Poverty Is Not Just Lack Of Money

Poverty Is Not Just Lack Of Money :

Poverty Is Not Just Lack Of Money

गरीबी सिर्फ पैसे की कमी नहीं होती है

Essay On Poverty Is Not Just Lack Of Money

  1. Poverty is not just lack of money . It is not having the capability to realize one’s full potential as a human being  – Amartya Sen
  2. गरीबी सिर्फ पैसे की कमी नहीं होती है। बल्कि गरीबी एक मानव प्राणी के रूप में अपनी पूर्ण क्षमता को अहसास या महसूस करने की योग्यता की कमी हैं।
  3. गरीबी सिर्फ पैसे की कमी नहीं होती है। बल्कि गरीबी एक मानव प्राणी के रूप में अपनी पूर्ण क्षमता को अहसास या महसूस न करने की योग्यता हैं। – अमर्त्य सेन

गरीबी किसी भी व्यक्ति के लिए एक अभिशाप की तरह ही हैं। भारत ने पिछले कुछ दशकों में लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में उल्लेखनीय प्रगति की है। लेकिन आज भी भारत में करीब 37 करोड़ गरीब हैं। पर खुशी की बात यह हैं कि 1994 से 2012 के दौरान गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों का अनुपात 45% से घटकर 22% हो गया। जो एक अच्छा संकेत हैं। 

गरीबी सिर्फ पैसे की कमी नहीं है । बल्कि गरीबी मनुष्य की सामाजिक गतिशीलता , स्वास्थ्य सेवा , सूचना की कमी , शिक्षा व न्याय तक की पहुंच की कमी व अन्य बातों पर भी आधारित होती है। हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां पर हम सोचते हैं कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है।सामाजिक स्थिति , सूचना , शिक्षा , रोजगार और स्वास्थ्य भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। 

गरीबी हैं क्या ?

जब कोई व्यक्ति अपने जीवन के निर्वाह के लिए बुनियादी आवश्यकताओं ( भोजन , वस्त्र और घर) को भी पूरा करने में असमर्थ होता है। उसे गरीबी कहा जाता हैं। भारत में उपभोग (घर की आवश्यक वस्तुओं पर खर्चा ) व आय (सभी सदस्यों द्वारा कमाई गई राशि ) के हिसाब से गरीबी के स्तर को मापा जाता हैं।  

भारत में गरीबी की परिभाषा

भारत में आमतौर पर गरीबी पैसे की कमी से जुड़ी है। भारत में गरीबी सिर्फ लोगों की बुनियादी जरूरतें जैसे रोटी , कपड़ा  और मकान की कमी को ही माना गया है। अगर किसी व्यक्ति को दो वक्त की रोटी जुटाने मुश्किल है। उसके पास रहने को छत नहीं है और पहनने को ढंग के कपड़े नहीं हैं। तो उस व्यक्ति को गरीब माना जाता है। 

यानी अगर एक व्यक्ति आराम से दो वक्त की रोटी जुटा रहा है। और उसके पास पहनने को कपड़ा और रहने को एक ठीक-ठाक मकान है तो उसे गरीब नहीं माना जाता है। आर्थिक हालात के आधार पर लोग किसी व्यक्ति को गरीब और अमीर घोषित कर देते हैं।

लेकिन गरीबी का मतलब पर्याप्त भोजन , कपड़ा और आश्रय होना नहीं है। भारत में बहुआयामी गरीबी व्याप्त है। और यह शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलती है। इसीलिए हाल के वर्षों (2014 ) में गरीबी की रेखा को परिभाषित करने के लिए आवास , घर और वस्त्र के अलावा इसमें शिक्षा , स्वास्थ्य , स्वच्छता , वाहन , ईंधन , शौचालय , मनोरंजन , रोजगार व सम्पत्ति आदि को भी शामिल किया गया हैं। 

हालाँकि भारत में आजादी के बाद से ही गरीबी उन्मूलन का नारा बुलंद किया जाता रहा है। हर चुनाव में इसे बड़े जोर शोर से उछाला जाता हैं। ऐसा लगता हैं जैसे कि इस चुनाव के बाद जीतने वाली पार्टी  भारत से गरीबी पूरी तरह से खत्म कर देगी । लेकिन यह मुद्दा चुनावी वादों तक ही सीमित रहता है। ठोस धरातल पर इस पर काम बहुत काम होता है।

सबसे बड़े आश्चर्य की बात है कि हमारा देश सांस्कृतिक धरोहरों व प्राकृतिक संसाधनों के मामले में हमेशा ही एक समृद्ध देश रहा है। फिर भी हम गरीब देशों की श्रेणी में आते हैं।

शायद इस देश की हर रोज बढ़ती विशाल जनसंख्या देश की गरीबी का सबसे बड़ा कारण है। क्योंकि लगातार होने वाली जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय को कम करती है। एक व्यक्ति का जितना बड़ा परिवार होगा। धन , चल अचल संपत्ति और भूमि का वितरण उतने लोगों में होगा। जो अंततः गरीबी का कारण बनता है। 

क्या हैं बहुआयामी गरीबी (Multidimensional Poverty)

एक व्यक्ति कई प्रकार से गरीब हो सकता है जैसे अच्छा व पौष्टिक आहार  , अच्छी शिक्षा , बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं , रोजगार , आश्रय  , संपत्ति आदि का न होना । रोटी , कपड़ा , मकान के अलावा खराब स्वास्थ्य , खराब शिक्षा , अशुद्ध पानी , बिजली का होना व स्वच्छता की कमी भी गरीबी हैं। इसे बहुआयामी गरीबी माना जाता है और आज यही गरीबी समाज में एक बहुत गंभीर समस्या बनी हुई है। 

