Women Health
Women Health in Uttarakhand hills ,स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह पहाड़ की महिलाएं in hindi
Women Health in Uttarakhand hills
महिलाएं किसी भी समाज का अभिन्न अंग होती हैं।महिलाओं के बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है ।तभी तो हमारे धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि जिस देश या समाज में नारी की पूजा होती है वही देवता बसते हैं।यानी कि जिस समाज और घर में नारी का सम्मान किया जाता है।वहां हमेशा उन्नति होती है। और देवताओं से सुख समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता है।
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लेकिन आए दिन आने वाली खबरें चाहे TV पर हो या अखबारों में।महिलाओं के साथ हर दिन होने वाले अत्याचारों से तो यह बिल्कुल भी नहीं लगता कि देश में अभी भी नारी की पूजा होती है।उत्तराखंड बनाने में महिलाओं का योगदान क्या कोई भूल सकता है।अनेक महिलाओं ने इस आंदोलन में अपना आर्थिक व राजनैतिक सहयोग दिया था।
कई महिलाओं ने अनेक अत्याचार सहे तो कई महिलाएं अपनी जान भी गंवा बैठी।कई महिलाओं की अस्मिता तक लूट ली गई। राज्य बनाने के इस आंदोलन में इतने सक्रिय भागीदारी के बाद भी उत्तराखंड की महिलाओं को आज तक सम्मान से जीने का हक व अधिकार नहीं मिला।
स्वास्थ्य किसी भी व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी होती है।चाहे वह महिला हो या पुरुष ।अगर आपके पास स्वास्थ्य नहीं तो आपके लिए संसार की हर चीज चाहे वह कितनी ही मूल्यवान क्यों न हो बेकार है।आप संसार की किसी भी चीज का आनंद नहीं उठा सकते ।लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ों में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं स्वास्थ्य के मामले में बहुत पीछे हैं।
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ग्रामीण इलाकों में महिलाएं अपने स्वास्थ्य के लिए लापरवाह
ग्रामीण इलाकों में महिलाएं पूरे घर के हर व्यक्ति का (चाहे वह बच्चे हो या बड़े ) सबका ध्यान रखती है। लेकिन वो अपना ध्यान रखना भूल जाती है।यूं कहें कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य के लिए प्रति बेहद लापरवाह रहती हैं। सुबह से देर रात तक लगातार काम करने वाली इन महिलाओं की दिनचर्या इतनी व्यस्त रहती है। कि उन्हें अपने स्वास्थ्य के बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिलता।
कई बार तो यह देखने में आता है कि जब तक उनकी स्थिति बिल्कुल गंभीर नहीं हो जाती। तब तक वो अस्पताल भी नहीं जाती और उनकी यही लापरवाही कभी कभी उनकी जान पर भारी पड़ती हैं। या उनकी बीमारी डॉक्टरों के बस से बाहर की हो जाती है।
घर की जिम्मेदारी महिलाओं के ऊपर
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर पुरुष रोजगार की तलाश में गांव से बाहर निकलकर शहरों में चले जाते हैं।गांव में रह जाती हैं महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे। और इन सब की देखभाल की जिम्मेदारी महिलाओं के ऊपर है।बच्चे व बुजुर्गों की देखभाल ,जानवरों की देखभाल, खेतों में हल चलाना, बीज बोना, निराई-गुड़ाई करना ,फसल काटना, तैयार फसल को अपनी पीठ या सिर पर रख कर घर तक ढोना हो।
Women Health in Uttarakhand hills
जानवरों के लिए घास व खाना बनाने व जलाने के लिए जंगल से लकड़ी लाना, पानी भरना, गोबर की टोकरी को पीठ या सिर में रख कर दूर खेतों तक पहुंचाना। महिलाओं की ही जिम्मेदारी हो गए हैं।क्योंकि पहाड़ों में सामान ढोने के लिए कोई सुविधा नहीं है। इसलिए इन महिलाओं को अपने पीठ पर रखकर ही इसे ढोना पड़ता है।
