्र बहुत भाते हैं। वो इन जगहों पर जाकर महत्वपूर्ण शोध करते हैं। जो आगे चलकर मानव कल्याण के काम में आते हैं। ये हमारा मनोरंजन का कार्य भी करते हैं क्योंकि इकोटूरिज्म इन्हीं जगहों पर खूब फलता फूलता है।

अगर सिर्फ जैव विविधता वाले क्षेत्रों पर फोकस कर कार्य किया जाए , तो भारत की अर्थव्यवस्था को काफी बल मिलेगा। आत्मनिर्भर भारत का सपना सच होगा। 

 जैविक विविधता व कृषि भूमि में कमी 

 विगत कुछ वर्षों में इंसान ने विकास के नाम पर जो नुकसान पर्यावरण व प्रकृति को पहुंचाया है उसका परिणाम अब सामने आने लगा है। इस धरती से कई सारे जीव-जंतु व पेड़ पौधों की प्रजातियां विलुप्त हो गई है। और कुछ विलुप्त होने के कगार में है। जैव विविधता भी अब खतरे में आ गई है। 

इस धरती पर पायी जाने वाली एक छोटी सी तितली भी जैव विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा देती हैं। जब वह अपने पैरों में चिपका कर एक फूल के परागण दूसरे फूल तक पहुंचा देती है।

प्रदूषण , उद्योग , कल कारखानों से निकलने वाला विषैला धुआँ ,प्लास्टिक आदि ने इन जीव जंतु व पेड़-पौधों के जीवन चक्र में भी असर डाला है। ऊपर से हमने इनके प्राकृतिक आवास भी छीन लिए हैं।

जब से इंसान ने तकनीक और मशीनों पर ज्यादा भरोसा करना शुरू किया। उसने प्रकृति को जाने अनजाने में ही नुकसान पहुंचाए है। जिस कारण इस धरती में अनेक बदलाव देखने को मिल रहे हैं। वैसे तो प्रकृति शांत भाव से इंसान के इस अन्याय को सहती है। लेकिन कभी-कभी वह अपना रौद्र रूप दिखा ही देती है। 

 इसी तरह विकास के नाम पर हमने खेती योग्य भूमि पर बड़े-बड़े कंक्रीट के जंगल (भवन और बिल्डिंग ) खड़े किये हैं। खेती योग्य भूमि हर रोज कम होती जा रही है जिसका सीधा सीधा असर हमारे खाद्यान्नों पर तो पड़ेगा ही , साथ में देश की अर्थव्यवस्था में भी पड़ेगा।

रासायनिक खादों व कीटनाशकों के प्रयोग से भी भूमि की उर्वरता खत्म हो जा रही है , मिट्टी की जल भंडारण क्षमता में भी कमी आ रही है जो हमारे आत्मनिर्भर भारत के लिए खतरा है। 

उपसंहार

हम अकेले इस धरती पर जी नहीं सकते।हमें इस धरती पर जीने के लिए एक स्वस्थ पर्यावरण , एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र ,  शुद्ध हवा , शुद्ध पानी व खाद्यान्नों के साथ-साथ कई और मूलभूत चीजों की जरूरत होती है।

हमारी कुछ जरूरतों है जो कृषि संबंधित कार्यों से पूरी होती हैं , तो कुछ जरूरतों को ये जैव विविधता वाले क्षेत्र स्वयं ही पूरा कर देते हैं।जहां ये हमको जीने के लिए स्वस्थ हवा , पानी व औषधि आदि वस्तुओं को बिना स्वार्थ के प्रदान करते हैं।

वैसे ही कृषि से हमारे जीने के लिए अन्न , फल , सब्जी और अन्य जरूरी वस्त्रओं मिलती हैं। ये दोनों क्षेत्र ना सिर्फ हमारा भरण पोषण करते हैं। बल्कि हमें आर्थिक रूप से भी संपन्न बनाते हैं।

अगर हम इन दोनों क्षेत्रों में ईमानदार कोशिश करें। तो भारत को आत्मनिर्भर भारत होने से कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि ये दोनों ही क्षेत्र हमारे पास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। बस आवश्यकता है ईमानदार कोशिश करने की , पढ़े लिखे लोगों की इस क्षेत्र में आकर इसको नए आयाम देने की। 

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