भारत ही नहीं दुनिया भर में बहुत से लोग गरीब हैं। जिनके पास भोजन , शिक्षा , रोजगार और आश्रय की कमी है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने हाल ही में गरीबी का मापदंड या मापन प्रकाशित किया।जिसे बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index or MPI) कहा गया है। इसमें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दुनिया के उन 108 देशों को अपने शोध में शामिल किया। जहां दुनिया की लगभग 78% आबादी रहती है। उन्होंने अपने शोध में 1.6 बिलियन लोगों को बहुआयामी गरीब पाया हैं। 

बहुआयामी गरीबी में पैसे की कमी  , भौतिक संपत्ति व सुख सुविधाएं की कमी , पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल  की कमी , शिक्षा व आश्रय की कमी , कुपोषण या खराब आहार , सामाजिक पूंजी व कुछ अन्य बातों को शामिल किया गया था। 

बहुआयामी गरीबी सूचकांक क्या हैं ?

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI ) वह सूचकांक हैं जो गरीबी को न केवल आय के आधार पर बल्कि खराब स्वास्थ्य , काम की खराब गुणवत्ता और हिंसा के खतरे सहित अन्य संकेतकों पर  भी परिभाषित करता है। 

MPI में गरीबी निर्धारित करने के 10 संकेतक शामिल हैं। जिनमें स्कूली शिक्षा , बाल मृत्यु दर और पोषण , बिजली , घर , पेय जल , शौचालय खाना पकाने का ईंधन और संपत्ति आदि मुख्य हैं। 

गरीबी के अन्य रूप 

गरीबी के कई रूप है। गरीबी सिर्फ आर्थिक हालात पर आधारित ना होकर कई अन्य बातों पर भी आधारित है।

भारत में गरीबी क्षमता दृष्टिकोण के आधार पर भी है। हमारे समाज में अभी भी जातिगत भेदभाव बहुत अधिक है। आर्थिक रूप से मजबूत होने के बाबजूद भी अगर कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का है। तो आज भी उसे जातिगत भेदभाव के कारण गांव के कुएं या सार्वजनिक नल से पानी नहीं भरने नहीं दिया जाता हैं।या गांव में कृषि भूमि खरीदने नहीं दी जाती हैं या समाज के उच्च जाति के लोग अपने यहां शादी ब्याह या अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में उनको उपस्थित होने नहीं देते। यह जातिगत भेदभाव भी गरीबी को दर्शाता है।

यानी जातिगत भेदभाव के कारण मनुष्य को मानव प्राणी के रूप में अपनी पूर्ण क्षमता को अहसास या महसूस करने की योग्यता की कमी होती हैं। आर्थिक रूप से मजबूत होने के बावजूद इस व्यक्ति को क्षमता दृष्टिकोण के अनुसार गरीब माना जाता है। 

ऐसे ही अगर कोई अशिक्षित व्यक्ति है मगर वह आर्थिक रूप से मजबूत है। लेकिन उसके पास किसी बड़े ऑफिस में नौकरी पाने के लिए योग्य शिक्षा या डिग्री नहीं है। क्षमता दृष्टिकोण में शिक्षा के अभाव में इस व्यक्ति को गरीब माना जा सकता हैं। ऐसे ही व्यक्ति के पास भोजन बनाने के लिए ईंधन नहीं हैं या शुद्ध पेयजल व घर पर बिजली उपलब्ध नहीं हैं। यह भी गरीबी ही हैं।

भारत सरकार ने बनाई गरीबी उन्मूलन रणनीति

हम में से प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ अपना जीवन बिताना नहीं चाहता , बल्कि हम अपने काम , परिवार सामाजिक भूमिकाओं को विकसित करना चाहते हैं। और विकसित होने के लिए वित्तीय व सामाजिक पूंजी तक अपनी पहुंच बढ़ाना चाहते हैं। 

भारत सरकार ने गरीबी उन्मूलन रणनीति बनाई है जिसमें सरकार शिक्षा , स्वास्थ्य सेवाओं और कौशल विकास के माध्यम से गरीब लोगों की बढ़ती क्षमता पर ध्यान केंद्रित कर रही है। भारत सरकार ने जाति , धर्म , लिंग के भेदभाव को समाप्त कर सभी की क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित कर गरीबी को मिटाने का निर्णय लिया है।

इसके लिए सर्व शिक्षा अभियान , कौशल इंडिया मिशन , बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ , SC / ST भेदभाव के खिलाफ सख्त कानून बनाए गए हैं। सरकार गरीब लोगों की क्षमताओं को बढ़ाकर उनकी गरीबी को मिटाने का की योजना बना रही है। ताकि वो भी एक सार्थक और लंबा जीवन जी सकें और अपनी पूरी क्षमताओं का उपयोग कर बिना किसी सामाजिक भेदभाव के जी सकें। 

गरीबी किसी भी सभ्य कहे जाने वाले समाज के मुँह पर एक कलंक के समान हैं।भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व से बहुआयामी गरीबी को मिटाने के लिए सामूहिक प्रयास करने होगें। गरीबी में अपना जीवन बिताने वाले लोगों के लिए बेहतर अवसर प्रदान करने के लिए हमें बहुत अधिक व्यापक और गतिशील होकर सोचने की आवश्यकता है। 

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