उत्तराखंड में उद्योग धंधे
किसी भी समाज या राष्ट्र की उन्नति में वहां के उद्योग धंधों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बिना औद्योगिक विकास के आर्थिक उन्नति पूर्ण रूप से संभव नहीं है। क्योंकि बिना उद्योग-धंधों के लोगों को रोजगार नहीं मिल सकता। और लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा तो उनके जीवन स्तर में बदलाव की संभावनाएं नगण्य रहती है।
और बिना रोजगार के किसी समाज की आर्थिक उन्नति भी संभव नहीं है ।किसी भी समाज का औद्योगिक विकास में वहां की प्राकृतिक संपत्ति का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। अगर इसी प्राकृतिक संपत्ति का सही तरीके से दोहन किया जाए। तथा उसकी पुनः उत्पत्ति व उसके विस्तार की संभावनाओं को बढ़ाया जाए।
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तो इससे स्थानीय लघु उद्योगों एवं कुटीर उद्योगों के पनपने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। लोगों को रोजगार भी मिलता है ।जिससे उनके जीवन स्तर पर सुधार आता है। और एक समाज की उन्नति पूरे राष्ट्र की उन्नति को प्रभावित करती हैं। यानी हम यूं कह सकते हैं कि किसी राष्ट्र की उन्नति में उसके समाज का बहुत बड़ा योगदान होता है ।
उत्तराखंड में मैदानी भाग में उद्योग धंधे
उत्तराखंड में उद्योग धंधों का विकास बहुत कम हुआ है।लगभग नहीं के बराबर ही है।यहां पर बड़े उद्योग धंधे तो है ही नहीं।जो थोड़े बहुत है भी तो वह भी मैदानी भाग तक ही सीमित है।जैसे रानीपुर में भेल के द्वारा विद्युत जनरेटर बनाने का एक बड़ा उद्योग स्थापित है।तो नैनीताल जिले में चार व देहरादून जिले में एक चीनी मिल है ।
इसी प्रकार देहरादून में तेल और प्राकृतिक गैस आयोग का मुख्यालय है जो देश में तेल शोधन एवं उत्पादन का प्रमुख संस्था है। नैनीताल जिले के मैदानी क्षेत्र में एक कागज बनाने की (पेपर मिल) तथा कोटद्वार में एक प्लाईवुड बनाने का कारखाना स्थापित है।साथ ही साथ उधमसिंह नगर में कुछ चीनी की मिलें व चावल की मिलें स्थापित है।
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तथा देहरादून में वन विभाग का एक वन अनुसंधान केंद्र तथा उसके उत्पादन से संबंधित फैक्ट्रियां भी स्थापित हैं। नैनीताल में रानी बाग में एच.एम.टी घड़ियों को बनाने का एक कारखाना बरसों से घड़ियां बनाने का काम करता था। लेकिन वर्तमान में उसका अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है।
उत्तराखंड में पहाड़ी भाग में उद्योग धंधे
(कुटीर एवं लघु उद्योग पहाड़ी भाग में स्थापित किये जा सकते है )
उत्तराखंड का पहाड़ी भूभाग तो वैसे भी बड़े उद्योग-धंधों के लिए अनुकूल नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं है कि उस पहाड़ी भाग में कोई भी उद्योग धंधे विकसित ही नहीं हो सकते हैं। इस भूभाग को प्रकृति ने अपार उपहारों से नवाजा है जिनसे अनेक तरह के कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना आसानी से हो सकती है।
ये कुटीर एवं लघु उद्योग स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित हो सकते हैं जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही। साथ में उनकी आर्थिक उन्नति भी होगी।और उनके जीवन स्तर पर निश्चित रूप से बदलाव आएगा।
