Women in Hills
Challenges for Women in Uttarakhand Hills , पहाड़ सी चुनौतियों का सामना करती पहाड़ की महिलाएं in Hindi
Women in Hills(Uttarakhand)
आज काफी सालों बाद मुझे अपने पैतृक गांव जाने का मौका मिला।अवसर था एक शादी समारोह में शामिल होने का। मेरा गांव पिथौरागढ़ से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर डीडीहाट रोड पर है। हल्द्वानी से टैक्सी लेकर करीब 4:30 बजे हम पिथौरागढ़ पहुंचे।वहां से एक अलग टैक्सी लेकर हम गांव की तरफ चल पड़े ।करीब 2 घंटे की यात्रा के बाद हम गांव के बाहर एक जगह पर रुक गए।
गांव से करीब 2 किलोमीटर पहले ही सड़क मार्ग खत्म हो जाता है।तो टैक्सी छोड़ कर हम पैदल ही अपने गांव की तरफ चल पड़े ।शाम होने को थी सो हमें घर पहुंचने की जल्दी थी।घर पहुंचकर हम परिजनों से मिले।खाना खाया और ढेर सारी बातें करने के बाद आराम करने को चले गए।
अगले दिन सुबह 4:00 बजे जब मेरी नींद खुली तो देखा कि घर की सभी महिलाएं सवेरे के अपने कार्यों को निपटाने में व्यस्त थी।जबकि कुछ पुरुष अभी भी सोए थे।और कुछ पुरुष सवेरे की चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहे थे ।
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Women in Hills
आमतौर पर गांव में महिलाएं बहुत जल्दी उठकर अपनी दिनचर्या शुरू कर देती हैं।जैसे नोेलौं से पानी लाना (अगर घर पर नल नहीं है तो नोला ,पूरे गांव की पानी भरने की एक सामूहिक जगह होती है) , गोठ (गाय जिस जगह रहती हैं) की सफाई करना, जानवरों को चारा व पानी देना।दूध निकालना, गोबर को दूर खेतों में ले जाकर छोड़ना, फिर उसके बाद बच्चों के लिए नाश्ता पानी बनाकर उनको स्कूल भेजना ।
इन सब में वो महिलाएं इतनी व्यस्त थी कि उनको किसी से भी बात करने की फुर्सत ही नहीं थी।बच्चों के स्कूल जाने के बाद वो अपने घर के काम निपटा कर खेतों की तरफ चली गई।और परिवार की ही एक महिला कुछ बकरियों और गायों को लेकर उन्हें चराने जंगल की तरफ के लिए चली गई ।
मैं भी अपनी बुआ के साथ ही खेतों की तरफ निकल ली। बुआ की उम्र लगभग 58 से 60 साल के आसपास होगी।लेकिन इस उम्र में भी वह सुबह से देर रात तक बड़े आराम से काम करती हैं। या यूं कहें अभी भी काम करना उनकी मजबूरी है।खेतों का रास्ता गांव से होकर जाता है। इसलिए गांव को देखने का भी मौका मिला।
Women in Hills
गांव पहले की तुलना में काफी बदल चुका है। पहले जैसी रौनक अब गांव में नहीं रही।अधिकतर घरों में ताले लटक रहे थे। लोग अपने घरों को छोड़ कर शहरों में जा बसे थे।कारण कई थे।कोई रोजगार की तलाश में, कोई बच्चों को पढ़ाने के लिए, कोई फौज में भर्ती होकर परिवार को साथ लेकर चला गया था।थोड़े से परिवार गांव में रह गए हैं।कुछ घरों में सिर्फ बुजुर्ग ही रहते हैं।
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यूं तो पहाड़ में सीढ़ी नुमा खेत होते हैं।मैंने ऊपर से नजर घुमाई तो सब जगह मुझे खेतों में पीलापन ही पीलापन नजर आ रहा था।पता चला कि गेहूं और मसूर की फसल पक चुकी है।और अधिकतर महिलाएं उनकी कटाई में व्यस्त थी।दोपहर की चिलचिलाती धूप में भी वो सब गेहूं की कटाई में पूरी तरह से व्यस्त थी।
