Essay On Farmers In Hindi : किसान पर हिन्दी निबन्ध
Essay On Farmers In Hindi
किसान पर हिन्दी निबन्ध
प्रस्तावना
किसी ने ठीक ही कहा है “भूखे पेट भजन , न होय गोपाला” यानी अगर इंसान का पेट ही खाली हो तो उसका मन भगवान के भजन करने में या मोक्ष प्राप्त करने में भी नहीं लगता हैं ।पेट भरा होने पर ही दुनिया की हर वस्तु का आनंद लिया जा सकता हैं। और यही एकमात्र सत्य भी हैं।
हमारे देश में किसानों को अन्नदाता का सम्मान दिया जाता है। क्योंकि किसान वाकई में अन्नदाता होता है। बिना अनाज के क्या हम जीवन जीने की कल्पना कर सकते हैं। हम कई दिनों तक बिना वाहन , मोबाइल , टेलिविजन या किसी भी आधुनिक उपकरण के बिना रह सकते हैं।
लेकिन बिना अन्न के कितने दिन रह सकते हैं।इसीलिए पाषाण युग के बाद मानव ने सबसे पहले खेती करने की ही शुरूवात की और वह उसके जीने का मुख्य साधन बन गया।
किसान कौन है
इस धरती पर रहने वाले सभी मानवों की पहली और मूलभूत आवश्यकता भोजन ही है। और जमीन पर बीज रूप कर अपने खून पसीने से सींच कर अनाज (अनाज , फल , फूल सब्जी आदि ) को उगाने वाले को किसान कहा जाता है।सच्चाई यह है कि किसान ही लोगों का पेट भरते हैं।
कुछ किसान अनाज , फल , सब्जियों उगाते हैं तो , कुछ फूलों की खेती करते हैं। तो कुछ किसान तिलहनी फसलों , सूखे मेवों आदि की खेती से जुड़े रहते हैं।और इसी तरह कुछ कृषि के अन्य क्षेत्रों से। इसी के साथ किसान पशुओं से भी जुड़े रहते हैं। और पशु आधारित उत्पादों का उत्पादन भी करते हैं।
भारतीय किसान की आर्थिक स्थिति
किसान की आजीविका का मुख्य साधन भी कृषि ही रहता है। किसान की आर्थिक स्थिति बहुत हद तक उसके खेत में उगने वाली फसल पर ही निर्भर करती हैं।अगर किसान की खेती अच्छी हो गई तो उसकी आय भी अच्छी होगी।जो उसके सामाजिक और आर्थिक सम्मान में वृद्धि कर देती है।अगर फसल अच्छी ना हुई तो , यही अन्नदाता अन्न के एक एक दाने के लिए मोहताज हो जाता है।
भारत की लगभग 66% जनसंख्या कृषि और कृषि से संबन्धित अन्य कार्यों पर ही निर्भर रहती हैं। अधिकतर भारतीय किसानों का रहन-सहन बहुत सीधा सादा होता हैं।।लेकिन कुछ किसानों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी भी हैं। वैसे भी भारतीय किसान जीवट व कर्मठ होते हैं
किसान का जीवन सुबह से शाम तक खाद , मिट्टी , पानी , बीज आदि के बारे में ही सोचते निकल जाता है।चाहे पूस-माघ के महीने की कड़कड़ाती ठंड हो या जेठ-वैशाख की चिलचिलाती धूप या रिमझिम बारिश , कोई भी उन्हें अपने कर्तव्य से नहीं डगमगाती सकता है। किसान हर परिस्थिति में हर दिन अपने खेतों में लहलहाती फसल को देखते हुए ही आनंद महसूस करता है।
ग्रामीण क्षेत्र में हालांकि शिक्षित किसानों की संख्या बहुत कम है। और वो आज भी खेती के पुराने तरीके ही अपनाकर खेती करते हैं।उन जगहों पर कुछ किसानों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है। कठिन मेहनत करने के बाद भी अपना और अपने परिवार का भरण पोषण में मुश्किल से हो पाता है।
किसान और शिक्षा
भारत की आजादी से पहले हमारे देश के किसानों की दशा बहुत खराब थी।तब किसान किसान न होकर मजदूरों की तरह रहते थे। लेकिन आजादी मिलने के बाद धीरे-धीरे किसानों की दशा में सुधार आया। आजादी के बाद हमारे देश में शिक्षा का भी काफी प्रचार-प्रसार हुआ। किसानों ने भी शिक्षा ग्रहण की।आज के अधिकतर किसान शिक्षित हैं। और उन्हें अपनी शिक्षा का भरपूर फायदा खेती करने में मिला है।