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कुछ क्षेत्र जैसे रानीखेत, रामगढ़ ,मुक्तेश्वर ,जोशीमठ तथा अल्मोड़ा आदि स्थानों सेब ,लीची, अखरोट ,अंगूर, खुमानी ,चुलू ,आडू ,पूलम ,नाशपाती जैसे फल अत्यधिक मात्रा में होते हैं ।इसी तरह से ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खासकर पिथौरागढ़ जनपद में माल्टा की खेती (मौसमी) बहुत अधिक मात्रा में होती हैं ।क्योंकि इस क्षेत्र की जलवायु इस फल के लिए उपयुक्त है।
फलों व फूलों की खेती की संभावनाएं
उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में फलों व फूलों की खेती की संभावनाएं बहुत अधिक हैं।लेकिन चाहे फल हो, फूल हो।लेकिन पहाड़ों में इन फलों की अच्छी पैकिंग कर उनको तुरंत बाजार पहुंचाने के लिए या फिर इन फलों को संरक्षित करने की कोई ठोस योजना नहीं है।या कोई आधारभूत ढांचा नहीं है।
जिसकी वजह से यह बहुमूल्य फल प्रतिवर्ष यूं ही बर्बाद हो जाते है।क्योंकि एक बार पकने के बाद फल अधिक समय तक बिना किसी वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित करे विना सुरक्षित नहीं रह सकता है ।इन फलोत्पादन क्षेत्रों के निकट इन पर आधारित जैम, जूस, अचार,स्कवैस आदि बनाने के कुटीर उद्योग लगाए जाए सकते हैं।
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आलू की खेती
इसी तरह जोशीमठ और अन्य इलाकों में आलू की पैदावार बहुत अधिक मात्रा में होती हैं ।लेकिन कोल्ड स्टोर के अभाव में सैकड़ों कुंतल आलू यूं ही प्रतिवर्ष सड़ जाता है।जबकि आलू से बनने वाले चिप्स और पापड़ की बाजार में बहुत अधिक मांग रहती है ।इसलिए आलू से बनने वाले इस तरह के उद्योग की उन जगहों पर प्रबल संभावनाएं हैं। जिस जगह पर आलू का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता है।
समस्या इन आलूओ को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता होती है।जिससे इनको लंबे समय तक सुरक्षित रखा जाए। स्थानीय युवकों को इन कुटीर उद्योगों को लगाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाए तो इससे कई नव युवकों को रोजगार मिलेगा।
जड़ी बूटियां व औषधियां
इसी तरह उच्च हिमालई क्षेत्रों में अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां व औषधियां पाई जाती हैं। जिनका दोहन जानकारी के अभाव में नहीं किया जाता है। जिससे कई जड़ी बूटियां बाजार में तक पहुंच ही नहीं पाती हैं ।
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अगर इन जड़ी बूटियों का उत्पादन वागवानी के रूप में किया जाए। तथा सही जानकारी उपलब्ध कराई जाए। और दवा कंपनियों के साथ तालमेल बिठाया जाए।तो इससे लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही साथ में सरकार को भी राजस्व प्राप्त होगा।इस संबंध में स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण दिया जाए। तो इसे भी एक लघु उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता है ।
कुटीर उद्योग
इसी तरह उत्तराखंड के जंगलों में रिंगाल व बांस जैसे पेड़ अधिक मात्रा में मिलते हैं ।और इन से कई तरह के सामान आसानी से बनाये जाते है जैसे टोकरिया, चटाइयां, बैठने के लिए कुर्सियां व सोफे तथा अन्य कई घर में सजाने की वस्तुएं ।
पशुओं पर आधारित मक्खन ,पनीर, दूध , दही, मट्ठा का उत्पादन तथा साथ ही साथ भेड़ों से मिलने वाले ऊन से गर्म शॉल व गर्म कपड़े, पश्मीना शॉल ,कंबल, ऊन से बनने वाली अनेक चीजें बनती है।