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बुआ से पूछने के बाद पता चला कि ये महिलाएं अपना दोपहर का खाना ,पानी सुबह ही साथ लेकर आती हैं। और शाम तक यहीं रह कर गेहूं की कटाई करती हैं। अब ये शाम को ही घर जाएंगी।उसके बाद घर पहुंच कर घर के असंख्य काम निपटायेगी। यही इनकी रोज की दिनचर्या हैं।
मैं हैरान थी।सुबह से शाम तक लगातार काम, काम और काम…. ।अब दोपहर हो चली थी।हम घर को लौट आए थे।घर की तरफ लौटते हुए देखा तो बंदरों का एक झुंड गांव के कुछ घरों पर टूट पड़ा था।कुछ बंदरों ने सूखने रखे अनाज को खाना शुरु कर दिया, तो कुछ बंदरों ने खेत में लगी सब्जी को उखाड़ कर खाना और फेंकना शुरु कर दिया।और कुछ ने फलों के पेड़ में चढ़ कर पत्तियों व कच्चे फलों को आधा खा कर फेंकना शुरु कर दिया।महिलाएं और बच्चे उनको भगाने का प्रयास कर रहे।
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शाम होने पर महिलाओं को खेतों से वापस लौटते हुए देख कर मुझे अजीब सा एहसास हो रहा था।घर पहुंचने के बाद दोबारा वो शाम के कामों को निपटाने में व्यस्त हो गई।फिर से वही दूध निकालना, गोबर निकालना, जानवरों को चारा देना, खाना बनाना , बच्चों व परिवार के अन्य लोगों को खिलाना, बर्तन धोना ,जानवरों की देखभाल करना।
क्योंकि शादी का घर था और 2 दिन बाद शादी होने वाली थी।महिलाओं के लिए और भी काम बढ़ गए।सब मेहमानों की देखभाल करना ,सामान रखने की व्यवस्था करना, आने-जाने वालों का ध्यान रखना और सूखी फसल को समेटना।
Women in Hills
अगले दिन सुबह करीब 10:00 बजे के आसपास घर के काम से निपट कर बुआ 12 से 15 महिलाओं के साथ जंगल को चली गई। पता चला कि शादी में खाना बनाने के लिए जंगल में सूखी लकड़ियां काट कर रखी गई है।ये सब महिलाएं उन्हीं लकड़ियां को लेने जा रही थी।करीब 2 घंटे बाद महिलाएं लकड़ी के बड़े-बड़े गट्ठर पीठ में लादे वापस आ गई।
घर पहुंचने के बाद थोड़ा आराम कर व चाय पीकर वो वापस अपने काम में लग गई।कोई घास काटने तो ,कोई गोबर का ढोक्का (टोकरी) पीठ में लगाए खेतों की तरफ निकल गई।पूरे दिनभर उन महिलाओं को दो घड़ी चैन से बैठे मैंने तो नहीं देखा।
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शादी का उत्साह तो उनके भी मन में था।लेकिन ऐसी भी कोई तैयारी नहीं थी।जैसे हम लोग आमतौर पर शहरों में करते हैं। (जैसे कौन से कपड़े पहनेंगे, कौन सी ज्वेलरी पहनेंगे, पार्लर जाना, मेहंदी लगाना ,मेकअप करना…. आदि) ।फिर शादी वाला दिन आ पहुंचा।घर में बहुत चहल पहल थी।सारे लोगों ने सुबह ही अपना काम निपटा दिया था।जानवरों की व्यवस्था कर दी थी। और दोपहर होते-होते बरात घर पर पहुंच गई।
धूमधाम से बारात का स्वागत और शाम को उसी अंदाज में बरात की विदाई कर दी।शादी का दिन बड़े धूमधाम से बीता।खुशियों भरा व मस्ती भरा रहा पूरा दिन।पहली बार गांव में गांव के लोगों द्वारा ही बनाया गया भोजन का स्वाद लिया। जो बड़े-बड़े तोलौं और कुंडे (बड़े-बड़े तांबे के बर्तन जिनमें गांव घरों में शादियों के वक्त बारात, बारातियों के लिए खाना बनाया जाता है) में आग में बना हुआ भोजन।हमारे शहरी खाने से कई गुना अधिक स्वादिष्ट होता है।
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Women in Uttarakhand Hills
