Jageshwar Dham ,Jageshwar Temple Uttarakhand, Jageshwar dham Almora , आठवां ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं जागेश्वर मंदिर में ,दुनिया का ऐसा पहला शिवलिंग है जहां से शिव की लिंग रूप में पूजा शुरू हुई in Hindi.
Jageshwar Dham
आज मैं आपको बताने जा रही हूं देवताओं के एक ऐसे अदभुत गांव के बारे में जहां भोलेनाथ निवास करते हैं अन्य देवी-देवताओं के साथ। गांव शब्द का इस्तेमाल मैंने इसलिए किया क्योंकि यहां पर 124 मंदिरों का एक समूह है जो देखने में ऐसा लगता है।जैसे कि कोई गांव बसा हो मंदिरों का। देवताओं का यह गांव बसा है Jageshwar Dham।
Jageshwar Dham Almora ,Uttarakhand
एक ऊंची पहाड़ी के ऊपर ,देवदार के ऊंचे-ऊंचे हरे भरे पेड़ों के बीच में, कल कल बहती जटागंगा (शिव की जटाओं से निकलने वाली गंगा ) के तट पर , और समुद्र तल से लगभग 5,000 फुट की ऊंचाई पर। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने स्वयं भोलेनाथ के इस गांव को अपनी गोद में बिठाया हो।और हर वक्त बढे प्यार से इसे अपने हाथों से सजाती संवारती रहती हो।
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यहाँ से देखने पर दूर-दूर इंसानों द्वारा बसाये गये गाँव और सीढी नुमा हरे-भरे खेत, अंग्रेजी के S आकार के सड़कें भी नजर आती हैं।
सच में अदभुत है शिव का यह निवास स्थान जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham)।उत्तराखंड का पांचवा धाम ,जहां भोलेनाथ योगेश्वर रूप, नागेश्वर रुप (नागों के राजा) व महामृत्युंजय रूप (मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले देवता) में साक्षात विराजते हैं ।यहा पर दुनिया का ऐसा पहला शिवलिंग है जहां से शिव की लिंग रूप में पूजा शुरू हुई ।
Jageshwar Dham के इस शिवलिंग को स्वयंभू (अर्थात स्वत: ही धरती के गर्भ से प्रकट हुआ) माना जाता है ।इस ज्योतिर्लिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों में से आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है।यह उत्तराखंड(देवभूमि) के आध्यात्मिक स्थानों व प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक हैं।
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Jageshwar Dham Almora Story (कथा)
इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार माता पार्वती अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में बिना बुलाए अपने पति महादेव के साथ चली गई ।जहां पर दक्ष प्रजापति ने उनके पति भगवान भोलेनाथ का घोर अपमान किया ।जिस से दुखी होकर मां पार्वती उसी यज्ञ कुंड में सती हो गई । माता पार्वती के वियोग में भगवान भोलेनाथ अत्यंत दुखी हुए।
और उन्होंने उसी हवन कुंड की भस्म को अपने बदन में लगाकर दिगम्बर रूप में जागेश्वर धाम की इस पावन धरती में ध्यान में बैठ गए।इन्हीं जंगलों में सप्त ऋषि भी अपनी पत्नियों के साथ रहते थे ।एक दिन सप्त ऋषियों की पत्नियों जंगल में आवश्यक चीजें (लकड़ी, फल,भोजन इत्यादि) लेने हेतु गई थी।
तभी उन्होंने भगवान शिव को दिगंबर रूप में देखा और वह बेहोश हो गई। इधर सप्त ऋषि रात होने पर भी पत्नियों को वापस न लौटता पाकर अत्यंत चिंतित हो गए और उनकी खोज में निकल गए।