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इसीलिए इन ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य से संबंधित कई परेशानियां होती हैं।और सबसे बड़ी बात है कि ये काम की वजह से समय पर भोजन नहीं लेती। और जो भोजन लेती भी है उसकी गुणवत्ता और पौष्टिकता पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है।इनका भोजन अधिकतर संतुलित भी नहीं होता है।जैसे फल, सब्जियां, सलाद या अन्य तरह के पोषक पदार्थों से भरपूर खाना नहीं होता।
छोटी बच्चियों और लड़कियों के साथ तो खाने में वैसे भी भेदभाव किया जाता है।लड़कों के मुकाबले लड़कियों के भोजन में पोषक आहार की कमी होती है।अधिकतर ग्रामीण महिलाओं में कैल्शियम, विटामिन और आयरन की कमी पाई जाती है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का अभाव (Women Health in Uttarakhand hills)
पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल तो और भी बुरा है।कई-कई गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है।और कहीं-कहीं पर चार-पांच गांव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है भी तो उसमें प्राथमिक उपचार के लिए डॉक्टर, नर्स, दवाइयां व जरूरी उपकरण ही नहीं है।
अगर ऐसे में कोई बीमार भी हो जाए तो आप समझ सकते हैं कि उसका क्या हाल होगा।उत्तराखंड के पहाड़ों में कई गांव ऐसे भी हैं जो सड़क मार्ग से काफी दूरी पर स्थित हैं।अगर ऐसे में कोई बीमार हो जाए तो गांव के लोग उसको डोली में बिठाकर कई किलोमीटर पैदल चलकर सड़क मार्ग तक पहुंचते हैं।फिर वहां से उसे किसी नजदीकी अस्पताल में पहुंचाया जाता है।
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जरूरी नहीं कि उस अस्पताल में भी उसको सही तरीके से स्वास्थ्य सेवाएं मिल सके।कई बार तो डॉक्टर उसे आगे शहरों के प्राइवेट अस्पतालों की तरफ रेफर कर देते हैं।और इन प्राइवेट अस्पतालों का खर्चा उठाना सब मरीजों के परिजनों के बस की बात नहीं होती ।
जो इस खर्च को वहन कर सकते हैं। वो अपने मरीज को इन प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती कर उपचार कराते हैं। और जो नहीं कर पाते वो भगवान भरोसे ही रहते हैं। लेकिन इस पूरी कवायद में मरीज की जान पर बन जाती है।कई बार तो मरीज जान गंवा ही बैठते हैं।
गर्भवती महिलाओं के लिए यह स्थिति बहुत दर्दनाक और खराब है।कई बार तो महिलाएं अस्पताल पहुंचने से पहले ही बच्चे को जन्म दे देती हैं। र कई बार स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में गर्भवती महिला की मौत भी हो जाती हैं।यह सब कुछ बहुत दुखद है।
खासकर इस आधुनिक जमाने में ,जहां एक ओर तो इंसान मंगल ग्रह में बसने की तैयारी कर रहा है। और दूसरी ओर उसके पास पहाड़ी समाज के लिए रीड की हड्डी मानी जाने वाली इन महिलाओं के लिए बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।
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महिलाओं के लिए कोई स्वास्थ्य बीमा योजना नहीं(Women Health in Uttarakhand hills )
वैसे तो स्वास्थ्य सुविधाएं का ही बहुत बुरा हाल है।ऊपर से कई डॉक्टर तो पहाड़ चढ़ना भी नहीं चाहते। और जो चढ़ते भी हैं तो वो भी अस्पतालों में नियमित रूप से पहुंचते नहीं ।महिलाओं के लिए कोई स्वास्थ्य बीमा योजना नहीं है ।चुनाव के वक्त घोषणाएं तो काफी होती हैं लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता।
सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत गांव व कस्बों के लिए प्रशिक्षित महिला आशा कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया है। लेकिन इन कार्यकर्ताओं के पास भी पर्याप्त जरूरी चीजों की उपलब्धता नहीं होती है।बिना जरूरी चीजों के (दवा,उपकरण इत्यादि) मरीज की मदद बहुत अधिक नहीं कर पाती।
108 एंबुलेंस सेवा देती है थोड़ी राहत (Women Health in Uttarakhand hills)
हालांकि सरकार ने 108 एंबुलेंस सेवा की शुरुआत तो की। जो ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराता है। ग्रामीण इलाकों से बीमार व्यक्ति को तुरंत नजदीकी शहर या कस्बे के अस्पताल तक पहुंचाने में मदद करते हैं ।लेकिन यह सेवा भी सब गांवों में उपलब्ध नहीं है क्योंकि कई गांव तो सड़क मार्ग से जुड़े ही नहीं हैं।
ऐसे ही सरकार की एक और योजना है खिलती कलियां योजना जिसके तहत आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 वर्ष तक की बच्चियों को कुपोषण से बचाने के लिए भोजन या पैसे दिए जाने की योजना है।वह भी नियमित नहीं होती। किसी माह मिल जाए तो अगले माह मिलेगा ,इसकी उम्मीद नहीं होती।ऐसी योजनाओं का क्या और कितना फायदा बच्चों के स्वास्थ्य को होगा समझ सकते।
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ईमानदार जनप्रतिनिधि की जरूरत (Women Health in Uttarakhand hills)
काश कोई सरकार, कोई नेता, कोई जनप्रतिनिधि ऐसा आए। जो पहाड़ की इन महिलाओं की हर दिन की चुनौतियों और मुश्किलों के बारे में सोचें।काश उनके लिए महिलाओं सिर्फ एक वोट ना होकर एक ऐसी इंसान हो जाए जिनको पीड़ा भी होती है और जो बीमार भी होती हैं। हर गांव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुलवा दे। जिसमें सारी सुविधाओं (डॉक्टर, नर्स, जरूरी उपकरण व दवाइयों) की व्यवस्था हो।
अगर सरकार ऐसा करती तो सिर्फ पहाड़ में रहने वाली महिलाओं का ही क्यों हर व्यक्ति का भला होता। समय पर उपचार मिलने से कई कीमती जानें आसानी से बच सकती है।सरकार निशुल्क उपचार उपलब्ध कराएं तो हर व्यक्ति का फायदा निश्चित होगा ।क्योंकि प्राइवेट अस्पताल काफी महंगे होते हैं। जिनका खर्चा पहाड़ की यह गरीब महिलाएं नहीं कर उठा सकती।
अधिकतर नेताओं के परिवार तराई में बस गए हैं। वो सिर्फ चुनाव के वक्त इन पहाड़ों का रूख करते हैं ।लच्छेदार भाषण व शानदार चुनावी वादों से इन महिलाओं को एक सुनहरा भविष्य दिखा कर वोट मांग लेते हैं। फिर चुनाव जीतने के बाद देहरादून में एसी कमरों में बैठ जाते हैं।कभी-कभार उन गांवों का दौरा करने चले आते हैं। ताकि अगले चुनाव तक इन महिलाओं को उनकी शक्ल याद रहे है।
Women Health in Uttarakhand hills
जो भी हो गलती हमारी ही है क्योंकि हम ही इन्हें चुनते हैं। लेकिन इन्हें चुनना भी हमारी मजबूरी ही है। अगर नई पीढ़ी के पढ़े लिखे योग्य युवा उम्मीदवार चुनाव लड़ते और जीते तो कितना अच्छा होता है।जिनको इन चीजों की समझ होती है। जिनके पास इन समस्याओं से निपटने के लिए एक ठोस योजना होती।
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वो किसी शहर में एयर कंडीशनर कमरे में बैठने के बजाय इन ग्रामीण इलाकों में रहते और जनता की समस्याओं का समय-समय पर समाधान करते।और इन महिलाओं को चुनाव में वोट या जनसभा में भीड़ बनाने में इस्तेमाल करने के बजाय। इनको एक समाज की नींव का पत्थर समझकर इनसे व्यवहार करते और उनके स्वास्थ्य के लिए सचेत रहते। सच में जरूरत है एक ठोस कदम स्वास्थ्य के लिए उठाने की।
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