लगभग 4 दिन गांव में रहने के पश्चात मैं बुआ जी से विदा लेकर अपने घर को वापस निकली।गांव से गाड़ी में बैठते ही मैंने यह महसूस किया कि पहाड़ की महिलाओं की जिंदगी कितनी कठिन है।इन महिलाओं ने पूरे पहाड़ की जिम्मेदारी को अपने कंधो पर उठा रखा है।और पता नहीं कब तक उठाती रहेंगी।कब तक इस पहाड़ को इन्हें कंधो पर उठाना पड़ेगा।
मगर ये महिलाएं बहुत ही जीवट, मजबूत व साहसी होती हैं। सुबह 4:00 बजे से रात के 10:00 बजे तक लगातार चक्की के पाट के जैसे चलती रहती हैं। मगर चेहरे पर फिर भी थकान की जगह मुस्कान।
जानवरों की देखभाल, बच्चों की देखभाल हो, चाहे खेतों में गोबर पहुंचाना हो, घास काटना, जंगलों से लकड़ी लाना, खेतों पर हल चलाकर बीज डालना या फिर फसलों की निराई, गुड़ाई और फसल पकने के बाद उनको घर तक पहुंचाने का काम हो, घर की देखभाल हो, यहां तक कि घर की पुताई, साथ ही साथ बच्चों व परिवार के अन्य सदस्यों की देखभाल करना भी इन्हीं की जिम्मेदारी है।
ये महिलाएं लकड़ी व घास लेने के लिए घर से जंगल की तरफ निकलती हैं। तो कभी कभी जंगली जानवरों का शिकार भी बन जाती हैं। तो कभी ऊँचे पहाड़ों से नीचे गिर कर अपनी जान गवा बैठती हैं।
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चारा बैंक की शुरूवात (Women in Hills)
हाल के दिनों में ऐसी घटनाओं में खूब इजाफा हुआ है।सरकार का कहना है कि महिलाओं को जंगल में न जाना पड़े। इसलिए उन्होंने चारा बैंक शुरू किया है। जिससे गांव के लोगों को जानवरों का चारा आसानी से उपलब्ध हो सकेगा। लेकिन कितने गांव में यह सुविधा है इसका पता ही नहीं है।और यह सुविधा कब तक हर गांव में पहुंचेगी यह तो सरकार ही जाने। सच में महिलाएं इन पहाड़ों में हर दिन पहाड़ सी चुनौतियों का सामना करती हैं।
महिलाओं के लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत (Women in Uttarakhand Hills)
सरकार इन महिलाओं के लिए चुनाव के वक्त बहुत सारी योजनाएं व घोषणाएं करती हैं।इन महिलाओं का जीवन थोड़ा आसान बनाने के लिए मंचों से खूब भाषण दिए जाते हैं। सेमिनारों का भी आयोजन किया जाता है।चुनाव में हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं।बड़ी-बड़ी आशाएं दी जाती हैं।लेकिन महिलाओं की जिंदगी आज भी जस की तस।हालांकि थोड़ी महिलाएं शिक्षा व रोजगार को लेकर जरूर जागरूक हुई हैं।लेकिन इनका प्रतिशत बहुत कम है ।
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पहाड़ की महिलाओं की सुरक्षा,शिक्षा व स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है ।मैंने देखा गांव में अधिकतर विवाहित लड़कियों की उम्र लगभग 16 से 20 साल के बीच में ही थी। उनमें से कोई हाईस्कूल पास थी तो कोई इंटरमीडिएट।कुछ ने आगे शिक्षा जारी रखने का उत्साह दिखाया तो कुछ का कहना था कि “अब पढ़ लिख कर क्या करना है।जब घर गृहस्थी ही संभालनी हैं “।
इन महिलाओं की जिंदगी से ये पहाड़ सा बोझ थोड़ा कम करने की जरूरत है। इन महिलाओं की दिनचर्या को देखते हुए मैं आज अपने को बहुत भाग्यशाली समझ रही हूं।और मुझे लग रहा कि मैं शायद यह जिंदगी कभी भी नहीं जी सकती ।पहाड़ दूर से देखने में जितने खूबसूरत है। पहाड़ की जिंदगी उतनी ही कठिन है।वाकई यहां जिंदगी बहुत कठिन है।अब मैंने करीब से महसूस किया।
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