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उन्होंने देखा कि ध्यानमग्न महादेव के चारों ओर उनकी पत्नियां बेहोश पड़ी थी। किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए उन्होंने कुपित होकर महादेव को उनके लिंग बिच्छेदन का श्राप दे दिया।इससे चारों ओर हा-हाकार मच गया।तब महादेव ध्यान मुद्रा से बाहर निकले और उन्होंने सप्त ऋषियों को बिना कारण श्राप देने के दंड स्वरूप आकाश में तारों के साथ रहने का आदेश दिया।
जाने से पहले सप्त ऋषियों ने शिव के लिंग की स्थापना कर उसकी पूजा आराधना की। तभी से सप्त ऋषि आकाश में तारों के साथ हैं।और उसी दिन से इस जगह पर भगवान भोलेनाथ के लिंग रूप की पूजा की जाती है। पुराणों में ऐसे “हाटकेश्वर” भी कहते हैं। और भूराजस्व लेखों में इस जगह को “पारुण” कहा गया है।
वास्तुकला का बेजोड़ नमूना
अल्मोड़ा से करीब 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पतित पावन जागेश्वर धाम ( Jageshwar Dham) ।जो अपनी अदभुत वास्तुकला,अपनी भव्यता, विशालता ,ऊंचे मंदिर शिखरों, अद्भुत नक्काशी और काष्ठ कला के लिए मशहूर है।
124 मंदिरों का समूह
Jageshwar Dham में एक नहीं बल्कि 124 मंदिरों का समूह है। हालांकि इनमें से सिर्फ चार मंदिरों पर ही नियमित पूजा अर्चना की जाती है।बाकी के 120 मंदिरों में सिर्फ दर्शन किए जाते हैं। यहां पर 108 शिवलिंग भी स्थापित है। इन सभी शिवलिंग को स्वयंभू माना जाता है।
Jageshwar Dham History
सभी मंदिर आठवीं सदी में गुप्त साम्राज्य काल के दौरान के माने जाते हैं ।उस वक्त कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरी राजा का शासन था। ऐसा माना जाता है कि इन्हीं राजाओं ने जागेश्वर मंदिर का निर्माण किया था।मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी मिलती है।सभी मंदिर का निर्माण बड़ी-बड़ी शिलाओं को बड़े करीने से एक के ऊपर एक रखकर किया गया है।
और देखिए उस समय के कारीगरों की विलक्षण प्रतिभा बिना सीमेंट, बिना मिट्टी के बड़ी बड़ी शिलाओं को इतनी बारीकी और इतनी विशेषज्ञता के साथ रखा गया है।कि यह दिखने में खूबसूरत तो लगते ह़ी हैं और साथ ह़ी साथ मजबूती भी प्रदान करते हैं।ये तब से आज तक जस के तस बने हुए हैं।
और ऊपर से जगह-जगह पर उनके द्वारा उकेरी गई विभिन्न प्रकार की आकृतियां सच में मन मोह लेती है दर्शकों और पर्यटकों का। मंदिर के निर्माण में ताबे की चादरों तथा देवदार की लकड़ी का अत्यधिक प्रयोग किया गया है। दरवाजों में देवी देवताओं की मूर्तियों बहुत खूबसूरती से उकेरी गई है।
बेहद खास है शिव का मंदिर और महामृत्युंजय का मंदिर
जागेश्वर ( jageshwar dham) में दो मंदिर बेहद खास है जिनमें एक शिव का मंदिर और दूसरा महामृत्युंजय का मंदिर। महामृत्युंजय शिव का ही एक रुप है जो इंसान केे मन से मृत्यु का भय दूर करते हैं व अकाल मृत्यु से बचाते हैं ।
लिंग रूप में शिव पूजन यही से आरंभ हुआ
दुनिया का प्रथम मंदिर भी यही है जहां पर लिंग के रूप में शिव का पूजन का आरंभ हुआ।यह सबसे प्राचीन और सबसे विशाल मंदिर है।यहां पर विशाल शिवलिंग स्थापित हैै। तथा इसकी दीवारों पर भी महामृत्युंजय मंत्र लिखा हुआ है।
इन सभी 124 मंदिरों में जागेश्वर धाम का सबसे बड़ा मंदिर दन्देश्वर मंदिर है जबकि महादेव का सबसे बड़ा मंदिर महामंडल मंदिर है।इसके अलावा यहां पर अन्य देवी-देवताओं जैसे लकुलीश मंदिर,पुष्टि देवी मंदिर,केदारेश्वर मंदिर ,नवग्रह मंदिर ,हनुमान मंदिर, सूर्य मंदिर, तांडवेश्वर मंदिर, नव दुर्गा मंदिर ,बटुक भैरव मंदिर ,पिरामिड मंदिर भी स्थापित हैं।
उस समय के कारीगर शिल्प कला ,काष्ठ कला ,वास्तुकला में कितने माहिर थे। इस बात का यह मंदिर जीता जागता प्रमाण हैं।मंदिरों के शिखर ऊंचे ऊंचे हैं तथा मंदिरों के शिखर के ऊपर लकड़ी की छत भी लगाई गई है जिसे बिजौरा कहा जाता है ।