कई किसानों ने विषैले रसायनों तथा कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर उसकी जगह जैविक खेती करना शुरू कर दिया है। और यह वाकई में कृषि जगत में एक नई पहल है। जिससे हमारा पर्यावरण भी स्वस्थ रहता है।और हवा , पानी , मिट्टी , पर्यावरण दूषित भी नहीं होते हैं । दूसरी ओर किसान की मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी खत्म नहीं होती , बल्कि वह दिनों दिन बढ़ती जाती है , जिसका फायदा किसानों को ही मिलता है।
कृषि के क्षेत्र में भी नए-नए औजारों , उपकरण का आविष्कार हुआ। जिनसे किसानों को फायदा पहुंचा। आज का किसान आधुनिक जानकारियों व वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल कर खेती करने लगा है।
मौसम पर निर्भर भारतीय किसान
भारत में अधिकतर खेती वर्षा के ऊपर ही निर्भर करती हैं। खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में। अच्छी वर्षा होने पर फसल अच्छी होती है। अन्यथा किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ जाता है। हालांकि मैदानी क्षेत्रों में नहरों तथा ट्यूबलों के द्वारा सिंचाई की जाती है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में इस तरह की कोई सुविधाएं नहीं होती हैं। वहां पर किसान सिंचाई के लिए मौसम व वर्षा पर ही निर्भर हैं।
पर्यावरणीय असंतुलन से मौसम चक्र में अनेक बदलाव आ गए हैं।कभी बीज बुवाई के वक्त बारिश नहीं होती , तो कभी इतनी अधिक हो जाती है कि खेतों में खड़ी , कटने को तैयार फसल ही खराब हो जाती हैं।
इसी तरह ओलावृष्टि और असमय बर्फबारी पहाड़ों की फसलों को और नुकसान पहुंचाती है। ऊपर से जंगली जानवरों भी आए दिन किसानों की फसलों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इस सबका असर किसान की आय पर भी पड़ता है।
कभी कभी आर्थिक नुकसान की वजह से उनके पास अगली फसल के लिए अच्छे बीज , खाद , औजार खरीदने के लिए पैसे भी नहीं होते हैं।अगली फसल को बोने के लिए उन्हें मजबूरन किसी साहूकार या बैंक से कर्ज लेना पड़ता है। जिसको चुका पाना कई बार उनके लिए आसान नहीं होता। ऐसे में कर्ज के बोझ से दबे होने के कारण कई बार छोटे किसान आत्महत्या जैसा घातक कदम भी उठा लेते हैं।
किसान व सरकारी योजनाएं
हालाँकि सरकार ने किसानों के लिए कई योजनाएं चलाई हैं।केंद्र सरकार का लक्ष्य 2022 तक भारतीय किसान की आय को दुगना करने का है। इसीलिए खाद , बीज तथा कृषि संबंधी उपकरणों के लिए सरकार की तरफ से ऋण दिया जाता है। इसके साथ ही कृषि संबंधी कुछ सामानों पर सरकार की तरफ से अच्छी खासी सब्सिडी भी दी जा रही है।
आज सरकार ने किसान की जमीन की मिट्टी की जांच , उस में उगने वाली फसल तथा उत्तम नस्ल के बीजों के बारे में जानकारी देने के लिए कई कार्यक्रम चलाये हैं।आज किसान इन सब के बारे में जानकारी हासिल कर वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल कर खेती करने को प्राथमिकता दे रहे हैं। ताकि अच्छी फसल उग सके।
उपसंहार
किसान वाकई में हमारे देश की रीड की हड्डी है। उन्हीं की मेहनत से देश आज अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बना है। सचमुच किसान ही देश का भाग्य विधाता होता है। देश की प्रगति किसान की प्रगति पर ही निर्भर करती है। जिस देश में किसान सुखी होता है , वह देश अपने आप ही सुखी व संपन्न होकर होकर विकास के रास्ते में चल पड़ता है।
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