तथा रेशम पर आधारित उद्योग की भी संभावनाएं हैं। क्योंकि रेशम के कपड़े से अनेक तरह के परिधान बनाए जाते जो दिखने में सुंदर व आकर्षक होते हैं।
तथा हस्तशिल्प उद्योग में अखरोट की लकड़ी से भी अनेक तरीके के फर्नीचर व कलात्मक चीजें बनाई जा सकती हैं। जिनको सजावट के तौर पर लोग अपने घरों में रखना पसंद करते हैं । यहां पर चीड़ के फलों को भी अनेक तरह की कलाकृतियों में ढाला जा सकता है।
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कागज उद्योग व फर्नीचर उद्योग
कागज उद्योग व फर्नीचर उद्योग भी यहां पनप सकते है।उत्तराखंड के जंगलों में चीड़ बहुत अधिक मात्रा में मिलता है। जिससे लीसा उद्योग को स्थापित करने की प्रबल संभावनाएं हैं ।इसी तरह उत्तराखंड के कई हिस्सों में भांग की खेती की जाती है ।
भांग के बीज तो अनेक तरीके से काम आते ही हैं।जैसे भांग से बनने वाली चटनी ,भांग को सब्जी के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। नमक के साथ भी भांग का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन भांग के रेशे से भी अनेक तरह की वस्तुएं बनती है । इन रेशों से मजबूत रस्सियों बनाई जाती हैं।
पर्यटन उद्योग
उत्तराखंड में पर्यटन उद्योग की अपार संभावनाएं है क्योंकि यहां पर ऐसी अनेक जगह है जैसे कॉर्बेट पार्क ,फूलों की घाटी ,राजाजी पार्क ,गंगोत्री तथा गोविंद राष्ट्रीय उद्यान, अस्कोट वन्य विहार ,केदार वन्य विहार ,सोना नदी वन्य विहार, बिनसर वन्य विहार।
जहां पर पर्यटक वन्यजीवों को देखने के साथ-साथ वहां के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने हर साल हजारों की तादात में पहुंचते हैं।साथ ही साथ यहां पर पर्वतारोहण ,ट्रैकिंग ,राफ्टिंग ,स्कीइंग ,ग्लाइडिंग की अपार संभावनाएं हैं। वैसे भी उत्तराखंड की भूमि को देवभूमि कहा जाता है ।
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यहां पर अनेक प्रसिद्ध मंदिर तथा मां देवी के शक्तिपीठ स्थापित है।जिनके दर्शन करने श्रद्धालु हर साल यहां पहुंचते हैं। बस जरूरत है ।इन जगहों को सुविधायुक्त बनाने की तथा इन जगहों का विकास कर इनको दुनिया की नजरों में लाने की।
आज के समय में पर्यटन उद्योग एक बहुत बड़ा उद्योग है ।और उत्तराखंड में धार्मिक और प्राकृतिक दोनों तरह के पर्यटन स्थलों का विकास करने की तथा उनके प्रचार प्रसार की अति आवश्यकता है।
अगर सही तरीके से प्रचार प्रसार किया जाए और पर्यटन स्थलों का एक आधारभूत ढांचा तैयार किया जाए तो कई उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार तो मिलेगा ही, उनके जीवन स्तर में बदलाव भी आएगा तथा कई हद तक पलायन की समस्या से भी छुटकारा मिलेगा।
उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में बड़े उद्योगों को स्थापित करने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी भूभाग में छोटे लघु उद्योग और कुटीर उद्योगों की भी संभावनाएं कम नहीं है ।
बस जरूरत है उनको समझने की ,सरकार की तरफ से एक इमानदार कोशिश करने की, एक ठोस नीति के तहत स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर इस दिशा में एक सार्थक प्रयास करने की, लघु एवं कुटीर उद्योग में बने हुए सामान को बाजार तक पहुंचाने की या उनको एक विश्वसनीय बाजार उपलब्ध कराने की तथा उचित मूल्य देकर युवाओं को प्रोत्साहित करने की।
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