यहां पर एक यज्ञ कुंड भी स्थापित है। इस यज्ञ कुंड के बारे में कहा जाता है कि भगवान राम के बेटों लव कुश ने अज्ञानता बस अपने पिता श्रीराम को युद्ध के लिए ललकारा और उन से युद्ध किया। बाद में जब उनको इस बात का ज्ञान हुआ कि भगवान श्री राम उनके पिता हैं तो वह दुखी हो गए और उन्होंने पश्चाताप करने के लिए इस यज्ञ कुंड में यज्ञ किया।
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देवदार का युगल वृक्ष
मंदिर परिसर में एक देवदार का वृक्ष सभी भक्तजनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है।यह वृक्ष देवदार का वृक्ष है जो नीचे से तो एक ही है लेकिन ऊपर जाकर वह दो भागों में विभाजित हो जाता है।देवदार के इस अद्भुत वृक्ष को माता पार्वती और शिव का युगल रूप का प्रतीक माना जाता है यानी की माता पार्वती और शिव यहां पर युगल रूप में साक्षात दर्शन देते हैं।
वैसे भी भगवान शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में पूजा जाता है और यह पेड़ भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के उसी रूप को सार्थक करता हुआ नजर आता है। ऐसा वृक्ष इस देवदार के जंगल में और कहीं भी नहीं मिलता है।
यूं तो सालभर शिव की इस पावन धरती ( jageshwar dham) को देखने के लिए तथा यहां के प्राकृतिक सौंदर्य में मन की शांति को खोजने तथा भगवान के चरणों में बैठकर उनका आशीर्वाद लेने के लिए हजारों पर्यटक देश विदेश से आते हैं। लेकिन सावन के महीने में और शिवरात्रि में तो यहां आने वालों की तादात एकाएक बढ़ जाती हैं ।
सभी लोग इन पवित्र दिनों में भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद लेना चाहते हैं। तथा महामृत्युंजय भगवान से मृत्यु का भय दूर करने का आशीर्वाद मांगते हैं। सावन के पूरे महीने में और शिवरात्रि के पवित्र दिनों में इस जगह पर विशेष कर्मकांड, पार्थिव पूजा, जप, तप, ध्यान आदि किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर ( jageshwar dham) में व्यक्ति जो भी कामना से भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना करता है। भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इसी कारणवश पहले भगवान शिव के इस आशीर्वाद का कई लोग दुरुपयोग भी करने लगे थे।
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आदि गुरु शंकराचार्य जागेश्वर धाम आए
कालांतर में 8 वीं सदी के आसपास आदि गुरु शंकराचार्य जागेश्वर धाम ( jageshwar dham) आए। और उन्होंने शिव के इस स्वयंभू महामृत्युंजय मंदिर के लिंग को कीलित कर इसका दुरुपयोग होने से रोकने की व्यवस्था की। तब से लोग यहां पर अपने जीवन की उन्नति, सफलता व मंगलकारी कामनाओं के लिए ही भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं।
यहाँ पर कुमाऊ मंडल विकास निगम का एक गेस्टहॉउस भी हैं।जहा पर खाने पीने की अच्छी व्यवस्था है।
दूरी ( Distance from jageshwar dham)
जागेश्वर आने के लिए सड़क ह़ी एक मात्र विकल्प हैं। लेकिन यहाँ आने के लिए बस व टैक्सी आराम से उपलब्ध हो जाती हैं।
Distance from Kathgodam to jageshwar dham
जागेश्वर से काठगोदाम (रेलवे स्टेशन) की दूरी लगभग 130 किलोमीटर की है।
Distance from Kathgodam to Pantjagar
और जागेश्वर से पंतनगर(हवाई अड्डे) की दूरी 167 किलोमीटर है।
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